RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
जब मेरे कपड़ों के अंदर से झँकते मेरे नग्न बदन को देख कर उनके
कपड़ों अंदर से लिंग का उभार दिखने लगता. ये देख कर मैं भी गीली
होने लगती और मेरे निपल्स खड़े हो जाते. लेकिन मैं इन रिश्तों का
लिहाज करके अपनी तरफ से संभोग की अवस्था तक उन्हे आने नही देती.
एक चीज़ जो घर आने के बाद पता नही कहा और कैसे गायब हो गयी
पता ही नही चला. वो थी हम दोनो की शवर के नीचे खींची हुई
फोटो. मैं मथुरा रवाना होने से पहले पंकज से पूछि मगर वो
भी
पूरे घर मे कहीं भी नही ढूँढ पाया. मुझे पंकज पर बहुत
गुस्सा आ रहा था. पता नही उस अर्धनग्न तस्वीर को कहाँ रख दिए
थे. अगर ग़लती से भी किसी और के हाथ पड़ जाए तो?
खैर हम वहाँ से मथुरा आ गये. वहाँ हुमारा एक शानदार मकान था.
मकान के सामने गार्डेन और उसमे लगे तरह तरह के पूल एक दिलकश
तस्वीर तल्लर करते थे. दो नौकर हर वक़्त घर के काम काज मे
लगे
रहते थे और एक गार्डनर भी था. तीनो गार्डेन के दूसरी तरफ बने
क्वॉर्टर्स मे रहते थे. शाम होते ही काम निबटा कर उन्हे जाने को कह
देती. क्योंकि पंकज के आने से पहले मैं उनके लिए बन संवर कर
तैयार रहती थी.
मेरे वहाँ पहुँचने के बाद पंकज के काफ़ी सबॉर्डिनेट्स मिलने के
लिएआए. उसके कुच्छ दोस्त भी थे. पंकज ने मुझे खास खास कॉंट्रॅक्टर्स
सेभी मिलवाया. वो मुझे हमेशा एक दम
बन ठन के रहने के लिए कहते थे. मुझे सेक्सी और एक्सपोसिंग कपड़ों
मे रहने के लिए कहते थे. वहाँ पार्टीस और गेट टुगेदर मे सब
औरतें एक दम सेक्सी कपड़ों मे आती थी. पंकज वहाँ दो क्लब्स का मेंबर
था. जो सिर्फ़ बड़े लोगों के लिए था. बड़े लोगों की पार्टीस देर रात
तक चलती
थी और पार्ट्नर्स बदल बदल कर डॅन्स करना, उल्टे सीधे मज़ाक
करना और एक दूसरे के बदन को छुना आम बात थी.
शुरू शुरू मे तो मुझे बहुत शर्म आती थी. लेकिन धीरे धीरे मैं
इस महॉल मे ढाल गयी. कुच्छ तो मैं पहले से ही चंचल थी और
पहले गैर मर्द मेरे नंदोई ने मेरे शर्म के पर्दे को तार तार कर
दिया
था. अब मुझे किसी भी गैर मर्द की बाँहों मे जाने मे ज़्यादा झिझक
महसूस नही होती थी. पंकज भी तो यही चाहता था. पंकज चाहता
था की मुझे सब एक सेडक्टिव
महिला के रूप मे जाने. वो कहते थे की "जो औरत जितनी फ्रॅंक और
ओपन
माइंडेड होती है उसका हज़्बेंड उतनी ही तरक्की करता है. इन सबका
हज़्बेंड के रेप्युटेशन पर एवं उनके बिज़्नेस पर भी फ़र्क पड़ता है."
हर महीने एक-आध इस तरह की गॅदरिंग हो ही जाती थी. मैं इनमे
शामिल होती लेकिन किसी गैर मर्द से जिस्मानी ताल्लुक़ात से झिझकति
थी.नाच गाने तक और ऊपरी चूमा चाती तक भी सही था. लेकिन जब
बातबिस्तर तक आ जाती तो मैं. चुप चाप अपने को उससे दूर कर लेती थी.
वहाँ आने के कुच्छ दीनो बाद जेठ और जेठानी वहाँ आए हुमारे पास.
पंकज भी समय निकाल कर घर मे ही घुसा रहता था. बहुत मज़ा आ
रहा था. खूब हँसी मज़ाक चलता. देर रात तक नाच गाने का प्रोग्रामम
चलता रहता था. कमल्जी और कल्पना भाभी काफ़ी खुश मिज़ाज के थे.
