Bhoot bangla-भूत बंगला
06-29-2017, 11:11 AM,
#1
Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--1


मैं पेशे से एक वकील हूँ. नाम इशान आहमेद, उमर 27 साल, कद 6 फुट, रंग गोरा. लॉ कॉलेज में हर कोई कहता था के मैं काफ़ी हॅंडसम हूँ. कैसे ये मुझे अब तक समझ नही आया क्यूंकी मेरी ज़िंदगी में अब तक कभी कोई लड़की नही आई. मैं शहर के उस इलाक़े में रहता हूँ जहाँ सबसे ज़्यादा अमीर लोग ही बस्ते हैं. नही घर मेरा नही है. किराए पर भी नही है. बस यूँ समझ लीजिए के मेरे यहाँ रहने से उस घर की देखभाल हो जाती है इसलिए मैं यहाँ रहता हूँ.

मेरी माली हालत कुच्छ ज़्यादा ठीक नही है. बड़ी मुश्किल से लॉ कॉलेज की फीस भर पाया था. जैसे तैसे करके अपने लॉ की पढ़ाई पूरी की और प्रॅक्टीस के लिए शहेर चला आया. 3 साल से यहाँ हूँ पर अब तक कोई ख़ास कामयाबी हाथ नही आई पर मैं मायूस नही हूँ. अभी तो पूरी ज़िंदगी पड़ी है.पर एक दिन मैं कामयाब ज़रूर कहलऊंगा, ये भरोसा पूरा है मुझे अपने उपेर.

जिस इलाक़े में मैं रहता हूँ यहाँ शुरू से आख़िर तक वही लोग बस्ते हैं जिनके पास अँधा पैसा है. इतना पैसा है के वो सारी ज़िंदगी बैठ कर खाएँ तो ख़तम ना हो. बड़े बड़े घर, उनके सामने बने शानदार गार्डेन्स, सॉफ सुथरी सड़क. कॉलोनी के ठीक बीच में एक पार्क बना हुआ था जिसके चारों तरफ तकरीबन 6 फुट की आइरन की फेन्स बनी हुई थी.

पर इस सारी खूबसूरती में एक दाग था. बंगलो नो 13. उस पूरे घर पर उपेर से नीचे तक धूल चढ़ि हुई थी. खिड़कियाँ गंदी हो चुकी थी जिनपर मैने आज तक कोई परदा नही देखा था. घर के सामने गार्डेन तो क्या एक फ्लवर पॉट तक नही था. पैंट उतर चुका था. घर के सामने जाने कब्से सफाई नही हुई थी और काफ़ी कचरा जमा हो गया था. घर का दरवाज़ा देखने से ऐसा लगता था के बस अभी गिर ही जाएगा. घर का हाल ऐसा था के हमारे देश के मश-हूर बिखारी भी उस घर में भीख माँगने नही जाते थे.

उस घर के बारे में कहानियाँ कुच्छ ऐसी थी के कोई भी उसमें रहने के ख्याल से ही काँप उठता था. उस घर के बारे में लोग बातें भी इतनी खामोशी से करते थे के जैसे किसी ने सुन लिया तो उनपर मुसीबत आ जाएगी. कहा जाता था के उस घर पर काला साया है और कोई भटकती आत्मा उस घर में निवास करती है और इसी वजह से पिच्छले 20 साल से उस घर में कोई रह नही पाया था. कुच्छ इन कहानियों की वजह से, कुच्छ अकेलेपन, कुच्छ पुरानी ख़स्ता हालत की वजह से उस बंगलो को भूत बंगलो के नाम से जाना जाने लगा था. इसके किसी एक कमरे में बहुत पहले एक खून हुआ था और कहा जाता के उसी दिन से इस बंगलो में उसी की आत्मा भटकती है जिसका खून हुआ था. देखने वालो का कहना था के उन्होने अक्सर रात के वक़्त एक रोशनी को बंगलो के एक कमरे से दूसरे कमरे में जाते देखा था और कयि बार किसी के करहने की आवाज़ भी सुनी थी. सफेद सारी में लिपटी हुई एक औरत को उस घर में भटकते हुए देखने का दावा बहुत सारे लोग करते थे.

