प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
07-04-2017, 12:28 PM,
#13
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
रेशम की तरह कोमल और मक्खन की तरह चिकना अहसास मेरी अँगुलियों पर महसूस हो रहा था। जैसे ही मेरी अंगुली का पोर उस रतिद्वार के अन्दर जाता उसकी पिक्की संकोचन करती और उसकी कुंवारी पिक्की का कसाव मेरी अंगुली पर महसूस होता। पलक जोर जोर से सीत्कार करने लगी थी और अपने पैरों को पटकने लगी थी। उसके होंठ थरथरा रहे थे, वो कुछ बोलना चाहती थी पर ऐसी स्थिति में जुबान साथ नहीं देती, हाँ, शरीर के दूसरे सारे अंग जरुर थिरकने लग जाते हैं।
उसकी सिसकी पूरे कमरे में गूंजने लगी थी और पिक्की तो इतनी लिसलिसी हो गई थी कि अब तो मुझे विश्वास हो चला था कि मेरे पप्पू को अन्दर जाने में जरा भी दिक्कत नहीं होगी।
"ओह... जीजू ... आह.... कुछ करो ... मुझे पता नहीं कुछ हो रहा है ... आह्ह्ह्हहह्ह्ह्ह !"
मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओ ! अब प्रेम मिलन का सही वक़्त आ गया था।
अब मैंने अपने पप्पू पर भी क्रीम लगा ली। फिर मैंने उसकी कलिकाओं को थोड़ा सा चौड़ा किया। किसी तरबूज की गिरी की तरह अन्दर से लाल और कामरस से सराबोर पिक्की तो ऐसे लग रही थी जैसे किसी मस्त मोरनी ने अपनी चोंच खोल दी हो। मुझे तो लगा उसकी पुस्सी (पिक्की) अभी म्याऊं बोल देगी। मेरे होंठों पर इसी ख्याल से मुस्कराहट दौड़ गई।
मैंने अपने लण्ड को उसके छेद पर लगा दिया। पलक ने आँखें बंद कर लीं और अपनी जाँघों को किसी किताब के पन्नो की तरह चौड़ा कर दिया। उसका शरीर थोड़ा कांपने लगा था। यह कोई नई बात नहीं थी ऐसा प्रथम सम्भोग में अक्सर डर, कौतुक और रोमांच के कारण होता ही है। अक्षतयौवना संवेदना की देवी होती है और फिर पलक तो जैसे किसी परी लोक से उतरी अप्सरा ही थी। अपनी कोमल जाँघों पर किसी पुरुष के काम अंग का यह पहला स्पर्श पाकर पलक के रोमांच, भय और उन्माद अपने चरम बिन्दु पर जा पहुँचा।
"मेरी परी बस थोड़ा सा काँटा चुभने जितना दर्द होगा ... क्या तुम सह लोगी?"
"जीजू ... मैं तुम्हारे लिए सब सहन कर लूँगी, अब देरी मत करो ... आह ..."
मैंने उसके ऊपर आते हुए उसे अपनी बाहों में भर लिया और अपने घुटनों को थोड़ा सा मोड़ कर अपनी जांघें उसकी कमर और नितम्बों के दोनों ओर जमा लीं। फिर मैंने उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया। उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी। फिर मैंने अपनी कमर को थोड़ा सा ऊपर उठाते हुए एक हाथ से अपने बेकाबू होते लण्ड को पकड़ कर उसके चीरे पर फिराया। पिक्की तो अन्दर से पूरी गीली और फिसलन भरी सुरंग की तरह लग रही थी। मैंने 4-5 बार अपने लण्ड को उस पर घिसा और फिर हौले से दबाव बनाया। उसका छेद बहुत ही छोटा और कसा हुआ था। मुझे डर था अगर मैंने जोर से झटका लगाया तो उसकी झिली तो फटेगी ही पर साथ में दरार के नीचे की त्वचा भी फट जायेगी। पलक के दिल की धड़कन और तेज़ साँसें मैं अच्छी तरह महसूस कर रहा था।
लण्ड को ठीक से छेद पर लगाने के बाद मैंने दूसरा हाथ उसके सर के नीचे लगा लिया और अपनी जाँघों को उसके कूल्हों के दोनों ओर कस लिया। फिर हौले से एक धक्का लगाया। हालांकि छेद बहुत नाज़ुक और कसा हुआ था पर मेरे खूंटे जैसे खड़े लण्ड को अन्दर जाने से भला कैसे रोक पाता। फिसलन भरी स्वर्ग गुफा का द्वार चौड़ा करता और उसकी नाज़ुक झिल्ली को रोंदता हुआ आधा लण्ड अन्दर चला गया।
दर्द के मारे पलक छटपटाने सी लगी। उसकी जीभ मेरे मुँह में दबी थी वो तो गूं गूं करती ही रह गई। जाल में फंसी किसी हिरनी की तरह जितना छूटने का प्रयास किया या कसमसाई लण्ड उसकी पिक्की में और अन्दर तक चला गया। उसने मेरी पीठ पर हल्के मुक्के से भी लगाए और मुझे परे हटाने का भी प्रयास किया। मुझे उसकी पिक्की के अन्दर कुछ गर्माहट सी महसूस हुई। ओह ... जरुर यह झिल्ली फटने के कारण निकला खून होगा। पलक की आँखों से आंसू निकलने लगे थे।
कुछ क्षणों के बाद मैंने अपने मुँह से उसकी जीभ निकाल दी और उसके होंठों और पलकों को चूमते पुचकारते हुए कहा,"बस मेरी परी ... अब तुम्हें बिलकुल भी दर्द नहीं होगा ... बस जो होना था हो गया ..."
