RE: Sex Hindi Kahani जीजू रहने दो ना
तभी कामना बोली, “रुकिए जीजा जी, मैं भी चलती हूँ, आपके साथ। थोड़ा सा फ्रैश हो जाऊँगी। फिर वापस आकर, मंदिर जाने के लिये तैयार भी होना है।”
शशि बोली, “आप लोग जल्दी आ जाना, तब तक मैं नहा धोकर तैयार हो जाती हूँ।”
पत्नी रानी का आदेश प्राप्त करने के बाद मेरे कदम बाहर दरवाजे की तरफ बढ़े, मेरे पीछे पीछे कामना भी बाहर आ गई, कुछ तो सुबह सुबह बाहर का मौसम वैसे ही खुशगवार होता है, पर आज मुझे ज्यादा ही खुशगवार लग रहा था, मैं कामना से ढेर सारी बातें करना चाहता था।
मुझे पता था कि समय बहुत कम है 4 दिन बाद कामना वापिस चली जायेगी। पर मेरे साथ समस्या यह थी कि मेरी इमेज पत्नी-भक्त की थी और मैं किसी के सामने अपनी को छवि खराब नहीं करना चाहता था, और वास्तव में मुझे शायद शशि से अधिक प्यार किसी से नहीं था।
पर यह भी सत्य है कि कामना को सामने पाकर मैं उसकी अद्वीतीय सुन्दरता पर आसक्त था। इसी अंर्तद्वन्द्व में मैं हल्के हल्के दौड़ रहा था। मेरे साथ साथ कामना भी दौड़ लगा रही थी। थोड़ी ही देर में हम पार्क तब पहुँच गये, पर तब तक कामना तो थक चुकी थी और बोली, “जीजा जी वापिस चलो, मैं और नहीं दौड़ सकती।”
“बस इतना ही स्टेमिना है तुम्हारा? बातें तो बहुत बड़ी बड़ी करती हो।” मैंने कहा।
मेरे इतना बोलते है उसको स्त्रीयोचित जोश आ गया और फिर से मेरे पीछे दौड़ने लगी। पार्क का एक चक्कर लगाते ही वो बोली, “जीजा जी अब तो मैं गिरने वाली हूँ, खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा।”
मैंने उसको एक बैंच पर बैठने की सलाह दी और बस 2 चक्कर लगाने के बाद घर चलने को कहा।
पर जैसे ही मैं एक चक्कर लगाकर वहाँ वापस आया तो देखा कि वो पसीने से तरबतर बैंच पर लेटी थी और बुरी तरह हांफ रही थी, मैंने नजदीक जा कर पूछा, “क्या हुआ?”
“पानी !” उसने हल्की सी आवाज में कहा। मैं स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए सामने नल पर पानी लेने को भागा, पर मेरे पास पानी लेने के लिये कोई गिलास तो था ही नहीं। मैंने नल चलाया और दोनों हाथ की औंक बनाकर पानी भरा और उसके लिये लेकर आया, मैंने अपने हाथ लेटी अवस्था में ही उसके गुलाब की पंखुड़ी जैसे खूबसूरत होंठों पर लगा दिया और उसको पानी पिलाने लगा, वो सारा पानी पी गई।
मैंने पूछा “और लाऊँ?”
अब उनसे लेटे लेटे ही अपनी कातिल नजरों को मेरी तरफ घुमाया और मुस्कुरा कर बोली, “अगर इतने प्यार से पानी पिलाओगे तो सारा दिन यहीं लेटकर पानी पीती रहूँगी मैं।”
मैं तो उसका जवाब सुनकर धन्य हो गया। मन ही मन गद्गद् मैंने वापस चलने को पूछा, तो वो दो मिनट रुकने का इशारा करने लगी। मैं उसके बराबर में ही खड़ा था, कि अचानक मेरी निगाह उसके टॉप के अन्दर फंसी पर्वत की दोनों चोटियों पर गई, जो ऊपरी आवरण को चीर कर बाहर आने को बेताब लग रही थी। मेरी तो निगाह वहाँ जाकर एकदम ही रुक गई।उन दोनों को ऊपर नीचे होते देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे वो मेरे जीवन में आने वाले किसी तूफान की मौन चेतावनी दे रहे हों। गौर से देखने पर मुझे अहसास हुआ कि कामना ने टॉप के नीचे कोई अधोवस्त्र नहीं पहना था, क्योंकि उन पहाडि़यों की ऊपरी चोटी पर स्थित अंगूर के दाने का अहसास हो रहा था, ऐसी अनुभूति हो रही थी जैसे वर्षों से प्यासे किसी राही को एक छोटे से जल स्रोत का पता चल गया हो, मेरी शारीरिक परिस्थितियों ने विषम रूप धारण करना प्रारम्भ कर दिया, जिसकी परिणीति मेरी पैंट के ऊपरी मध्य हिस्से में देखी जा सकती थी।
मुझे जैसे ही लिंग जागृत होने का अहसास हुआ। मैंने खुद को संभाला और कामना की तरफ देखा तो पाया कि वो मेरे लिंगोत्थान की प्रक्रिया का अध्ययन कर रही थी। इस बार पकड़े जाने की बारी उसकी थी। अचानक हम दोनों की निगाहें एक दूसरे से मिली और कामना ने शरमा कर नजरें नीची कर ली।
मैंने पूछा “घर चलें?”
