RE: Chudai Kahani दिल पर जोर नहीं
मैंने चाय की एक चुस्की लेते ही उनकी तारीफ की तो अरूण बोले, “तब तो मेरा उपहार पक्का ना?”
मैंने कहा, “क्या चाहिए आपको?”
“अपनी मर्जी से जो दे दो।” अरूण ने कहा।
“नहीं, तय यह हुआ था कि आपकी मर्जी का गिफ्ट मिलेगा, तो आप ही बताइये आपको क्या चाहिए?” मैंने दृढ़ता से कहा।
अरूण बोले, “देख लो, कहीं मैं कुछ उल्टा सीधा ना मांग लूं, फिर तुम फंस जाओगी।”
“कोई बात नहीं, मुझे आप पर पूरा विश्वास है, आप मांगो।” मैंने फिर से जवाब दिया।
“तब ठीक है, मुझे तुम्हारे गुलाबी होठों की… एक चुम्मी चाहिए।” अरूण ने बेबाक कहा।
मैंने बिना कोई जवाब दिये, नजरें नीचे कर ली। अरूण ने उसको मेरी मंजूरी समझा और मेरे नजदीक आने लगे। मेरी जुबान जो अभी तक कैंची की तरह चल रही थी… अब खामोश हो गई। मैं चाहकर भी कुछ नहीं बोल पा रही थी।
अरूण मेरे बिल्कुल नजदीक आ गये। मेरी सांस धौंकनी की तरह चलने लगी। अरूण ने चेहरा ऊपर करके अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिया। आहहहह… कितना मीठा अहसास था। उम्म्म्म्म… बहुत मजा आ रहा था। मेरी आँखें खुद-ब-खुद बन्द हो गई।
संजय के बाद वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मेरे होठों को चूमा था… उनका अहसास संजय से बिल्कुल अलग था। अरूण बहुत देर तक मेरे होठों को लालीपॉप की तरह चूसते रहे। वो कभी मेरे ऊपरी होंठ को चूसते तो कभी नीचे वाले। उन्होंने मुझे अपनी बाहों में जकड़ रखा था।
अचानक उन्होंने अपनी जीभ मेरे होठों के बीच से मेरे मुँह में सरका दी। उनकी जीभ मेरी जीभ से जो ठकराई तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी जन्नत में आ गई हूँ। उनकी जीभ मेरी जीभ से मुँह के अन्दर ही अठखेलियाँ करने लगी। अब मैं मदहोश हो रही थी। मैं भी उनका साथ देने लगी। उनका यह एक चुम्बन ही 10 मिनट से ज्यादा लम्बा चला।
जब उन्होंने मेरे होठों को छोड़ा तो भी मीठा मीठा रस मेरे होठों को चुम्बन का अहसास दिला रहा था। मेरी आँखें अभी भी बन्द ही थी। अरूण बोले, “आँखें खोलो कुसुम मुझे जाना है।”
यह बोलकर वो चाय पीने लगे। मैं उस इंसान को नहीं समझ पा रही थी। क्या अरूण सच में इतना शरीफ थे। परन्तु उनके एक चुम्बन के अहसास ने मुझे नारी के अन्दर की वासना का अहसास दिला दिया था, मैं तुरन्त बोली, “यह तो आपका चुम्बन था, अब मेरा भी तो देकर जाओ।”
वो चाय खत्म करके मेरे पास आये और बोले, “ले लो, मैंने कब बना किया पर मेरे पास अब ज्यादा समय नहीं है।”
मैं भी समय नहीं गंवाना चाहती थी, मैंने उनकी गर्दन में बांहें डालकर उनको थोड़ा सा नीचे किया… और अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिये… अब तो मैं भी चुम्बन करना सीख ही गई थी, मैंने उनके होठों की उसी प्रकार चूसना शुरू कर दिया जैसे कुछ पल पहले वो मेरे होठों को चूस रहे थे।
उम्म्म… ! क्या स्वाद था उनके होठों का !
