RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--15
गतान्क से आगे...............
इशान की कहानी जारी है ...............................
शाम के वक़्त मैं घर पहुँचा तो बुरी तरह से थक चुका था.
"कैसा रहा ऑफीस?" मुझे देखते ही रुक्मणी बोली. मैं उसको घर से ये बताके निकला था के ऑफीस जा रहा हूँ.
"ठीक ही था?" मैं सोफा पर बैठते हुए बोला
"कुच्छ खाओगे?" उसने मुझसे पुचछा तो मैने इनकार में सर हिला दिया
"आज किसी के यहाँ डिन्नर पर जाना है. रात को शायद आने में देर भी हो जाए"
उन दोनो को देख कर मुझे बड़ा अजीब लग रहा था. आज दोपहर उन दोनो को जिस हालत में देखा था वो देखकर मैं काफ़ी शॉक में था. इस वक़्त भी उन दोनो की तरफ नज़र डालते ही मुझे सिर्फ़ उनके नंगे जिस्म ही ध्यान आ रहे थे. ऐसा नही था के मैने पहली बार उनको नंगा देखा था. रुक्मणी को तो मैं चोद भी चुका था और देवयानी को भी पहले एक बार नंगी देख चुका था पर 2 बहनो को एक साथ बिस्तर पर जिस्म गरम करते हुए देखने के बाद उनकी तरफ देखने का मेरा नज़रिया ही बदल गया था.
"क्या सोच रहे हो?" रुक्मणी किचन की तरफ गयी तो सामने बैठते देवयानी ने मुझसे पुचछा
"कुच्छ नही. मैं नाहकर आता हूँ" कहते हुए मैं उठा
मैं नाहकर अपने कमरे की तरफ बढ़ा ही था के पिछे से देवयानी ने आवाज़ दी. मैं रुक कर उसकी तरफ पलटा. वो धीरे से मेरे करीब आई और वैसे ही धीरे से मुझे बोली
"जो आज दोपहर को देखा, वो पसंद आया?"
मेरे चेहरे के भाव फ़ौरन बदलते चले गये और मैने आँखें फाडे उसकी तरफ देखा. मुझे उस हालत में देखकर वो हस पड़ी और वैसे ही हस्ती हुई किचन की तरफ चली गयी.
अपने कमरे में शवर के नीचे खड़ा मैं नहा कम और सोच ज़्यादा रहा था. वो कम्बख़्त औरत जानती थी के मैं उनको देख रहा हूँ पर फिर भी बिस्तर पर रुक्मणी के साथ ऐसे लगी रही जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो. और क्या रुक्मणी कोई भी पता था के मैं देख चुका हूँ? शायद नही क्यूंकी वो काफ़ी सीधी है और अगर वो जानती के मैं उसे उसकी बहेन के साथ देख चुका हूँ तो ऐसे नॉर्मली बिहेव ना कर पाती. और सबसे बड़ी बात के देवयानी क्या चाहती थी? सिर्फ़ मेरे साथ बिस्तर पर आने के लिए उसके ये सब करने की ज़रूरत नही थी? ये काम तो बड़ा आसान था. ज़ाहिर था के उसके दिमाग़ में कुच्छ और चल रहा था. क्या, ये शायद वो खुद ही जानती थी.
मैं प्रिया के यहाँ जाने के लिए तैय्यार हो गया.
अकॅडमी ऑफ म्यूज़िक से आते हुए मुझे एक पल के लिए ख्याल आया था के पुरानी प्रिन्सिपल के यहाँ होता चलूं पर फिर ये इरादा बदल दिया था मैने क्यूंकी प्रिया के यहाँ डिन्नर के लिए लेट हो जाता. मिश्रा के कहने पर मैं पहले तो इस बात के लिए भी मान गया था के उन 2 गुणडो की लाश भी एक बार देख लूँ पर बाद में फोन करके मैने मना कर दिया था क्यूंकी उन लाशों को देखने जाने की वजह नही थी कोई मेरे पास? और सबसे बड़ा सवाल ये था के मुझपर हमला किया क्यूँ था उन्होने और क्या उनकी मौत की वजह भी उनका मुझपर हमला करना ही था?
