RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
मैं हूँ हसीना गजब की पार्ट--2
गतान्क से आगे........................
"क्या यार तुम्हारी जिंदगी तो बहुत बोरिंग है. यहाँ ये सब नही
चलेगा. एक दो तो भंवरों को रखना ही चाहिए. तभी तो तुम्हारी
मार्केट वॅल्यू का पता चलता है. मैं उनकी बातों से हंस पड़ी.
शादी से पहले ही मैं पंकज के साथ हुमबईस्तर हो गयी. हम दोनो
ने शादी से पहले खूब सेक्स किया. ऑलमोस्ट रोज ही किसी होटेल मे जाकर
सेक्स एंजाय करते थे. एक बार मेरे पेरेंट्स ने शादी से पहले रात
रात भर बाहर रहने पर एतराज जताया था. लेकिन जताया भी तो किसे मेरे
होने वाले ससुर जी से जो खुद इतने रंगीन मिज़ाज थे. उन्हों ने उनकी
चिंताओं को भाप बना कर उड़ा दिया. राजकुमार जी मुझे फ्री छ्चोड़
रखे थे लेकिन मैने कभी अपने काम से मन नही चुराया. अब मैं
वापस सलवार कमीज़ मे ऑफीस जाने लगी.
पंकज और उनकी फॅमिली काफ़ी खुले विचारों की थी. पंकज मुझे
एक्सपोषर के लिए ज़ोर देते थे. वो मेरे बदन पर रिवीलिंग कपड़े
पसंद करते थे. मेरा पूरा वॉर्डरोब उन्हों ने चेंज करवा दिया
था.
उन्हे मिनी स्कर्ट और लूस टॉपर मुझ पर पसंद थे. सिर्फ़ मेरे
कपड़े
ही नही मेरे अंडरगार्मेंट्स तक उन्हों ने अपने पसंद के खरीद्वये.
वो मुझे माइक्रो स्कर्ट और लूस स्लीव्ले टॉपर पहना कर डिस्कोज़
मे
ले जाते जहाँ हम खूब फ्री होकर नाचते और मस्ती करते थे. अक्सर
लोफर लड़के मेरे बदन से अपना बदन रगड़ने लगते. कई बार मेरे
बूब्स मसल देते. वो तो बस मौके की तलाश मे रहते थे कि कोई मुझ
जैसी सेक्सी हसीना मिल जाए तो हाथ सेंक लें. मैं कई बार नाराज़ हो
जाती लेकिन पंकज मुझे चुप करा देते. कई बार कुच्छ मनचले
मुझसे डॅन्स करना चाहते तो पंकज खुशी खुशी मुझे आगे कर
देते.
मुझ संग तो डॅन्स का बहाना होता. लड़के मेरे बदन से जोंक की तरह
चिपक जाते. मेरे पूरे बदन को मसल्ने लगते. बूब्स का तो सबसे
बुरा हाल कर देते. मैं अगर नाराज़गी जाहिर करती तो पंकज अपनी
टेबल
से आँख मार कर मुझे शांत कर देते. शुरू शुरू मे तो इस तरह का
ओपननेस मे मैं घबरा जाती थी. मुझे बहुत बुरा लगता था लेकिन
धीरे धीरे मुझे इन सब मे मज़ा आने लगा. मैं पंकज को उत्तेजित
करने के लिए कभी कभी दूसरे किसी मर्द को सिड्यूस करने लगती. उस
शाम पंकज मे कुच्छ ज़्यादा ही जोश आ जाता.
खैर हुमारी शादी जल्दी ही बड़े धूम धाम से हो गयी. शादी के
बाद जब मैने राजकुमार जी के चरण छुये तो उन्हों ने मुझे अपने
सीने से लगा लिया. इतने मे ही मैं गीली हो गयी. तब मैने महसूस
किया की हुमारा रिश्ता आज से बदल गया लेकिन मेरे मन मे अभी एक
छुपि सी चिंगारी बाकी है अपने ससुर जी के लिए जिसे हवा लगते ही
भड़क उठने की संभावना है.
मेरे ससुराल वाले बहुत अच्च्चे काफ़ी अड्वॅन्स्ड विचार के थे. पंकज
के एक बड़े भाई साहिब हैं कमल और एक बड़ी बहन है नीतू. दोनो
कीतब तक शादी हो चुकी थी. मेरे नंदोई का नाम है विशाल. विशाल
जी
बहुत रंगीन मिज़ाज इंसान थे. उनकी नज़रों से ही कामुकता टपकती
थी.
