RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
मुन्ना का दस इंच लंबा लंड देख कर बसंती एकदम सिहर गई. मगर लाजवंती ने लपक कर अपने हाथो में थाम लिया और मसल्ने लगी. मुन्ना मसनद के सहारे बैठ ता हुआ बोला "रानी ज़रा चूसो…". लाजवंती बैठ कर सुपरे की चमड़ी हटा जीभ फिराती हुई बोली "मालिक बसंती ऐसे ही खड़ी रहेगी क्या…."
"आरे मैने कब कहा खड़ी रहने को…बैठ जाए…."
"ऐसी क्या बेरूख़ी मलिक……बेचारी को अपने पास बुला लो ना…." पूरे लंड को अपने मुँह में ले चूस्ते हुए बोली.
" बहुत अच्छा भौजी……अच्छे से चूसो…..मैं कहा बेरूख़ी दिखा रहा हू वो तो खुद ही दूर खड़ी है….."
"है मलिक जब से आई है आपने कुच्छ बोला नही है……बसंती आ जा…..अपने छ्होटे मालिक बहुत अच्छे है…..शहर से पढ़ लिख कर आए है…गाओं के गँवारो से तो लाख दर्जा अच्छे है……" बसंती थोडा सा हिचकी तो लंड छोड़ कर लाजवंती उठी और हाथ पकड़ बेड पर खींच लिया. मुन्ना ने एक और मसनद लगा उसको थप थपाते हुए इशारा किया. बसंती शरमाते हुए मुन्ना की बगल में बैठ गई. लाजवंती ने मुन्ना का लंड पकड़ हिलाते हुए दिखाया "देख कितना अच्छा है अपने छ्होटे मलिक का….एकदम घोड़े के जैसा है….ऐसा पूरे गाओं में किसी का नही…". और फिर से चूसने लगी. झुके पॅल्को के नीचे से बसंती ने मुन्ना का हलब्बी लंड देखा दिल में एक अजीब सी कसक उठी. हाथ उसे पकड़ने को ललचाए मगर शर्मो हया का दामन नही छोड़ पाई. मुन्ना ने बसंती की कमर में हाथ डाल अपनी तरफ खींचा "शरमाती क्यों है आराम से बैठ…….आज तो बड़ी सुंदर लग रही है…..खेत में तो तुझे अपना लंड दिखाया था ना….तो फिर क्यों शर्मा रही है." बसंती ने शर्मा कर गर्दन झुका ली. उस दिन के मुन्ना और आज के मुन्ना में उसे ज़मीन आसमान का अंतर नज़र आया. उस दिन मुन्ना उसके सामने गिडगीडा रहा था उसको लहंगे का तोहफा दे कर ललचाने की कोशिश कर रहा था और आज का मुन्ना अपने पूरे रुआब में था वो इसलिए क्योंकि आज वो खुद उसके दरवाजे तक चल कर आई थी.
"हाई मलिक…मैने आज तक कभी….."
"आरे तेरी तो शादी हो गई है दो महीने बाद गौना हो कर जाएगी तो फिर तेरा पति तो दिखाएगा ही…"
"धात मलिक……."
"तेरा लहनगा भी लाया हू…लेती जाना…..सुहागरात के दिन पहन ना…" कह कर अपने पास खींच उसकी एक चुचि को हल्के से पकड़ा. बसंती शर्मा कर और सिमट गई. मुन्ना ने ठोडी से पकड़ उसका चेहरा उपर उठा ते हुए कहा "एक चुम्मा दे….बड़ी नशीली लग रही है" और उसके होंठो से अपने होंठ सटा कर चूसने लगा. बसंती की आँखे मूंद गई. मुन्ना ने उसके होंठो को चूस्ते हुए उसकी चुचि को पकड़ लिया और खूब ज़ोर ज़ोर से दबाते हुए उसकी चोली में हाथ घुसा दिया. बसंती एक दम से छटपटा गई.
"उईईईईई मलिक सीई…" मुन्ना ने धीरे से उसकी चोली के बटन खोलने की कोशिश की तो बसंती ने शर्मा कर मुन्ना का हाथ हल्के से हटा दिया. लाजवंती लंड को पूरा मुँह में ले चूस रही थी. उसकी लटकती हुई चुचि को पकड़ दबाते हुए मुन्ना बोला "देखो भौजी कैसे शर्मा रही है….पहले तो चुप चाप वाहा खड़ी रही अब कुच्छ करने नही दे रही……" लाजवंती लंड पर से मुँह हटा बसंती की ओर खिसकी और उसके गालो को चुटकी में मसल बोली "हाई मलिक पहली बार है बेचारी का शर्मा रही है…लाओ मैं खोल देती हू…"
"मेरे हाथो में क्या बुराई है…"
"मलिक बुराई आपके हाथो में नही लंड में है….देख कर डर गई है" फिर धीरे से बसंती की चोली खोल अंगिया निकाल दी. बसंती और उसकी भौजी दोनो गेहूए (वीटिश) रंग की थी. मतलब बहुत गोरी तो नही थी मगर काली भी नही थी. बसंती की दोनो चुचियाँ छोटी मुट्ठी में आ जाने लायक थी. निपल गुलाबी और छ्होटे-छ्होटे. एक दम अनटच चुचि थी. कठोर और नुकीली. मुन्ना ने एक चुचि को हल्के से थाम लिया.