मैं अपनी सोच में खोया हुआ था के मेरे सामने रखे फोन की घंटी बजी.
फोन रश्मि का था. उसने बताया के वो मुंबई पहुँच चुकी है और उनके मुंबई वाले घर से वो खंजर गायब है. यानी के बंगलो में मिला वो रिब्बन उसी खंजर का था और मर्डर वेपन भी सोनी का अपना खंजर ही था.
मैं प्रिया के घर पहुँचा तो उसके घर पे उसके सिवा कोई नही था जबकि उसने मुझे कहा था के उसके माँ बाप घर पर ही होंगे.
"तेरे मम्मी डॅडी कहाँ हैं?" मैने उससे पुचछा
"घर पर नही हैं" वो मुस्कुराते हुए बोली
"पर तूने तो कहा था के....." मैने घर में एक निगाह चारों और दौड़ाई
"झूठ कहा था मैने" वो मेरा हाथ पकड़कर डाइनिंग टेबल की और ले जाते हुए बोली "क्यूंकी अगर मैं कहती के घर पर कोई नही होगा तो आप आने से पहले 56 सवाल पुछ्ते मुझसे"
उसकी बात सुनकर मैं सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गया. उसने उस वक़्त एक ब्लू कलर की शर्ट और ब्लॅक जीन्स पहेन रखी थी और हमेशा की तरह उसकी चूचिया और गांद जैसे कपड़े फाड़ कर बाहर को निकल रहे थे.
"तो खाने में क्या है?"मैं दोनो हाथ आपस में रगड़ता हुआ बोला
"काफ़ी कुच्छ है" प्रिया बोली "पर उससे पहले कुच्छ और"
"क्या?" मैने पुचछा तो वो मुस्कुराते हुए घर के अंदर चली गयी. थोड़ी देर बाद वो लौटी तो उसके हाथ में एक केक था जिसपर एक कॅंडल जली हुई थी.
"हॅपी बिर्थडे बॉस" कहते हुए वो मेरे करीब आई
मुझे याद नही था के आखरी बार मैने कब अपना बिर्थडे सेलेब्रेट किया था, या कभी सेलेब्रेट किया भी था या नही. सेलेब्रेट करना तो दूर, मुझे तो ये भी याद नही था के मेरे बिर्थडे पर किसी ने कभी मुझे विश भी किया हो. किसी और का तो क्या कहना, मुझे तो खुद भी अपना बिर्थडे याद नही रहता था. पर जब वो कॅंडल लेकर आई तो मुझे याद आया के आज मेरे बिर्थडे था.
"तुझे कैसे....." मैं कभी हैरत से उसको देखता तो कभी केक की तरफ.
"आपके यहाँ काम करती हूँ. आपके बारे में सब पता है मुझे" वो हस्ते हुए बोली और केक लाकर टेबल पर मेरे सामने रख दिया.
उसके हाथ में एक चाकू था जो मैने केक काटने के लिए उठा लिया.
"चलिए अब जल्दी से केक काटिए फिर हम लोग कहीं बाहर जा रहे हैं" वो बोली
"बाहर?" मैने पुचछा
"हाँ और नही तो क्या?" वो भी वैसे ही हस्ते हुए बोली "बिर्थडे की पार्टी नही देंगे क्या? आपको क्या लगा था के मैं आपको अपने घर का राशन खिलाऊंगी?"
उसकी बात पर हम दोनो ही ज़ोर से हस्ने लगे.
"ठीक है पार्टी भी दे दूँगा पर पहले ये तो बता के मेरा गिफ्ट कहाँ है?" मैने पुचछा
"गिफ्ट भी मिल जाएगा" कहते हुए वो थोड़ा सा शर्मा गयी. उसके सावले चेहरे पर एक शरम की लाली सी छा गयी और नज़र उसने केक की तरफ घुमा ली. मुझे समझ नही आया क्यूँ.