इन कहानियों में कितना सच था ये कह पाना बहुत मुश्किल था पर जबकि वो घर बहुत ही कम किराए पर मिल रहा था कोई भी इंसान उसमें रहने को राज़ी नही था. वो घर पूरे शहेर में धीरे धीरे मश-हूर हो गया था. जो उस घर में रहेगा वो मारा जाएगा ऐसी बात हर किसी के दिमाग़ में बैठ चुकी थी. और एक साल गर्मी के मौसम में ये सारा भ्रम उस दिन ख़तम हो गया जब मिस्टर. भैरव मनचंदा उस घर में रहने आए. वो कोई 70 साल के दिखने में एक सीधे सादे से आदमी लगते थे. कोई नही जानता था के वो कहाँ से आए थे पर बंगलो नो 13 उन्होने किराए पर लिया और उस घर की ही तरह खुद भी एक अकेलेपन से भरी ज़िंदगी वहाँ जीने लगे.

शुरू शुरू में तो बात यही चलती रही के भूत बंगलो में रहने वाला इंसान एक हफ्ते से ज़्यादा नही टिक पाएगा पर जब धीरे धीरे एक हफ़्ता 6 महीने में बदल गया और मिस्टर मनचंदा ने वहाँ से नही गये तो लोगों ने भूत बंगलो के भूत को छ्चोड़के उनके बारे में ही बातें शुरू कर दी. बहुत थोड़े वक़्त में बंगलो और भूत की तरह उनके बारे में भी कई तरह की अजीब अजीब कहानियाँ सुनाई जाने लगी.

ऐसी कयि कहानियाँ मैने अपने घर के मलिक की बीवी से सुनी जो अक्सर मुझसे मिलने आया करती थी या यूँ कहूँ के ये देखने आती थी के मैं घर से कुच्छ चुराकर कहीं भाग तो नही गया. वो मुझे बताया करती थी के कैसे मिस्टर मनचंदा उस घर में अकेले पड़े रहते हैं, कैसे वो किसी से बात नही करते, कैसे उन्हें देखने से ये लगता है के उनके पास भी बहुत सा पैसा है, कैसे वो अक्सर रात को शराब के नशे में घर आते देखे गये हैं और कैसे वो काम वाली बाई जो अक्सर दिन के वक़्त भूत बंगलो में जाकर कभी कभी सफाई कर देती थी अब वहाँ नही जाती क्यूंकी उसे लगता है के मिस्टर मनचंदा के साथ कुच्छ गड़बड़ है.

इन सब बातों पर मैने कभी कोई ध्यान नही दिया. मेरा सारा ध्यान तो बस इस बात पर रहता था के मैं कैसे अपनी ज़िंदगी में कामयाभी हासिल करूँ. और इसी सब के बीच एक दिन मेरी मिस्टर मनचंदा से मुलाक़ात हुई. वो मुलाक़ात भी बड़ी अजीब थी.

नवेंबर की एक रात मैं लेट नाइट शो देखकर अकेला घर लौट रहा था. चारों तरफ गहरा कोहरा था. शहेर की सड़कों पर हर गाड़ी की स्पीड धीमी हो गयी थी और क्यूंकी वो इलाक़ा जहाँ मैं रहता था, कल्प रेसिडेन्सी, पेड़ों से घिरा हुआ था वहाँ कोहरा कुच्छ ज़्यादा ही गहरा था. मैं कॉलोनी के गेट से अंदर दाखिल हुआ तो एक कदम भी आगे बढ़ाना मुश्किल हो गया. मैं यहाँ पिच्छले 2 साल से था इसलिए सड़क का अंदाज़ा लगाता हुआ अपने घर की तरफ बढ़ा. क्यूंकी सड़क पर लगे लॅंप पोस्ट की रोशनी भी नीचे सड़क तक नही पहुँच पा रही थी इसलिए मैने सड़क के दोनो तरफ बने रेलिंग का सहारा लेना ठीक समझा. रेलिंग का सहारा लेता मैं धीरे धीरे आगे बढ़ा. सर्दी इतनी ज़्यादा थी के एक भारी जॅकेट पहने हुए भी मैं सर्दी से काँप रहा था.

मैं धीरे धीरे अंदाज़ा लगते हुआ अपने घर की तरफ बढ़ ही रहा था के सामने से एक भारी आवाज़ ने मुझे चौंका दिया.

