RE: Chudai Kahani प्यासी शबाना
मैं हंस पड़ी और किशन का लंड पकड़ कर नाज़िया से बोली, “चुप कर हिजाबी रंडी! पहले खुद अच्छे से विजय जी का शिवलिंग तो चूस कमबख्त!” मैं घुटने टेक कर बैठ गयी और किशान का एक फुटा लौड़ा मुँह में ले कर चूसने लगी। बलराम का लौड़ा भी ऐसा ही अज़ीम था इसलिये किशन का लौड़ा भी मज़े से अपने मुँह में ठूँस कर चूस रही थी। मेरे पीछे खड़े हुए दूसरे हिंदू मर्द ने ज़ोर से मेरे चूतड़ पर मारा। जैसे ही मैं उफ़्फ़ करते हुए पलटी उसने मेरी मुस्लिमा चूची पकड़ ली और बोला, “साली कटल्ली लौंडिया! किशन की मुरली ही बजाती रहेगी या रवि लोहिया का लोहा भी चूसेगी।” मैंने रवि की तरफ़ देखा और किशन की मुरली की तरफ़ बुऱके वाली गाँड करके रवि का लोहे जैसा लंड चूसने लगी। पीछे से किशन ने मेरा बुऱका उठा कर मेरी मुस्लिम गाँड नंगी कर दी। उधर विजय शिंदे नाज़िया के बाल पकड़ कर अपना हिंदू लंड उसके मुँह में चोद रहा था और चौथा हिंदू जिसका नाम विशाल था, उसने नाज़िया का बुऱका खोलना शुरू किया। बुऱका उतरते ही नाज़िया बिल्कुल नंगी हो गयी और विजय शिंदे के लंड को लगातार चूसती रही। उसके जिस्म पर अब ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल के अलावा और कुछ नहीं था।
इधर मैंने रवि के लंड को चूसते हुए अपनी नंगी मुसल्ली गाँड किशन की तरफ़ की हुई थी। नाज़िया ने विजय का लंड मुँह से निकल कर कहा, “शब्बो जान! बोल दूँ इन हिंदू मर्दों को कि तू मदरसे की उसतानी है।”
ये सुनते ही किशन जिसके सामने मेरी गाँड कुत्तिया बनी हुई थी, उसने पीछे से मेरी चूत को अपनी उंगलियों से पकड़ कर कहा, “हाँ साली रंडी नाज़िया तूने ठीक कहा… इसके होंठ भी गरम थे और राम कसम साली मुल्लनी की चूत भी गरम है!” फिर सवालिया अंदाज़ में किशन ने मुझसे पूछा, “साली राँड! हिजाब में छेहरा छुपा कर बच्चों को सबक सिखाने की बजाय अगर तू इस तरह शराब पी कर अपनी चूत खोल कर फिरेगी तो ठीक नहीं रहेगा?” मैंने तंज़िया अंदाज़ में कहा, “ये सवाल मुझसे पूछ रहे हो या मेरी कुत्तिया बनी मुस्लिम चूत से मेरे किशन कनहैया!” इस पर सब हंस पड़े और मैं भी हंस रही थी कि अचानक किशन ने अपनी गरम हिंदू मुरली मेरी मुस्लिमा चूत में ज़ोर से झटके के साथ घुसेड़ दी! “उफ़्फ़ अल्लाहहऽऽऽ,, मर गयीऽऽऽ कमबख्त नाज़ूऽऽ मेरी चूत फट गयीऽऽऽ, अल्लाहऽऽऽ प्लीज़ किशन निकालो! तुम्हारा ये अनकटा त्रिशूल मेरी चूत फाड़ रहा हैऽऽ उफ़्फ़ निकालो!”
नाज़िया ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगी, “अब क्या हुआ हसीन शब्बो! तेरी खूबसूरती पर मरने वाले मुल्ले कटवे तो अब शरम से झुक जायेंगे कि तूने अपनी मुसल्ली चूत किशन के लंड से चुदाई है!” मैंने हल्के गुस्से से कहा, “चुप कर कुत्तिया रंडी! मेरी चूत में मूसल घुसा है और तुझे हरामी कटवों की पड़ी है?” मैं बोल ही रही थी कि विशाल ने नाज़िया की गाँड में दमदार लंड घुसेड़ कर कहा, “ज़रा अब बता कि तू क्या करेगी जब कटवे मुल्ले तेरी गाँड चुदने की बात सुनेंगे?” नाज़िया चिल्ला उठी, “उफफफऽऽऽ विशाआऽऽल धगड़े चोदू! मेरी गाँड में मूसल घुसेड़ ही दिया तुमने ना!” जैसे ही नाज़िया का मुँह खुला, विजय ने अपना हिंदू लंड उसके मुँह में डाल कर कहा, “बज़ार में ऊँची सैंडल पहन कर अपनी गाँड मटका-मटका कर और चूची उछाल कर हमारे हिंदू लंड को इसी लिये तो गरम करती है तुम मुल्लियाँ कि हम तुम्हारी मुस्लिम गाँड और चिकनी छिनाल चूत मारें! है ना मेरी नाज़िया जान?” नाज़िया ने मुँह में से लंड निकाला फिर अपनी ज़ुबान बाहर करके विजय शिंदे के गेंदों की थैली से चाटती हुई लंड के गुलाबी टोपे तक ज़ुबान फेर कर बोली, “हम बज़ार में इसलिये अपनी गाँड मटकाती और मुस्लिम चूचियाँ उछालती हैं ताकि तुम जैसे गरम मर्दाना हिंदू धगड़े हमारी चिकनी मखमली मुल्लनी चूत को चोद कर हमारी प्यास बुझायें... मेरे हिंदू सनम!”
