Chudai Kahani दिल पर जोर नहीं
06-27-2017, 11:54 AM,
#8
RE: Chudai Kahani दिल पर जोर नहीं
मैं उनकी नाभि में अपनी जीभ घुसाकर चाटने लगी, उनका लिंग मेरी ठोड़ी से टकराने लगा। मैंने खुद को थोड़ा सा और नीचे सरकाकर
अरूण के लिंग को अपनी दोनों होठों के बीच में दबोच लिया। अब मैं खुल कर मुख मैथुन करने लगी।
अरूण को भी बहुत मजा आ रहा था, ये उनके मुँह ने निकलने वाली सिसकारियाँ बयान कर रही थी। परन्‍तु मेरी योनि में तो फिर से खुजली होने लगी। मजबूर होकर मुझे फिर से अरूण के ऊपर 69 की अवस्‍था में आना पड़ा। ताकि वो मेरी योनि को कुछ आराम दे सकें।
वो तो थे भी अपने खेल में माहिर। उन्‍होंने तुरन्‍त अपनी जीभ से मेरी मदनमणि को सहलाना शुरू कर दिया। धीरे धीरे मेरी योनि के अन्‍दर जीभ ठेल दी और अन्‍दर तक योनि की सफाई का प्रयास करने लगे।
आह… हम दोनों तो पुन: आनन्‍दविभोर थे।
अरूण रति क्रिया में मंझे हुए खिलाड़ी थे। जिसका परिचय वो पहली पारी में ही दे चुके थे। इस बार तो मुझे खुद को सिद्ध करना था। मैं बहुत ही मजे लेकर अरूण के कामदण्‍ड को चूस रही थी और उनकी दोनों गोलियों के साथ खेल भी रही थी। अरूण मेरी योनि में अपनी जीभ से कुरेदते हुए अपने दोनों हाथों को मेरे नितम्‍बों की दरार पर फिरा रहे थे। मुझे उनका यह करना बहुत ही अच्‍छा लग रहा था। “आह…” तभी मैं दर्द से कराह उठी।
उन्‍होंने अपनी तर्जनी उंगली मेरी गुदा में जो धकेल दी थी। मैं कूदकर बिस्‍तर से नीचे आ गई।
अरूण ने पूछा, “क्‍या हुआ?”
मैंने कहा, “आपने पीछे उंगली क्‍यों डाली? पता है कितना दर्द हुआ?”
अरूण बोले, “इसका मतलब पीछे से बिल्‍कुल कोरी हो क्‍या?”
मैंने अन्‍जान बनते हुए कहा, “छी:… पीछे भी कोई करता है भला?”
अरूण बोले, “क्‍या यार? लगता है तुम्‍हारे लिये सैक्‍स का मतलब बस आगे डालना… और बस पानी निकालना ही है…?”
“मतलब?” मैंने पूछा।
अरूण बोले, “यार, कैसी बातें करती हो तुम? सैक्‍स सिर्फ पानी निकाल को सो जाने का नाम नहीं है। यह तो एक कला है, पूरा विज्ञान है इसमें, इसमें मानसिक और शारीरिक कसरत भी है और पूर्ण सन्‍तुष्टि भी, काम को पूर्ण आनन्‍द के साथ ग्रहण करोगी तभी सन्‍तुष्टि मिलेगी।”
मैं तो उनका कामज्ञान सुनकर दंग थी। अभी तो उनका कामपुराण और भी चलता अगर मैं नीचे फर्श पर बैठकर उनका कामदण्‍ड अपने होठों से ना लगाती तो। अब तो उनका कामदण्‍ड भी अपना पूर्णाकार ले चुका था।
तभी अरूण बिस्‍तर से खड़े हो गये और मुझे भी फर्श से खड़ा कर लिया। मुझको गले से लगाया और खींचते हुए ड्रेसिंग टेबल के पास ले गये। कमरे में लाइट जल रही थी हम दोनों आदमजात नंगे ड्रेसिंग के सामने खड़े थे। अरूण मुझे और खुद को इस अवस्‍था में शीशे में देखने लगे।
मेरी निगाह भी शीशे की तरफ गई, इस तरह बिल्‍कुल नंगे इतनी रोशनी में मैंने खुद को कभी संजय के साथ भी नहीं देखा था। मैं तो शर्म से पानी पानी होने लगी। मैंने जल्‍दी से वहाँ से हटने की कोशिश की। पर अरूण को शायद मेरा वहाँ खड़ा होना अच्‍छा लग रहा था। वो तो जबरदस्‍ती मुझे वहीं पकड़कर चूमने चाटने लगे।
मैं उनकी पकड़ ढीली करने की कोशिश करती पर वो मजबूती से पकड़कर मेरे स्‍तनों को वहीं आदमकद शीशे के सामने चूसने लगे। मैं शीशे में अपने भूरे रंग के कड़े हो चुके कुचाग्र पर बार बार उनकी जीभ की रगड़ लगते हुए देख रही थी, यह मेरे लिये बहुत ही रोमांचकारी था।