शादी के बाद मैने पाया विशाल मुझे कामुक नज़रों से
घूरते रहते हैं. नयी नयी शादी हुई थी इसलिए किसी से शिकायत
भी नही कर सकती थी. उनकी फॅमिली इतनी अड्वान्स थी कि मेरी इस
तरहकी शिकायत को हँसी मे उड़ा देते और मुझे ही उल्टा उनकी तरफ धकेल
देते. विशलजी की मेरे ससुराल मे बहुत अच्छि इमेज बनी हुई थी
इसलिए मेरी किसी भी को कोई तवज्जो
नही देता. अक्सर विशलजी मुझे च्छू कर बात करते थे. वैसे इसमे
कुच्छ भी
ग़लत नही था. लेकिन ना जाने क्यों मुझे उस आदमी से चिढ़ होती थी.
उनकी आँखें हमेशा मेरी छातियो पर रेंगते महसूस करती थी. कई
बार मुझसे सटने के भी कोशिश करते थे. कभी सबकी आँख बचा
कर मेरी कमर मे चिकोटी काटते तो कभी मुझे देख कर अपनी जीभ
को अपने होंठों पर फेरते. मैं नज़रें घुमा लेती.
मैने जब नीतू से थोड़ा घुमा कर कहा तो वो हंसते हुए
बोली, "देदो बेचारे को कुच्छ लिफ्ट. आजकल मैं तो रोज उनका पहलू गर्म
कर पाती नही हूं इसलिए खुला सांड हो रहे हैं. देखना बहुत बड़ा
है उनका. और तुम तो बस अभी कच्ची कली से फूल बनी हो उनका
हथियार झेल पाना अभी तेरे बस का नही."
"दीदी आप भी बस....आपको शर्म नही आती अपने भाई की नयी दुल्हन से
इस तरह बातें कर रही हो?"
"इसमे बुराई क्या है. हर मर्द का किसी शादीसूडा की तरफ अट्रॅक्षन
का मतलब बस एक ही होता है. कि वो उसके शहद को चखना चाहता
है. इससे कोई घिस तो जाती नही है." नीतू दीदी ने हँसी मे बात को
उड़ा दिया. उस दिन शाम को जब मैं और पंकज अकेले थे नीतू दीदी ने
अपने भाई से भी मज़ाक मे मेरी शिकायत की बात कह दी.
पंकज हँसने लगे, "अच्च्छा लगता है जीजा जी का आप से मन भर
गया है इसलिए मेरी बीवी पर नज़रें गड़ाए रखे हुए हैं." मैं तो
शर्म से पानी पानी हो रही थी. समझ ही नही आ रहा था वहाँ
बैठे रहना चाहिए या वहाँ से उठ कर भाग जाना चाहिए. मेरा
चेहरा शर्म से लाल हो गया.
"अभी नयी है धीरे धीरे इस घर की रंगत मे ढल जाएगी." फिर
मुझे कहा, " शिम्रिति हमारे घर मे किसीसे कोई लुकाव च्चिपाव नही
है. किसी तरह का कोई परदा नही. सब एक दूसरे से हर तरह का
मज़ाक छेड़ छाड कर सकते हैं. तुम किसी की किसी हरकत का बुरा
मतमानना"
अगले दिन की ही बात है मैं डाइनिंग टेबल पर बैठी सब्जी काट रही
थी. विशलजी और नीता दीदी सोफे पर बैठे हुए थे. मुझे ख़याल
ना रहा कब मेरे एक स्तन से सारी का आँचल हट गया. मुझे काम
निबटा कर नहाने जाना था इसलिए ब्लाउस का सिर्फ़ एक बटन बंद था.
आधे से अधिक छाती बाहर निकली हुई थी. मैं अपने काम मे तल्लीन
थी. मुझे नही मालूम था कि विशाल जी सोफे बैठ कर न्यूज़ पेपर की
आड़ मे मेरे स्तन को निहार रहे है. मुझे पता तब चला जब नीतू
दीदी ने मुझे बुलाया.
"स्मृति यहाँ सोफे पर आ जाओ. इतनी दूर से विशाल को तुम्हारा
बदन ठीक से दिखाई नही दे रहा है. बहुत देर से कोशिश कर
रहाहै कि काश उसकी नज़रों के गर्मी से तुम्हारे ब्लाउस का इकलौता
बटन पिघल जाए और ब्लाउस से तुम्हारी छातिया निकल जाए लेकिन उसे कोई
सफलता नही मिल रही है."