"ओह.... हटो परे ... ऊँट कहीं के ....... उईइमाआ .... मैं दर्द के मारे मर जाऊँगी..आह ..."
"मेरी परी ... बस अब कोई दर्द नहीं होगा ..." मैंने उसे पुचकारते हुए कहा।
"ओह ... तुम तो पूरे कसाई हो.. ओह ... इसे बाहर निकालो, मुझे बहुत दर्द हो रहा है।" उसने मुझे परे हटाने का प्रयास किया।
"मेरी परी बस अब थोड़ी देर में यह दर्द ख़त्म हो जायेगा, उसके बाद तो बस आनन्द ही आनन्द है।"
"हटो परे झूठे कहीं के ... दर्द के मारे मेरी जान निकल रही है !"
मैं जानता था उसे कुछ दर्द तो जरुर हो रहा है पर साथ में उसे अपने इस समर्पण पर ख़ुशी भी हो रही है। बस 2-3 मिनट के बाद यह अपने आप सामान्य हो जायेगी। बस मुझे उसे थोड़ा बातों में लगाये रखना है।
"मेरी परी ! मेरी सिमरन ! मेरी प्रियतमा तुम कितनी प्यारी हो !"
"पर तुम्हें मेरी कहाँ परवाह है?"
"तुम ऐसा क्यों बोलती हो?"
"ऐसे तो मुझे अपनी प्रेतात्मा कहते हो और मेरी जरा भी परवाह नहीं है तुम्हें?"
मेरी हंसी निकल गई। मैंने कहा,"प्रेतात्मा नहीं प्रियतमा !"
"हाँ.. हाँ.. वही.. पर देखो तुम कितने दिनों बाद आये हो?""
"पर आ तो गया ना?"
"ऐ .... जीजू ... सच बताना क्या तुम सच में मुझे सिमरन की तरह प्रेम करते हो?"
"हाँ मेरी परी मेरे दिल को चीर कर देखो वो तुम्हारे नाम से धड़कता दिखाई देगा !"
"छट गधेड़ा !" कह कर उसने मेरे होंठों पर एक चुम्बन ले लिया।
"परी, अब तो दर्द नहीं हो रहा ना?"
"मारो तो ऐ वखते जिव ज निकली गयो हतो" (मेरी तो उस समय जान ही निकल गई थी)
"ओह... अब तो जान वापस आ गई ना?"
मेरा लण्ड अन्दर समायोजित हो चुका था और अन्दर ठुमके लगा रहा था। पलक भी अब सामान्य हो गई थी। लगता था उसका दर्द कम हो रहा था। अब मैंने फिर से उसके उरोजों को मसलना और चूमना चालू कर दिया। उसने भी अपनी जांघें पूरी खोल दी थी और हौले होले अपने नितम्बों को हिलाना भी चालू कर दिया था। अब मैंने हौले होले अपने लण्ड को थोड़ा अन्दर-बाहर करना चालू कर दिया था। उसकी फांकें चौड़ी जरूर हो गई थी पर अभी भी मेरे लण्ड के चारों ओर कसी हुई ही लग रही थी।
"पलक, तुम बहुत खूबसूरत हो !"
"जीजू... तमे मने भूली तो नहीं जशोने?" (जीजू ... तुम मुझे भूल तो नहीं जाओगे ना ?)