"हाई क्या चुचि है…मुँह में डाल कर पीने लायक…" और दूसरी चुचि पर अपना मुँह लगा जीभ निकाल कर निपल को छेड़ते हुए चारो तरफ घुमाने लगा. बसंती सिहर उठी. पहली बार जो था. सिसकते हुए मुँह से निकला " भाभी….." लाजवंती ने उसका हाथ पकड़ कर मुन्ना के लंड पर रख दिया और उसके होंठो को चूम बोली "पकड़ के तू भी मसल छ्होटे मलिक तो अपने खिलोने से खेल रहे है….ये हम लोगो का खिलोना है" मुन्ना दोनो चुचियों को बारी बारी से चूसने लगा. बड़ा मज़ा आ रहा था उसको. कुच्छ देर बाद उसने बसंती को अपनी गोद में खींच लिया और अपने लंड पर उसको बैठा लिया "आओ रानी तुझे झूला झूला दू…..शर्मा मत…शरमाएगी तो सारा मज़ा तेरी भाभी लूट लेगी" मुन्ना का खड़ा लंड उसकी गांद में चुभने लगा. ठीक गांद की दरार के बीच में लंड लगा कर दोनो चुचि मसल्ते हुए गाल और गर्दन को चूमने लगा. तभी लाजवंती ने मुन्ना का हाथ पकड़ अपनी ढीली चुचि पर रखते हुए कहा "हाई मलिक कोरा माल मिलते ही मुझे भूल गये"
"तुझे कैसे भूल जाउन्गा छिनाल…चल आ अपनी चुचि पीला मैं तब तक इसकी दबाता हू"
"हाई मलिक पीजिए……अपनी इस छिनाल भौजी की चुचि को….ओह हो सस्ससे…" मुन्ना तो जन्नत में था दोनो हाथ में दो अछूती चुचि लंड के उपर अनचुड़ी लौंडिया अपना गांद ले कर बैठी हुई थी और मुँह में खुद से चुचि थेल थेल कर पिलाती रंडी. दो चुचियों को मसल मसल कर और दो को चूस चूस कर लाल कर दिया. चुचि चुस्वा कर लाजवंती एकद्ूम गरम हो गई अपने हाथ से अपनी चूत को रगड़ने लगी. मुन्ना ने देखा तो मुस्कुरा दिया और बसंती को दिखाते हुए बोला "देख तेरी भौजी कैसे गरमा गई है… हाथी का भी लंड लील जाएगी." देख कर बसंती शर्मा कर "धात मलिक.....आपका तो खुद घोड़े जैसा…" इतनी देर में वो भी थोड़ा बहुत खुल चुकी थी.
"अच्छा है ना ?"
"धात मलिक….. आपका बहुत मोटा.."
"मोटे और लंब लंड से ही मज़ा आता है…..क्यों भौजी"
"हा छ्होटे मलिक आपका तो बड़ा मस्त लंड है…मेरे जैसी चुदी हुई में भी…..बसंती को भी चुस्वओ मालिक" एक हाथ से बसंती की चुचि को मसल्ते हुए दूसरे से बसंती का लहनगा उठा उसकी नंगी जाँघो पर हाथ फेरते हुए मुन्ना ने पुचछा "चुसेगी….अच्छा लगेगा…..तेरी भौजी तो इसकी दीवानी है..".
"धात मलिक…..भौजी को इसकी आदत है…"
"शरमाना छोड़…..देख मैं तेरी चुचि दबाता हू तो मज़ा आता है ना.."
"हाँ मलिक……अच्छा लगता है"
"और तेरी चुचि दबाने में मुझे भी मज़ा आता है…वैसे ही लंड चुसेगी तो…."
"हाई मलिक भौजी से चुस्वओ…"
"भौजी तो चुस्ती है….तू भी इसका स्वाद ले….शरमाएगी तो फिर….भौजी छोड़ो इसको तुम ही आ जाओ ये बहुत शर्मा रही है…"कह कर मुन्ना ने अपने हाथ बसंती के बदन पर से हटा लिए और उसको अपनी गोद से हल्के से नीचे उतार दिया. बसंती जो अब तक मज़े के लहर में डूबी हुई थी जब उसका मज़ा थोड़ा हल्का हुआ तो होश आया. तब तक लाजवंती फिर से अपने छ्होटे मालिक का लंड अपने मुँह में ले चुचि मीसवाति हुई मज़ा लूट रही थी. बसंती अपनी ललचाई आँखो से उसको देखने लगी. उसका मन कर रहा था की फिर से जा कर मुन्ना की गोद में बैठ जाए और कहे " मालिक चुचि दबाओ…..आप जो कहोगे मैं करूँगी…". पर चुप चाप वही बैठी रही. लाजवंती ने लंड को मुँह से निकाल हिलाते हुए उसको दिखाया और बोली "तेरी तो किस्मत ही फूटी है…वही बैठी रह और देख-देख कर ललचा…".
"धात भाभी मेरे से नही…."
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