RE: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--२
गतान्क से आगे.......................
चुदाई के बाद रुक्मणी वहीं मेरे साथ नंगी ही सो गयी. वो तो नींद में चली गयी पर मेरी आँखों से नींद कोसो दूर थी. हालाँकि ये सच था के रुक्मणी की कही बात सिर्फ़ उसका अपना ख्याल था पर ये भी सच था के कुच्छ अजीब था मनचंदा के बारे में जो मुझे परेशान सा कर रहा था. वो जिस तरह से अकेला रहता था, कहाँ से आया था किसी को पता नही था और सोचता था के कोई उसको नुकसान पहुँचाना चाहता है और आख़िर में बंगलो के अंदर देखे गये कुच्छ और लोग, पता नही मैं एक वकील था इसलिए इन बातों में इतनी दिलचस्पी दिखा रहा था ये बस यूँ ही पर मैं ये जानता था के मेरे दिमाग़ को सुकून तभी मिलेगा जब मुझे मेरे सवालों के जवाब मिल जाएँगे.मैं ये भी जानता था के किसी के पर्सनल मामले में यूँ दखल देना ठीक नही पर मेरी क्यूरीयासिटी इस हद तक जा चुकी थी के मैं आधी रात को ही बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और सर्दी में घर से बाहर निकल गया. मैं खुद देखना चाहता था के क्या सच में बंगलो के अंदर कोई और भी दिखाई देता है.
धीरे धीर चलता मैं बंगलो नो 13 के सामने पहुँचा. बंगलो से थोड़ी ही दूर पर पोलीस चोवकी थी जहाँ पर पोलिसेवला कंबल में लिपटा गहरी नींद में डूबा हुआ था. मैं बंगलो के सामने सड़क के दूसरी तरफ खड़ा जाने किस उम्मीद में उस घर की और देखने लगा. बंगलो के ड्रॉयिंग रूम की खिड़की पर परदा गिरा हुआ था और उसके दूसरी तरफ से रोशनी आ रही थी. शायद मिस्टर मनचंदा अभी सोए नही थे. थोड़ी देर यूँ ही खड़े रहने के बाद मुझे खुद पर हसी आने लगी के कैसे मैं एक औरत के कहने पर आधी रात को यहाँ आ खड़ा हुआ. मैं जाने को पलटा ही था के मेरे कदम वहीं जम गये. खिड़की पर पड़े पर्दे के दूसरी तरफ दो साए नज़र आए. एक आदमी का और एक औरत का. मुझे एक पल के लिए यकीन नही हुआ के मैं क्या देखा रहा हूँ पर जब वो साए थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहे तो मुझे यकीन हो गया के मुझे धोखा नही हो रहा है. मैं ध्यान से खिड़की की तरफ देखने लगा जिसके पर्दे पर मुझे बस 2 काले साए दिखाई दे रहे थे.
जिस अंदाज़ में वो साए अपने हाथ हिला रहे थे उसे देखकर अंदाज़ा होता था के दोनो में किसी बात पर कहासुनी हो रही है जो धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी.वो बार बार एक पल के लिए खिड़की के सामने से हट जाते और फिर उसी तरह झगड़ा करते हुए फिर खिड़की के सामने दिखाई देते. कुच्छ देर तक यही चलता रहा और फिर अचानक से उस आदमी के साए ने औरत के साए को गर्दन से पकड़ लिया और किसी गुड़िया की तरह बुरी तरह हिला दिया.वो औरत आदमी की पकड़ से छूटने की कोशिश करने लगी और मुझे ऐसा लगा जैसे मैने एक चीख सुनी हो.
पता नही क्या सोचकर पर फ़ौरन मैं बंगलो के दरवाज़े की तरफ भागा. शायद मैं उस औरत को मुसीबत से बचाना चाहता था. दरवाज़े पर पहुँचकर मैने ज़ोर से दरवाज़र खटखटाया और ठीक उसी पल ड्रॉयिंग रूम में जल रही रोशनी बुझ गयी और मुझे कुछ भी दिखाई देना बंद हो गया. पागलों की तरह मैं वहाँ खड़ा दरवाज़ा पीट रहा था. मुझे पूरा यकीन था के वो आदमी का साया मनचंदा ही था और उस औरत को मार रहा था.जब बड़ी देर तक दरवाज़ा नही खुला तो मैने पोलीस चोवकी तक जाने का फ़ैसला किया और बंगलो से निकल कर वापिस सड़क पर आ गया. एक आखरी नज़र मैने बंगलो पर डाली और पोलीस चोवी की तरफ बढ़ा. मैं मुश्किल से कुच्छ ही कदम चला था के सामने से मुझे एक आदमी आता दिखाई दिया. जब वो आदमी नज़दीक आया तो मैने उसका चेहरा देखा और मेरी आँखे हैरत से फेल गई.