वहाँ नाज़ू की मुस्लिम गाँड विशाल अपने हिंदू लंड से चोद रहा था और यहाँ किशन मेरी मुसिल्मा चूत को चीर कर अपने लंड को आगे पीछे कर रहा था। मैं रवि लोहिया का काला लंड चूस रही थी और उसके हिंदू लंड की झाँटों के बाल मेरे सुर्ख मुस्लिम होंठों पे बिखरे हुए थे जैसे मेरे होंठों को सहला रहे हों। रवि अब मेरे सामने लेट गया और मैं झुक कर उसका लंड चूसने लगी। मेरे बुऱके से दोनों मुस्लिम चूचियाँ बाहर निकल कर लटक रही थी। विजय शिंदे जो नाज़िया का मुँह चोद रहा था, उसने झुक कर मेरी मुस्लिम चूची को पकड़ लिया। मैंने विजय की तरफ़ देखा तो उसने मेरी चूची को दबाते हुए कहा, “राँड! कैसा लग रहा है अपना हिजाबी मम्मा मेरे हिंदू हाथों से मसलवाते हुए?” मैंने रवि का लंड मुँह में से निकाला और विजय के हाथ पे हाथ रख कर अपनी मुस्लिम चूची को और दबवाया और बोली, “मेरा शौहर असलम... कमबख्त दोनों हाथ से भी दबाता है मेरी मुस्लिम चूची तो ऐसी मर्दानगी नहीं ज़ाहिर होती विजय जी!” इधर रवि लोहिया ने फिर से मेरे मुसल्ली मुँह में लंड घुसेड़ते हुए दूसरे हाथ से नाज़िया की लटकती चूची पकड़ ली और दबाने लगा। अब विशाल नाज़िया की चोदू गाँड पर ज़ोर ज़ोर से झटके मारने लगा और यहाँ मेरी कुत्तिया बनी मुस्लिम चूत को किशन भी ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा।
चुदाई ज़ोर पकड़ने लगी और हम दोनों मुसल्लियों के मुँह से हाय अल्लाह। उफफ अल्लाह! निकलने लगा। इधर रवि लोहिया मेरे बाल पकड़ कर अपने लंड को ऐसे मेरा मुँह चोदने लगा कि जैसे पानी निकालने वाला हो। उधर विजय भी मेरी मुस्लिम चूची दबाते हुए नाज़िया के प्यारे मुस्लिम मुँह में ऐसे ही लंड चोदने लगा कि पानी निकालने वाला हो। इधर मेरी मुस्लिम चूत उधर नाज़िया की मुस्लिम गाँड ज़ोर से चोदी जा रही थी। फिर चारों मर्दौ ने एक दूसरे को इशारा किया और हम दोनों को तंज़िया अंदाज़ में कहा, “प्यारी मुल्लनी रंडी शबाना और हिजाबी रंडी नाज़िया! अब तैयार हो जाओ हमारे हिंदू त्रिशूलों से मलाई की धार तुम दोनों राँडों के मुँह , चूत और गाँड में छूटने वाली है।” मैंने रवि लोहिया का तमाम लंड अपने हलक तक अंदर ले लिया और उसके हिंदू लंड के बाल मेरी नाक में घुस गये। पीछे से किशन ने अपना पूरा लंड बाहर निकाला और मुझे गाली देते हुए फिर से ज़ोर के एक झटके से अंदर दाखिल हो गया, “हिजाबी राँड!!” कहते हुए किशन के लंड से एक तेज़ धार मेरी मुल्लनी चूत में महसूस हुई। अभी मैं चूत में किशान की मलाई महसूस ही कर रही थी कि मेरे मुँह में रवि लोहिया के लोहे जैसे लण्ड से मलाई की धार फूट पड़ी। मैं भी जोशिले अंदाज़ में रवि के लंड को ज़ोर से चूसने लगी और उसका हिंदू त्रिशूल लंड मेरे थूक और उसकी हिंदू मलाई से तरबतर हो गया।
उधर मेरी नज़र नाज़िया की तरफ़ गयी। उफफ उसकी आँखें भी बस मेरी तरफ़ देख रही थीं और विजय शिंदे का लंड भी मलाई से भरा हुआ था। विजय शिंदे का मोटा लंड मुँह में भरा होने की वजह से नाज़िया के मुँह से कम ही आवाज़ आ रही थी। मैंने नाज़िया की गाँड की तरफ़ देखा तो विशाल जो नाज़ू की मुसल्ली गाँड चोद रह था, वो भी जोशिले अंदाज़ में आखिरी मरहले में था और उसके अज़ीम त्रिशूल से भी पानी निकल रहा था शायद। इधर किशन ने लगातार कुछ देर झटके मारते हुए अपने धार्मिक लंड से सारा पानी मेरी मुस्लिम चूत में भर दिया और गाँड को सहलाने लगा। चारों हिंदू मर्दों ने अपना-अपना पानी हमारी हमारे छेदों में भर दिया और लंड निकाल कर खड़े हो गये।
