RE: Sex Hindi Kahani जीजू रहने दो ना
मैंने बिल्कुल मरी हुई आवाज में कहा, “एक कप चाय पीने की इच्छा है तुम्हारे साथ।”
मुझे लग रहा था कि अगर शशि को कुछ पता चल गया तो शायद यह मेरी उसके साथ आखिरी चाय होगी। जैसे जैसे समय बीत रहा था मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
शशि उठकर चाय बनाने चली गई। मेरी आंखों से नींद गायब थी। फिर भी आँखों के आगे बार बार अंधेरा छा रहा था, जीवन धुंधला सा दिखाई देने लगा।
मैं उठकर टायलेट गया, पेशाब करके वापस आया, और एक सख्त निर्णय ले लिया, कि कुछ भी हो जाये मैं अपनी प्यारी पत्नी से कुछ नहीं छुपाऊँगा। फिर भी मैं इससे होने वाले नफे-नुकसान का आंकलन लगातार कर रहा था। हो सकता है यह सब सुनकर शशि कुछ ऐसा कर ले कि मेरा सारा जीवन ही अंधकारमय हो जाये।
यह भी संभव था कि शशि मुझे हमेशा के लिये छोड़कर चली जाये या शायद मुझे इतनी लड़ाई करे कि मैं चाहकर भी उसको मना ना पाऊँ ! कम से कम इतना तो उसका हक भी बनता था।
इन सब में कहीं से भी कोई उम्मीद की किरण दिखाई नहीं थी। मैं शशि को सब कुछ बताने का निर्णय तो कर चुका था। पर मेरे अंदर का चालाक प्राणी अभी भी मरा नहीं था। वो सोच रहा था कि ऐसा क्या किया जाये कि शशि को सब कुछ बता भी दूं पर कुछ ज्यादा अनिष्ट भी ना हो।
बहुत देर तक सोचने के बाद भी कुछ सकारात्मक सुझाव दिमाग में नहीं आ रहा था। तभी किसी ने मुझे झझकोरा। मैं जैसे होश में आया, शशि चाय का कप हाथ में लेकर खड़ी थी, बोली- क्या बात है? आजकल बहुत खोये खोये रहते हो? हमेशा कुछ ना कुछ सोचते रहते हो। आफिस में सब ठीक चल रहा है ना कुछ परेशानी तो नहीं है ना? जानू, कोई भी परेशानी है तो मुझसे शेयर करो कम से कम तुम्हारा बोझ हल्का हो जायेगा। आखिर मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।
शशि की अन्तिम एक पंक्ति ने मुझे ढांढस बंधाया पर फिर भी जो मैं उसको बताने वाला था वो किसी भी भारतीय पत्नी के लिये सुनना आसान नहीं था।
मैंने चाय की घूंट भरनी शुरू कर दी, शशि अब भी बेचैन थी, लगातार मुझसे बोलने का प्रयास कर रही थी।
पर मैं तो जैसे मौन ही बैठा था, शेर की तरह से जीने वाला पति अब गीदड़ भी नहीं बन पा रहा था।
तभी अचानक पता नहीं कहाँ से मुझमें थोड़ी सी हिम्मत आई, मैंने शशि को कहा, “मैं तुमको कुछ बताना चाहता हूँ?”
शशि ने कहा- हाँ बोलो।
मैंने चाय का कप एक तरफ रख दिया और शशि की गोदी में सिर रखकर लेट गया, वो प्यार से मेरे बालों में उंगलियाँ चलाने लगी। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और शादी की रात से लेकर आज रात तक की हर वो बात तो मैंने शशि से छुपाई थी शशि को एक-एक करके बता दी।
वो चुपचाप मेरी हर बात सुनती रही, मैं किसी रेडियो की तरह लगातार बोलता जा रहा था। मैंने किसी बात पर शशि का प्रतिक्रिया जानने की भी कोशिश नहीं कि क्योंकि उस समय मुझे उसको वो सब बताना था जो मैंने छुपाया था।
सारी बात बोलकर मैं चुप हो गया और आँख बंद करके वहीं पड़ा रहा। तभी मेरे गाल पर पानी की बूंद आकर गिरी, मैंने आँखें खोली और ऊपर देखा तो शशि की आंखों में आंसू थे तो टप टप करके मेरे गालों पर गिर रहे थे !
