RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
मैने फ्रिड्ज का दरवाज़ा खोला और अंदर लगे उस हुक को देखा जो बाहर से लॉक में चाबी घुमाने पर अंदर अटक जाता था. वो हुक फ्री था और आसानी से मेरे हाथ से ही घूम गया.
"कुच्छ ठंडा पीना है क्या आपको?" श्यामला मुझे इतने गौर से फ्रिड्ज की तरफ देखते हुए पुच्छ बेती
ठंडा तो मुझे उस वक़्त पीना था पर उस वक़्त मेरे दिमाग़ में वो आखरी बात थी.
"ये पाकड़ो" मैने एक एक करके फ्रिड्ज के अंदर रखी ट्रेस निकालनी शुरू कर दी.
"क्या कर रहे हैं?" उसने फ़ौरन पुचछा पर जब मैने अपने पर्स से 100 के 2 नोट निकालकर उसकी तरफ बढ़ाए तो वो चुप हो गयी.
जब फ्रिड्ज की सारी ट्रेस निकल गयी तो मैने खड़ा होकर एक बार उसकी तरफ देखा. वो फ्रिड्ज तकरीबन मेरे ही जितना लंबा था और काफ़ी चौड़ा भी था. मैने अपना सर थोड़ा नीचे झुकाया और फ्रिड्ज के अंदर घुस गया. अंदर घुसकर मैं सिकुड़कर नीचे को बैठ गया.
"क्या कर रहे हैं आप?" श्यामला बाई ने लगभज् चिल्लाते हुए मुझसे पुचछा. मैने उसके सवाल पर कोई ध्यान नही दिया और फ्रिड्ज का दरवाज़ा बंद करके हुक अंदर की तरफ से घुमाया. हुक अपनी जगह पर जाके अटक गया. मतलब बाहर खड़े किसी भी आदमी के लिए वो फ्रिड्ज लॉक्ड था.
मैं जब बंगलो से निकला तो एक बहुत बड़े सवाल का जवाब मुझे मिल चुका था. जिस किसी ने भी सोनी को मारा था वो वहीं घर में ही था. वो उसको मारकर कहीं गया नही बल्कि वहीं घर में ही रहा और जब अगले दिन मौका पाकर उस वक़्त भाग निकला जब घर का दरवाज़ा खोला गया था. और वो लोग जिन्हें मैने घर में उस रात देखा था पर जब मैं और सोनी घर में गये तो नही थे वो भी शायद यहीं च्छूपे हुए थे क्यूंकी हमने पूरा घर छ्चान मारा था और वो कहीं और मौजूद नही थे. फ्रिड्ज इतना बड़ा था के 2 लोग उसमें आसानी से सिकुड़कर घुस सकते थे.
"साहब" मैं जा ही रहा था के पिछे से श्यामला बाई की आवाज़ आई. मैने पलटकर उसकी तरफ देखा.
"आप बोले थे ना के मैं कुकछ अगर घर में मिला तो आपको लाकर दूँ. पैसे देंगे आप" वो बोली
"हां याद है" मैने कहा
"ये मिला मेरे को" उसने एक कपड़े का टुकड़ा मेरी तरफ बढ़ाया.
वो एक सफेद रंग का स्कार्फ या रुमाल था. देखकर अंदाज़ा लगाना मुश्किल था के लड़के का था या लड़की का. एक पल के लिए तो मुझे लगा के श्यामला बाई शायद ऐसे ही कोई रुमाल मुझे थमाके पैसे निकालने के चक्कर में है पर वो रुमाल देखने से ही काफ़ी महेंगा सा लग रहा था. दोनो तरफ हाथ से की गयी गोलडेन कलर की कढ़ाई थी और कपड़े भी काफ़ी महेंगा मालूम पड़ता था. ऐसा रुमाल श्यामला बाई के पास नही हो सकता, ये सोचकर मैं उसे पैसे देने चाह ही रहा था के उस रुमाल पर मुझे कुच्छ ऐसा नज़र आया के मेरा उसको रख लेने का इरादा पक्का हो गया.
रुमाल के एक कोने पर गोलडेन कलर के धागे से 2 लेटर्स कढ़ाई करके लिखे गये थे.
एच.आर.
मेरे दिमाग़ में फ़ौरन एक ही नाम आया.
हैदर रहमान.
पहले तो मैने सोचा के पोलीस स्टेशन जाकर मिश्रा से बात करूँ पर जब मैने उसको फोन किया तो वो पोलीस स्टेशन में नही था. मैने उसको अपने ऑफीस आकर मुझसे मिलने को कहा और ऑफीस पहुँचा.
"फाइनली" प्रिया मुझे देखकर बोली "सरकार की तशरीफ़ आ ही गयी. सारी दिन अकेली बोर हो गयी मैं. खाना भी ठंडा हो गया है"
"अब तो भूख ही ख़तम हो गयी यार" मैने कहा और अपनी डेस्क पर बैठ गया.