"कौन है?" मैने रुकते हुए पुचछा

"एक खोया हुआ इंसान" फिर वही भारी आवाज़ आई "एक भटकती आत्मा जिसे भगवान माफ़ करने को तैय्यार नही है"

मैं उपेर से नीचे तक जम गया. ध्यान से देखा तो सामने एक साया कोहरे के बीच खड़ा था. उसके दोनो हाथ सड़क के किनारे बनी रेलिंग पर थे और उसने झुक कर अपना चेहरा भी अपने हाथ पर रखा हुआ हुआ. मैने धीरे से आगे बढ़कर उस आदमी के कंधे पर हाथ रखा पर वो वैसे ही झुका खड़ा रहा. अपना सर अपने हाथों पर रखे ऐसे रोता रहा जैसे किसी बात पर पछ्ता रहा हो. आवाज़ में दर्द सॉफ छलक रहा था.

"क्या हुआ? कौन हैं आप?" मैने कंधे पर अपने हाथ का दबाव बढ़ाते हुए पुचछा

"शराब" उस आदमी ने वैसे ही झुके हुए कहा "मैं एक सबक हूँ हर उस इंसान के लिए जो नशा करता है, वो इंसान जो अपनी ज़िंदगी को सीरियस्ली नही लेता, हर वो इंसान जो रिश्तों की कदर नही करता, वो ज़िंदगी जो अपनी समझ नही पाता. मैं एक सबक हूँ उन सबके लिए"

"आपको घर जाना चाहिए" मैने कहा

"मिल ही नही रहा" उस आदमी ने कहा "यहीं कहीं है पर कहाँ है समझ नही आ रहा. मुझे पता ही नही के मैं कहाँ हूँ"

"आप इस वक़्त कल्प रेसिडेन्सी में हैं" मेरा हाथ अब भी उस आदमी के कंधे पर था और वो अब भी वैसे ही झुका हुआ था.

"बंगलो नो. 13" वो आदमी सीधा हुआ "इस कोहरे में बंगलो नो. 13 नही मिल रहा. वहाँ जाना है मुझे"

"ओह" मैने उस आदमी को सहारा दिया "मेरे साथ आइए मिस्टर मनचंदा. मैं आपको घर तक छ्चोड़ आता हूँ"

जैसे ही उनका नाम मेरे ज़ुबान पर आया वो फ़ौरन 2 कदम पिछे को हो गये और मेरी तरफ ऐसे देखने लगे जैसे मुझे पहचानने की कोशिश कर रहे हों. आँखें सिकुड़कर मेरे चेहरे की तरफ घूर्ने लगी.

"कौन हो तुम?" मुझसे सवाल किया गया "मुझे कैसे जानते हो?"

"मेरा नाम इशान आहमेद है. यहीं कल्प रेसिडेन्सी में ही रहता हूँ. आपने बंगलो नो 13 का नाम लिया तो मैं समझ गया के आप हैं, मिस्टर मनचंदा, बंगलो के किरायेदार" मैने जवाब दिया

"बंगलो का भूत कहो" उन्होने मेरे साथ कदम आगे बढ़ाए "जिसकी हालत भूत से भी ज़्यादा बुरी है"

भूत से भी ज़्यादा बुरी?" मैने उन्हें सहारा देते हुए कदम आगे बढ़ाए

"मेरे गुनाहों का सिला बेटे. मैं आज वही काट रहा हूँ जो मैने कभी खुद बोया था. मेरे साथ ..... "अचानक उन्हें ज़ोर से खाँसी आई और बात अधूरी रह गयी

मुझे उनकी हालत पर काफ़ी तरस आया. बंगलो में इस हालत में रात भर उन्हें अकेला छ्चोड़ना मुझे ठीक नही लग रहा था पर मैं इस बात के लिए भी तैय्यार नही था के भूत बंगलो में मैं उनके साथ पूरी रात रुक जाऊं.

"कहाँ ले जा रहे हो मुझे" उन्होने सवाल किया

"आपके घर" मैने जवाब दिया

"तुम उन लोगों में से तो नही हो ना?" उन्होने फिर मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए सवाल किया

"किन लोगों में से सर?" मैने सवाल का जवाब सवाल से दिया

"वही जो मुझे नुकसान पहुँचना चाहते हैं" जवाब आया

मुझे लगने लगा के ये आदमी शायद पागल है और इस वक़्त अपने पिच्छा च्छुदाने में ही समझदारी थी इसलिए मैने बहुत ही आराम से उनकी बात का जवाब दिया, बेहद प्यार से.

"मैने आपको कोई नुकसान नही पहुँचना चाहता मिस्टर मनचंदा."

धीरे धीरे हम बंगलो नो 13 तक पहुँचे.

"मेरा ख्याल है के आपको फ़ौरन सो जाना चाहिए" मैने उन्हें दरवाज़े पर छ्चोड़ते हुए कहा.

