RE: Chudai Kahani प्यासी शबाना
बलराम मुझे बहुत ही ज़लील तरीके से रंडी की तरह चोदता था। मुझसे हमेशा नयी-नयी ज़लील और ज़ोखिम भरी हरकतें करवा कर मुझे गरम करता था और मुझे भी इसमें बेहद मज़ा आता था और मैं भी उसकी हर फरमाइश पुरी रज़ामंदी से पूरी करती थी। बलराम हर हफ्ते मुझे नये-नये फैशन की ऊँची हील वाली सैंडल की एक-दो जोड़ी तोहफे में देता था। एक बार उसने बहुत ही कीमती और खूबसुरत ऊँची हील के सैंडलों की जोड़ी दिखाय़ी और बोला कि अगर मुझे चाहिये तो उसके शो-रूम पर आकर लेने होंगे लेकिन मुझे सिर्फ बुऱका पहन कर आना होगा। पैरों में सैंडलों के आलावा बुऱके के नीचे कुछ भी पहनने से मना कर दिया। अगले ही दिन मैंने सिर्फ बुऱका और ऊँची हील के सैंडल पहने और बिल्कुल नंगी रिक्शा में बैठ कर बाज़ार पहुँच गयी। फिर वैसे ही भीड़भाड़ वाले बज़ार में भी करीब आधा किलोमितर पैदल चल कर बलराम के शो-रूम पर पहुँची।
ऐसे ही करीब चार महीने निकल गये। इस दौरान मैंने चुदक्कड़पन की तमाम हदें पार कर दीं। रात को तो मैं अब असलम मियाँ की शराब में नींद की गोलियाँ मिला देती ताकि सुबह तक खर्राटे मार कर सोता रहे। मैं अब छत्त से होकर बलराम के घर में उसके बिस्तर में पुरी-पूरी रात गुज़रने लगी। कईं बार बलराम रात को हमरे घर आ जाता और हम दोनों शौहर असलम मियाँ की मौजूदगी में रात भर ऐय्याशी करते। फिर एक दिन रमेश को मेरे और बलराम के रिश्ते के बारे में पता चल गया। पहले तो थोड़ा नाराज़ हुआ पर फिर मैंने प्यार से उसे मना लिया और बलराम को भी रमेश से अपने ताल्लुकतों के बारे में बता दिया। फिर तो दोनों हिंदू मर्द मिलकर अक्सर रात-रात भर मुझे चोदने लगे। कभी छत्त पर तो कभी बलराम के घर में और कभी मेरे ही घर में। दोनों एक साथ मेरी गाँड और चूत में अपने-अपने हिंदू हलब्बी मर्दना लण्ड डाल कर चोदते तो मैं मस्ती में चींखें मार-मार कर दोहरी चुदाई का मज़े लेती।
ये सिलसिला करीब एक साल तक चला। फिर एक दिन अचानक मेरी ज़िंदगी में फिर से अंधेरा छा गया। मेरे शौहर असलम शरीफ का तबादला दूसरे शहर में हो गया। जिस्मनी तस्कीन और अपनी चूत की प्यास बुझाने के लिये मैं फिर बैंगन और मोमबत्ती जैसी बेजान चीज़ों की मातहत हो गयी। लेकिन अब इस तरह मेरी प्यास नहीं बुझती थी। मुझे तो रमेश और बलराम के लंबे मोटे हिंदू हलब्बी मर्दाना लौड़ों से दिन रात चुदने और दोहरी चुदाई की इतनी आदत हो गयी थी कि मैं कितनी भी कोशिश करती और घंटों अपनी चूत और गाँड में मोटी-मोटी मोमबत्तियाँ और दूसरी बेजान चीज़ें घुसेड़-घुसेड़ कर चोदती लेकिन करार नहीं मिलता। इसी दौरान हमारे घर से थोड़ी दूर एक मदरसे में उस्तानी की ज़रूरत थी तो मैंने दरख्वास्त दे दी और मेरा इन्तखाब भी हो गया। अब मैं सुबह दस बजे से दोपहर में दो बजे तक मदरसे में छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी। इस वजह से अब कम से कम आधा दिन तो अब मैं मसरूफ रहने लगी।
