RE: Hindi sex मैं हूँ हसीना गजब की
"यू आर वेलकम टू दिस फॅमिली" सामने से आवाज़ आई. मैने देखा
सामने एक३7 साल का बहुत ही खूबसूरत आदमी खड़ा था. मैं सीईओ मिस्टर.
राज शर्मा को देखती ही रह गयी. वो उठे और मेरे पास आकर हाथ
बढ़ाया लेकिन मैं बुत की तरह खड़ी रही. ये सभ्यता के खिलाफ था
मैं अपने बॉस का इस तरह से अपमान कर रही थी. लेकिन उन्हों ने बिना
कुच्छ कहे मुस्कुराते हुए मेरी हथेली को थाम लिया. मैं होश मे
आई. मैने तपाक से उनसे हाथ मिलाया. वो मेरे
हाथ को पकड़े हुए मुझे अपने सामने की चेर तक ले गये और चेर को
खींच कर मुझे बैठने के लिए कहा. जब तक वो घूम कर अपनी
सीट पर पहुँचे मैं तो उन के डीसेन्सी पर मर मिटी. इतना बड़ा आदमी
और इतना सोम्य व्यक्तित्व. मैं तो किसी ऐसे ही एंप्लायर के पास काम
करने का सपना इतने दीनो से संजोए थी.
खैर अगले दिन से मैं अपने काम मे जुट गयी. धीरे धीरे उनकी
अच्च्छाइयों से अवगत होती गयी. सारे ऑफीस के स्टाफ उन्हे दिल से
चाहते थे. मैं भला उनसे अलग कैसे रहती. मैने इस कंपनी मे
अपने
बॉस के बारे मे उनसे मिलने के पहले जो धारणा बनाई थी उसका उल्टा
ही
हुआ. यहाँ पर तो मैं खुद अपने बॉस पर मर मिटी, उनके एक एक काम
को
पूरे मन से कंप्लीट करना अपना धर्म मान लिया. मगर बॉस
था कि घास ही नही डालता था. यहा मैं सलवार कमीज़ पहन कर ही
आने लगी. मैने अपने कमीज़ के गले बड़े कार्वालिए जिससे उन्हे मेरे
दूधिया रंग के बूब्स देखें. बाकी सारे ऑफीस वालों के सामने तो
अपने बदन को चुनरी से ढके रखती थी. मगर उनके सामने जाने से
पहले अपनी छातियो पर से चुनरी हटा कर उसे जान बूझ कर टेबल
पर छ्चोड़ जाती थी. मैं जान बूझ कर उनके सामने झुक
कर काम करती थी जिससे मेरे ब्रा मे कसे हुए बूब्स उनकी आँखों के
सामने झूलते रहें. धीरे धीरे मैने महसूस किया कि उनकी नज़रों
मे भी परिवर्तन आने लगा है. आख़िर वो कोई साधु महात्मा तो थे
नही ( दोस्तो आप तो जानते है मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा कैसा बंदा हूँ
ये सब तो चिड़िया को जाल मे फाँसने के लिए एक चारा था ) और मैं थी भी
इतनी सुंदर की मुझ से दूर रहना एक नामुमकिन
काम था. मैं अक्सर उनसे सटने की कोशिश करने लगी. कभी कभी
मौका देख कर अपने बूब्स उनके बदन से च्छुआ देती
मैने ऑफीस का काम इतनी निपुणता से सम्हाल लिया था कि अब राजकुमार
जी ने काम की काफ़ी ज़िम्मेदारियाँ मुझे सोन्प दी थी. मेरे बिना वो बहुत
असहाय फील करते थे. इसलिए मैं कभी छुट्टी नही लेती थी.
धीरे धीरे हम काफ़ी ओपन हो गये. फ्री टाइम मे मैं उनके कॅबिन मे
जाकर उनसे बातें करती रहती. उनकी नज़र बातें करते हुए कभी
मेरे
चेहरे से फिसल कर नीचे जाती तो मेरे निपल्स बुलेट्स की तरह तन
कर खड़े हो जाते. मैं अपने उभारों को थोडा और तान लेती थी.
उनमे गुरूर बिल्कुल भी नही था. मैं
रोज घर से उनके लिए कुच्छ ना कुच्छ नाश्ते मे बनाकर लाती थी हम
दोनो साथ बैठ कर नाश्ता करते थे. मैं यहाँ भी कुच्छ महीने
बाद स्कर्ट ब्लाउस मे आने लगी. जिस दिन पहली बार स्कर्ट ब्लाउस मे
आई, मैने उनकी आँखो मे मेरे लिए एक प्रशंसा की चमक देखी.
मैने बात को आगे बढ़ाने की सोच ली. कई बार काम का बोझ ज़्यादा
होता तो मैं उन्हे बातों बातों मे कहती, "सर अगर आप कहें तो फाइल
आपके घर ले आती हूँ छुट्टी के दिन या ऑफीस टाइम के बाद रुक जाती
हूँ. मगर उनका जवाब दूसरों से बिल्कुल उल्टा रहता.
वो कहते "स्मृति मैं अपनी टेन्षन घर लेजाना
पसंद नही करता और चाहता हूँ की तुम भी छुट्टी के बाद अपनी
लाइफ एंजाय करो. अपने घर वालो के साथ अपने बाय्फरेंड्स के साथ
शाम एंजाय करो. क्यों कोई है क्या?" उन्हों ने मुझे छेड़ा.
"आप जैसा हॅंडसम और शरीफ लड़का जिस दिन मुझे मिल जाएगा उसे
अपना बॉय फ्रेंड बना लूँगी. आप तो कभी मेरे साथ घूमने जाते
नहीं हैं." उन्हों ने तुरंत बात का टॉपिक बदल दिया.
अब मैं अक्सर उन्हे छूने लगी. एक बार उन्हों ने सिरदर्द की शिकायत
की. मुझे कोई टॅबलेट ले कर आने को कहा.
" सर, मैं सिर दबा देती हूँ. दवाई मत लीजिए." कहकर मैं उनकी
चेर के पीछे आई और उनके सिर को अपने हाथों मे लेकर दबाने
लगी. मेरी उंगलिया उनके बलों मे घूम रही थी. मैं अपनी उंगलियों
से उनके सिर को दबाने लगी. कुच्छ ही देर मे आराम मिला तो उनकी आँखें
अपने आप मूंडने लगी. मैने उनके सिर को अपने बदन से सटा दिया.
अपने दोनो चुचियो के बीच उनके सिर को दाब कर उनके सिर को दबाने लगी.
मेरे दोनो उरोज उनके सिर के भार से दब रहे थे. उन्हों ने भी
शायद इसे महसूस किया होगा मगर कुच्छ कहा नही. मेरे दोनो उरोज सख़्त हो
गये और निपल्स तन गये. मेरे गाल शर्म से लाल हो गये थे.
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