"जाना मत. मुझे अकेले अंदर जाते हुए डर लगता है. कितना अंधेरे है, कितनी सर्दी, कितनी खामोशी" उन्हें फिर से मेरा हाथ पकड़ लिया " रूको थोड़ी देर जब तक के मैं रोशनी का इंटेज़ाम नही कर लेता"

तब मुझे ध्यान आया के बंगलो में लाइट नही थी. क्यूंकी वो इतने सालों से वीरान पड़ा था इसलिए वहाँ का एलेक्ट्रिसिटी कनेक्षन हटा दिया गया था और पिच्छले 6 महीने से मनचंदा उस घर में बिना एलेक्ट्रिसिटी के रह रहा था.

"ठीक है मैं आपको अंदर तक छ्चोड़ देता हूँ" मैने कहा और जेब से लाइटर निकालकर जलाया. बंगलो के सामने बने गार्डेन से अंधेरे में होते हुए मैं उन्हें लेकर बंगलो के दरवाज़े तक पहुँचा. अंधेरे में उस घर को देखकर मैं समझ गया के क्यूँ उसको भूत बंगलो के नाम से पुकारते हैं. गहरी खामिषी और कोहरे के बीच खड़ा वो मकान खुद भी किसी भूत से कम नही लग रहा था. चारों तरफ सिर्फ़ हमारे कदमों की आहट ही सुनाई पड़ रही थी. मेरी धड़कन तेज़ हो चुकी थी और मैं खुद भी काँप रहा था. कुच्छ सर्दी से और कुच्छ डर से.

मनचंदा ने दरवाजा खोला और अंदर दाखिल हो गये जब्किमै वहीं बाहर दरवाज़े पर खड़ा रहा. वो मेरे हाथ से लाइटर ले गये था इसलिए मैं अंधेरे में खड़ा हुआ था. थोड़ी देर बाद अंदर टेबल पर रखा हुआ एक लॅंप जल उठा और चारों तरफ कमरे में रोशनी हो गयी.

मैने एक नज़र कमरे में डाली. लॅंप की हल्की रोशनी में जो नज़र आया उसे देखकर लगता नही था के मैं किसी भूत बंगलो में देख रहा था. मैने मनचंदा की तरफ नज़र डाली पर हल्की रोशनी में चेहरा नही देख पाया.

"मैं चलता हूँ" मैने अपना लाइटर भी वापिस नही लिया और कदम पिछे हटाए

"गुड नाइट" अंदर से सिर्फ़ इतनी ही आवाज़ आई.

मैं बंगलो से जल्दी जल्दी निकलकर अपने घर की तरफ बढ़ा. ये थी मेरी और मिस्टर मनचंदा की पहली मुलाक़ात.

मेरी मकान मालकिन एक ऐसी औरत थी जिसकी हमारे देश में शायद कोई कमी नही. एक घरेलू औरत जो उपेर से तो एकदम सीधी सादी सी दिखती हैं पर दिल में हज़ारों ख्वाहिशें दबाए रखती हैं. रुक्मणी सुदर्शन कोई 40 साल की थी. रंग गोरा और चेहरा खूबसूरत कहा जा सकता था.पहले उसके इस घर में मेरे सिवा और कोई नही रहता था. वो और उसका पति शहेर में बने उनके एक दूसरे घर में रहते थे जो हॉस्पिटल से नज़दीक पड़ता था. मिस्टर सुदर्शन की तबीयत काफ़ी खराब रहती थी जिसकी वजह से उन्होने अपनी ज़िंदगी के आखरी 10 साल बिस्तर पर ही गुज़ारे थे. उनके गुज़र जाने के बाद रुक्मणी ने वो घर बेंच दिया और यहीं इस घर में मेरे साथ शिफ्ट कर लिया था.

उसके चेहरे को नज़दीक से देखने पर उनकी उमर का अंदाज़ा होता था पर जिस्म से वो किसी 20-22 साल की लड़की को भी मात देती थी. वो अपने बहुत ख़ास तौर पर ध्यान रखती थी. अच्छे कपड़े पेहेन्ति थी और महेंगी ज्यूयलरी उसका शौक था. पति के मर जाने के बाद उसे कुच्छ करने की ज़रूरत नही थी. काफ़ी दौलत छ्चोड़ कर गये थे मिस्टर सुदर्शन अपने पिछे. उनकी कोई औलाद नही इसलिए वो सारा पैसा रुक्मणी आराम से बैठ कर खा सकती थी. वो ज़्यादातर वेस्टर्न आउटफिट्स में रहती थी और तंग कपड़ो में उसका जिस्म अलग ही निखरता था. अपने जिस्म पर उसने ना तो कोई ज़रूरत से ज़्यादा माँस चढ़ने दिया था और ना ही कहीं उमर का कोई निशान दिखाई देता था. सच कहूँ तो मैं शकल सूरत से अच्छा दिखता हूँ इस बात का सबूत भी उसने ही पहली बार मुझे दिया था.