"नहीं मेरी परी मैं तो तुम्हें अगले 100 जन्मों तक भी नहीं भूल पाऊँगा !"
"ईईईईईईईई ...... ओह तुम रुक क्यों गए करो ना ?"
मैं जानता था कि अब उसका दर्द ख़त्म हो गया है और वो अब किनारे पर ना रह कर आनन्द के सागर में डूब जाना चाहती है। मैंने हौले होले अपने धक्कों की गति बढ़ानी चालू कर दी। पलक भी अब अपने नितम्ब उचका कर मेरा साथ देने लगी थी। मैं उसके गालों, होंठों, पलकों, गले और कानों को चूमता जा रहा था। हर धक्के के साथ उसकी मीठी सीत्कार दुबारा निकलने लगी थी।
अब तो पलक थोड़ी चुलबुली सी हो गई थी। जैसे ही मैं धक्का लगाने के लिए अपने लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकालता वो थोड़ा सा ऊपर हो जाती। मैंने अपना एक हाथ उसके मखमली नितम्बों पर फिराना भी चालू कर दिया। मुझे उसके नितम्बों की दरार में भी गीलेपन का अहसास हुआ। हे भगवान् ! यह तो मिक्की का ही प्रतिरूप लगती है। मैंने अपनी अंगुली उसके नितम्बों की खाई में फिरानी चालू कर दी।
"आह ... जीजू .... मुझे कुछ हो रहा है ... आआआ ... ईईईईईईईईईईई ... ओह... जरा जोर से मसलो मुझे !" उसका बदन कुछ अकड़ने सा लगा था। मैं जानता था वह अब अपने आनन्द के शिखर पर पहुँचाने वाली है। मैंने अपने धक्के थोड़े से बढ़ा दिए और फिर से उसे चूमना चालू कर दिया। उसके कुंवारे बदन की महक तो मुझे मतवाला ही बना रही थी। उसने मुझे जोर से अपनी बाहों में कस लिया। वो प्रकृति से कितनी देर लड़ती, आखिर उसका कामरज छूट गया। मुझे अपने लण्ड के चारों और गीलेपन का अहसास और भी ज्यादा रोमांचित करने लगा।
कुछ क्षणों के बाद वो ढीली पड़ती चली गई। पर उसने अपनी आँखें नहीं खोली। मैंने उसकी बंद पलकों को एक बार फिर चूम लिया।
"जीजू एक बात पूछूं ?"
"क्या ...?"
"वो ... वो ... नितम्बों पर चपत लगाने से क्या उनका आकार भी बढ़ जाता है?"
मैं तो उसके इस भोलेपन पर मर ही मिटा। अब मैं उसे क्या समझाता कि यह तो चुदक्कड़ औरतों को संतुष्ट करने के लिए किया जाता है। ऐसी लण्डखोर औरतों को संभोग के दौरान बिना मार और गालियाँ खाए मज़ा ही नहीं आता। उन्हें जब तक तोड़ा मरोड़ा और मसला ना जाए मज़ा ही नहीं आता।
पर मैं पलक का दिल नहीं दुखाना चाहता था मैंने कहा,"हाँ ऐसा होता है पर तुम क्यों पूछ रही हो?"
"ओह ... जीजू मेरे नितम्बों पर भी चपत लगाओ ना ...?"
मेरी हंसी निकलते निकलते बची। मैंने उसे कहा कि उसके लिए तुम्हें चौपाया बनाना होगा या फिर तुम्हें ऊपर आना होगा !"
"ओके ... पर मैं ऊपर कैसे आऊँ?"