मैं अन्दर से बहुत दुखी था, शशि के आंसू पोंछना चाहता था पर वो आंसू बहाने वाला भी तो मैं ही था। मैंने शशि की खुशियाँ छीनी थी मैं शशि का सबसे बड़ा गुनाहगार था।
मैंने बोलने की कोशिश की, “जानू !”
“चुप रहो प्लीज !” बोलकर शशि ने और तेजी से रोना शुरू कर दिया।
मेरी हिम्मत उसके आँसू पोंछने की भी नहीं थी। मैं चुपचाप शशि की गोदी से उठकर उसके पैरों के पास आकर बैठ गया और बोला, “मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ, चाहे तो सजा दे दो, मैं हंसते हंसते मान लूंगा, एक बार उफ भी नहीं करूंगा, पर तुम ऐसे मत रोओ प्लीज…” शशि वहाँ से उठकर बाहर निकल गई, मैं कुछ देर वहीं बैठा रहा।
बाहर कोई आहट ना देखकर मैं बाहर गया तो देखा शशि वहाँ नहीं थी। मैने शशि को पूरे घर में ढूंढा पर वो कहीं नहीं थी। मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, इतनी सुबह शशि कहाँ निकल गई।
मैंने मोबाइल उठाकर शशि को नम्बर पर फोन किया उसका मोबाइल मेरे बैड रूम में रखा था। तो क्या फिर शशि सबकुछ यहीं छोड़कर चली गई? वो कहाँ गई होगी? मैं उसको कैसे ढूंढूंगा? कहाँ ढूंढूंगा? सोच सोच कर मेरी रूह कांपने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसी जिदंगी यहीं खत्म हो गई। अगर मेरी शशि मेरे साथ नहीं होगी, तो मैं जी कर क्या करूंगा? पर मेरा जो भी था शशि का ही तो था। सोचा कम से कम एक बार शशि मिल जाये तो सबकुछ उसको सौंप कर मैं हमेशा के लिये उसकी जिंदगी से दूर चला जाऊँगा।
बाहर निकला तो लोग सुबह सुबह टहलने जा रहे थे। किससे पूछूं कि मेरी बीवी सुबह सुबह कहीं निकल गई है किसी ने देखा तो नहीं? मन में हजारों विचार जन्म ले रहे थे। शायद शशि अपने मायके चली गई होगी। तो बस स्टैण्ड पर चलकर देखा जाये?
नहीं, हो सकता है वो स्टेशन गई हो।
पर कैसे जायेगी, वो आज तक घर का सामान लेने वो मेरे बिना नहीं गई, इतने बड़े शहर में वो कहीं खो गई तो?कहीं किसी गलत हाथों में पड़ गई तो मैं क्या करूंगा? मैंने शशि को ढूंढने का निर्णय किया।
घर के अन्दर आकर उसकी फोटो उठाई, सोचा कि सबसे पहले पुलिस स्टेशन फोन करके पुलिस को बुलाऊँ वहाँ मेरा एक मित्र भी था।
पर अंदर कामना सो रही थी अगर उसको से सब पता चल गया कि मेरे और उसके संबंधों की वजह से शशि घर से चली गई है तो पता नहीं वो क्या करेगी?