रुक्मणी को शायद ये उम्मीद थी के इस उमर भी उसके सपनो का राजकुमार आएगा और उसे अपने साथ ले जाएगा. वो इसी उम्मीद पर ज़िंदा भी थी. अपने आपको को हर तरफ से खूबसूरत दिखाने की वो पूरी कोशिश करती थी और शायद मुझमें उसे अपना वो राजकुमार नज़र आने लगा. शुरू तो सब हल्के हसी मज़ाक से हुआ पर ना जाने कब वो मेरे करीब आती चली गयी और हम दोनो में जिस्मानी रिश्ता बन गया. अब हक़ीकत ये थी के वो दिन में तो मकान मालकिन होती थी पर रात में मेरे बिस्तर पर मेरी प्रेमिका का रोल निभाती थी.

इन सब बातों के बावजूद वो दिल की बहुत अच्छी थी. हमेशा हस्ती रहती और जिस तरह से वो 24 घंटे बोलती रहती थी वो पूरे कल्प रेसिडेन्सी में मश-हूर था. हर रात मेरा बिस्तर गरम करने के बावजूद भी कभी उसने मुझपर कोई हक नही जताया था और ना ही कभी उस रात के रिश्ते को कोई और नाम देने की कोशिश की थी. मैं जानता था के वो दिल ही दिल में मुझे चाहती है पर उसने कभी खुले तौर पर कभी ऐसा कोई इशारा नही किया और ना ही कभी ये ज़ाहिर किया के वो मुझसे शादी की उम्मीद करती थी. उसके लिए बस मैं उसका सपनो का वो राजकुमार था जिसे वो शायद सपनो में रखना चाहती थी. शायद डरती थी के अगर उस सपने को हक़ीक़त का रूप देना चाहा तो शायद सपना भी बाकी ना रहे.

मैं उसके घर के सबसे बड़े कमरे में रहता था और किराया उसने मुझसे लेना बंद कर दिया था. उल्टा वो मेरी हर ज़रूरत का ऐसे ख्याल रखती जैसे मेरी बीवी हो. सुबह मुझे जगाना, नाश्ता बनाना मेरे कपड़े ठीक करना और रात को फिर से चुपचाप नंगी होकर मेरे बिस्तर पर आ जाना. ये हर रोज़ का रुटीन था. ना इससे ज़्यादा कभी उसने कुच्छ कहा और ना ही मैने. वो शायद एक अच्छी बीवी बनती और एक अच्छी माँ भी पर वक़्त ने ये मौका दिया ही नही.

उसे कल्प रेसिडेन्सी के बारे में सब पता होता था. अक्सर खाने के बीच किसके यहाँ क्या हो रहा है वो मुझे बताया करती थी. ऐसा लगता था जैसे वो कोई चलता फिरता न्यूसपेपर है. मैने फ़ैसला किया के मनचंदा के बारे में अगर कोई मुझे बता सकता है तो वो रुक्मणी ही है. उसे जितना पता होगा उससे ज़्यादा किसी को पता नही होगा. मैं दिल में सोचा के एक बार उससे बात करूँ.

उस रात मैं नाहकर बाथरूम से निकला तो रुक्मणी मेरे कमरे में लगे फुल लेंग्थ मिरर के सामने खड़ी बाल ठीक कर रही थी. वो मेरी और देखकर मुस्कुराइ और फिर से अपने बाल बनाने लगी. मैने सामने खड़ी औरत को उपेर से नीचे तक देखा. खिड़की की तरफ से आती हल्की रोशनी में वो किसी बला से कम नही लग रही थी. एक हल्की से काले रंग की नाइटी पहनी हुई थी जो उसके घुटनो तक आ रही थी. रोशनी नाइटी से छन्कर इस बात का सॉफ इशारा कर रही थी के उसने नाइटी के अंदर कुच्छ नही पहना हुआ था. 36 साइज़ की चूचिया, पतली कमर, उठी हुई गांद उस वक़्त किसी भी मर्द का दिल उसके मुँह तक ले आते और ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ. मैने अपने जिस्म पर लपेटा हुआ टवल उतारकर एक तरफ फेंका और पूरी तरह नंगा होकर उसके पिछे आ खड़ा हुआ.

