RE: Kamukta xxx Story रद्दी वाला
रद्दी वाला पार्ट--5
गतान्क से आगे................... मुश्किल से कोई घंटा दो घंटा वो सो पाई थी. सुबह जब वो जागी तो हमेशा से एक दम अलग उसे अपना हर अंग दर्द और थकान से टूट-ता हुआ महसूस हो रहा था,ऐसा लग रहा था बेचारी को,जैसे किसी मज़दूर की तरह रात मैं ओवर टाइम ड्यूटी कर'के लौटी है.जबकि चूत पर लाख चोटें खाने और जबरदस्त हमले बुलवाने के बाद भी ज्वाला देवी हमेशा से भी ज़्यादा खुश और कमाल की तरह महकती हुई नज़र आ रही थी. खुशिया और आत्म-संतोष उस'के चेहरे से टपक पड़ रहा था. दिन भर रंजना की निगाहे उस'के चेहरे पर ही जमी रही.वो उसकी तरफ आज जलन और गुस्से से भरी निगाहो से ही देखे जा रही थी.ज्वाला देवी के प्रति रंजना के मन मैं बड़ा अजीब सा भाव उत्पन्न हो गया था. उसकी नज़र मैं वो इतनी गिर गयी थी कि उस'के सारे आदर्शो, पतिव्रता के ढोंग को देख देख कर उसका मन गुस्से के मारे भर उठा था. उस'के सारे कार्यों मैं रंजना को अब वासना और बदचालनी के अलावा कुछ भी दिखाई नही देता था. मगर अपनी मम्मी के बारे मैं इस तरह के विचार आते आते कभी वो सोचने लगती थी कि जिस काम की वजह से मम्मी बुरी है वही काम करवाने के लिए तो वो खुद भी चाह रही है. वास्तविकता तो ये थी की आजकल रंजना अपने अंदर जिस आग मैं जल रही थी, उसकी झुलस की वो उपेक्षा कर ही नहीं सकती थी.जितना बुरा ग़लत काम करने वाला होता है उतना ही बुरा ग़लत काम करने के लिए सोचने वाला भी बस! अगर ज्वाला की ग़लती थी तो सिर्फ़ इतनी कि असमय ही चुदाई की आग रंजना के अंदर उसने जलाई थी.अभी उस बेचारी की उम्र ऐसी कहा थी कि वो चुदाई करवाने के लिए प्रेरित हो अपनी चूत कच्ची ही फाडवाले. बिरजू और ज्वाला देवी की चुदाई का जो प्रभाव रंजना पर पड़ा,उसने उसके रास्ते ही मोड़ कर रख दिए थे.उस रोज़ से ही किसीमर्द से चुदने के लिए उसकी चूत फदाक उठी थी. केयी बार तो चूत की सील तुड़वाने के लिए वो ऐसी ऐसी कल्पनाएं करती कि उसका रोम रोम सिहर उठता था. अब पढ़ाई लिखाई मैं तो उसका मन कम था और एकांत कमरे मैं रह कर सिर्फ़ चुदाई के ख़याल ही उसे आने लगे थे. केयी बार तो वो गरम हो कर रात मैं ही अपने कमरे का दरवाजा ठीक तरह बंद करके एकदम नंगी हो जाया करती और घंटो अपने ही हाथों से अपनी चूचियों को दबाने और चूत को खुजने से जब वो और भी गरमा जाती थी तो नंगी ही बिस्तर पर गिर कर तड़प उठती थी, कितनी ही देर तक अपनी हर्कतो से तंग आ कर वो बुरी तरह छटपताती रहती और अंत मैं इसी बेचैनी और दर्द को मन मे लिए सो जाती थी.उन्ही दीनो रंजना की नज़र मैं एक लड़'का कुच्छ ज़्यादा ही चढ़ गया था. नाम था उसका मृदुल, उसी की क्लास मैं पढ़ता था. मृदुल देखने मैं बेहद सुंदर-स्वस्थ और आकर्षक था,मुश्किल से दो वर्ष बड़ा होगा वो रंजना से,मगर देखने मैं दोनो हम उम्र ही लगते थे.मृदुल का व्यवहार मन को ज़्यादा ही लुभाने वाला था ना जाने क्या ख़ासियत ले कर वो पैदा हुआ होगा कि लरकियाँ बड़ी आसानी से उसकी ओर खींची चली आती थी, रंजना भी मृदुल की ओर आकर्षित हुए बिना ना रह सकी थी.