RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
कुच्छ देर बाद आख़िर मेरे जिस्म में हरकत हुई और मैने एक कदम उसकी तरफ बढ़ाया. मुझे अपनी तरफ आता देख वो भी एक कदम पिछे को हो गयी. उसकी इस हरकत पर मैं फिर अपनी जगह पर ही रुक गया और कुच्छ देर बाद फिर उसकी तरफ बढ़ा. इस बार वो हिली नही. वहीं खड़ी रही और मैं उसके करीब पहुँच गया.
मैं इससे पहले भी नंगी चूचिया देख चुका था पर उस वक़्त उसको ऐसे देख रहा था जैसे इससे पहले कभी किसी औरत को नंगी देखा ही ना हो. मेरा गला हल्का सूखने लगा था. उसके करीब पहुँचकर मुझे समझ नही आया के क्या करूँ. हमारे जिस्म एक दूसरे से तकरीबन लगे हुए खड़े थे. उसका चेहरा मेरे चेहरे के सामने था. वो जाने क्या देख रही थी पर मेरी नज़र उसके क्लीवेज पर ही थी. जब मैने कोई हरकत नही की और ऐसे ही खड़ा रहा तो उसने खुद ही मेरा हाथ पकड़ा और उठाकर अपने क्लीवेज पर रख दिया. तब पहली बार मैने नज़र उसके चेहरे पर डाली और हमारी नज़र एक दूसरे से मिली.
"आज मैं आपको नही रोकूंगी सर" उसने कहा और फिर नज़र नीचे झुका ली.
मेरा हाथ उसके क्लीवेज पर था और उसके नीचे मुझे उसकी नरम छातिया महसूस हो रही थी जो उसकी साँस के साथ उपेर नीचे हो रही थी. उसकी धड़कन मुझे अपने हाथ पर महसूस हो रही थी जो काफ़ी तेज़ थी जिससे मुझे अंदाज़ा था के वो खुद भी काफ़ी नर्वस थी, शायद पहले बार किसी मर्द के सामने ऐसी आधी नंगी हालत में खड़ी थी इसलिए. मेरा हाथ उसकी चूचियो को सहलाता हुआ उसके नंगे पेट पर आया और उसकी नंगे जिस्म को सहलाने लगा.
"सर्ररर" मेरा पूरा हाथ अपने खुले हुए जिस्म पर महसूस होते ही वो सिहर उठी.
कुच्छ देर उसका पेट सहलाने के बाद मेरा वो हाथ फिर से उसकी चूचियो पर आ गया और ब्रा के उपेर से मैं उन्हें दबाने लगा. इस पूरे वक़्त हम दोनो एक दूसरे के बिल्कुल सामने खड़े थे और इससे ज़्यादा कुच्छ नही कर रहे थे. बस मेरा एक हाथ उसकी चूचिया दबा रहा था.
मैं एक कदम आगे को बढ़ा और पेंट के अंदर खड़ा हुआ मेरा लंड उसकी टाँग पर जा लगा और वो एक पल था जब मेरे सबर का बाँध टूट गया और अंदर का जानवर जैसे जाग उठा. मैं उससे एकदम लिपट गया. अचानक हुए इस हरकत से उसके कदम अपनी जगह से हीले और खुद को संभालने के लिए वो अपने पिछे दीवार से जा लगी. ये जैसे मेरे लिए और भी अच्छा हो गया. मैं उससे पूरी तरह लिपट गया और पागलों की तरह उसका गला चूमने लगा. अब मेरे दोनो हाथ उसकी चूचियो पर आ चुके थे और बेदर्दी से मसल रहे थे. मैने कभी उसके गले को चूमता तो कभी नीचे उसकी चूचियो को ब्रा के उपेर से चूमता. उसके खुदके हाथ भी मेरा सर और पीठ सहला रहे थे और उसकी गरम हो चुकी सांसो से मुझे इस बात का अंदाज़ा था के वो खुद भी उस वक़्त पूरी गर्मी में थी.
मैं उस वक़्त जैसे दीवाना हो चुका था. हाथ उसकी चूचियो से हटने का नाम ही नही ले रहे थे.
उसका गला चूमते हुए एक बार जब मैं नीचे आया तो एक हाथ उपेर से उसकी ब्रा के अंदर घुसकर उसकी एक चूची ब्रा से बाहर खींच ली. उसका निपल जैसे ही मेरे सामने आया तो मैने फ़ौरन उसको अपने होंठों के बीच दबा लिया.
"आआहह सर" वो बस इतना ही कह सकी और मैं उसके निपल को चूसने लगा. कभी उसका निपल मेरे होंठो के बीच होता, कभी मेरे दाँत के बीच तो कभी मैं उसकी चूची को जितनी हो सके अपने मुँह में लेने की कोशिश करता. एक चूची को जी भरके चूसने के बाद मैं दूसरी भी उसी तरह ब्रा से बाहर निकाली और पहली को हाथ से दबाते हुए दूसरी को चूसना शुरू कर दिया.
मैं उस वक़्त इतना जोश में था के उसको पूरी तरह हासिल करना चाहता था. मेरे दिमाग़ में उस वक़्त बस एक ही ख्याल था के उसकी चूत में अपना लंड घुसाकर उसको पूरी तरह हासिल कर लूँ और इसी कोशिश में मेरा हाथ उसकी चूचियो से हटकर उसकी जीन्स तक आया.