मेरे करीब आते हुई उसने कॉम्ब नीचे रख दिया और अपने पेट पर रखे मेरे हाथों को अपने हाथों में पकड़ लिया. मेरा खड़ा हुआ लंड नाइटी के उपेर से उसकी गांद पर रगड़ रहा था और इसका असर उसपर होता सॉफ नज़र आ रहा था. धीरे धीरे उसकी साँस भारी हो चली थी. मैने हाथ थोड़ी देर उसके पेट पर फिराते हुए उसके गले को चूमना शुरू किया. उसने खुद ही अपना चेहरा मेरी तरफ घुमा दिया और हमारे होंठ एक दूसरे से मिल गये. वो पूरे जोश में मेरे होंठ चूम रही थी और मेरे हाथ अब उसकी चूचियो तक आ चुके थे. नाइटी के उपेर से मैं ज़ोर ज़ोर से उसकी चूचिया दबा रहा था और पिछे से अपना लंड उसकी गांद पर रगड़ रहा था.

अचानक वो पूरे जोश में पलटी और बेतहाशा मेरे चेहरे को चूमने लगी. मेरा माथा, मेरे गाल, होंठ, गर्दन को चूमते हुए वो नीचे की और बढ़ने लगी. छाती से पेट और फिर पेट के नीचे वो लंड तक पहुँचती पहुँचती अपने घुटनो पर बैठ गयी. अब मेरा लंड उसके चेहरे के ठीक सामने था. उसने मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ा और नज़र मेरी ओर उठकर धीरे धीरे लंड हिलाते हुए मुस्कुराइ. मैने भी जवाब में मुस्कुराते हुए धीरे धीरे उसकी बालों को सहलाया. थोड़ी देर ऐसे ही लंड हिलाने के बाद उसने अपना मुँह खोला और मेरे लंड को आधा अपने मुँह के अंदर ले लिया.

"आआहह रुक्मणी" उसके होंठ और गरम ज़ुबान को अपने लंड पर महसूस करते ही मैं कराह उठा.

ये एक काम वो बखूबी करती थी. लंड ऐसे चूस्ति थी के कई बार मुझे उसको ज़बरदस्ती रोकना पड़ता था और कई बार तो मैं ऐसे ही ख़तम भी हो जाता था और फिर दोबारा लंड खड़ा होने तक रुकना पड़ता था ताकि उसे चोद सकूँ. अपने मुँह और हाथों की हरकत का ऐसी ताल बैठाती थी के लंड संभालना मुश्किल हो जाता था और इस बार भी ऐसा ही हो रहा था. मेरा लंड उसने जड़ से अपने हाथ में पकड़ा हुआ था. जैसे ही वो लंड मुँह से निकालती तो उसका हाथ लंड को हिलाने लगता और फिर धीरे से वो लंड फिर मुँह में ले लेती.

मैं जनता था के अगर मैने उसको रोका नही तो वो मुझे ऐसे ही खड़ा खड़ा ख़तम कर देगी इसलिए मैने लंड उसके मुँह से निकाला और उसको पकड़कर खड़ा किया. खड़े होते ही उसने फिर मुझे चूमना शुरू कर दिया और मैने भी उसी जोश के साथ जवाब दिया. उसके होंठ चूमते हुए मेरे हाथ सरकते हुए उसकी कमर तक आए और उसकी नाइटी को उपेर की ओर खींचने लगे. वो भी इशारा समझ गयी और हाथ उपेर कर दिए. अगले ही पल उसकी नाइटी उतार चुकी और हम दोनो पूरी तरह से नंगे खड़े थे. मैने उसको अपनी बाहों में उठाया और बिस्तर पर लाकर गिरा दिया और खुद भी उसके साथ ही बिस्तर पर आ गया.

"ओह इशान" जैसे ही मैने उसका एक निपल अपने मुँह में लिया वो कराह उठी. मेरे एक हाथ उसकी दूसरी चाहती को दबा रहा था और दूसरे हाथ की 2 उंगलियाँ उसकी चूत के अंदर थी.

"ईशान्न्न्न्न " वो बार बार मेरा नाम ले रही थी और हाथ से मेरा लंड हिला रही थी. आँखें दोनो बंद किए हुए वो मेरे हाथ के साथ साथ अपनी कमर हिला रही थी. मैं बारी बारी से कभी उसके निपल चूस्ता और कभी धीरे से काट लेता.