मैने झट से अपनी चूचियो को देखा तो सारी बात समझ कर मैने
आँचल सही कर दिया. मई शर्मा कर वहाँ से उठने को हुई. तो नीता
दीदी ने आकर मुझे रोक दिया. और हाथ पकड़ कर सोफे तक ले गयी.
विशाल जी के पास ले जा कर. उन्हों ने मेरे आँचल को चूचियो के
उपर से हटा दिया.
"लो देख लो….. 38 साइज़ के हैं. नापने हैं क्या?"
मैं उनकी हरकत से शर्म से लाल हो गयी. मैने जल्दी वापस आँचल
सही किया और वहाँ से खिसक ली.
हनिमून मे हमने मसुरी जाने का प्रोग्राम बनाया. शाम को बाइ कार
देल्ही से निकल पड़े. हुमारे साथ नीतू और विशलजी भी थे.ठंड के
दिन थे. इसलिए शाम जल्दी हो जाती थी. सामने की सीट पर नीतू दीदी
बैठी हुई थी. विशाल जी कार चला रहे थे. हम दोनो पीछे
बैठे हुए थे. दो घंटे कंटिन्युवस ड्राइव करने क बाद एक ढाबे
पर चाइ पी. अब पंकज ड्राइविंग सीट पर चला गया और विशलजी
पीछे की सीट पर आ गये. मैं सामने की सीट पर जाने के लिए
दरवाजाखोली की विशाल ने मुझे रोक दिया.
"अरे कभी हुमारे साथ भी बैठ लो खा तो नही जौंगा तुम्हे."
विशाल ने कहा.
"हाँ बैठ जाओ उनके साथ सर्दी बहुत है बाहर. आज अभी तक गले
के अंदर एक भी घूँट नही गयी है इसलिए ठंड से काँप रहे
हैं.तुमसे सॅट कर बैठेंगे तो उनका बदन भी गर्म हो जाएगा." दीदी ने
हंसते हुए कहा.
"अच्च्छा? लगता है दीदी अब तुम उन्हे और गर्म नही कर पाती हो."
पंकज ने नीतू दीदी को छेड़ते हुए कहा.
हम लोग बातें करते मज़ाक करते चले जा
रहे थे. तभी बात करते करते विशाल ने अपना हाथ मेरी जाँघ पर
रख दिया. जिसे मैने धीरे से पकड़ कर नीचे कर दिया. ठंड
बढ़ गयी थी. पंकज ने एक शॉल ले लिया. नीतू एक कंबल ले ली
थी. हम दोनो पीछे बैठ ठंड से काँपने लगे.
"विशाल देखो स्मृति का ठंड के मारे बुरा हाल हो रहा है. पीछे
एक कंबल रखा है उससे तुम दोनो ढक लो." नीतू दीदी ने कहा.
अब एक ही कंबल बाकी था जिस से विशाल ने हम दोनो को ढक दिया. एक
कंबल मे होने के कारण मुझे विशाल से सॅट कर बैठना पड़ा. पहले
तोथोड़ी झिझक हुई मगर बाद मे मैं उनसे एकद्ूम सॅट कर बैठ गयी.
विशालका एक हाथ अब मेरी जांघों पर घूम रहा था और सारी के ऊपर से
मेरीजांघों को सहला रहा था. अब उन्हों ने अपने हाथ को मेरे कंधे के
उपर रख कर मुझे और अपने सीने पर खींच लिया. मैं अपने हाथों
से उन्हे रोकने की हल्की सी कोशिश कर रही थी.
"क्या बात है तुम दोनो चुप क्यों हो गये. कहीं तुम्हारा नंदोई तुम्हे
मसल तो नही रहा है? सम्हल के रखना अपने उन खूबसूरत जेवरों
को मर्द पैदाइशी भूखे होते हैं इनके.' कह कर नीतू हंस पड़ी.
मैं शर्मा गयी. मैने विशाल के बदन से दूर होने की कोशिश की
तोउन्हों ने मेरे कमर को पकड़ कर और अपनी तरफ खींच लिया.
"अब तुम इतनी दूर बैठी हो तो किसी को तो तुम्हारी प्रॉक्सी देनी पड़ेगी
ना. और नंदोई के साथ रिश्ता तो वैसे ही जीजा साली जैसा होता
है.....आधी घर वाली....." विशाल ने कहा
"देखा.....देखा. .....कैसे उच्छल रहे हैं. स्मृति अब मुझे मत
कहना कि मैने तुम्हे चेताया नही. देखना इनसे दूर ही रहना. इनका
साइज़ बहुत बड़ा है." नीतू ने फिर कहा.
"क्या दीदी आप भी बस…."
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