RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
अब पंकज ने अपनी बाँह वापस कंधे से उतार कर कुच्छ देर तक मेरे
अन्द्रूनि जांघों को मसल्ते रहे. फिर अपने हाथ को वापस उपर उठा
कर अपनी उंगलियाँ मेरे गाल्लों पर फिराने लगे. मेरे पूरे बदन मे
एकझुरजुरी सी दौड़ रही थी. रोएँ भी खड़े हो गये. धीरे धीरे
उनका हाथ गले पर सरक
गया. मैं ऐसा दिखावा कर रही थी जैसे सब कुच्छ नॉर्मल है मगर
अंदर उनके हाथ किसी सर्प की तरह मेरे बदन पर रेंग रहे थे.
अचानक उन्हों ने अपना हाथ नीचे किया और सारी ब्लाउस के उपर से
मेरे एक स्तन को अपने हाथों से ढक लिया. उन्हों ने पहले धीरे से
कुच्छ देर तक मेरे एक स्तन को प्रेस किया. जब देखा कि मैने किसी
तरह का विरोध नही किया तो उन्हों ने हाथ ब्लाउस के अंदर डाल कर
मेरे एक स्तन को पकड़ लिया. मैं कुच्छ देर तक तो सकते जैसी हालत
मे बैठी रही. लेकिन जैसे ही उसने मेरे उस स्तन को दबाया मैं
चिहुनक उठी "अयीई"
"क्या हुआ? ख़टमल काट गया?" नीता ने पूचछा. और मुझे चिढ़ाते
हुए हँसने लगी. मैं शर्म से मुँह भींच कर बैठी हुई थी. क्या
बताती, एक नयी दुल्हन के लिए इस तरह की बातें खुले आम करना
बड़ामुश्किल होता है. और स्पेशली तब जब की मेरे अलावा बाकी सब इस
महॉल का मज़ा ले रहे थे.
"कुच्छ नही मेरा पैर फँस गया था सीट के नीचे." मैने बात को
सम्हलते हुएकहा.
अब उनके हाथ मेरे नग्न स्तन को सहलाने लगे. उनके हाथ ब्रा के अंदर
घुसकर मेरे स्तनो पर फिर रहे थे. उन्हों ने मेरे निपल्स को अपनी
उंगलियों से छुते हुए मेरे कान मे कहा, "बाइ गॉड बहुत सेक्सी हो.
अगर तुम्हारा एक अंग ही इतना लाजवाब है तो जब पूरी नंगी होगी तो
कयामत आ जाएगी. पंकज खूब रगड़ता होगा तेरी जवानी. साला बहुत
किस्मेत वाला है. तुम्हे मैं अपनी टाँगों के बीच लिटा कर रहूँगा. "
उनके इस तरह खुली बात करने से मैं घबरा गयी. मैने सामने
देखा
दोनो भाई बहन अपनी धुन मे थे. मैं अपना निचला होंठ काट कर रह
गयी. मैने चुप रहना ही उचित समझा जितनी शिकायत करती दोनो
भाई बहन मुझे और ज़्यादा खींचते. उनकी हरकतों से अब मुझे भी
मज़ा आने लगा. मेरी योनि गीली होने
लगी. लेकिन मई चुप चाप अपनी नज़रें झुकाए बैठी रही. सब हँसी
मज़ाक मे व्यस्त थे. दोनो को इसकी बिल्कुल भी उम्मीद नही थी की उनके
पीठ के ठीक पीछे किस तरह का खेल चल रहा था. मैं नई
नवेलीदुल्हन कुच्छ तो शर्म के मारे और कुच्छ परिवार वालों के खुले
विचारों को देखते हुए चुप थी. वैसे मैं भी अब कोई दूध की
धूलितो थी नही. ससुर जी के साथ हुमबईस्तर होते होते रह गयी थी.
इसलिए मैने मामूली विरोध के और कसमसने के अलावा कोई हरकत नही
की.
उसने मुझे आगे को झुका दिया और हाथ मेरी पीठ पर ले जाकर
मेरी ब्रा के स्ट्रॅप खोल दिए. ब्लाउस मे मेरे बूब्स ढीले हो गये. अब
वो आराम से ब्लाउस के अंदर मेरे बूब्स को मसल्ने लगे. उसने
मेरे ब्लाउस के बटन्स खोल कर मेरे बूब्स को बिल्कुल नग्न कर दिए.