उनके चार साल हो गये थे शादी को मगर अभी तक कोई बच्चा नही
हुआ था. ये एक छ्होटी कमी ज़रूर थी उनकी जिंदगी मे मगर बाहर से
देखने मे क्या मज़ाल कि कभी कोई एक शिकन भी ढूँढ ले चेहरे पर.
एक दिन तबीयत थोरी ढीली थी. मैं दोपहर को खाना खाने के बाद
सोगयी. बाकी तीनो ड्रॉयिंग रूम मे गॅप शॅप कर रहे थे. शाम तक
यहीसब चलना था इसलिए मैं अपने कमरे मे आकर कपड़े बदल कर एक हल्का
सा फ्रंट ओपन गाउन डाल कर सो गयी. अंदर कुच्छ भी नही पहन
रखाथा. पता नही कब तक सोती रही. अचानक कमरे मे रोशनी होने से
नींद खुली. मैने अल्साते हुए आँखें खोल कर देखा बिस्तर पर मेरे
पास जेत्जी बैठे मेरे खुले बालों पर प्यार से हाथ फिरा रहे थे.
मैं हड़बड़ा कर उठने लेगी तो उन्हों ने उठने नही दिया.
"लेटी रहो." उन्हों ने माथे पर अपनी हथेली रखती हुए कहा " अब
तबीयत कैसी है स्मृति"
" अब काफ़ी अच्च्छा लग रहा है." तभी मुझे अहसास हुआ कि मेरा गाउन
सामने से कमर तक खुला हुआ है और मेरी रेशमी झांतों से भरी
योनिजेत्जी को मुँह चिढ़ा रही है. कमर पर लगे बेल्ट की वजह से पूरी
नंगी होने से रह गयी थी. लेकिन उपर का हिस्सा भी अलग होकर एक
निपल को बाहर दिख़रही थी. मैं शर्म से एक दम पानी पानी हो
गयी.
मैने झट अपने गाउन को सही किया और उठने लगी. ज्त्जी ने झट अपनी
बाहों का सहारा दिया. मैं उनकी बाहों का सहारा ले कर उठी लेकिन सिर
ज़ोर का चकराया और मैने सिर की अपने दोनो हाथों से थाम लिया.
जेत्जी
ने मुझे अपनी बाहों मे भर लिया. मैं अपने चेहरे को उनके घने बलों
से भरे मजबूत सीने मे घुसा कर आँखे बंद कर ली. मुझे आदमियों
का घने बलों से भरा सीना बहुत सेक्सी लगता है. पंकज के सीने
पर बॉल बहुत कम हैं लेकिन कमल्जी का सीना घने बलों से भरा
हुआहै. कुच्छ देर तक मैं यूँ ही उनके सीने मे अपने चेहरे को च्चिपाए
उनके बदन से निकलने वाली खुश्बू अपने बदन मे समाती रही. कुकछ
देर बाद उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे सम्हल कर मुझे बिस्तर के
सिरहाने से टीका कर बिठाया. मेरा गाउन वापस अस्तव्यस्त हो रहा था.
जांघों तक टाँगे नंगी हो गयी थी.
मुझे एक चीज़ पर खटका हुआ कि मेरी जेठानी कल्पना और पंकज नही
दिख रहे थे. मैने सोचा कि दोनो शायद हमेशा की तरह किसी
चुहलबाजी मे लगे होंगे. कमल्जी ने मुझे बिठा कर सिरहाने के पास
से चाइ का ट्रे उठा कर मुझे एक कप चाइ दी.
" ये..ये अपने बनाई है?" मैं चौंक गयी.क्योंकि मैने कभी जेत्जी
को
किचन मे घुसते नही देखा था.
"हाँ. क्यों अच्छि नही बनी है?" कमल जी ने मुस्कुराते हुए मुझे
पूचछा.
"नही नही बहुत अच्छि बनी है." मैने जल्दी से एक घूँट भर कर
कहा" लेकिन भाभी और वो कहाँ हैं?"
"वो दोनो कोई फिल्म देखने गये हैं 6 से 9" कल्पना ज़िद कर रही थी
तो
पंकज उसे ले गया है.
" लेकिन आप? आप नही गये?" मैने असचर्या से पूचछा.
"तुम्हारी तबीयत खराब थी. अगर मैं भी चला जाता तो तुम्हारी देख
भाल कौन करता?" उन्हों ने वापस मुस्कुराते हुए कहा फिर बात बदले
के लिए मुझसे आगे कहा," मैं वैसे भी तुमसे कुच्छ बात कहने के
लिए एकांत खोज रहा था."
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