मेरी शर्म धीरे धीरे खत्‍म होने लगी। अब मैं भी वहीं अरूण का साथ देने लगी तो उनको सीने से लगाकर अपने एक हाथ से उनका कामदण्‍ड सहलाने लगी। शीशे में खुद को ये सब करते देखकर एक अलग ही रोमांच उत्‍पन्‍न होने लगा। शर्म तो अब मुझसे कोसों दूर चली गई।
अरूण ने भी मुझे ढीला छोड़ दिया। वो नीचे फर्श पर पालथी मारकर मेरी दोनों टांगों को खोलकर उनके बीच में बैठ गये। नीचे से अरूण ने मेरी यो‍नि को चाटना शुरू कर दिया। एक उंगली से अरूण मेरे भंगाकुर को सहेज रहे थे।
“उईईईईईई…” मेरे मुँह से निकला, मैं तो जैसे निढाल सी होने वाली थी, इतना रोमांच जीवन में पहली बार महसूस कर रही थी।
मैंने नीचे देखा अरूण पालथी मार कर बैठे थे, उनका कामदण्‍ड तो जैसे ऊपर की ओर मुझे ही घूर रहा था। मैं भी अपने घुटने मोड़ कर वहीं शीशे के सामने अरूण की तरफ मुँह करके उनकी गोदी में जा बैठी। 
और “आहहहहहह..” उनका कामदण्‍ड पूरा का पूरा एक ही झटके में मेरे कामद्वार में प्रवेश कर गया।
मैं असीम सुख महसूस कर रही थी। मैंने अपनी टांगों से अरूण की पीठ को जकड़ लिया। अरूण ने फिर से अपने मुँह में मेरे चुचूक को भर लिया। मेरे नितम्‍ब खुद-ब-खुद ही ऐसे ऊपर नीचे होने लगे जैसे किसी संगीत की ताल पर नृत्‍य कर रहे हों।
अरूण भी मेरे चुचूक चूसते चूसते नीचे से मेरा साथ देने लगे। बिना किसी ध्‍वनि के ही पूरा संगीतमय वातावरण बन गया, कामसंगीत का… ! हम दोनों का पुन: एकाकार हो चुका था।
मुझे लगा कि इस बार मैं पहले शहीद हो गई हूँ। अरूण का दण्‍ड नीचे से लगातार मेरी बच्‍चेदानी तक चोट कर रहा था। तभी मुझे नीचे से अरूण का फव्‍वारा फूटता हुआ महसूस हुआ। अरूण ने अचानक मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और मेरी योनि में अपना काम प्रसाद अर्पण कर दिया।
मैं लगातार शीशे की तरफ ही देख रही थी। अब मुझे यह देखना बहुत सुखदायी लग रहा था पर शरीर में जान नहीं थी, मैं वहीं फर्श पर लेट गई परन्‍तु अरूण इस बार उठकर बाथरूम गये, खुले दरवाजे से मुझे दिख रहा था कि उन्होंने एक मग में पानी भरकर अपने लिंग को अच्‍छे से धोया, तौलिये से पौंछा और बाहर आ गये।
उनके चेहरे पर जरा सी भी थकान महसूस नहीं हो रही थी, उनको देखकर मुझे भी कुछ फूर्ति आई। मैं भी बाथरूम में जाकर अच्‍छी तरह धो पौंछ कर बाहर आई। घड़ी में देखा 3.15 बजे थे मैंने अरूण को आराम करने को कहा।


वो मेरी तरफ देखकर हंसते हुए बोले, “जब जा रहा था तो जाने नहीं दिया। अब आराम करने को बोल रही हो अभी तो कम से कम 2 राउण्ड और लगाने हैं, आज की रात जब तुम्‍हारे साथ रूक ही गया हूँ तो इस रात का पूरा फायदा उठाना है।”
अरूण की इस बात ने मेरे अन्‍दर भी शक्ति संचार किया, मेरी थकान भी मिटने लगी। मैंने फ्रिज में से एक सेब निकाला, चाकू लेकर उनके पास ही बैठकर काटने लगी।
वो बोले, “मुझे ये सब नहीं खाना है।”
मैंने कहा, “आपने बहुत मेहनत की है अभी और भी करने का मूड़ है तो कुछ खा लोगे तो आपके लिये अच्‍छा है।”
अरूण बोले, “आज तो तुमको ही खाऊँगा बस।”
सेब और चाकू को अलग रखकर मैं वापस आकर अरूण के पास बैठ गई। मेरे बैठते ही उन्‍होंने अपना सिर मेरी जांघों पर रखा और लेट गये। मैं प्‍यार से उनके बालों में उंगलियाँ फिराने लगी। पर वो तो बहुत ही बदमाश थे उन्‍होंने मुँह को थोड़ा सा ऊपर करके मेरे बांये स्‍तन को फिर से अपने मुँह में भर लिया। मैंने हंसते हुए छोटे से हो चुके उनके लिंग को हाथ में पकड़ कर मरोड़ते हुए पूछा, “यह थकता नहीं क्‍या?”