विशाल ने अपना सिर कंबल के अंदर करके मेरे नग्न स्तनो को चूम
लिया. उसने अपने होंठों के बीच एक एक करके मेरे निपल्स लेकर
कुच्छ देर चूसा. मैं डर के मारे एक दम स्तब्ध रह गयी. मई साँस
भी रोक कर बैठी हुई थी. ऐसा लग रहा था मानो मेरी सांसो से भी
हमारी हरकतों का पता चल जाएगा. कुच्छ देर तक मेरे निपल्स
चूसने के बाद वापस अपना सिर बाहर निकाला. अब वो अपने हाथों से
मेरेहाथ को पकड़ लिया. मेरी पतली पतली उंगलियों को कुच्छ देर तक
चुउस्ते और चूमते रहे. फिर धीरे से उसे पकड़ कर पॅंट के उपर
अपने लिंग पर रखा. कुच्छ देर तक वहीं पर दबाए रखने के बाद
मैने अपने हाथों से उनके लिंग को एक बार मुट्ठी मे लेकर दबा दिया.
वो तब मेरी गर्दन पर हल्के हल्के से अपने दाँत गढ़ा रहे थे. मेरे
कानो की एक लौ अपने मुँह मे लेकर चूसने लगे.
पता नही कब उन्होने अपने पॅंट की ज़िप खोल कर अपना लिंग बाहर निकाल
लिया. मुझे तो पता तब लगा जब मेरे हाथ उनके नग्न लिंग को छू
लिए. मैं अपने हाथ को खींच रही थी मगर उनकी पकड़
से च्छुदा नही पा रही थी.
जैसे ही मेरे हाथ ने उसके लिंग के चंदे को स्पर्श
किया पूरे बदन मे एक सिहरन सी दौड़ गयी. उनका लिंग पूरी तरह
तना हुआ था. लिंग तो क्या मानो मैने अपने हाथों मे को गरम सलाख
पकड़ ली हो. मेरी ज़ुबान तालू से चिपक गयी. और मुँह सूखने लगा.
मेरे हज़्बेंड और ननद सामने बैठे थे और मैं नयी दुल्हन एक गैर
मर्द का लिंग अपने हाथो मे थाम रखी थी. मैं शर्म और डर से गढ़ी
जा रही थी. मगर मेरी ज़ुबान
को तो मानो लकवा मार गया था. अगर कुच्छ बोलती तो पता नही सब क्या
सोचते. मेरी चुप्पी को उसने मेरी रज़ामंदी समझा. उसने मेरे हाथ को
मजबूती से अपने लिंग पर थाम रखा था. मैने धीरे धीरे उसके
लिंग को अपनी मुट्ठी मे ले लिया. उसने अपने हाथ से मेरे हाथ को उपर
नीचे करके मुझे उसके लिंग को सहलाने का इशारा किया. मैं उसके
लिंग को सहलाने लगी. जब वो अस्वस्त हो गये तो उन्होने मेरे हाथ को
छ्चोड़ दिया और मेरे चेहरे को पकड़ कर अपनी ओर मोड़ा. मेरे होंठों
पर उनके होंठ चिपक गये. मेरे होंठों को अपनी जीभ से खुलवा कर
मेरे मुँह मे अपनी जीभ घुसा दी. मैं डर के मारे काँपने लगी.
जल्दी ही उन्हे धक्का देकर अपने से अलग किया. उन्होने अपने हाथों से
मेरी सारी उँची करनी शुरू की उनके हाथ मेरी नग्न जांघों पर फिर
रहे थे. मैने अपनी टाँगों को कस कर दबा रखा था इसलिए उन्हे
मेरी योनि तक पहुँचने मे सफलता नही मिल रही थी. मैं उनके लिंग
पर ज़ोर ज़ोर से हाथ चला रही थी. कुच्छ देर बाद उनके मुँह से हल्की
हल्की "आ ऊ" जैसी आवाज़ें निकलने लगी जो कि कार की आवाज़ मे दब
गयी थी. उनके लिंग से ढेर सारा गढ़ा गढ़ा वीर्य निकल कर मेरे
हाथों पर फैल गया. मैने अपना हाथ बाहर निकल लिया. उन्होने वापस
मेरे हाथ को पकड़ कर मुझे ज़बरदस्ती उनके वीर्य को चाट कर सॉफ
करने लिए बाध्या करने लगे मगर मैने उनकी चलने नही दी. मुझे
इस तरह की हरकत बहुत गंदी और वाहियात लगती थी. इसलिए मैने
उनकी पकड़ से अपना हाथ खींच कर अपने रुमाल से पोंच्छ दिया. कुच्छ
देर बाद मेरे हज़्बेंड कार रोक कर पीछे आ गये तो मैने राहत की
साँस ली.