फिर एक महीने बाद मेरे शौहर किसी काम से एक हफ्ते के लिए दफ्तर के काम से बाहर गये। मैं भी दोपहर में मदरसे से लौटते हुए बुऱका पहने अपनी प्यासी मुस्लिम चूत लेकर शॉपिंग के लिये बाज़ार गयी। अभी मैं मदरसे से निकल कर चलते हुए बीस मिनट का रास्ता ही तय कर पायी थी कि सामने से एक औरत बुऱका पहने मेरी ही तरह ऊँची हील की सैंडल में शोख अंदाज़ में आ रही थी। उसने भी चेहरे से नकाब हटा रखा था। जब वो पास आयी तो मैंने पहचाना के ये तो नाज़िया है। “हाय अल्लाह! नाज़िया तू!” मैंने खुशी से कहा। “तू शबाना... शब्बो तू?” नाज़िया भी हंसते हुए मुझसे लिपट गयी। हम दोनों खुशी से गले मिले और बातें करने लगे कि अचानक एक बाइक तेज़ी से आयी। हम लोग जल्दी से एक तरफ़ हट गये और उस लड़के ने जल्दी से अपनी बाइक दूसरी तरफ़ मोड़ ली और गुस्से से जाते-जाते बोला, “रंडियाँ साली! देख कर चलो सालियों!” और कहता हुआ चला गया। उसकी गालियाँ सुनकर मुझे रमेश और बलराम की याद आ गयी और जिस्म में एक सनसनी फैल गयी। अपने जज़्बात छिपाने के लिये मैंने नज़रें झुका लीं। फिर नाज़िया की तरफ़ देखा तो उसने शरारत भरे अंदाज़ में कहा, “लगता है ये हज़रत हिंदू लंड वाले हैं!” और कहकर ज़ोर से हंसते हुए बोली, “चल छोड़ ना शब्बो! बता कि यहाँ कैसे आयी?” मुझे हैरत हुई कि नाज़िया जो कॉलेज की सबसे अव्वल दर्जे की तालिबा थी, उसके मुँह से हिंदू लंड सुनकर मेरी आँखें खुली रह गयीं। मैंने कहा, “बेहया कहीं की! चुप कर!”
फिर वो मेरा हाथ पकड़ कर अपने घर ले गयी। फिर हम दोनों ने अपने बुऱके उतारे। जैसे ही नाज़िया ने अपना बुऱका उतारा तो मेरे मुँह से निकला, “सुभान अल्लाह नाज़िया!” उसका जिस्म बहुत गदराया हुआ था। गहरे गले की कसी हुई कमीज़ से उसके मुस्लिमा मम्मे उभरे हुए नज़र आ रहे थे और उसके गोल-गोल चूतड़ भी ऊँची हील के सैंडल की वजह से उभरे हुए थे। उसने मेरी चूचियों को देखते हुए कहा, “सुभान अल्लाह क्या? खुद को देख माशा अल्लाह है माशा अल्लाह!” इतने में किसी ने दरवाजा खटखटाया। नाज़िया ने दरवाजा खोला और एक शख्स कुर्ता पजामा पहने अंदर आया। “ये कौन मोहतरमा हैं?” वो बोला तो नाज़िया ने कहा, “जी आपकी साली समझें! ये मेरी कॉलेज की सहेली है शबाना इज़्ज़त शरीफ!” वो अंदर चला गया और नाज़िया ने शरारत से कहा, “ये दाढ़ी वाला बंदर ही मिला था मुझे शादी करने के लिये!” मैंने नाज़िया की बाजू पर मारते हुए कहा, “चुप कर!” फिर थोड़ी देर बाद नाज़िया का शौहर बाहर निकल कर जाने लगा और बोला, “आज काम है... शायद लौटते वक्त देर हो जायेगी!” और कहते हुए चला गया।
नाज़िया ने मुझे बिठया और पूछा, “बता क्या पियेगी?” “कुछ भी चलेगा!” मैंने कहा तो वो चहकते हुए बोली, “कुछ भी?” मैंने कहा, “हाँ कुछ भी जो तेरा मन हो!” फिर वो थोड़ा हिचकते हुए बोली, “यार मेरा मन तो एकाध पैग लगाने का हो रहा है... तू... पता नहीं... पीती है कि नहीं!” मैं तो उसकी बात सुनकर खुश हो गयी और बोली, “क्यों नहीं! इसमें इतना हिचक क्यों रही है... ज़रूर पियुँगी! अपनी सहेली के साथ शराब पीने में तो मज़ा अ जायेगा!”