मौके बेमौके उससे बात करने मैं वो दिलचस्पी लेने लगी थी. खूबसूरती और आकर्षण मैं यूँ तो रंजना भी किसी तरह कम ना थी, इसलिए मृदुल दिलोजान से उस पर मर मिटा था. वैसे लड़'कियों पर मर मिटना उसकी आदत मैं शामिल हो चुका था, इसी कारण रंजना से दो वर्ष बड़ा होते हुए भी वो अब तक उसी के साथ पढ़ रहा था. फैल होने को वो बच्चो का खेल मानता था. बहुत ही जल्द रंजना और मृदुल मैं अच्छी दोस्ती हो गयी थी. अब तो कॉलेज मैं और कॉलेज के बाहर भी दोनो मिलने लगे थे. इसी क्रम के साथ दोनो की दोस्ती रंग लाती जा रही थी.उस दिन रंजना का जनम दिन था, घर पर एक पार्टी का आयोजन किया गया था,जिसमें परिचित वा रिश्तेदारो के अलावा ज़्यादातर संख्या ज्वाला देवी के चूत के दीवानो की थी. आज बिरजू भी बड़ा सज धज के आया था, उसे देख कर कोई नही कह सकता था कि वो एक रद्दी वाला है.रंजना ने भी मृदुल कोइस दावत के लिए इनवितेशन कार्ड भेजा था, इसलिए वो भी पार्टी मैं शामिल हुआ था.जिस तरह ज्वाला देवी अपने चूत के दीवानो को देख देख कर खुश हो रही थी उसी तरह मृदुल को देख कर रंजना के मन मैं भी फुलझड़ियाँ सी फूटे जा रही थी.वो बे-इंतेहा प्रसन्न दिखाई पड़ रही थी आज. पार्टी मैं रंजना ज़्यादातर मृदुल के साथ ही रही. ज्वाला देवी अपने यारो के साथ इतनी व्यस्त थी कि रंजना चाहते हुए भी मृदुल का परिचय उससे ना करा सकी थी. मगर पार्टी के समाप्त हो जाने पर जब सब मेहमान विदा हो गये तो रंजना ने जानबूझ कर मृदुल को रोके रखा. बाद मैं ज्वाला देवी से उसका परिचय करती हुई बोली, "मम्मी ! ये मेरे ख़ास दोस्त मृदुल है." "ओह्ह! हॅंडसम बॉय." ज्वाला देवी ने साँस सी छ्चोड़ी और मृदुल से मिल कर वो ज़रूरत से ज़्यादा ही प्रसन्नता ज़ाहिर करने लगी. उसकी निगाहें बराबर मृदुल की चौड़ी छाती, मजबूत कंधों, बलशाली बाँहें और मर्दाने सुर्ख चेहरे पर ही टिकी रही थी.रंजना को अपनी मम्मी का यह व्यवहार और उसके हाव-भाव बड़े ही नागवार गुज़र रहे थे. मगर वो बड़े धैर्य से अपने मन को काबू मैं किए सब सहे जा रही थी. जबकि ज्वाला देवी पर उसे बेहद गुस्सा आ रहा था.उसे यू लग रहा था जैसे वो मृदुल को उस'से छ्चीनने की कोशिश कर रही थी. मृदुल से बातें करने के बीच ज्वाला देवी ने रंजना की तरफ देख कर बदमाश औरत की तरह नैन चलाते हुए कहा, "वाह रंजना ! कुच्छ भी हो, मृदुल अcछी चीज़ ढूंढी है तुमने, दोस्त हो तो मृदुल जैसा." अपनी बात कह कर कुच्छ ऐसी बेशर्मी से मुस्कुराते हुए वो रंजना की तरफ देखने लगी की बेचारी रंजना उसकी निगाहो का सामना ना कर सकी और शर्मा कर अपनी गर्दन झुका ली. ज्वाला देवी ने मृदुल को छाती से लगा कर प्यार किया और बोली, "बेटा ! इसे अपना ही घर समझ कर आते रहा करो, तुम्हारे बहाने रंजना का दिल भी बहाल जाया करेगा, बेचारी बड़ी अकेली सी रहती है ये.""यस मम्मी !मैं फिर आउन्गा."मृदुल ने मुस्कुरा कर उसकी बात का जवाब दिया और जाने की इजाज़त उसने माँगी, रंजना एक पल भी उसे अपने से अलग होने देना नहीं चाहती थी,मगर मजबूर थी. मृदुल को छ्चोड़ने के लिए वो बाहर गेट तक आई. विदा होने से पहले दोनो ने हाथ मिलाया तो रंजना ने मृदुल का हाथ ज़ोर से दबा दिया, इस पर मृदुल रहस्य से उसकी तरफ मुस्कुराता हुआ वहाँ से चला गया. अब आलम ये था की दोनो ही अक्सर कभी रेस्टोरेंट मैं तो कभी पार्क मैं या सिनिमा हॉल मे एक साथ होते थे. पापा सुदर्शन की गैर मौजूदगी का रंजना पूरा पूरा लाभ उठा रही थी. इतना सब कुच्छ होते हुए भी मृदुल का लंड चूत मैं घुस्वाने का शौभाग्य उसे अभी तक प्राप्त ना हो पाया था. हां, चूमा छाती तक नौबत आवश्य जा पहुँची थी. रोज़ाना ही एक चक्कर रंजना के घर का लगाना मृदुल का परम कर्तव्या बन चुका था. सुदर्शन जी की खबर आई की वो अभी कुच्छ दिन और मेरठ मैं ही रहेंगे. इस खबर को सुन कर मा बेटी दोनो का मानो खून बढ़ गया था.