"चलिए अब केक काटिए"
उसने कहा तो मैने केक काटा और अपनी ज़िंदगी में पहली बार मैने अपना बिर्थडे सेलेब्रेट किया. मैने केक काटा तो वो उसके क्लॅप करते हुए हप्पी बिर्थडे का वही पुराना गाना सा गया और फिर हम दोनो ने थोड़ा थोड़ा केक एक दूसरे को खिलाया.
"चलिए अब निकलते हैं यहाँ से. मेरे मम्मी डॅडी आने वाले होंगे. वो आ गये तो रात को बाहर नही जाने देंगे" वो बोली
"ऐसे नही. पहले मेरा गिफ्ट" मैने कहा
गिफ्ट की बात पर वो फिर से शर्मा सी गयी.
"बाद में....." उसने कहा तो मैने फ़ौरन इनकार कर दिया
"अभी इसी वक़्त. मुझे भी तो पता चले के मुझे इतनी शॉपिंग करने के बदले में तू खुद मेरे लिए क्या लाई है"
उसके बाद कुच्छ देर तक वो खामोश खड़ी रही जैसे डिसाइड कर रही हो के गिफ्ट दे या ना दे. चेहरे पर शरम अब भी थी.
"क्या सोचने लगी. जल्दी कर फिर चलते हैं. ऐसे ही उठा ला मैं कार में बैठकर खोल लूँगा" मैने कहा तो उसने एक लंबी साँस ली
"चेहरा दूसरी तरफ कीजिए. मैं लाती हूँ. सर्प्राइज़ है" उसने कहा तो मैने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया
वो थोड़ा सा पिछे को हटी जिससे मुझे लगा के वो शायद दूसरे कमरे में गयी पर फिर अपने पिछे हुई आहट से मुझे एहसास हुआ के वो वहीं मेरे पिछे ही खड़ी थी.
"पलटू?" मैने पुचछा
"2 मिनट...." मेरे पिछे से आवाज़ आई.
थोड़ी देर तक मैं फिर ऐसे ही खड़ा रहा और अपने पिछे होती आहट को सुनता रहा.
"अब पलटीए" पीछे से आवाज़ आई तो मैं फिर उसकी तरफ पलटा और मेरी आँखें खुली रह गयी.
उसने अपनी शर्ट के सारे बटन खोल दिए थे. शर्ट दोनो तरफ ढीली पड़ी हुई थी और उसका सामने का हिस्सा सॉफ नज़र आ रहा था. नीली शर्ट के अंदर उसका हल्का सावला जिस्म और उन दो बड़ी बड़ी चूचियो को ढके हुए ब्लॅक कलर की एक ब्रा जिसमें दोनो चूचिया मुश्किल से समा पा रही थी.
कुच्छ देर तक ना उसने कुच्छ कहा और ना मैने. वो वहीं अपनी जगह पर खड़ी रही और मैं भी वहीं अपनी जगह पर खड़ा रहा. मुझे पलट जाना चाहिए था पर ऐसा हुआ नही. मेरी नज़र उसकी चूचियो पर गढ़ी रह गयी. वो मेरी ओर देख रही थी और मैं उसकी ब्रा में बंद बड़ी बड़ी च्चातियों को ऐसे देख रहा था जैसे कई साल के प्यासे को शरबत का ग्लास दिख गया हो.
"प्रिया ये......." काफ़ी देर तक घूर्ने के बाद आख़िर मैं बोला पर नज़र अब भी उसकी चूचियो से नही हटाई.
"मैने काफ़ी सोचा" वो नज़र नीची किए शरमाती हुई बोली "फिर ख्याल आया के आपको जो चीज़ सबसे ज़्यादा मुझ में पसंद है वो ये है तो मैने सोचा के आपके बिर्थडे पर आपको यही गिफ्ट दूँ. जो चीज़ आप चोरी से देखते हैं, वो आज आपके सामने हैं"
कहकर वो चुप हो गयी. ना उसके बाद वो कुच्छ बोली और ना ही मैं. बस खामोश एक दूसरे से थोड़ी दूर खड़े रहे. मेरी पेंट में मेरे लंड पूरे ज़ोर पर आ चुका था.
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