फिर हम दोनों ने अगले आधे घंटे में दो-दो पैग खींच दिये और यहाँ वहाँ की आम बातें की… जैसे तेरा सलवार सूट बहुत खूबसूरत है कहाँ से लिया...! कौन सी फिल्म देखी वगैरह-वगैरह! इस दौरान उसकी बातों से मुझे एहसास हुआ कि वो भी अपने शौहर से खुश नहीं है। उसके शौहर की भी सरकारी नौकरी है और मेरे शौहर असलम की तरह ही उसे भी अपनी हसीन बीवी की कोई कद्र नहीं है। मैंने भी अपने शौहर के बारे में इशारे से बताया लेकिन हिंदू मर्दों से अपने नाजायज़ ताल्लुकात का बिल्कुल ज़िक्र नहीं किया। एक बार उसने मेरे सैंडलों की तारीफ करते हुए पूछा कि “कहाँ से लिये” तो मेरे मुँह से निकलते-निकलते रह गया कि “ये तो मेरे आशिक ने तोहफे में दिये हैं।” मैंने उस दिन भी बलराम से मिले पचासियों जोड़ी सैंडलों में से एक जोड़ी पहन रखे थे।
मीठा-मीठा सा नशा छाने लगा था। शराब का तीसरा पैग पीते हुए नाज़िया कुछ मचलते हुए अंदाज़ में बोली, “शब्बो! एक बात बता! जब रास्ते में उस हिंदू लड़के ने गाली दी तो तुझे कैसा लगा?” मैंने कहा “हट बे-हया! बड़ी शोख हो गयी है तू!” इतना सुनते ही वो बोली, “मैं सब जानती हूँ। तेरे जज़्बात मैं वहीं समझ गयी थी!” फिर उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “जल्दी से पी और चल ऊपर चल शब्बो जान!” हमने अपने गिलास खाली किये और फिर वो मुझे ऊपर ले गयी और ऊपर ले जाकर उसने पीछे वाली खिड़की खोली। हाय अल्लाह ये क्या? नीचे तो एक दंगल जिमखाना था जहाँ कुछ चार लोग वरज़िश कर रहे थे। नंगे वरज़िशी पहलवान जिस्मों पर छोटी सी लंगोटी! मैंने नाज़िया को शर्मीले अंदाज़ में कहा, “ऊफ़्फ़ तौबा! ये क्या दिखा रही है कमबख्त?” नाज़िया ने शरारत से कहा, “तो फिर ये तेरी बिल्ली जैसी भूरी आँखों में चमक क्यों आ गयी शब्बो... इन नंगे हिंदू मर्दों के जिस्म देख कर?”