हम होटेल मे पहुँचे. दो डबल रूम बुक कर रखे थे. उस दिन
ज़्यादाघूम नही सके. शाम को हम सब उनके कमरे मे बैठ कर ही बातें
करने लगे. फिर देर रात तक ताश खेलते रहे. जब हम उठने लगे तो
विशाल जी ने हूमे रोक लिया.
"अरे यहीं सो जाओ" उन्हों ने गहरी नज़रों से मुझे देखते हुए
कहा.
पंकज ने सारी बात मुझ पर छ्चोड़ दी, "मुझे क्या है इससे पूच्छ
लो."
विशाल मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर कहे "लाइट बंद कर
देंगे
तो कुच्छ भी नही दिखेगा. और वैसे भी ठंड के मारे रज़ाई तो लेना
ही पड़ेगा."
"और क्या कोई किसी को परेशान नही करेगा. जिसे अपने पार्ट्नर से
जितनी मर्ज़ी खेलो" नीतू दीदी ने कहा
पंकज ने झिझकते हुए उनकी बात मान ली. मैं चुप ही रही. लाइट
ऑफ करके हम चार एक ही डबल बेड पर लेट गये. मैं और नीतू
बीच मे सोए और दोनो मर्द किनारे पर. जगह कम थी इसलिए एक
दूसरे से सॅट कर सो रहे थे. हम चारों के वस्त्र बहुत जल्दी बदन
से हट गये. हल्की हालिक रोशनी मे मैने देखा कि विशाल जी नीतू को
सीधा कर के दोनो पैर अपने कंधों पर रख दिए और धक्के मारने
लगे. कंबल, रज़ाई सब उनके बदन से हटे हुए थे. मैने हल्की
रोशनी मे उनके मोटे तगड़े लिंग को देखा. नीतू लिंग घुसते
समय "आह" कर उठी. कंपॅरटिव्ली पंकज का लंड उससे छ्होटा था.
मैं सोच रही थी नीतू को कैसा मज़ा आ रहा होगा. विशाल नीतू को
धक्के मार रहा था. पंकज मुझे घोड़ी बना कर मेरे पीछे से
ठोकने लगा. पूरा बिस्तर हम दोनो कपल्स के धक्कों से बुरी तरह
हिल रहा था. कुच्छ देर बाद विशाल लेट गया और नीतू को अपने उपर
ले लिया. अब
नीतू उन्हे चोद रही थी. मेरे बूब्स पंकज के धक्कों से बुरी तरह
हिल रहे थे. थोड़ी देर मे मैने महसूस किया कि कोई हाथ मेरे
हिलते हुए बूब्स को मसल्ने लगा है. मैं समझ गयी कि वो हाथ
पंकज का नही बल्कि विशाल का है. विशाल मेरे निपल को अपनी
चुटकियों मे भर कर मसल रहा था. मैं दर्द से कराह उठी. पंकज
खुश हो गया कि उसके धक्कों ने मेरी चीख निकाल दी. काफ़ी देर तक
यूँही अपनी अपनी बीवी को ठोक कर दोनो निढाल हो गये.
दोनो कपल वहीं अलग अलग कंबल और रज़ाई मे घुस कर बिना कपड़ों
के ही अपने अपने पार्ट्नर से लिपट कर सो गये. मैं और नीतू बीच मे
सोए थे और दोनो मर्द किनारे की ओर सोए थे. आधी रात को अचानक
मेरी नीद खुली. मैं ठंड के मारे पैरों को सिकोड कर सोई थी.