रंजना रोजाना कॉलेज मैं मृदुल से घर आने का आग्रह बार बार करती थी.जाने क्या सोच कर ज्वाला देवी के सामने आने से मृदुल कतराया करता था.वैसे रंजना भी नहीं चाह'ती थी कि मम्मी के सामने वो मृदुल को बुलाए. इसलिए अब ज़्यादातर चोरी-चोरी ही मृदुल ने उस'के घर जाना शुरू कर दिया था.वो घंटो रंजना के कमरे मे बैठा रहता और ज्वाला देवी को ज़रा भी मालूम नहीं होने पाता था. फिर वो उसी तरह से चोरी चोरी वापस भी लौट जाया करता था. इस प्रकार रंजना उसे बुला कर मन ही मन बहुत खुश होती थी. उसे लगता मानो कोई बहुत बड़ी सफलता उसने प्राप्त कर ली हो. चुदाई संबंधो के प्रति तरह तरह की बाते जानने की इच्च्छा रंजना के मन मैं जन्म ले चुकी थी, इसलिए उन्ही दीनो मे कितनी चोदन विषय पर आधारित पुस्तकें ज्वाला देवी के कमरे से चोरी चोरी निकाल कर काफ़ी अध्ययन वो करती जा रही थी.इस तरह जो कुछ उस रोज़ ज्वाला देवी वा बिरजू के बीच उसने देखा था इन चोदन संबंधी पुस्तको को पढ़ने के बाद सारी बातों का अर्थ एक एक कर'के उसकी समझ मैं आ गया था. और इसी के साथ साथ चुदाई की ज्वाला भी प्रचंड रूप से उस'के अंदर बढ़ उठी थी.फिर सुदर्शानजी मेरठ से वापिस आ गये और मा का बिरजू से मिलना और बेटी का मृदुल से मिलना कम हो गया.फिर दो महीना बाद रंजना के छ्होटे मामा की शादी आ गयी और उसी समय रंजना की फाइनल एग्ज़ॅम्स भी आ गये ज्वाला देवी शादी पर अप'ने मयके चली गयी और रंजना पढ़ाई में लग गई. उधर शादी संपन्न हो गई और इधर रंजना की परीक्षा भी समाप्त हो गई, पर ज्वाला देवी ने खबर भेज दी की वह 15 दिन बाद आएगी. सुदर्शानजी ऑफीस से शाम को कुच्छ जल्द आ जाते. ज्वाला के नहीं होने से वे प्रायः रोज ही प्रतिभा की मार'के आते इसलिए थके हारे होते और प्रायः जल्द ही आप'ने कमरे में चले जाते. रंजना और बेचैन रहने लगी.और एक दिन जब पापा अपने कमरे मे चले गये तो रंजना के वहशिपन और चुदाई नशे की हद हो गयी, हुआ यू कि उस रोज़ दिल के बहकावे मे आ कर उसने चुरा कर थोड़ी सी शराब भी पी ली थी.शराब का पीना था कि चुदाई की इक्च्छा का कुछ ऐसा रंग उसके सिर पर चढ़ा कि वो बेहाल हो उठी. दिल की बेचैनी और चूत की खाज से घबरा कर वो अपने बिस्तर पर जा गिरी और बर्दाश्त से बाहर चुदाई इच्च्छा और नशे की अधिकता के कारण वो बेचैनी से बिस्तर पर अपने हाथ पैर फैंकने लगी और अपने सिर को ज़ोर ज़ोर से इधर उधर झटकने लगी. कमरे का दरवाजा खुला हुआ था दरवाजे पर एकमात्र परदा टंगा हुआ था.रंजना को ज़रा भी पता ना चला कि कब उस'के पापा उस'के कमरे मैं आ गये हैं. वो चुपचाप उस'के बिस्तर तक आए और रंजना को पता चलने से पहले ही वो झुके और रंजना के चेहरे पर हाथ फेर'ने लगे फिर एकदम से उसे उठा कर अपनी बाँहों मैं भींच लिया. इस भयानक हमले से रंजना बुरी तरह से चौंक उठी, मगर अभी हाथ हिलाने वाली ही थी की सुदर्शन ने उसे और ज़्यादा ताक़त लगा कर जाकड़ लिया. अपने पापा की बाँहों में कसी होने का आभास होते ही रंजना एक दम घबरा उठी, पर नशे की अधिक'ता के कारण पापा का यह स्पर्श उसे सुहाना लगा.
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