"रुको ... मैं करता हूँ !" कह कर मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और हम दोनों ने फिर एक पलटी खाई। अब पलक मेरे ऊपर थी। उसने एक जोर की सांस ली। उसे अपने ऊपर पड़े मेरे भार से मुक्ति मिल गई थी। अब वो मेरे ऊपर झुक गई और मैंने उसके छोटी छोटी अम्बियों (कैरी) को अपने मुँह में भर लिया। अब मैंने उसके नितम्बों पर हाथ फिराना चालू कर दिया और हौले होले चपत लगानी चालू कर दी। पलक फिर से सीत्कार करने लगी थी शायद नितम्बों पर चपत लगाने से वो जरुर चुनमुनाहट लगे होंगे। मैं बीच बीच में उसके नितम्बों की खाई में उस दूसरे छेद पर भी अंगुली फिराने लगा था।
हमें कोई 15-20 मिनट तो हो ही गए थे। पलक कभी कभी थोड़ा सा ऊपर होती और फिर एक हलके झटके के साथ अपनी कमर और नितम्बों को नीचे करती। उसकी कमर की थिरकन को देख कर तो यह कतई नहीं खा जा सकता था कि वो पहली बार चुद रही है।
अब मुझे लगने लगा था मेरा अब तक किसी तरह रुका झरना किसी भी समय फूट सकता है। मैं उसे अपने नीचे लेकर 5-7 धक्के तसल्ली से लगा कर अपना कामरस निकलना चाहता था। पलक भी शायद थक गई थी। वो मेरे ऊपर लेट सी गई तो मैंने फिर से उसे अपने नीचे कर लिया। पर हम दोनों ने ध्यान रखा कि मेरा रामपुरी उसके खरबूजे के अन्दर ही फंसा रहे।
मेरा मन तो कर रहा था कि उसे अपनी बाहों में जोर से भींच कर 5-7 धक्के दनादन लगा कर अपना रस निकाल दूं पर मैंने अपने ऊपर संयम रखा और अंतिम धक्के धीरे धीरे लगाते हुए उसे चूमता रहा। वो भी अब दुबारा आह... उन्ह.. करने लगी थी। शायद दुबारा झड़ने के कगार पर थी।
"मेरी ... सिमरन.... मेरी परी ... आह ..."
मेरे धक्कों की गति और उखड़ती साँसों का उसे भी अंदाज़ा तो हो ही गया था। उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और मेरी कमर के दोनों और अपनी जांघें कस ली।
"आह... जीजू .................उईईईईईईईई,"
"मेरी प .... परीईईईईईईईईईईइ ..............."
मेरे मुँह से भी भी गुर्र... गुर्र की आवाजें निकालने लगी और मैंने उसे जोर से अपनी बाहों में भींच लिया। और उसके साथ ही मेरा भी कुलबुलाता लावा फूट पड़ा ................
जैसे किसी प्यासी तपती धरती को रिमझिम बारिश की पहली फुहार मिल जाए हम दोनों का तन मन एक दूसरे के प्रेम रस में भीग गया। सदियों से जमी देह मानो धरती की तरह हिचकोले खाने लगी थी। आज तो पता नहीं मेरे लण्ड ने कितनी ही पिचकारियाँ छोड़ी होंगी। पलक ने तो अपनी पिक्की के अन्दर इतना संकोचन किया जैसे वो मेरे वीर्य की एक एक बूँद को अन्दर चूस लेगी। और फिर एक लम्बी सांस लेते हुए किसी पर कटी चिड़िया की तरह पलक निढाल हो कर ढीली पड़ गई।
मैं 2-3 मिनट उसके ऊपर ही पड़ा रहा। फिर हौले से उसके ऊपर से उठाते हुए अपना हाथ बढ़ा कर पास पड़े कोट की जेब से वही लाल रुमाल निकाला जो मेरे और सिमरन के प्रेम रस से सराबोर था। मैंने पलक की पिक्की से निकलते कामरस और वीर्य को उसी रुमाल से पोंछ लिया और एक बार उसे अपने होंठों से लगा कर चूम लिया। मुझे लगा इसे देख कर सिमरन की आत्मा को जरुर सुखद अहसास होगा। पलक आश्चर्य से मेरी ओर देख रही थी। मुझे तो लगा वो अभी सिमरन की तरह बोल पड़ेगी ‘हटो परे गंदे कहीं के !’
हम दोनों उठ खड़े हुए। उसके नितम्बों के नीचे बिस्तर पर भी 5-6 इंच जितनी जगह गीली हो गई थी। मैं उसे बाथरूम में ले जाना चाहता था। पर उससे तो चला ही नहीं जा रहा था। मैं जानता था उसकी जाँघों के बीच दर्द हो रहा होगा पर वो किसी तरह उसे सहन कर रही थी। वो चलते चलते लड़खड़ा सी रही थी। मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया।
बाथरूम में हमने अपने अंगों को धोया और फिर कपड़े पहन कर वापस कमरे में आ गए। मैं जैसे ही बेड पर बैठा पलक फिर से मेरी गोद में आकर बैठ गई और फिर उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी। मैंने एक बार फिर से उसके होंठों को चूम लिया।

कहानी जारी रहेगी !
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ - by sexstories - 07-04-2017, 12:28 PM

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