चाय पीने के बाद तो उनके होंठ और भी मीठे लग रहे थे। मैंने भी उनकी नकल करते हुए अपनी जीभ उनके मुँह में ठेल दी। वो तो बहुत ही अनुभवी थे, उन्होंने अपनी जीभ को मुँह के अन्दर मेरी जीभ में लपेटना शुरू कर दिया। मैं इस चुम्बन में बहुत लम्बा समय लेना चाहती थी। इस बात का मैं ध्यान रख रही थी… और चुम्बन बहुत ही धीरे धीरे परन्तु लगातार कर रही थी। बीच बीच में सांस भी ले रही थी, मैं उनके होठों का पूरा स्वाद ले रही थी।
इस बार शायद मैं जीत गई। कुछ देर बाद ही उन्होंने मुझे अपनी बाहों में भर लिया। उनकी बाहों का घेरा मेरी पीठ के चारों ओर बन चुका था, वो अपने हाथों से मेरी पीठ को सहलाने लगे… हम्म्म… अब तो अरूण के होंठ मुझे और भी स्वादिष्ट लगने लगे थे।
आह…यह क्या…? अरूण ने मेरे दोनों नितम्बों को पकड़कर… सीईईईईई… अपनी ओर खींच लिया। इस प्रगाढ़ चुम्बन की वजह से मेरी सांस रुकने लगी थी, मुझे अपने होंठ उनके होंठों से अलग करने पड़े।
जैसे ही हमारे होंठ अलग हुए… अरूण ने अपने तपते हुए होंठ मेरे कन्ध्ो पर रख दिए।
उईई ईईईई… माँऽऽऽऽऽऽऽ… मैं सीत्कार उठी।
वो लगातार मेरे बांयें कन्धे को चूम रहे थे। उनके गर्म होंठों का अहसास मेरे पूरे बदन में होने लगा। मेरे बांयें कन्धे को कई बार
चूमने के बाद… उन्होंने अचानक… मुझे पीछे की तरफ घुमा दिया… अब मेरी पीठ उनकी छाती से चिपकी हुई थी… अरूण मेरे बिल्कुल पीछे आ गये… और अपने गरम होंठ मेरे दायें कन्धे पर रख दिये… अपने दोनों हाथों से अरूण ने मेरे दोनों स्तनों को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया…
मुझे तो जैसे नशा सा छाने लगा था… मैं खुद ही पीछे होकर अरूण से चिपक गई। वो दोनों हाथों से लगातार मेरे स्तनों को सहला रहे थे… आहहहहहह… मेरे तो चुचुक भी कड़े हो गये थे… शायद…अरूण… को… भी… इसका… अहसास… हो… गया… था…!
अरूण ने ऊपर से मेरे दोनों चुचूकों को पकड़ लिया… सीईईईई ईई… कितनी बेदर्दी से वो मेरे चुचूक मसल रहे थे… पर मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। धीरे धीरे उनका सिर्फ दाहिना हाथ ही मेरे स्तनों पर रह गया… बांया हाथ तो सरक कर नीचे मेरे पेट पर… हम्म्म्म… नहीं… नाभि पर आ गया था… मुझे मीठी मीठी गुदगुदी होने लगी… मुझे तो पता ही नहीं लगा कब मेरी नाभि से खेलते खेलते उन्होंने मेरी साड़ी पेटीकोट में से खोलकर… नीचे गिरा दी… मैं तो मूरत बनी अरूण की हर क्रिया का आनन्द ले रही थी। मुझे तो होश ही तब आया जब अरूण के हाथ मेरे पेटीकोट के नाड़े को खींचने लगे।
मैंने झट से अरूण का हाथ पकड़ लिया। अरूण ने मौन रहकर ही बिना कुछ बोले फिर से नाड़े को खीचने का प्रयास किया। इस बार मैंने फिर से बल्कि ज्यादा मजबूती से उनका हाथ रोक लिया।
बिना कुछ बोले उन्होंने वहाँ से हाथ हटा लिया… और फिर से मुझे पकड़कर गुड़िया की तरह घुमाया… मेरा चेहरा अपनी तरफ कर लिया… अब उनकी जुबान मेरे चेहरे पर घूमने लगी वो मेरे चेहरे को चाटने लगे… छी: … शायद इस बारे में कभी कोई बात भी करता तो मुझे बहुत घिनौना लगता… पर… पता नहीं क्यों… अरूण की यह हरकत मेरे लिये बहुत कामुक हो गई… उनके दोनों हाथ मेरी पीठ पर सरकने लगे… अब तो मैंने भी अपनी दोनों बाहें उनकी कमर में डाल कर उनको जकड़ लिया…
अरूण शायद इसी पल का… इन्तजार कर रहे थे… उन्होंने झट से अपने एक हाथ से मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया… एक ही झटके में मेरा वो आवरण नीचे गिर गया… मुझे तो उसका अहसास भी तब हुआ जब वो मेरे पैरों पर गिरा… पर… मैं उस समय इतनी कामुक अवस्था में आ चुकी थी… कि दोबारा पेटीकोट की तरफ ध्यान भी नहीं दिया।
अब मैं नीचे से सिर्फ पैंटी में थी, अरूण लगातार मेरे चेहरे, गर्दन एवं कन्धों पर चुम्बन कर रहे थे। सीईईईई… आहहह हह… हम्म्म्म्म… मैं लगातार कराह सी रही थी… अरूण की उंगलियों मेरे नितम्बों पर गुदगुदी कर रही थी मुझे ऐसा आनन्द तो जीवन में कभी मिला ही नहीं था। मेरे नितम्ब तो अरूण की उंगलियों की ताल पर खुद ही थिरकने लगे थे… कभी कभी अरूण मेरी पैंटी में उंगली डालकर मेरे नितम्बों की बीच की दरार कुरेद सी देते… तो मैं सिर से पैर तक हिल जाती… पर मन कहता कि वो ऐसा ही करते रहें… पता नहीं अरूण ने कब अपने हाथ मेरे नितम्बों से हटा कर ऊपर मेरी पीठ पर फिराने शुरू कर दिये।
अचानक मुझे अपना ब्लाउज कुछ ढीला महसूस होने लगा, मेरा ध्यान उधर गया तो पता चला कि अब तक अरूण मेरे ब्लाउज के हुक भी खोल चुके थे… हाय… रेएए… ये इन्होंने क्या कर दिया… अब तो मुझे लज्जा महसूस होने लगी… इतनी रोशनी में नंगी होना… वो भी पर-पुरूष के सामने…??