वो आदमी मनचंदा था जो मेरे ख्याल से बंगलो के अंदर होना चाहिए था.
"मनचंदा साहब" मैं थोड़ा परेशान होते हुए बोला "आप?"
"हाँ मैं" उसने जवाब दिया "क्यूँ?"
"पर आप" मेरा सर चकरा उठा था "आप तो ..... "
"मैं क्या?" मनचंदा ने पुचछा
"मुझे लगा के आप घर के अंदर हैं" मैने बंगलो की तरफ देखते हुए कहा
"आपको ग़लत लगा" मनचंदा ने जवाब दिया "मैं अंदर नही बाहर हूँ. यहाँ आपके सामने"
"तो आपके घर में कौन है?"
"जहाँ तक मुझे पता है कोई नही" मनचंदा मेरे इन सवालो से ज़रा परेशान होने लगा था
"पर मैने किसी को देखा वहाँ. बंगलो के अंदर" मैने घर की तरफ इशारा करते हुए कहा
"बंगलो के अंदर?" मनचंदा चौंक उठा "कौन?"
"पता नही" मैने जवाब दिया "पर कोई था वहाँ"
"आपको धोखा हुआ होगा" मनचंदा ने मुस्कुराने की कोशिश की
"नही" मैं अपनी बात पे अड़ गया "मैं कह रहा हूँ के मैने किसी को देखा है और मुझे कोई ग़लती नही हुई"
"तो चलिए हम खुद ही चलकर देख लेते हैं" मनचंदा बंगलो की तरफ बढ़ा
"पर वो तो अब वहाँ से चले गये " मैं वहीं खड़ा रहा
"चले गये?" मनचंदा फिर मेरी तरफ पलटा
"हाँ" मैने कहा "मैने दरवाज़ा खटखटाया था क्यूंकी मुझे लगा के घर के अंदर कोई झगड़ा चल रहा है और उसी वक़्त घर में रोशनी बुझ गयी और किसी ने दरवाज़ा नही खोला. मेरे ख्याल से वो आदमी और औरत वहाँ से भाग गये"
मेरी बात सुनकर मनचंदा थोड़ी देर खामोश रहा और मेरी तरफ देखता रहा.फिर वो मुस्कुराते हुई मेरे थोड़ा करीब आया और बोला
"आपको ज़रूर कोई धोखा हुआ होगा. घर में इस वक़्त कोई नही हो सकता. मैने जाने से पहले खुद दरवाज़ा बंद किया था और मैं पिछे 4 घंटे से बाहर हूँ"
"आपको क्या लगता है के मैं पागल हूँ? जागते हुए सपना देख रहा था मैं?" मुझे हल्का गुस्सा आने लगा
"आप सपना देख रहे थे या नही इस बात का पता अभी लग जाएगा. चलिए हम लोग चलके खुद बंगलो के अंदर देख लेते हैं" मनचंदा फिर बंगलो की तरफ बढ़ा. हम दोनो सड़क के बीच भरी सर्दी में आधी रात को खड़े बहेस कर रहे थे.
"माफ़ कीजिएगा" मैं अपनी जगह पर ही खड़ा रहा "शायद मुझे इस मामले में पड़ना ही नही चाहिए था. ये आपका ज़ाति मामला है जिससे मेरा कोई लेना देना नही. पर एक बात मैं आपको बता दूँ मिस्टर मनचंदा. मुझे ज़्यादा कॉलोनी वाले आपको लेकर तरह तरह की बातें कर रहे हैं. हर कोई ये कहता फिर रहा है के आपके पिछे आपके बंगलो में कोई और भी होता है. और आप जिस तरह से रहते हैं, चुप चाप, किसी से मिलते नही उसे देखकर तो यही लगता है के आपके बारे में इस तरह की बातें होती रहेंगी और कोई ना कोई एक दिन पोलीस ले ही आएगा आपके यहाँ"
"पोलीस?" मनचंदा एकदम चौंक गया "नही नही. ये ठीक नही है. मेरा घर मेरी अपनी ज़िंदगी है. पोलिसेवाले अंदर ना ही आएँ तो बेहतर है. मैं एक शांत किस्म का आदमी हूँ और किस्मत का मारा भी जिसे अकेलापन पसंद है. मेरे घर में किसी और के होने की बात बकवास है"
"फिर भी जब मैने कहा के आपके घर में कोई है तो आप डर तो गये थे" मैने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए कहा
"डर?" मनचंदा ने जवाब दिया "मैं क्यूँ डरने लगा और किससे डरँगा?"
"शायद उनसे जो आपको तकलीफ़ पहुँचाना चाहते हैं?" मैने मनचंदा की हमारी पहली मुलाक़ात की कही बात दोहराई
मनचंदा फ़ौरन 2 कदम पिछे को हो गया और मुझे घूर्ने लगा. उसके चेहरे पर परेशानी के भाव सॉफ देखे जा सकते थे.
