RE: Antarvasna घर में मजा पड़ोस में डबल-मजा
"ओह .. ये तो बड़ी हॉट बात है, ओह विवेक डार्लिंग, सायरा को चोद कर टीमने कमाल का काम किया. अब मैं जब भी उनके एंट्रेंस के बारे में सोचूंगी, तुम्हारी और सायरा की चुदाई मुझे याद आयेगी...... गौरव अपनी खुद के बेटी चोदता है? वाव, मजा आ गया जान कर. अगली बार जब वो सायरा को चोदे, मैं देखना चाहूंगी.
क्या सायरा आज हमारे यहाँ आयेगी? मैं उसकी बुर चाटना चाहती हूँ गौरव."
"हो सकता है, अगर हम तृषा के मनोरंजन के लिए कुछ इंतज़ाम कर दें तो."
"हाँ, सोचो सायरा और तृषा एक ही उम्र के है. अगर तृषा सायरा की तरह हो तो तुम क्या करोगे विवेक?"
"डार्लिंग, असल में तुम सोच सकती हो त्रिशा उससे कहीं ज्यादा सायरा जैसी है. सायरा तृषा को इस सब चीजों की शिक्षा देती रही है. मुझे उम्मीद है की अब जो मैं तुम्हें बताने वाला हूँ वो तुम खुले दिमाग से सुनोगी. जब मैंने सायरा को चोदा. उसके होठों पर से किसी के चूत की गंध आ रही थी. मैं समझ गया कि वो रस तृषा की चूत का था. बाद में मैंने सायरा से कन्फर्म भी किया तो उसने बताया की जब तुम और रेनू एक दुसरे की चूत को चाट रहे थे, तुम लोगों की बेटियां यहाँ वही कमाल कर रही थीं.
"ओह विवेक, सही कह रहे हो न?”
“हाँ, एकदम यही हुआ है”
"लगता है बिलकुल अपनी माँ पर गयी है तृषा. विवेक, हमने मजाक में काफी कुछ कहा इस बार में पहले. पर क्या सच में तुमने कभी तृषा को चोदने के बारे में सोचा है?"
"हाँ."
"मैंने भी, वो इतनी सुन्दर है और उसका बदन इतना सेक्सी है. क्या तृषा को पता है की सायरा अपने बाप से चुदती है."
"हाँ."
"ओह शिट विवेक, इस डिस्कशन से मैं और गर्म होती जा रही हूँ. मेरी चूत से पानी टपकने लगा है. क्या टीम तृषा को चोदोगे विवेक?"
"हाँ."
"मैं भी."
"मुझे कुछ और भी बताना है. मैंने अपनी बेटी को कल रात में चोद दिया."
विवेक ने सारी की सारे घटना विस्तार से कविता को सुनाई.
"ओह शिट विवेक. ये तो कमाल ही है... मैं तुम्हें उसको चोदते हुए देखना चाहती हूँ.... मैं देखना चाहती हूँ कैसे तुम अपनी बेटी को चोदते हो..मैं उसकी जवान बुर की छोसना चाहती हूँ ..और मैं उससे ओनी चूत चुस्वाना चाहती हूँ...कितने समय से हम उस बारे में बस बात ही करते थे...अब समय आ गया ...चलो चले के तृषा को जगाते है...चलो न...”
कविता हाल में भागते हुए तृषा के रूम की तरफ जाने लगी. उसने शायद ये ध्यान भी नहीं दिया की उसने जागने के बाद कपडे नहीं पहने हैं..और वो पूरी की पूरी नंगी थी...और विवेक भी पीछे पीछे नंगा दौड़ा चला आया. तृषा अपने बिस्तर पर नंगी टाँगे फैला कर लेते हुई थी. कविता बिस्तर के एक तरफ बैठी और विवेक दूसरी ओर.
कविता ने एक उंगली से तृषा की बुर को सहलाना शुरू कर दिया. बुर गीली थी सो वह थोड़ी सी उंगली उसकी बुर में भी डाल देती थी. बुर काफी टाइट थी. कविता ने पूछा,
"इसकी बुर इतनी टाइट है, इसमें तुम्हारे मोटा लंड कैसे घुसाया तुमने?”
“औरत की चूत में कुदरत का करिश्मा है. ये मोटे से मोटा लंड ले सकती है जानेमन. आखिरकार बेटी तो तुम्हारी ही है ना?”
कविता ने अब अपनी दो उँगलियाँ तृषा की चूत में डाल दीं थीं. तृषा की नींद अब खुल गयी थी. उसने बाएं से दायें अपनी नज़र घुमाई और माँ को भी अपने खेल में शामिल होते देख कर बड़ी खुश हुई.
“माँ अच्छा लगा रहा है, करते जाओ.”
“तुम्हारे पापा ने मुझे सब बता दिया है.”
कविता ने अपना मुंह तृषा की बुर के मुहाने पर लगा दिया और लगी चूसने.
विवेक ने अपना लंड तृषा के मुंह में दे दिया. तृषा मोटा लंड अपने मुंह में ले कर मजे से चूसने लगी. इधर नीचे कविता तृषा की बुर के आस पास का इलाका, गांड का छेद सब कुछ चाट रही थी. तृषा तुरंत झड गयी, पर उसने अपने पापा का लंड चाटना नहीं छोड़ा.
बाद में तीनों ने एक साथ शावर में नहाया. शावर में विवेक ने तृषा को चोदा. जब वो उसे छोड़ रहा था. माँ कविता अपनी बेटी की चूत चूस रहें थीं.
इस तरह से पूरा दिन पारिवारिक खेल में बीता. रात में विवेक ने माँ और बेटी दोनों की चूत मारी और गांड मारी. एक पोज में जब माँ बेटी एक दुसरे के ऊपर 69 कर रहे थे. विवेक अपना लंड थोड़े देर कविता की चूत में डाल के चोदता था फिर निकाल कर चल के दुसरे किनारे पर आ कर उसे त्रिधा की गांड में पेल देता था. चुदाई के तरह की क्रीड़ायें करते हुए परिवार एक ही बिस्तर पर सो गया.
सुबह का सूरज निकला. परिवार में किसी को पिछले 48 घंटे में कपडे पहनने की जरूरत नहीं महसूस हुई थी. तृषा अपने माँ डैड के लिए चाय बना कर लायी. और पूछा,
"क्या आज पडोसी हमारे यहाँ आ रहे हैं?"
"हाँ. मैं फोन कर के कन्फर्म कर देत़ा हूँ अभी”
"क्या मैं आप लोगों की पार्टी में आ सकती हूँ आज प्लीज?"
कविता और विवके ने एक दूसरे की तरफ देखा और बोला,
“हाँ पार्टी में तो आ सकती हो, पर पहले हम दोनों से एक एक बार चुदना होगा चाय पीने के बाद”
परिवार के तीनों लोग इस बात पर हंसने लगे.
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