इतने में वरज़िश करते हुए एक पहलवान ने ऊपर देखते हुए इशारे से नाज़िया से पूछा कि “ये कौन है?” नाज़िया ने थोड़ा चिल्ला कर कहा, “मुस्लिम चूत!” और हंस पड़ी। मुझे भी उसकी इस शरारत से हंसी आ गयी। शराब का नशा अब पहले से तेज़ होने लगा था। मैंने नाज़िया को देखते हुए हंस कर कहा, “तू ना जितनी शर्मीली थी कॉलेज में उतनी बे-हया हो गयी है!” “क्या करूँ? अगर शौहर मेरे शौहर जैसा हो तो बे-हया होना लाज़मी है!” नाज़िया ने मेरी तरफ आँख मारते हुए कहा और सीने से ओढ़नी हटा कर अपनी मुस्लिमा चूचियों को उभार कर बोली, “वो मेरा हिंदू चोदू है शब्बो!” और इशारे से एक चुम्मा उसकी तरफ़ किया। मुझे बहुत खुशी हुई कि मेरी सहेली भी मेरी तरह हिंदू अनकटे लंड की दिवानी है और उसके हिंदू मर्द से नाजायज़ ताल्लुकात हैं। मैंने फिर खिड़की से देखा तो उफ़्फ़ अल्लाह ये क्या... उस हिंदू पहलवान मर्द ने अपनी लंगोटी से अपना हिंदू त्रिशूल निकाला हुआ था और उसने जान कर उसे खड़ा नहीं किया था। एक लम्बा सा मोटा हिंदू लंड नीचे लटका हुआ था। मेरी मुस्लिम हिजाबी आँखें उसके हिंदू नंगे अनकटे लंड को हवस से देख रही थीं। नाप में बिल्कुल बलराम के लंड की तरह था लेकिन थोड़ा सांवला था।
अब नाज़िया ने उसको इशारे से कहा कि अपना हिंदू लंड खड़ा करे। वो मुस्कुराया और फिर नाज़िया को अपनी मुस्लिम चूची बाहर निकालने का इशारा किया। नाज़िया ने अपनी गहरे गले की कमीज़ में हाथ डाला और अपना गोरा बड़ा मुस्लिम मम्मा बाहर निकाला और फिर नाज़िया ने शरारत से उसे सलाम किया। वो भी बड़ा बदमाश था उसने सलाम करते हुए अपने हिंदू लंड की तरफ़ इशारा किया कि इसको सलाम कर! उसने अपने हिंदू लंड को काबू में रखा था और उसे उठने नहीं दिया और फिर इशारे से नाज़िया को नीचे दंगल में आने को कहा।
मैंने नाज़िया की तरफ़ देखा तो उसने आँख मारते हुए कहा, “चल असलम कटवे की मुस्लिमा बीवी! आज तुझे अपने हिंदू यार के लंड के नज़ारे दिखाती हूँ !” मैंने भी नाज़िया का मुस्लिम चूतड़ दबाया और कहा, “अभी जो आया था ना वो तेरा कटवा शौहर... वो तो तेरी हसीन मुस्लिम चूत देखने के भी काबिल नहीं है नाज़ू!” हम दोनों हंसते हुए नीचे हॉल में गये और जल्दी से एक-एक पैग और खींचा। फिर हम अपने-अपने सैंडल के अलावा सारे कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगी हो गयीं। नाज़िया ने मेरी नंगी मुस्लिम चूचियों को दबाया और बोली, “माशा अल्लाह शबाना इज़्ज़त शरीफ रंडी जी! हिंदू मर्दों के लिये कैसे खुशी से तेरी मुस्लिमा चूचियाँ कैसे सख्त हो गयी हैं।” फिर हमने अपना अपना बुऱका पहना। सिर्फ बुऱका और ऊँची-ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने फिर हम दोनों पीछे वाले दरवाजे से बाहर निकल कर हिंदू दंगल के मैदान में दाखिल हो गयीं। नशे की खुमारी में हम दोनों के कदम ज़रा से डगमगा रहे थे।
दंगल के मैदान से गुज़र कर हम अंदर गये जहाँ लंगोटी बाँधे चार नंगे हिंदू मर्द मौजूद थे, जिनके वरज़िशी जिस्म हमारे हिजाबी जिस्मों को जैसे प्यार से चोदने के लिये बेताब थे। अंदर आते ही नाज़िया झटके से अपनी नकाब हटाकर जल्दी जल्दी चारों हिंदू पहलवानों को सलाम-सलाम कहते हुए अपने आशिक से जाकर लिपट गयी जिसने पहले से ही अपने लंगोट से अपना हिंदू त्रिशूल लटकाया हुआ था। ये देख कर मेरी बुऱके में छुपी नंगी मुस्लिम चूत भी जोश खाने लगी। करीब एक महीने से हिंदू लंड के लिये तरस रही थी मेरी रंडी मुस्लिम चूत। जैसे ही मैंने बाकी तीन हिंदू पहलवानों को देखा तो उफ़्फ़ अल्लाह! ये क्या? इन हिंदू मर्दों ने भी अपने-अपने हिंदू त्रिशूल निकाल लिये थे और तीनों मर्दों के अनकटे बड़े-बड़े लौड़े खड़े हुए फनफना रहे थे। तीनों के लंड करीब दस से बारह इंच लंबे और मोटे थे। उनमें से एक ने अपने कड़क हिंदू लंड को सहलाते हुए मुझे सलाम किया और कहा “मुस्लिम लौंडिया ज़रा अपने चेहरे से हिजाब हटा! देखें तो सही बुऱके में छुपा हुआ माल कैसा है!