"अब रुका नही जाता.... प्लज़्ज़्ज़्ज़ " उसने कराहते हुए कहा और मुझे पकड़कर अपने उपेर खींचने लगी. मैं भी इशारा समझ कर उसके उपेर आ गया. रुक्मणी की दोनो टांगे मुड़कर हवा में उपेर की तरफ हो चुकी थी और चूत खुलकर मेरे सामने थी. उसने एक हाथ से मेरा लंड पकड़ा और चूत पर रख दिया. मैने हल्का धक्का लगाया और धीरे धीरे मेरा लंड उसकी चूत के अंदर दाखिल हो गया.

"आआअहह " वो एक बार फिर ज़ोर से कराही और नीचे से कमर हिलाती हुई मेरे साथ हो चली.

"बंगलो नो 13 के बारे में आप क्या जानती हैं?" मैने उसकी चूत पर ज़ोर ज़ोर से धक्के मारते हुए कहा

"हां?" उसने चौंकते हुए अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ देखा. मैने एक धक्का ज़ोर से मारा तो उसने फिर कराह कर अपनी आँखें बंद कर ली

"बंगलो नो 13. आप जानती हैं कुच्छ उसके बारे में?" मेरा लंड लगातार उसकी चूत में अंदर बाहर हो रहा था.

उसने हां में सर हिलाया

"क्या?" मैने फिर सवाल किया

"सब कुच्छ" वो नीचे से अपनी कमर हिलाते हुए बोली " भूत बंगलो है वो. एक आत्मा निवास करती है वहाँ. पर आप क्यूँ पुच्छ रहे हो? वो भी इस वक़्त?"

"आत्मा?" मैने उसके सवाल का जवाब दिए बिना कहा "कौन मनचंदा?"

मेरी बात सुनकर वो हस पड़ी और उसने अपनी आँखें खोली

"मेरा वो मतलब नही था. वो बेचारा तो अभी ज़िंदा है पर है अजीब और उससे बड़े अजीब आप हो जो इस वक़्त ऐसी बातें कर रहे हो" उसने मेरे बाल सहलाते हुए कहा

मैने लंड बाहर निकालकर पूरे ज़ोर से एक धक्का मारा और फिर अंदर घुसा दिया. उसकी आँखें फेल गयी

"आआहह. धीरे इशान. मार ही डालोगे क्या?"

"अजीब क्यूँ है मनचंदा?" मैने मुस्कुराते हुए पुचछा

"अजीब ही तो है" रुक्मणी बोली "कहाँ से आया है कोई नही जानता. ना किसी से मिलता है, ना बात करता है ना किसी को कुच्छ बताता है"

"तो इसमें अजीब क्या है?" मैं उसका एक निपल अपने मुँह में लेते हुए बोला "अगर कोई अकेला खामोशी से रहना चाहता है तो ये उसकी मर्ज़ी है"

"खामोश वो रहते हैं जीने पास च्छुपाने को कुच्छ होता है" रुकमी अपने निपल मेरे मुँह में और अंदर को घुसते हुए बोली "और जिस तरह से वो मनचंदा रहता है उससे तो लगता है के या तो वो कोई चोर है, या कोई गुंडा या कोई खूनी"

"और ऐसा किस बिना पर कह सकती हैं आप?" मैने उसका एक निपल छ्चोड़कर दूसरा मुँह में लिया और चूसने लगा. नीचे लंड अब भी चूत में अंदर बाहर हो रहा था.

मेरे इस सवाल पर वो भी खामोश हो गयी. शायद समझ नही आया के क्या जवाब दिया. फिर थोड़ी देर बाद बोली

"वो उस भूत बंगलो में रहता है"

"तो क्या हुआ?" मैने चूत पर धक्को की स्पीड बढ़ाते हुए कहा "कोई कहाँ रहना चाहता है ये उसकी अपनी मर्ज़ी होती है

"ऐसे इलाक़े में जहाँ इतने अच्छे घरों के लोग रहते हैं वहाँ इस अंदाज़ में रहने का कोई हक नही है मिस्टर मनचंदा को. वो जिस घर में रहता है उस घर तक की फिकर नही है उसको. सिर्फ़ 2 कमरे सॉफ करवा रखे हैं. एक बेडरूम और एक ड्रॉयिंग रूम.बाकी कमरे ऐसे ही गंदे पड़े रहते हैं. और वो बाई जो वहाँ काम करने जाती है कहती है के शराब बहुत पीता है आपका वो मनचंदा. खाना भी होटेल से माँगता है. ना वो न्यूसपेपर पढ़ता, ना ही उसका कोई लेटर आता, ना वो किसी से मिलते, सारा दिन बस घर में पड़ा रहता है और रात को उल्लू की तरह बाहर निकलता है. अब आप ही बताओ के कोई उसके बारे में क्या सोचे?"

