RE: Antarvasna घर में मजा पड़ोस में डबल-मजा
वह आँख मारते हुए बोला
"रेनू, अगर तुम सिखाने को तैयार को वो खेल तो हम लोग सीखने में बड़े माहिर हैं"
ऐसी गर्म बातें सुनते ही विवेक का लंड न चाहते हुए भी थोडा टाइट हो गया. रेनू ने ये बात तुरंत नोटिस की. वो अपने होठों को होठों से चबाते हुए मुस्कराई और विवेक की तरफ थोडा झुक गयी. उसका बलाउज थोडा खुल सा गया और विवेक को उसकी गुलाबी और मस्त टाइट चून्चियों का मस्त नज़ारा दिख गया. उसने चून्चियों का अपनी आँखों से सराहते हुआ कहा,
"हमको लगता था की हमें दोस्ती करने में थोडा वक़्त लगेगा. पर तुम लोगों से मिल कर लगता है की मैं गलत था."
विवेक और रेनू की नज़रें एक दुसरे से मिलीं. विवेक किसी भी लडकी से इतनी जल्दी नहीं घुला मिला था. दोनों को बहुत अच्छी तरह से पता था की उनके दिमाग में क्या खिचड़ी पाक रही थी. विवेक रेनू को जल्दी से जल्दी चोदना चाह रहा था. रेनू को ये बात बहुत साफ़ दिखाई पद रही थी. और सबसे बड़ी बात तो ये थी की विवेक को रेनू के स्कीम बड़ी अच्छे तरह से पता थी.
विवेक मुस्कराया और बोला,
"मैं हमारे खेल खेलने का बेसब्री से इंतज़ार कर रजा हूँ."
"वो तो ठीक है मिस्टर विवेक, पर तुम्हारी बेगम कविता का क्या"
रेनू ने पूछा.
"मुझे लगता है की उसे भी ये खेल पसंद आएगा, हम दोनों ने कुछ करते हुए इस बारे में कई बारे में बात करी है" , विवेक बोला.
"कुछ करते हुए ..हाँ.. पर क्या करते हुए?" रेनू ने उसे चिढाया.
"वही जो मैं तुम्हारे साथ करना चाह आहा हूँ." विवेक ने अंततः बोल ही डाला. उसने ये मान लिया था की गौरव को इससे कोई समस्या नहीं है.
रेनू ने विवेक के खड़े लंड उसके शॉर्ट्स के अन्दर देखा और एक सिहरन भरते हुए बोला,
"अजीब सी बात है. अभी अभी खाया है पर फिर से कुछ खाने का दिल करने लगा"
विवेक हंसने लगा और बोला,
"मुझे भी. क्या हमने कुछ और खाने के लिए तुम लोगों के सेटल होने का इंतज़ार करना पड़ेगा?"
"किस बात के लिए विवेक" रेनू ने उसे फिर से चिढाते हुए पूछा.
विवेक को रेनू का ये चिढाने का अंदाज़ बड़ा भाया. वो बोला
"वही बात जिसमें मुझे तुम्हारे सारे ओपेनिंग्स भरने का मौका मिले."
"ओह..बात तो ये है की मैं तो बिलकुल तैयार हूँ, अभी के अभी.. पर तुम कल सुबह हमारे यहाँ क्यों नहीं आ जाते...हम मिल कर अपने खेलों की प्रक्टिस जम कर करेंगे ..."
"किस वक़्त""
"दस बजे? हमारा दरवाजा खुला छोड़ देंगे. बस आ जाना. और विवेक साहब...मुझे तुम्हारी ओपेनिंग्स भरने वाला खेल बहुत पसंद...बहुत..."