मैंने मुस्लिमा अंदाज़ में अपने चेहरे से नकाब हटाया। “राम कसम! साली हिजाबी राँड मस्त है...!” मेरी भूरी आँखें और हसीन खूबसूरत चेहरा देख कर सबके हिंदू लंड और कड़क हो गये। एक हिंदू मर्द मेरे पास आया और मेरे बुऱके में छुपे गोल मुस्लिम मम्मे को हल्के से मार कर बोला, “साली मस्त कटवी है तू हिजाबी राँड!” उसके मारते ही मेरे मुँह से सिसकी निकली और मैंने शोखी भरे अंदाज़ में कहा, “उफ़्फ़ आहिस्ता से हिंदू पहलवान जी! आपका नाम क्या है?” लेकिन उसे ठीक से सुनाई नहीं दिया। उसने मेरे पीछे हाथ डाल कर मेरे मुस्लिमा चूतड़ों को ज़ोर से दबाया और बोला, “ज़रा ऊँचा बोल मेरी मुल्लनी रंडी जान!” मैंने फिर उसके होंठों के पास होंठ रखते हुए कहा, “आपका नाम क्या है गरम हिंदू पहलवान मर्द जी?”
उसने जोश में मेरा एक मुस्लिम चूतड़ और एक हिजाबी मम्मे को ज़ोर से दबाते हुए कहा, “किशन नाम है मेरा... साली गरम मुस्लिम रंडी!” और फिर मेरे मुस्लिम सुर्ख होंठों पर अपने हिंदू होंठ रख दिये। उफ़्फ़ अल्लाह! मेरे होंठ गरम थे और उसके भी। मैं आँखें बंद करके जोश में उसके होंठों को चूस रही थी। मेरा मुस्लिम हाथ उसके हिंदू अनकटे लंड की तरफ़ बड़ा और उसके हिंदू त्रिशूल को पकड़ते ही मेरी आँखें हैरत से खुल गयी। तौबा! ये क्या! इतना गरम और सख्त हिंदू लंड! वो समझ गया। उसने अपने हिंदू होंठ मेरे होंठों से हटाये और बोला, “लौंडिया ये कटवा मुलायम लंड नहीं है... ये मेरा कट्टर हिंदू त्रिशूल है साली!”
नाज़िया जो मेरे बिल्कुल करीब ही बैठी थी अपने आशिक के लंड को पकड़ कर मेरी तरफ़ देखते हुए बोली, “शबाना देख ये मेरा धगड़ा चोदू विजय शिंदे है” और फिर अपना पाकिज़ा मुँह खोल कर विजय का बड़ा सा लंड चूसने लगी। देखते ही देखते विजय शिंदे का अनकटा हिंदू मोटा लंड मेरी सहेली नाज़िया के मुस्लिमा मुँह में और बड़ा हो गया। नाज़िया मस्ती से उसे चूसने लगी और विजय की तरफ़ देख कर बोली, “मेरी चिकनी मुसल्ली गरम चूत को अपने हिंदू त्रिशूल लंड से चोद डालो मेरे हिंदू सनम!” और फिर से उसके लंड पर टूट पड़ी और लंड चूसते हुए उसने मेरी गाँड पर मार कर कहा, “मेरी शबाना जान! देख क्या रही है जल्दी से किशन की हिंदू मुरली अपने मुस्लिम मुँह में लेकर बजाना शुरू कर!”
|