RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
"क्यों? ऐसी क्या बात है?"
"तुम बुरा तो नही मनोगी ना?"
" नही आप बोलिए तो सही." मैने कहा.
"मैने तुमसे पूच्छे बिना देल्ही मे तुम्हारे कमरे से एक चीज़ उठा ली
थी." उन्हों ने सकुचते हुए कहा.
"क्या ?"
"ये तुम दोनो की फोटो." कहकर उन्हों ने हुम्दोनो की हनिमून पर
विशालजी द्वारा खींची वो फोटो सामने की जिसमे मैं लगभग नग्न
हालत मे पंकज के सीने से अपनी पीठ लगाए खड़ी थी. इसी फोटो को
मैं अपने ससुराल मे चारों तरफ खोज रही थी. लेकिन मिली ही नही
मिलती भी तो कैसे. वो स्नॅप तो जेत्जी अपने सीने से लगाए घूम रहे
थे. मेरे होंठ सूखने लगे. मैं फ़टीफटी आँखों से एकटक उनकी
आँखों मे झँकति रही. मुझे उनकी गहरी आँखों मे अपने लिए प्यार का
अतः सागर उफनते हुए दिखा.
"एयेए....आअप ने ये फोटो रख ली थी?"
"हाँ इस फोटो मे तुम बहुत प्यारी लग रही थी. किसी जलपरी की
तरह. मैं इसे हमेशा साथ रखता हूँ."
" क्यों....क्यों. ..? मैं आपकी बीवी नही. ना ही प्रेमिका हूँ. मैं आपके
छ्होटे भाई की बीबी हूँ. आपका मेरे बारे मे ऐसा सोचना भी उचित
नही है." मैने उनके शब्दों का विरोध किया.
" सुन्दर चीज़ को सुंदर कहना कोई पाप नही है." कमल ने कहा," अब
मैं अगर तुमसे नही बोलता तो तुमको पता चलता? मुझे तुम अच्छि
लगती हो इसमे मेरा क्या कुसूर है?"
" दो वो स्नॅप मुझे दे दो. किसी ने उसको आपके पास देख लिया तो बातें
बनेंगी." मैने कहा.
" नही वो अब मेरी अमानत है. मैं उसे किसी भी कीमत मे अपने से अलग
नही करूँगा."
मैं उनका हाथ थाम कर बिस्तर से उतरी. जैसे ही उनका सहारा छ्चोड़
कर
बाथरूम तक जाने के लिए दो कदम आगे बढ़ी तो अचानक सिर बड़ी ज़ोर
से घूमा और मैं लड़खड़ा कर गिरने लगी. इससे पहले की मैं ज़मीन
पर भरभरा कर गिर पड़ती कमल जी लपक कर आए. और मुझे अपनी
बाहों मे थाम लिया. मुझे अपने बदन का अब कोई ध्यान नही रहा. मेरा
बदन लगभग नग्न हो गया था. उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे फूल की
तरह उठाया और बाथरूम तक ले गये. मैने गिरने से बचने के लिए
अपनी बाहों का हार उनकी गर्दन पर पहना दिया. दोनो किसी नौजवान
प्रेमी युगल की तरह लग रहे थे. उन्हों ने मुझे बाथरूम के भीतर
ले जाकर उतारा.
"मैं बाहर ही खड़ा हूँ. तुम फ्रेश हो जाओ तो मुझे बुला लेना. सम्हल
कर उतना बैठना" कमल जी मुझे हिदयतें देते हुए बाथरूम के
बाहर
निकल गये और बाथरूम के दरवाजे को बंद कर दिया. मैं पेशाब
करके
लड़खड़ते हुए अपने कपड़ों को सही किया जिससे वो फिर खुल कर मेरे
बदन को बेपर्दा ना कर दें. मैं अब खुद को ही कोस रही थी की
किसलिए
मैने अपने अन्द्रूनि वस्त्र उतारे. मैं जैसे ही बाहर निकली तो बाहर
दरवाजे पर खड़े मिल गये. उन्हों ने मुझे दरवाजे पर देख कर
लपकते हुए आगे बढ़े और मुझे अपनी बाहों मे भर कर वापस बिस्तर
पर ले आए.
मुझे सिरहाने पर टीका कर मेरे कपड़ों को अपने हाथों से सही कर
दिया. मेरा चेहरा तो शर्म से लाल हो रहा था.
"अपने इस हुष्ण को ज़रा सम्हल कर रखिए वरना कोई मर ही जाएगा
आहें
भर भर कर" उन्हों ने मुस्कुरा कर कहा. फिर साइड टेबल से एक क्रोसिन
निकाल कर मुझे दिया. फिर वापस टी पॉट से मेरे कप मे कुच्छ चाइ
भर
कर मुझे दिया. मैने चाइ के साथ दवाई ले ली.
"लेकिन एक बात अब भी मुझे खटक रही है. वो दोनो आप को साथ
क्यों
नही ले गये…. आप कुच्छ छिपा रहे हैं. बताइए ना…."
" कुच्छ नही स्मृति मैं तुम्हारे कारण रुक गया. कसम तुम्हारी."
लेकिन मेरे बहुत ज़िद करने पर वो धीरे धीरे खुलने लगे.
" वो भी असल मे कुच्छ एकांत चाहते थे."
"मतलब?" मैने पूचछा.
" नही तुम बुरा मान जाओगी. मैं तुम्हारा दिल दुखाना नही चाहता."
" मुझे कुच्छ नही होगा आप तो कहो. क्या कहना चाहते हैं कि पंकज
और कल्पना दीदी के बीच......" मैने जानबूझ कर अपने वाक़्य को
अधूरा ही रहने दिया.
क्रमशः...............................
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