बाहर अँधेरा होने लगा था. वो दोनों वहां बैठ कर बात कर रहे थे. दोनों खड़े होते और उन्हें हाथ एक दूसरे के शरीर पर चल रहे थे मानों एक दुसरे में कुछ ढूंढ रहे हों. विवेक के हाथ रेनू की फिट गांड पर रेंग रहे थे, वो बीच बीच में उसके ब्लाउज में हाथ डाल कर उसके मम्मे मसल लेता. तो कभी पैंटी मन डाल कर उसकी चूत में उंगली डाल देता. रेनू विवेक के शॉर्ट्स में हाथ डाले बैठी थी और उसके खड़े लंड को अपने मुलायम हाथों से सहला रही थी. ये सोच कर की कल ये लंड उसकी चूत में होगा उसे एक अजीब सी सिहरन सी हो रही थी.
इसी बीच किसी के आने की आवाज ने उन्हें चौंका दिया और वो दोनों एक दम से अलग दूर हो कर खड़े हो गए थे मानों उनके बीच कुछ हुआ ही न हो.
गौरव और कविता वापस आ गए थे. विवेक ने देखा की कविता उसकी तरफ देख कर मुस्करा रही थी. शायद वो सोच रही थी की उसके अनुपस्थिति में विवेक और रेनू के बीच क्या हुआ होगा. विवेक भी ये सोच रहा था की गौरव ने कविता के साथ क्या क्या किया होगा.
बाद में उस रात जब विवेक और कविता बिस्तर पर लेटे, कविता बड़ी गर्म थी. वो एक मिनट के लिए विवेक का लंड चूसती, तो दुसरे ही पल विवेक का मुंह अपनी चूत में भिड़ा के अन्दर खींच देती. फिर अगले ही पल वह विवेक को नीचे लिटा कर उसके ऊपर चढ़ गयी और लगी उसे दनादान छोड़ने. कविता को खुद पता नहीं था की वो चोद चोद कर कितनी बार झडी. जब वो आखिरी बार झडी तो वो विवेक के ऊपर से जैसे साइड में बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह गिर पडी.
"आज की चुदाई बड़ी ही मजेदार है मेरी जान."
विवेक थोडा ऊपर खिसका और कविता की चून्चियों से खेलते हुए बोला,
"मुझे लगता है की तुमने आज गौरव के साथ थोड़ी तो मौज की है पर जब तुम लौटे तो तुम्हारे चेहरे पर एक अजीब सा लुक था. हैं ना?"
कविता थोड़ी हिचकिचाई उसने अपने हाथों से विवेक का मुलायम पद गया लौंडा पकड़ लिया और उससे तब तक खेला जब तक की वो फिर से खड़ा बहिन हो गया. वो बोली,
"गौरव मुझे लाइन मार रहा था जोरों से. जब मैं उसे अपना स्टोव दिखा रही थी, वो पीछे खड़ा था. वो अपने हाथ मेरे हाथों के नीचे से ला कर मेरे मम्मे सहलाने लगा. और उसने मेरी गर्दन के पीछे किस भी किया."
"और तुमने क्या किया बेबी डॉल?"
"पहले तो मैं वह चुपचाप खडी रही. मुझे विशवास नहीं हो रहा था की ये सब वास्तव में हो रहा है..... फिर मैं वापस उसकी तरफ घूमी....तुम्हें तो पता ही है की मैं ऐसे समय ब्रा नहीं पहनती ताकि मेरे तगड़े मम्मों की जम के नुमाइश कर सकूं...उसने मेरे मम्मों को देखा..और बोला - कविता तुम्हारे मम्मे तो लाजवाब हैं."
"इसके पहले की मैं कुछ कहती वो मेरे दोनों मम्मे मसलने लगा ...मैं कुछ बुद्बुदाई..मुझे बड़ा आनंद आ रहा था....उसने मेरा ब्लाउज खोल दिया और मेरे मम्मों को एकदम नंगा कर के मसलने लगा ...थोड़ी देर में मैने उसका हाथ हटा दिया और ब्लाउज के बटन लगा दिए."
"तुम्हारा मन नहीं हुआ की गौरव को वहीं के वहीं चोद डालो कविता मेरी जान!"