इतनी रोशनी में तो मैं कभी संजय के सामने भी नंगी नहीं हुई… और उन्होंने कोशिश भी नहीं की… मैंने झट से अपनी बाहों से अरूण की पीठ को अच्छी तरह जकड़ लिया।
वो मुझे आगे करके मेरा ब्लाउज उतारना चाहते थे… बार बार कोशिश कर रहे थे पर मैंने उनको इतनी जोर से पकड़ रखा था कि कई कोशिश के बाद भी वो मुझे खुद से अलग नहीं कर पाये। आखिर में उन्होंने हथियार डाल दिये और फिर से मेरी पीठ पर गुदगुदी करने लगे… मैं बहुत खुश थी एक तो ब्लाउज उतारने से बच गई… दूसरे उनकी गुदगुदी मेरे अन्दर बहुत ही मस्ती पैदा कर रही थी… मैंने समझा कि अब तो ये मेरा ब्लाउज उतार ही नहीं पायेंगे… हायय… पर ये अरूण तो बहुत ही बदमाश निकले… सीईईईई… मैं कहाँ फंस गई आज… इन्होंने तो मेरी पीठ पर गुदगुदी करते करते मेरी ब्रा का हुक भी खोल दिया… कितने आराम और मनोभाव से वो मेरा एक एक वस्त्र खोल रहे थे… मुझे तो अन्दाजा भी तब लगता था जब वो वस्त्र खुल जाता था…
मैंने उनको जकड़ का पकड़ा था… वो… मुझे… खुद से अलग करने की कोशिश कर रहे थे, ताकि मेरा ब्लाउज और ब्रा निकाल सकें… मैं शर्म से दोहरी सी हुई जा रही थी… मेरी टांगें थर-थर कांप रही थी…
अब जाकर कहीं उनके मुँह से कोई आवाज निकली… वो बोले, “जानेमन, मैं तुम्हारी पूरी खूबसूरती अपनी नजरों में कैद करना चाहता हूँ। सिर्फ एक सैकेन्ड के लिये मुझे छोड़ दो, फिर मैं खुद ही तुमको पकड़ लूँगा।”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया।
उन्होंने अपने हाथ से मेरी ठोड़ी को पकड़ कर ऊपर किया और मेरी आँखों में झांकते हुए विनती सी करने लगे जैसे कह रहे हों, “प्लीज, मुझे अपनी प्राकृतिक अवस्था का दर्शन कराओ।”
उनकी नजरों में देखते देखते पता नहीं कब मेरी पकड़ ढीली हुई और वो मुझसे थोड़ा सा अलग हुए… मेरी ब्रा और ब्लाउज निकल कर उनके हाथ में आ गये।
आहहह… मैं तो खुद को अपने हाथों से ही छुपाने लगी, ट्यूब की रोशनी में… मैं… अपना बदन… उनकी नजरों से बचाने की… नाकाम कोशिश… कर रही थी… और वो जैसे बेशर्मों की तरह मुझे लगातार एकटक निहार रहे थे…
हाय… मांऽऽऽऽ… ये कैसे… हो… गया… मुझसे… मैं तो काम और लज्जा के समुद्र में एक साथ गोते लगा रही थी।
उन्होंने मुझे पकड़ और धीरे से वहीं सोफे पर गिरा दिया…
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