मेरी तो जैसे जान ही निकली जा रही थी। आंखों से आंसू टपकने लगे। मैंने टेलीफोन वाली डायरी ओर अपना मोबाइल उठाया ताकि छत पर जाकर शांति से अपने 2-4 शुभचिन्तकों को फोन करके बुला लूं। बता दूंगा कि पति-पत्नी का आपस में झगड़ा हो गया था और शशि कहीं चली गई है।
कम से कम कुछ लोग तो होंगे मेरी मदद करने को। सोचता सोचता मैं छत पर चला गया। छत कर दरवाजा खुला हुआ था जैसे ही मैंने छत पर कदम रखा। सामने शशि फर्श पर दीवार से टेक लगाकर बिल्कुल शान्त बैठी थी।
मुझे तो जैसे संजीवनी मिल गई थी, मैं दौड़ शशि के पास पहुँचा, हिम्मत करके उससे शिकायत की और पूछा, “जानू, बिना बताये क्यों चली आई। पता है मेरी तो जान ही निकल गई थी।”
उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा जैसे ताना मार रही हो। पर गनीमत थी की उसकी आंखों में आंसू नहीं थे।
मैं शशि के बराबर में फर्श पर बैठ गया, मोबाइल जेब में रख लिया और शशि का हाथ पकड़ लिया। मैं एक पल के लिये भी शशि को नहीं छोड़ना चाहता था पर चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था।
अभी मैं शशि से बहुत कुछ कहना चाहता था पर शायद मेरे होंठ सिल चुके थे। मैं चुपचाप शशि के बराबर में बैठा रहा, उसका हाथ सहलाता रहा। मेरे पास उस समय अपना प्यार प्रदर्शित करने का और कोई भी रास्ता नहीं था।
शशि बहुत देर तक रोती रही थी शायद उसका गला भी रूंध गया था। मैं वहाँ से उठा नीचे जाकर शशि के पीने के लिये पानी लाया गिलास शशि को पकड़ा दिया।
वो फिर से रोने लगी। मैं उसके बराबर में बैठ गया और उसका सिर अपनी गोदी में रख लिया। तभी शशि बोला, “मुझे पता है तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो, इसीलिये शायद जो रात को हुआ वो तुमने सुबह ही मुझे बता दिया तुम्हारी जगह कोई भी दूसरा होता तो शायद इसकी भनक तक भी अपनी पत्नी को नहीं लगने देता। मुझे तुम्हारे प्यार के लिये किसी सबूत की जरूरत नहीं है, ना ही मुझे तुम पर कोई शक है पर खुद पर काबू नहीं कर पा रही हूँ मैं क्या करूं?”
मैं चुप ही रहा।
थोड़ी देर बाद शशि फिर बोली, “मुझे नहीं पता था कि कभी कभी किसी की जुबान से निकली बात सच भी हो जाती है?”
इस बार चौंकने की बारी मेरी थी, मैंने पूछा, “मतलब?”
“कामना और मैं बचपन की सहेलियाँ हैं हम एक साथ खाते थे एक साथ पढ़ते थे एक साथ ही सारा बचपन गुजार दिया हमने। मम्मी पापा अक्सर हमारी दोस्ती पर कमेंट करते थे और बोलते थे कि तुम दोनों की शादी भी किसी एक से ही कर देंगे और हम दोनों हंसकर हाँ कर देते थे। मुझे भी नहीं पता था कि एक दिन हमारा वो मजाक सच हो जायेगा।”
“नहीं शशि, तुम गलत सोच रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है, मेरी पत्नी की बस तुम हो और तुम ही रहोगी। मैं मानता हूँ मुझसे गलती हुई है पर मैं जीवन में तुम्हारा स्थान कभी किसी को नहीं दे सकता।” बोलकर मैं शशि के सिर को सहलाने लगा।
कुछ देर बैठने के बाद मैंने शशि को घर चलने के लिये कहा। वो भी उठकर मेरे साथ नीचे चल दी। हम लोग अन्दर पहुँचे तब तक 7.30 बज चुके थे।
कामना भी जाग चुकी थी और हम दोनों को ढूंढ रही थी।
जैसे ही हमने अन्दर पैर रखा, कामना बोली, “कहाँ चले गये थे तुम दोनों? मैं कितनी देर से ढूंढ रही हूँ।”
“ऐसे ही आंख जल्दी खुल गई थी तो ठण्डी हवा खाने चले गये थे छत पर।” शशि ने तुरन्त जवाब दिया।
मैं उसके जवाब से चौंक गया। वो बिल्कुल सामान्य व्यव्हार कर रही थी। मैंने भी सामान्य होने की कोशिश की और अपने नित्यकर्म में लग गया।
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