मुझे लगा मेरे बदन पर कोई हाथ फिरा रहा है. मेरी रज़ाई मे एक
तरफ पंकज सोया हुआ था. दूसरी तरफ से कोई रज़ाई उठ कर अंदर
सरक गया और मेरे नग्न बदन से चिपक गया. मैं समझ गयी की
ये और कोई नही विशाल है. उसने कैसे नीतू को दूसरी ओर कर के
खुद मेरी तरफ सरक आया यह पता नही चला. उसके हाथ अब मेरी आस
पर फिर रहे थे. फिर उसके हाथ मेरे दोनो आस के बीच की दरार से
होते हुए मेरे आस होल पर कुच्छ पल रुके और फिर आगे बढ़ कर मेरी
योनि के ऊपर ठहर गये.
मैं बिना हीले दुले चुप चाप पड़ी थी. देखना चाहती थी कि विशाल
करता क्या है. डर भी रही थी क्योंकि मेरी दूसरी तरफ पंकज मुझ
से लिपट कर सो रहे थे. विशाल का मोटा लंड खड़ा हो चुक्का था
और
मेरे आस पर दस्तक दे रहा था.
विशाल ने पीछे से मेरी योनि मे अपनी एक फिर दूसरी उंगली डाल दी.
मेरी योनि गीली होने लगी थी. पैरों को मोड़ कर लेते रहने के कारण
मेरी योनि उसके सामने बिकुल खुली हुई तैयार थी. उसने कुच्छ देर तक
मेरी योनि मे अपनी उंगलियों को अंदर बाहर करने के बाद अपने लिंग के
गोल टोपे को मेरी योनि के मुहाने पर रखा. मैने अपने बदन को
ढीला छ्चोड़ दिया था. मैं भी किसी पराए मर्द की हरकतों से गर्म
होने लगी थी. उसने अपनी कमर से मेरी योनि पर एक धक्का लगाया
"आआहह" मेरे मुँह से ना चाहते हुए भी एक आवाज़ निकल गयी.
तभी पंकज ने एक करवट बदली.
"मैने घबरा कर उठने का बहाना किया और विशाल को धक्का दे कर
अपने से हटाते हुए उसके कान मे फुसफुसा कर कहा
"प्लीज़ नही…… पंकज जाग गया तो अनर्थ हो जाएगा."
"ठहरो जाने मन कोई और इंतज़ाम करते है" कहकर वो उठा और एक
झटके से मुझे बिस्तर से उठा कर मुझे नंगी हालत मे ही सामने के
सोफे पर ले गया. वहाँ
मुझे लिटा कर मेरी टाँगों को फैलाया. वो नीचे कार्पेट पर बैठ
गया. फिर उसने अपना सिर मेरी जांघों के बीच रख कर मेरी योनि पर
जीभ फिराना शुरू किया. मैने
अपनी टाँगें छत की तरफ उठा दिया. वो अपने हाथों से मेरी टाँगों
को थम रखा था. मैं अपने हाथों से उसके सिर को अपनी योनि पर दाब
दिया. उसकी जीभ अब मेरी योनि के अंदर घुस कर
मुझे पागल करने लगा. मैं अपने बालों को खींच रही थी तो कभी
अपनी उंगलियों से अपने निपल्स को ज़ोर ज़ोर से मसल्ति. अपने जबड़े को
सख्ती से मैने भींच रखा था जिससे किसी तरह की कोई आवाज़ मुँह
से ना निकल जाए. लेकिन फिर भी काफ़ी कोशिशों के बाद भे हल्की
दबी
दबी कराह मुँह से निकल ही जाती थी. मैने उनके उपर झुकते हुए
फुसफुसते हुए कहा
आअहह…..ये क्या कर दिया अपने…… मैं पागल हो
जौंगी……….प्लीईईससस्स और बर्दस्त नही हो रहा है. अब आआ जाऊ"
लेकिन वो नही हटा. कुच्छ ही देर मे मेरा बदन उसकी हरकतों को नही
झेल पाया और योनि रस की एक तेज धार बह निकली. मैं निढाल हो कर
सोफे पर गिर गयी. फिर मैने उसके बाल पकड़ कर उसके सिर को
ज़बरदस्ती से मेरी योनि से हटाया.
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