Antarvasnasex जीवन संगिनी
06-27-2017, 11:49 AM,
#4
RE: Antarvasnasex जीवन संगिनी
जीवन संगिनी -4


फ़िर अपने पति के गाँव के एक बाकें जवान से, उसके बाद गली के एक लड़के से तृप्ति हासिल करने के बाद मैं अपने नौकर दीपक और ड्राईवर शाम से चुदी।

दोनों पेलने पर उतारू थे और धीरे धीरे मुझे इस चुदाई का बहुत मजा आने लगा। वे दोनों फाड़ फाड़ मेरी गांड चूत मार रहे थे। पहले दीपक झड़ा तो कुछ समय में शाम की पिचकारी मेरे अन्दर गर्माहट देने लगी।

दोनों काफ़ी देर तक मुझ नंगी को चूमते रहे थे। सुबह के ढाई बजे तक मेरी गेम बजाई और आज एक नया अनुभव प्राप्त हुआ।

फिर शाम और दीपक अक्सर मुझे मसलने लगे, मुझे उन दोनों के बाँहों में जाना बहुत सुखदायक लगने लगा था।

मैं खुश थी, घर में लंड मिल रहे थे। तभी एक दुर्घटना घटी, हमारी कार का एक्सीडेंट हुआ, कार में सिर्फ शाम था, उसकी दोनों टांगों में फ्रैक्चर आया बाजू में भी शीशा माथे पर लगा। उधर दीपक को किसी ने दुबई जाकर काम करने की ऑफर दी, उसने नौकरी छोड़ दी पर जब तक गया नहीं, वो मुझे चोदने आता था।

उसके जाने के बाद मैंने फिर से मुँह मारना शुरु कर दिया। मेरे पति शुक्ला जी ने घर में पेंट के साथ पी ओ पी करवाने का फैसला लिया।

पी ओ पी के कारीगर आये और उन्हें ऊपर का कमरा दे दिया, वो इसलिए कि इन्होंने उनके साथ ठेका किया था जल्दी से जल्दी काम निपटाने के लिए ! लेकिन उनको क्या मालूम था कि उन्होंने पेंट के काम के साथ साथ एक हसीं दिलरुबा को खुश रखने का काम भी लिया है।

पहले मेरा ध्यान उनमें नहीं था पर वैसे में वासना में जलभुन रही थी, पति रात को ऐसे ही सो जाते, मुझे बहुत बहुत गुस्सा आता और जाकर खुद को और तरीकों से शान्ति देकर सो जाती, मोटे लौड़े की जरुरत थी मेरी प्यासी फ़ुद्दी को जो मेरी हड्डी से हड्डी बजा डाले। वो कुल चार लोग थे, वहीं ऊपर रहना था।

मेरी नज़र पहले दिन शाम को उन पर तब गई जब मैं नहा कर छत पर तौलिया सूखने डालने गई। मुझे देख कर उसका मुँह खुला का खुला रह गया, बालों से गिर रहा पानी गालों पर से होकर गर्दन से होकर मेरी पहाड़ी पर जा रहा था। जब मैंने उसको देखा उसने डर कर नजर हटा ली और काम करने लगा, दूसरे की तरफ मेरी पीठ थी, मैं स्लीवलेस ब्लाउज में थी, पीछे सिर्फ स्ट्रिप ही था, पतली कमर बड़े बड़े मम्मे, गोरा रंग, मुझे मालूम था कि एक बन्दा पीछे भी है। मैंने पीठ दिखाने के लिए पल्लू ठीक करने के बहाने साइड करके भीगे ब्लाउज के दर्शन करवा दिए। पर मुझे यह नहीं मालूम था कि उसने दर्शन किये या डरपोक ने मुँह दूसरी तरफ कर लिया था। मैं एकदम से मुड़ी, उसको गर्दन मोड़ते मैंने देख लिया, मतलब कि उसने देखा था।

नीचे वाले पोर्शन में सब टिपटॉप था ऊपर वाले पोर्शन में ही काम था। दो लोग अंदर कमरे की टुकाई कर रहे थे, उनको देखा वो दोनों काफी सोलिड जोशीले से लगे। दोनों ने मुझे खा जाने वाली नज़रों से देखा कि मेरी जान निकाल डाली ! हाय, क्या देखना था, दिल किया कि अभी उनके करीब चली जाऊँ पर मौका देखना था, अभी नहीं !

मुस्कान बिखेर वहाँ से बिखर आई, वो इसलिए कि मेरा अंग अंग बिखर गया जिसको वोह ही अब जोड़ सकते थे। जब मेरी वासना की

आग भड़कती है तब मैं बेकाबू होने लगती हूँ और मुझे उसका साधन भी मिल चुका था, बस फिर क्या था मुझे सीढ़ी पर आहट सुनी, बिल्कुल सामने कमरा है, मैंने झट से दरवाज़े की तरफ पीठ करके साड़ी उतार दी, ब्लाउज उतार दिया फिर पेटीकोट खोल जैसे नीचे हुआ, मेरे मदमस्त चूतड़ उसकी आँखों के सामने एक लाल पैंटी में सजे हुए दिखे। मैंने मुड़कर देखा, पसीने छूट रहे थे उसके, वो जल्दी से निकलने लगा, मैं मुस्कुरा दी, उसको थोड़ी राहत मिली।

मैंने सेक्सी सा सलवार कमीज पहना।

तभी मेरे पति देव घर लौटे, मौका देख मैंने उनके गले में बाँहों का हार डाल दिया।

"क्या कर रही हो जान?"

"प्यार करो न ! बहुत बेकरार हूँ जानू !"

"मुझे जरूरी काम के लिए दिल्ली जाना है, आठ बजे की फ्लाइट है !" पति बोले- नौकर को कहकर ऊपर चाय वगैरा भिजवा देना !

"सारे नौकर काम के सिलसिले गए हैं, मैं बना दूंगी !"

मैंने चार चाय बनाई, ट्रे में सजा छत पर गई। मैंने देखा कि अब तीन लोग बाहर थे, एक ही अंदर था। बाहर वालों को चाय देकर अंदर गई बेडरूम में, जो टुकाई कर रहा था, वो वही था जिसने मुझे सीढ़ियों से देखा था, मुझे देख हिल सा गया, गहरे गले का ऊपर से कसा हुआ कमीज़, मम्मे आपस में ही कुश्ती कर रहे थे।

"चाय ले लो !" नशीली आवाज़ में बड़ी कामुक सी अदा में कहा।

वो करीब आकर चाय का कप उठाने लगा, मैंने धीरे से कहा- सीढ़ी पर रुक कर क्या क्या देखा था तुमने?

"कुछ नहीं ! कुछ भी नहीं देखा !"

मैंने चुन्नी हटाई- बोलो, इन्हें देखा?

वो मुस्कुराने लगा, चाए रख दी, मैंने उसको खींचा और उसको अपनी बाँहों में कस कर जकड़ा। यह कहानी आप अन्त-र्वा-स-ना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

"मैडम, यह सब मत करो ! साब को मालूम चल गया तो?"

"अबे फट्टू ! डरता क्यूँ है?" उसके लंड को मसलते हुए मैंने कहा।

उससे रुका नहीं गया तो उसने भी मेरे मम्मे दबाये और मेरी गालों को जम कर चूमा।

बाकी रात को ग्यारह बजे नीचे उसी कमरे में आ जाना !
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