"क्यूँ कहीं से ख़ाके आ रहे हो क्या?" वो उठकर मेरे करीब आई.
मैं कुर्सी पर सीधा होकर लेट सा गया और आँखें बंद करके इनकार में सर हिलाया.
"तो भूख क्यूँ नही है? तबीयत ठीक है?" कहते हुए वो घूमकर डेस्क के मेरी तरफ आई और मेरे माथे पर हाथ लगाके देखा.
"बुखार तो नही है" वो बोली
"नही तबीयत तो ठीक है. बस ऐसे ही भूख ख़तम हो गयी" कहते हुए मैने आँखें खोली तो फिर वही नज़र सामने था जहाँ अक्सर मेरी नज़र अटक जाती थी. उसकी बड़ी बड़ी चूचिया जो उसके पिंक टॉप के उपेर ऐसे उठी हुई थी जैसे 2 माउंट एवरेस्ट. मेरी नज़र एक पल के लिए फिर वहीं अटक गयी और खुद प्रिया को भी अंदाज़ा हो गया के मैं कहाँ देख रहा हूँ.
"ओह प्लीज़ सर......." वो बोली
"क्या?" मैने मुस्कुराते हुए उसकी नज़र से नज़र मिलाई.
"मुझे लगा था के अब आप ऐसे नही घुरोगे" वो हस्ती हुई बोली और टेबल के दूसरी तरफ जा बैठी.
"वो क्यूँ?" मैने पुचछा
"अरे अब देख तो लिया आपने. आँखों से भी देख लिया और अपने हाथों से भी देख लिया" वो हल्के से शरमाते हुए बोली.
"अरे तो एक बार देख लिया तो इसका मतलब ये थोड़े ही है के इंटेरेस्ट ख़तम हो गया" मैने उसे छेड़ते हुए कहा.
"तो अब क्या डेली सुबह शाम एक एक बार दिखाया करूँ?" वो आँखें फेलाति हुई बोली.
"सच?" मैं एकदम खुश होता हुआ बोला "क्या ऐसा कर सकती है तू?"
"बिल्कुल नही" वो थोड़ा ज़ोर से बोली और हस्ने लगी "वो आपका बिर्थडे गिफ्ट था जो आपको कल मिल गया."
"याअर ये तो ग़लत बात है" मैने कहा
"क्या ग़लत है?" वो बोली
"ये तो शेर के मुँह खून लगाने वाली बात हो गयी. एक बार ज़रा थोड़ी देर के लिए दिखा कर तो जैसे और देखने की ख्वाहिश बढ़ा दी तूने"
"थोड़ी देर के लिए? और बस देखा आपने" वो इस बात की तरफ इशारा करते हुए बोली के मैने काफ़ी देर तक देखे थे और देखने के साथ दबाए और चूसे भी थे.
मैं जवाब में हस पड़ा.
"वैसे ये सब मज़ाक ही है ना?" उसने पुचछा
"शायद और शायद नही" मैने गोल मोल सा जवाब दिया
"इस बात का क्या मतलब हुआ?"
मैने फिर जवाब नही दिया
"एक बात बताइए सर" उसने पुचछा "लड़को को इनमें क्या अच्छा लगता है?"
"ऑपोसिट अट्रॅक्ट्स यार" मैने कहा "लड़को को ऑफ कोर्स लड़की के जिस्म की तरफ अट्रॅक्षन होती है तो ऑफ कोर्स लड़की के ब्रेस्ट्स की तरफ भी अट्रॅक्षन होती है. और जैसी तेरी हैं, ऐसे तो हर बंदा चाहता है के उसकी गर्ल फ्रेंड या बीवी की हों"
"जैसी मेरी हैं मतलब?" उसने अपनी चूचियो की तरफ देखते हुए कहा
"मतलब के तेरी बड़ी हैं काफ़ी और ज़्यादातर लड़को को बड़ी छातिया अच्छी लगती हैं" मैने कहा तो वो इनकार में सर हिलाने लगी.
"याद है आपको मैं एक शादी में गयी थी और मैने एक कज़िन के बारे में बताया था जिसके साथ मेरी एक लड़के को पटाने की शर्त लगी थी?" उसने पुचछा तो मैने हाँ में सर हिलाया
"हाँ याद है"
"सर मेरी उस कज़िन के पास लड़कियों जैसा कुच्छ नही है. बस शकल से लड़की है वो. सीने पर ज़रा भी उभार नही है और फिर वो लड़का उससे जाकर फस गया. मुझे तो उसने घास भी नही डाली" वो बोली तो मैं हस पड़ा
"अरे और भी कई बातें होती हैं जो लड़को को पसंद होती हैं. सिर्फ़ ब्रेस्ट्स नही" मैने कहा
"और क्या?" वो ऐसे बोली जैसे मैं उसकी टूवुशन क्लास ले रहा था.
मैं कुच्छ कह ही रहा था के मेरे ऑफीस के दरवाज़े पर नॉक हुआ और मिश्रा अंदर आया.
क्रमशः.............................
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