"तुम इस बारे में क्या जानते हो?" उसने मुझसे पुचछा
"उतना ही जितना आपने बताया था मुझे उस रात जब मैं आपको घर छ्चोड़कर गया था" मैने उसे याद दिलाते हुए कहा
"उस रात मैं अपने होश में नही था. वो मैं नही शराब बोल रही थी" उसने जवाब दिया
"पर शराब सच बोल रही थी" मैने कहा
"देखिए" मनचंदा ने गहरी साँस लेते हुए कहा "मैं एक बहुत परेशान आदमी हूँ, अपनी ज़िंदगी का सताया हुआ हूँ"
"मैं चलता हूँ" मैने कहा "मेरी किस्मत खराब थी के रात के इस वक़्त मैं इस तरफ चला आया और आधी रात को सर्दी में यहाँ खड़ा आपस बहस कर रहा हूँ पर मुझे लगता है के अब हमें अपने अपने घर जाना चाहिए"
"एक मिनिट" मनचंदा ने मुझे रोकते हुए कहा "मैं आपका एहसान मानता हूँ के आपने मुझे होशियार करने की कोशिश की. कॉलोनी के लोगों से और मेरे घर में किसी के होने की बात से भी. तो इस वजह से ये मेरा फ़र्ज़ बनता है के मैं भी ये साबित करूँ के आप ग़लत हैं. मेरे घर में कोई नही है. आप एक बार मेरे साथ बंगलो की तरफ चलते देख अपनी तसल्ली कर लीजिए के वहाँ कोई इंसान नही था."
"अगर इंसान नही था तो कोई भूत भी नही था. जहाँ तक मैं जानता हूँ भूतों की परच्छाई नही बनती" मैने मज़ाक सा उड़ाते हुए कहा
"आप खुद चलते अपनी तसल्ली क्यूँ नही कर लेते" मनचंदा ने एक बार फिर मुझे अपने साथ बंगलो में चलने को कहा
मुझे खामोश देखकर मनचंदा ने एक बार फिर मुझे अंदर चलने को कहा. समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. बंगलो नो 13 बहुत बदनाम था, तरह तरह की कहानियाँ इस घर के बारे में मश-हूर थी. उस घर में आधी रात को एक आज्नभी के साथ जाना मुझे ठीक नही लग रहा था. एक तरफ तो मेरा दिल ये कह रहा था के एक बार अंदर जाकर घर देख ही आउ और दूसरी तरफ डर भी लग रहा था. डर मनचंदा का नही था, वो एक बुद्धा आदमी था मेरा क्या बिगाड़ सकता था. डर इस बात का था के अगर घर के अंदर और लोग हुए तो?और अगर मनचंदा उनके साथ मिला हुआ तो? पर मेरी क्यूरिषिटी ने एक बार फिर मुझे मजबूर कर दिया के मैं एक बार देख ही आऊँ. मैने मनचंदा को इशारा किया और उसके पिछे बंगलो की तरफ चल पड़ा.
थोड़ी ही देर में मैं और मनचंदा बंगलो के अंदर ड्रॉयिंग रूम में खड़े थे. बंगलो में लाइट नही थी. मनचंदा ने आगे बढ़कर सामने रखा लॅंप जलाया.
"वो लोग जिनकी परच्छाई आपने पर्दे पर देखी थी, अगर वो सही में थे तो यहाँ खड़े होंगे" मनचंदा ने खिड़की के करीब रखी एक तबके की और इशारा करते हुए कहा
मैने हां में सर हिलाया
"अब एक बात बताओ इशान" उसने पहली बार मुझे मेरे नाम से बुलाया "तुम कहते हो के वो लोग आपस में लड़ रहे थे पर इस कमरे को देखकर क्या ऐसा लगता है के यहाँ कोई अभी अभी लड़ रहा था?"
मैने खिड़की की ओर देखा
"लड़ाई से मेरा मतलब ये नही था के कोई यहाँ कुश्ती कर रहा था मनचंदा साहब. लड़ाई से मेरा मतलब था के आपस में कहा सुनी हो रही थी. और ये पर्दे देख रहे हैं आप?" मैने खिड़की पर पड़े पर्दे की ओर इशारा किया "जब मैने देखा था तो खिड़की पर पर्दे नही थे. सिर्फ़ शीशे में अंदर खड़े लोगों की परच्छाई नज़र आ रही थी. ये पर्दे मेरे दरवाज़ा नॉक करने के बाद गिराए गये हैं"
"पर्दे जाने से पहले मैने गिराए थे इशान" मनचंदा ने तसल्ली के साथ कहा
जवाब में मैने कुच्छ नही कहा. सिर्फ़ इनकार में अपना सर हिलाया. जिस बात की मुझे उस वक़्त सबसे ज़्यादा हैरत हो रही थी वो ये थी के मैं क्यूँ ये साबित करने पर तुला हूँ के घर में कोई था. मुझे क्या फरक पड़ता है अगर कोई था भी तो और अगर नही था तो मेरा क्या फायडा हो रहा है. और दूसरी बात ये के क्यूँ मनचंदा इतना ज़ोर डालकर मेरे सामने ये साबित करना चाह रहा है के घर में कोई नही है. मैने मान भी लिया तो क्या बदल जाएगा और ना माना तो उसका क्या बिगाड़ लूँगा. इस बात से मेरा शक यकीन में बदल गया के कुच्छ है जो वो च्छुपाना चाह रहा है. मैं फिर उसकी तरफ पलटा.