कविता विवेक का लौंड़े को जोर से हिला रही थी. उसने विवेक की आँखों में ऑंखें डाल के बोला,
"विवेक, प्लीज बुरा मत मानना पर सच्चाई ये है की मेरा बस चलता तो उसे वहीँ पटक कर चोद देती उसे. अगर तुम दोनों दुसरे कमरे में नहीं होते तो भगवान् न जाने आज मैं क्या कर बैठती"
"ओह, मुझे मालूम है बेबीडॉल की तू क्या करती. तू अपनी टाँगे फैला कर गौरव का बड़ा और मोटा लौंडा अपनी प्यासी चूत में गपाक से डाल लेती ना? वैसे लगता है अब समय आ गया की हम अपना इतना पुराना सपना पूरा करें... गौरव और रीता स्वैप करने में पूरी तरह से इंटरेस्टेड हैं..तू क्या बोलती है मेरी जान? "
कविता पूरे उन्स्माद में भर चुकी थी. वो विवेक के ऊपर चढ़ गयी और उसका लौंडा अपनी खुली चूत में भर कर उसे जम के छोड़ने लगी. जैसे वो ऊपर ने नीचे आती उसकी आज़ाद चुन्चिया हवा में उछल जाती थीं. उन दोनों की ये चुदाई बड़ी की स्पेशल थी क्योंकि पहली बार वो अपनी चुदाई में औरों को सामिल करने के काफी करीब थे.
कविता ने अपनी हस्की आवाज में पूछा,
"क्या तुम पड़ोसियों के साथ ये सब करना चाहोगे? ओह..मुझे तो पहले से पता है की तुम रेनू को चोदना चाहते हो. मुझे पता है की तुम मेरे अलावा और औरतों को चोदते हो और मुझे इससे कोई समस्या नहीं रहे है. तुमने मुझे हमेशा खुश रखा है...पर पड़ोसियों के साथ का ये सब तुम्हें ठीक रहेगा विवेक? गौरव ने मुझे बोल ही रखा है की वो कहीं और मिल कर मेरी लेना चाहता है"
"ओह तो ये बात है बेबी डॉल! लगता है हमारे पडोसी समय बर्बाद करने में बिलकुल विश्वाश नहीं रखते हैं"
विवेक ने भी कविता को बताया कि इस दौरान रेनू और उसके बीच में क्या हुआ. विवेक कविता की चूत में अपना लंड उछल उछल कर डालने लगा. कविता को विवेक का लौंडा अपनी चूत के अन्दर फूलता हुआ सा लगा. विवेक धीमे धीमे से छोड़ने लगा और एक पल बाद ही जोर से चोदने लगता. पूरा कमरा चुदाई की मस्की गंध से भर सा गया. कविता ने झुक कर विवेक का लंड गपागप अपनी चूत में जाते देखा और विवेक से पूछा,
"तो तुम मानसिक रूप से उस बात के लिए बिलकुल तैयार हो की गौरव मुझे छोड़ दे? तुम्हारा रेनू को चोदना मुझे तो बड़ा अच्छा लगेगा....पर तुम गैर मर्द की मेरे साथ चुदाई देख सकोगे?"
"अगर तुम गौरव से चुदना चाह रही तो मुझे इससे कोई समस्या नहीं है बेबी डॉल. मेरी तो ये सब करने की वर्षों की तमन्ना थी."
"ओह शिट विवेक... मैं तो उस समय के लिए तरस रही हूँ जब गौरव मेरी ले रहा होगे और तुम मुझे उससे चुदते हुए देख रहे होगे. गैर मर्द से चुदने के विचार से मुझे मजा आने लगता है"
विवेक ने कविता को अपने रेनू के साथ के अनुभव को अब विस्तार में बता रहा था और उसे चोद रहा था. इस समय कविता को पता चला की उन्हें पड़ोसियों से मिलने अगली सुबह जाना है,
"ओह यस....तुम रेनू को जोर से चोद देना विवेक....ओह...आईईई...ई..ई.....मैं गयी रे... " कहते हुए कविता झड गयी.
दोनो एक दुसरे की बाहों में लिपट कर नंगे ही सो गए. उन्हें अगले दिन की सुबह का इंतज़ार था. उन्हें पता था की वो सुबह उनके जीवन में कई नए आयाम ले कर आयेगी.
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