"नही सर" जैसे ही मैने उसकी जीन्स का बटन खोलना चाहा उसने फ़ौरन मेरे हाथ पकड़कर हटा दिए.
मैने उसके दोनो हाथ उसके सर के उपेर उठाकर दीवार के सहर छ्चोड़ दिए और फिर उसकी चूचियो को दबाने और चूसने लगा. जब उसने कोई हरकत नही की तो मेरे हाथ फिर उसकी जीन्स के बटन पर आ पहुचे.
"नही सर प्लीज़" उसने फिर मुझे रोकने की कोशिश की पर इस बार मैं माना नही. उसके हाथ मेरे हाथों को पकड़कर हटाने की कोशिश करते रहे पर मैने जीन्स का बटन खोल ही दिया.
"सर प्लीज़.... मेरे मम्मी डॅडी कभी भी आ सकते हैं" जैसे ही मैने उसकी जीन्स की ज़िप नीचे खींची, उसने पूरी ताक़त से मुझे अपने से दूर धकेल दिया.
मैने गिरता गिरता बचा और उससे कुच्छ कदम दूर हटकर उसकी तरफ देखने लगा.
हम दोनो की साँसे काफ़ी तेज़ चल रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनो ही मरथोन में भाग कर आए हैं. मैने एक नज़र उसपर डाली. खुली हुई शर्ट, उसके अंदर ब्रा के उपेर से बाहर निकली हुई उसकी भारी छातिया जो उसकी सांसो के साथ उपेर नीचे हो रही थी, उसकी खुली हुई जीन्स जिसने अंदर से उसकी ब्लू कलर की पॅंटी नज़र आ रही थी, ये नज़ारा काफ़ी थी किसी कोई भी उसका रेप कर देने पर मजबूर कर देने के लिए. पर जिस तरह से उसने मुझे अपने आप से दूर धकेला था, उससे पता नही मुझे क्या हुआ के मैने एक नज़र उसपर डाली और अपने बालों में हाथ फिराता घर से बाहर निकल गया.
घर वापिस जाते हुए मेरा जिस्म ऐसे तप रहा था जैसे मुझे बुखार हो गया हो. पेंट में लंड अब भी तना हुआ था. मेरे सर में जैसे हथोदे बज रहे थे. मैने अपने आपको कभी इस हालत में नही देखा था. मैं कभी इस हद तक गरम नही होता था पर प्रिया के नंगे जिस्म में जाने क्या था के मैं हवस में पागल हो रहा था. दिल ही दिल में मैं फ़ैसला कर चुका था के घर पहुँचते ही देवयानी या रुक्मणी जो भी सामने आई, वही चुदेगि और अगर दोनो सामने एक साथ आ गयी तो थ्रीसम होगा, फिर चाहे जिसको जैसा लगे.
अपनी ही धुन में कार चलाता मैं अपनी कॉलोनी में दाखिल हुआ और घर की तरफ जाने लगा. रास्ते में मुझे बंगलो नो 13 नज़र आया और जैसे जैसे मेरी गाड़ी बंगलो के नज़दीक पहुँची, वो गाने की आवाज़ मुझे फिर से सुनाई देने लगी.
वही मधुर गाने की आवाज़.
हल्की सी जैसे कोई बहुत दूर गा रहा हो.
जैसे कोई माँ अपने बच्चे को लोरी सुना रही हो.
शब्द मुझे अब भी समझ नही आ रहे थे.
उस गाने की आवाज़ सुनते ही मेरा सारा एग्ज़ाइट्मेंट ख़तम होता चला गया. मेरा वो जिस्म जो वासना में काँप रहा था ठंडा पड़ गया. दिमाग़ जो घूम रहा था जैसे एक जगह ठहेर गया. एक अजीब सा सुकून मेरी रूह के अंदर तक उतरता चला गया और एक अजीब सा नशा मुझपर छाने लगा.
मेरी गाड़ी की स्पीड गाने की आवाज़ सुनते ही काफ़ी कम हो गयी थी. धीरे धीरे गाड़ी चलाता मैं बंगलो के सामने से जैसे ही निकला, मेरा पावं ब्रेक्स पर पूरे ज़ोर से आ गया और गाड़ी वहीं बंगलो के मैं गेट के सामने रुक गयी.
लोहे के उस बड़े गेट के पिछे वो खड़ी थी. हाथों में गेट की रोड्स को पकड़ा हुआ था जैसे कोई मुजरिम जैल के अंदर जेल की सलाखों को पकड़कर खड़ा होता है.
जिस्म पर कुच्छ पुराने से कपड़े थे. एक घिसी हुई शर्ट और एक फटी हुई पेंट .
मैं अपनी गाड़ी में बैठा उसकी तरफ देखता रहा और वो भी सीधा मेरी ही ओर देख रही थी.
और आज पहली बार मुझे वो गाना कहाँ से आ रहा था पता चला. वो वहीं मेरी नज़रों के सामने खड़ी गा रही थी.
"जनमदिन मुबारक हो इशान" उसने एक पल के लिए गाना बंद किया और मुस्कुराते हुए बोली.
क्रमशः...........................
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