तो बिना कोई आवाज किये कामना से सहमति में सिर हिला दिया और मेरे पीछे पीछे चल दी। हम लोगों ने बात करते हुए पैदल घर की ओर प्रस्थान किया। माहौल हल्का करने के लिये मैंने ही बात करनी शुरू की।
“हाँ तो आज मैडम का क्या क्या प्रोग्राम है?”
“हम तो आपके डिस्पोजल पर हैं जो प्रोग्राम आप बना देंगे, वही हमारा प्रोग्राम होगा।”
“पक्का?”
“हाँ जी !”
“देख लो बाद में कहीं मुकर मत जाना अपनी बात से?”
“अरे जीजाजी, मुझे पता है आप कभी मेरा बुरा नहीं करेंगे और आप तो मेरे ड्रीम ब्वा्य हो, मैं आपकी हर बात मानती हूँ।”
मैंने सोचा कि लगे हाथ मैं भी कुछ अरमान निकाल लूँ, मैंने कहा, “यार तुम भी मेरी ड्रीम गर्ल हो ! पर पहले क्यों नहीं मिली। नहीं तो आज शशि की जगह तुम ही मेरे साथ होती मेरी ड्रीम गर्ल !”
‘हा..हा..हा..हा..’ वो हंसने लगी और मुस्कुराते हुए बोली, “लगता है आज घर जाकर आपकी सारी हरकतें शशि को बतानी पड़ेंगी, वैसे भी आप इधर उधर बहुत ताकते हो।”
“हर इंसान अपनी जरूरत को ताकता है साली जी, मैं अपनी जरूरत को ताकता हूँ और आप अपनी।” यह बोलकर मैं मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखने लगा।
उसने एकदम मेरी ओर मुस्कुरा कर देखा पर मुझे अपनी ओर देखकर आँखें नीची कर ली।
‘हाय रे…’ उसकी यह कातिल अदा ही मेरी जान निकालने के लिये काफी थी। आज पहली बार मुझे लगा कि शायद मैं ही बुद्धू था और सोचा कि कोशिश करके देखते हैं क्या पता बात बन ही जाये। मैंने फैसला किया कि कुछ सधे हुए तरीके से प्रयास करूँगा ताकि यदि बात ना भी बने तो बिगड़े तो बिल्कुल भी नहीं।
मैंने वार्तालाप जारी रखते हुए दिमाग चलाना भी जारी रखा और बीच का रास्ता सोचते सोचते ही कट गया, घर आ गया।
घर पहुँचकर मैंने देखा कि शशि नहा-धोकर तैयार खड़ी थी उसके गीले बालों की महक मुझे बहुत पसन्द थी तो मैं जाकर उससे चिपक गया पीछे-पीछे कामना भी मेरे कमरे में आ गई, और हंसकर बोली, “जीजा जी सम्भल कर, घर में कोई और भी है !”
मैंने भी थोड़ी सी हिम्मत दिखाते हुए कहा, “कोई और नहीं है बस मेरी प्यारी साली है, और साली तो आधी घरवाली होती है।”
“यह बात तो सही है।” यह बोलकर शशि ने मेरी बात का समर्थन किया तो जैसे मुझे संजीवनी मिल गई।
मैंने कामना को नहाने के लिये कहा और खुद ब्रश करने चला गया।
थोड़ी ही देर में कामना नहाकर बाथरूम से बाहर निकली तो ऐसा लगा जैसे कोई अप्सरा सीधे स्वर्ग से उतरकर आ रही हो, उसके गीले बालों से टपकती हुई पानी की बूंदें किसी मोती की तरह लग रही थी। उसके गोरे गालों पर भी पानी की बूंदें मादक लग रही थी सफेद रंग के आसमानी किनारी वाले सूट में कामना किसी कामदेवी से कम नहीं लग रही थी, स्लीवलैस सूट गहरा गोल गला अन्दर तक की गोलाईयाँ दिखा रहा था।
वो मुझे देखकर मुस्कुराने लगी और मैं उसको देखकर !