हम दोनों नंगी मुस्लिम मस्तानी हिजाबी औरतें उन चार जवान वरज़िशी पहलवान मर्दों के बीच बस ऊँची हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी ज़मीन पर बैठी हुई थीं। अब उन्होंने हमारे नकाब हमारे हाथ में देकर कहा, “ज़रा अब इन नकाबों से हमारे जवान गदाधारी हिंदू लौड़ों को साफ़ करो हमारी रखैलों!” हम दोनों ने नंगे जिस्मों पर सिर्फ़ नकाब पहना और चारों का लंड नकाब से समेट कर मुँह में लेकर साफ़ किया। चारों ने फिर लंगोट बाँधे और हमारे बुऱके हाथ में दिये और कहा “अब ऐसे ही सिर्फ नकाब और सैंडल पहन कर नंगी रंडी बनकर दोनों हिंदू दंगल से अपने घर जाओगी।” फिर चारों ने हमारे तरफ़ बारी-बारी देखते हुए कहा, “खुदा हाफ़िज़ छिनाल मुल्लनियों! तुम्हारी छिनाल चूत और गाँड हमेशा हमारी रखैल रहेंगी।” फिर हम दोनों ने भी शरारत से वैसे ही नकाब पहने और दंगल के दरवाजे से पहले बाहर झाँका लेकिन कोई नहीं था। नशे की खुमारी अब तक बरकरार थी और ऊँची पेंसिल हील की सैंडलों में डगमगाते हुए जितना तेज़ हो सकता था हम अपनी मुस्लिम चूचियाँ उछालती और गाँड मटकाती हुई अपने घर में आ गयी।
मेरी चूत और नाज़िया की गाँड में से गाढ़ी हिंदू मलाई बाहर बह रही थी। हमने शराब का एक-एक पैग खींचा और फिर मैं नाज़िया से खुशी से लिपट गयी और बोली, “नाज़ू छिनाल तूने सच में आज मेरी उस्तानी चूत को बहुत मज़े दिलवाये... मेरी रंडी सहेली.. जब से इस शहर में आयी हूँ.... ऐसी चुदाई के लिये तरस गयी थी।” नाज़िया भी अपनी मुस्लिम चूची मेरी चूची से चिपकाते हुए गले लगी और बोली, “रंडी शब्बो आज तूने भी मेरे साथ आकर मेरी मुसल्ली गाँड को और मज़े से चुदवाने का मौका दिया!”
“तो क्या तूने आज से पहले कभी गाँड नहीं चुदवायी थी…?” मैंने हैरत से पूछा तो नाज़िया बोली, “तो तुझे बहुत तजुर्बा है क्या गाँड मरवाने का? तेरा कटवा शौहर तेरी गाँड चोदता है क्या?” “उस नामर्द से तो मेरी चूत भी नहीं चोदी जाती गाँड क्या खाक मारेगा!” मैं बोली और फिर मैंने उसे रमेश और बलराम से अपनी चुदाई के बारे में बताया। इसी दौरान नाज़िया मेरे होंठों पर अपने होंठ रख कर चूमते हुए मेरी चूचियाँ दबाने लगी। किसी औरत के साथ ये मेरा पहला मौका था। फिर उसने मेरी चूत चाट कर साफ की और मैंने उसकी गाँड अपनी ज़ुबान से साफ की।
अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने कहा, “जा आ गया तेरा ढीला कटवा शौहर!” नाज़ू हंसती हुई बोली, “आज इसके लंड पर सोते हुए पैर रख कर ज़ोर से सैंडल की हील घुसेड़ दुँगी... फिर किस्सा तमाम!” हम दोनों ज़ोर से हंसने लगी। उस दिन के बाद तो मैं हर रोज़ मदरसे से लौटते हुए नाज़िया के घर के पीछे दंगल में पहुँच जाती और उन चारों हिंदू मर्दों से खूब चुदवा-चुदवा कर घर वापस आती। कईं बार अगर नाज़िया मेरे साथ नहीं होती तो भी मैं अकेली उन चारों मर्दों से एक साथ रंडी की तरह चुदवाती और उनका पेशाब भी पीती।
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