"हो सकता है वो अकेला रहना चाहता हो" मैने कहा तो रुक्मणी इनकार में सर हिलाने लगी.

उसकी इस बात पर मैने उसके एक निपल पर अपने दाँत गढ़ा दिए. वो ज़ोर से करही और मेरे सर पर हल्के से एक थप्पड़ मार दिया.

इसमें ग़लत क्या है?" मैने फिर सवाल किया

"शायद नही है पर फिर उससे मिलने जो लोग आते हैं वो कहाँ से आते हैं?" रुक्मणी की ये बात सुनकर मैने धक्के मारने बंद किए और लंड छूट में घुसाए उसकी तरफ देखने लगा.

"क्या मतलब?" मैने पुचछा

मतलब ये के उससे मिलने कुच्छ लोग आते हैं पर वो सामने के दरवाज़े से नही आते. बंगलो में एक ही दरवाज़ा है सामने की तरफ और उसके ठीक सामने पोलीस चोकी है जहाँ एक पोलिसेवला 24 घंटे रहता है."

"हां तो?" मैने उसकी एक चूची पर हाथ फिराता हुआ बोला

"तो ये के उस पोलिसेवाले ने मनचंदा को हमेशा अकेले ही देखा है. वो हमेशा अकेले ही घर के अंदर जाता है पर रात को उस पोलिसेवाले ने अक्सर घर की खिड़की से 2-3 लोगों के साए देखे हैं. अब आप ही बताओ के वो कहाँ से आते हैं"

"शायद पिछे के दरवाज़े से?" हमारी चुदाई अब पूरी तरह रुक चुकी थी

"नही. बंगलो में पिछे की तरफ कोई दरवाज़ा है ही नही. पीछे की तरफ एक यार्ड बना हुआ है जिसके चारों तरफ फेन्स लगी हुई है. बंगलो में जाने के लिए सामने के दरवाज़े से ही जाना पड़ता है पर जो कोई भी उस आदमी से मिलने आता है वो दरवाज़े से नही आता" रुक्मणी एक साँस में बोली

"शायद दिन में आए हों" मैने सोचते हुए कहा

"नही. वहाँ 2 ही पोलिसेवालों की ड्यूटी लगती है. कभी एक दिन में होता है तो कभी दूसरा रात में. शिफ्ट चेंज करते रहते हैं आपस में. और उन दोनो में से किसी ने भी कभी किसी वक़्त किसी को बंगलो में जाते नही देखा. पता किया है मैने" रुक्मणी भी अब मेरे नीचे नंगी पड़ी होने के बावजूद चुदाई छ्चोड़कर बंगलो के बारे में खुलकर बात कर रही थी.

"तो हो सकता है के मनचंदा के साथ कोई और भी रहता हो वहाँ" मैने फिर सोचते हुए कहा

"बिल्कुल नही. उस घर को उसने अकेले ही किराए पर लिया है और कोई नही है वहाँ. इस बात का सबूत है वो काम करने वाली बाई जो अक्सर सफाई के लिए बंगलो में जाती है. उसने उस मनचंदा के सिवा वहाँ किसी को भी नही देखा. और मुझे तो लगता है के मनचंदा उसका असली नाम है ही नही"

"वो क्यूँ?" मैने मुस्कुराते हुए पुचछा

"क्यूंकी मुझे ऐसा लगता है और मुझे ये भी लगता है के अब हमें उस बारे में बात करना छ्चोड़कर दूसरी तरफ ध्यान देना चाहिए. इस वक़्त उससे ज़्यादा ज़रूरी कुच्छ और है ध्यान देने लायक" कहते हुए रुक्मणी ने अपनी एक चूची पकड़कर हल्के से दबाई,

मैं उसका इशारा समझते हुए दोबारा चूत पर धक्के मारने लगा. कुच्छ देर ऐसे ही चोदने के बाद मैने उसे घुटनो के बल झुका दिया और पिछे से उसकी गांद पकड़ कर चोदने लगा

क्रमशः..................
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Bhoot bangla-भूत बंगला - by sexstories - 06-29-2017, 11:11 AM

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