तभी वो बोली, “नहाना नहीं है क्या?”
मैंने कहा, “आज तुम अपने हाथ से नहला दो, क्या पता मैं भी इतना सुन्दर हो जाऊँ !”
वो हंसते हुए बोली, “शशि है ना, हम दोनों को मार मार कर बाहर निकाल देगी।”
तभी अन्दर से शशि की आवाज आई- अगर कामना तैयार है नहलाने को, तो मुझे कोई परेशानी नहीं है।
इतना सुनकर कामना ने शर्म से सर नीचे झुका लिया और मुझे बाथरूम की तरफ धक्का देकर बोली- अब जाओ और नहा लो।
मैं भी समय न गंवाते हुए तुरन्त नहाने चला गया।
मैं तेजी से नहाकर बाहर निकला और तैयार होकर और बाहर जाकर गैराज से कार की जगह बाईक निकाल ली। अब देखना यह था कि बाईक पर मेरे पीछे शशि बैठती है या कामना, क्योंकि मैं इस मामले में प्रयास तो कर सकता था जबरदस्ती नहीं।
दोनों सहेलियाँ बातें करती हुई बाहर आ गई, तभी शशि ने कामना से बीच में बैठने को कहा तो कामना ने हिचकते हुए मनाकर दिया।
शशि ने कहा, “तू दुबली पतली है बीच में आराम से आ जायेगी, अगर मैं बीच में बैठूंगी तो तू पीछे से गिर सकती है।”
परिस्थिति को समझते हुए कामना बीच में बैठ गई और मुझे लगा जैसे बाबा औघड़नाथ ने घर से ही मेरी मुराद सुन ली।
मैंने बाईक स्टार्ट की और दोनों को बैठाकर धीरे धीरे मंदिर की तरफ बढ़ने लगा मैं इस सफर का पूरा पूरा आनन्द लेना चाहता था। बार बार कामना के दोनों खरबूजे मेरी कमर में घुसे जा रहे थे और मुझे पूरा आनन्द दे रहे थे।
कुछ दूर चलने के बाद शायद कामना को समझ में आ गया कि मैं इस आनन्द का मजा ले रहा हूँ, और उसने मेरी कमर में हल्के से चिकोटी काटी, मेरे मुँह से आवाज निकली, “आहहहहहह…!”
“क्या हुआ?” शशि ने पूछा।
“कुछ नहीं !” बोलकर मैंने बाईक आगे बढ़ा दी और फिर से मजा लेने लगा।
तभी मेरी निगाह बाईक पर लगे पीछे देखने वाले शीशे पर गई तो देखा कि कामना हल्के हल्के मुस्कुरा रही है और बार बार अपने मोटे मोटे खजबूजे मेरी कमर में टकराकर पीछे कर रही थी।
मैं समझ गया कि वो भी मौके का मजा ले रही है। मैंने धीरे धीरे आगे बढ़ने का निर्णय किया। मंदिर से दर्शन करने के बाद वापिस लौटते समय कामना खुद ही मुझसे सटकर बीच में बैठ गई और इस बार मुझे एक बार भी प्रयास नहीं करना पड़ा। कामना खुद ही मुझे आगे से पकड़ कर बैठ गई और दोनों खरबूजों को मेरी कमर में गाड़ दिया। मेरे लिये यह शुभ संकेत था।
घर पहुँच कर जल्दी से नाश्ता करके मैं बाहर अपने काम के लिये निकल गया।
जब 2 घंटे बाद जब वापस आया तो दोनों को आपस में बातें करते हुए पाया। रविवार होने के कारण मेरे पास बहुत समय था। बस उसको प्रयोग कैसे करूँ, यह सोचने लगा।
1 बजे मैंने शशि से कहा, “तुम खाना बना लो, खाना खाकर हम लोग 3 बजे फिल्म देखने चलेंगे और शाम को 6 बजे के बाद किसी मॉल में चलेंगे और रात का खाना बाहर से खाकर ही वापस आयेंगे।”
मेरी बात सुनकर दोनों सहेलियाँ बहुत खुश हो गई। शशि तुरन्त खाना बनाने चली गई। मैं और कामना दोनों बैठकर टीवी देखने लगे। कामना मेरे बिल्कुल बराबर में बैठी टीवी देख रही थी, मैं टीवी के बजाय बार-बार कामना को ही देख रहा था।