पहली बार मैने मनचंदा को पूरी रोशनी में देखा. वो एक मीडियम हाइट का आदमी था. क्लीन शेव, चेहरे पर एक अजीब सी परेशानी. उसके चेहरे से उड़ा रंग और उसकी सेहत देखकर ही लगता था के वो काफ़ी बीमार है. आँखों में देखने से पता चलता था के वो शायद ड्रग्स भी लेता है. मैं उसकी तरफ देख ही रहा था के वो ख़ासने लगा. अपनी जेब से रुमाल निकालकर जब उसने अपना मुँह सॉफ किया तो रुमाल पर खून मुझे सॉफ नज़र आ रहा था.
उसके बारे में 2 ख़ास बातें मुझे दिखाई दी. एक तो उसके चेहरे के लेफ्ट साइड में एक निशान बना हुआ था, जैसे किसी ने चाकू मारा हो या किसी जंगल जानवर ने नोच दिया हो. निशान उसके होंठ के किनारे से उपर सर तक गया हुआ था. और दूसरा उसके राइट हॅंड की सबसे छ्होटी अंगुली आधी कटी हुई थी. हाथ में सिर्फ़ बाकी की आधी अंगुली ही बची थी.
"आप काफ़ी बीमार लगते हैं" मैने तरस खाते हुए कहा
"बस कुच्छ दिन की तकलीफ़ है. उसके बाद ना ये जिस्म बचेगा और ना ही कोई परेशानी" उसने मुस्कुरकर जवाब दिया
"इतनी सर्दी में आपको बाहर नही होना चाहिए था" मैने कहा
""जानता हूँ. पर इतने बड़े घर में कभी कभी अकेले दम सा घुटने लगता है इसलिए बाहर चला गया था"
उसके घर के बारे में ज़िक्र किया तो मैने नज़र चारो तरफ दौड़ाई. घर सच में काफ़ी बड़ा था इसका अंदाज़ा ड्रॉयिंग रूम को देखकर ही हो जाता था. मनचंदा ने ड्रॉयिंग रूम को काफ़ी अच्छा सज़ा रखा था. ज़मीन पर महेंगा कालीन, चारो तरफ महेंगी पेंटिंग्स, महेंगा फर्निचर, काफ़ी अमीर लगता था वो. कमरे में रखी हर चीज़ इस बात की तरफ सॉफ इशारा करती थी के मनचंदा के पास खर्च करने को पैसे की कोई कमी नही है. टेबल पर रखी शराब भी वो थी जो अगर मैं शराब पिया करता तो सिर्फ़ फ्री की पार्टीस में पीना ही अफोर्ड कर सकता था.
"काफ़ी अच्छा बना रखा है आपने घर को" मैने कहा तो मनचंदा मुस्कुराने लगा. "पर हैरत है के आपने सिर्फ़ 2 कमरों की तरफ ध्यान दिया है. बाकी घर का हर कमरा ऐसे ही गंदा पड़ा है"
"मुझे सिर्फ़ रहने के लिए 2 कमरों की ज़रूरत है इशान. बाकी कमरे सॉफ करके करूँगा भी क्या? वैसे तुम्हें कैसे पता के मैने बाकी घर ऐसे ही छ्चोड़ रखा है?" उसने पुचछा
"आप इस कॉलोनी में सबसे फेमस आदमी हैं मनचंदा साहब. आपके बारे में पूरी कॉलोनी को पता है" मैने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"शायद वो कम्बख़्त काम करने वाली बहुत बोल रही है" मनचंदा ने कहा और मेरी खामोशी को देखकर समझ गया के वो सच कह रहा है.
"आइए बाकी का घर भी देख लीजिए ताकि आपको तसल्ली हो जाए के घर में कोई नही था मेरे पिछे" उसकी बात सुनकर मैं फिर चौंक उठा. जितना ज़ोर डालकर वो ये साबित करना चाह रहा था के मैं ग़लत था, वो बात काफ़ी अजीब लग रही थी मुझे.
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