अरूण बोले- थकता तो है पर अभी तो बहुत जान है अभी तो लगातार कम से कम 4-5 राउण्ड और खेल सकता है तुम्‍हारे साथ।
“पर मैंने तो कभी भी एक रात में एक से ज्‍यादा बार नहीं किया इसीलिये मुझे आदत नहीं है।” मैंने बताया।
अरूण ने तुरन्‍त ही अपने मिलनसार व्‍यवहार का परिचय देते हुए कहा, “तब तो तुम थक गई होंगी तुम लेट जाओ, मैं तुम्‍हारी मालिश कर देता हूँ ताकि तुम्‍हारी थकान मिट जाये और अब आगे कुछ नहीं करेंगे।”
मेरे लाख मना करने पर भी वो नहीं माने खुद उठकर बैठ गये और मुझे बिस्‍तर पर लिटा दिया। ड्रेसिंग टेबल से तेल लाकर मेरी मालिश करने लगे। इससे पहले मेरी मालिश कभी बचपन में मेरी माँ ने ही की होगी। मेरी याद में तो पहली बार कोई मेरी मालिश कर रहा था, वो भी इतने प्‍यार से !
मैं तो भावविभोर हो गई, मेरी आँखें नम होने लगी, गला रूंधने लगा।
अरूण ने पूछा, “क्‍या हुआ?”
“कुछ नहीं।” मैंने खुद को सम्‍भालते हुए कहा और अरूण के साथ मालिश का मज़ा करने लगी, मेरी बाजू पर, स्‍तनों पर, पेट पर, पीठ पर, नितम्‍बों पर, जांघों पर, टांगों पर और फिर पैरों पर भी अरूण तन्‍मयता से मालिश करने लगे।
वास्‍तव में मेरी थकान मिट गर्इ अब तो मैं खुद ही अरूण के साथ और खेलने के मूड़ में आ गई। आज मैं अरूण के साथ दो बार एकाकार हुई और दोनों बार ही अलग अलग अवस्‍था में। मेरे लिये दोनों ही अवस्‍था नई थी, अब कुछ नया करना चाहती थी पर अरूण को कैसे कहूँ समझ नहीं आ रहा था। पर मैं अरूण के अहसानों का बदला चुकाने के मूड में थी, मैं तेजी से दिमाग दौड़ा रही थी कि ऐसा क्‍या करूँ जो अरूण को बिल्‍कुल नया लगे और पूर्ण सन्‍तुष्टि भी दे।
सही सोचकर मैंने अरूण के पूरे बदन को चाटना शुरू कर दिया। अरूण को मेरी यह हरकत अच्‍छी लगी शायद, ऐसा मुझे लगा। वो भी अपने शरीर का हर अंग मेरी जीभ के सामने लाने का प्रयास करने लगे। धीरे धीरे मैं उनके होंठों को चूसने लगी पर मैं तो इस खेल में अभी बच्‍ची थी और अरूण पूरे खिलाड़ी। उन्‍होंने मेरे होठों को खोलकर अपनी जीभ मेरी जीभ से भिड़ा दी। ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों की जीभें ही आपस में एकाकार कर रही हैं।
मैं अरूण के बदन से चिपकती जा रही थी बार-बार। मेरा पूरा बदन तेल से चिकना था अरूण के हाथ भी तेल से सने हुए थे। अरूण ने अपनी एक उंगली से मेरी योनि के अन्‍दर की मालिश भी शुरू कर दी। मेरी योनि तो पहले ही से गीली महसूस हो रही थी, उनकी चिकनी उंगली योनि में पूरा मजा दे रही थी, उनकी उंगली भी मेरे योनिरस से सन गई।
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