कामना ने मेरी निगाह को पकड़ा और मुस्कुराने लगी, बोली, “जीजू, टीवी की हीरोइनें मुझसे कहीं ज्यादा सुन्दर हैं, उधर ध्यान दो।”
मैंने कहा, “बिल्कुल ध्यान उधर ही है।”
“पर आप तो मुझे देख रहे हो।” उसने नजरें झुकाते हुए कहा।
मैं बोला, “हां, बिल्कुल, दरअसल मैं टीवी में दिखने वाली हीरोइनों को अपने बराबर में बैठी हीरोइनों से तुलना कर रहा हूँ।”
“क्या तुलना की आपने?” उसने पूछा।
मैं बोला, “होठों को मिलाया, तो देखा कि तुम्हारे होंठ बिना लिप्स्टिक के जितने गुलाबी है, उतना गुलाबी करने के लिये उनको लिपस्टिक लगानी पड़ रही है। तुम्हारे गाल टमाटर की तरह लाल हैं। देखते ही खाने को दिल करता है। तुम्हारी दोनों स्लीवलेस गोरी गोरी बाजू, ऐसा लग रहा है, जैसे एक तरफ गंगा और दूसरी तरफ जमना एक साथ नीचे उतर रही हों। तुम्हारे लहराते हुए बाल, दिल पर छुरियाँ चलाते हैं।”
मैंने देखा कि उनसे शरमा कर नजरें नीचे कर ली। पर एक बार भी उनसे मेरी किसी बात का विरोध नहीं किया। मेरे लिये तो यह भी शुभ संकेत ही था। पर मैं जो कहना चाह रहा था, बहुत प्रयास के बाद भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
पर कोशिश करके मैंने अपनी बात को जारी रखा और बोला, “भगवान ने तुमको यह तो सुन्दरता दी है, इसकी तो कोई सानी ही नहीं है।”
अचानक उसने निगाह ऊपर की और पूछा, “क्या?”
मैंने तुरन्त उसके वक्ष की तरफ इशारा किया, यह देखकर उसने अपने दुपट्टे से अपने वक्ष को ढकने की कोशिश की।
तभी मैंने उनका हाथ रोका, “कम से कम ऐसा अन्याय मत करो, दूर से ही सही कम से कम नैन सुख ले लेने दो।”
वो बोली, “जीजू, आप शायद कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ रहे हो।”
“अरे यार, साली आधी घरवाली होती है, कम से कम दूर से तो उसकी सुन्दरता निहारने का अधिकार है ना?” यह बोलकर मैंने उसकी दूधिया बाजू पर बहुत प्यार से हाथ फेरा, तो मुझे ऐसा लगा जैसे किसी मखमली गद्दे पर हाथ फेरा हो।
“सीईईई…!” की आवाज निकली उसके मुँह से।
पर मुझे लगा कि उसको मेरा इस तरह हाथ फेरना अच्छा लगा, तो मैंने एक बार और प्रयास किया।
“आहहह…” उसके मुँह से निकली।
मैंने पूछा-क्या हुआ?
उसने रसोई की तरफ झांककर देखा और वहाँ से संतुष्ट होकर बोली, “जीजू गुदगुदी होती है ! रहने दो ना !”
उनका इतना बोलना था, कि मैंने तुरन्त अपना हाथ पीछे खींच लिया, और चुपचाप टीवी देखने लगा। उसने बड़ी मासूमियत से मेरी तरफ देखा और पूछा, “नाराज हो गये क्या?”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
वो बोली, “अच्छा कर लो, पर धीरे धीरे करना, बहुत गुदगुदी होती है।”
मैंने तुरन्त आज्ञा का पालन किया और फिर से उसकी गोरी-गोरी बाहों पर अपनी उंगलियों को फेरना शुरू कर दिया। इस बार उनके होठों से कोई आवाज नहीं निकल रही थी, पर उसके शरीर में होने वाले कंपन को मैं महसूस कर पा रहा था।
अब हम दोनों का ध्यान टीवी को छोड़कर अपनी अंगक्रीड़ा पर केन्द्रित हो गया था और हम उसका पूरा पूरा आनन्द ले रहे थे। मैंने गौर से देखा उसका आंखें बंद थी और पूरे बदन में कंपन था।
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