Sex Hindi Kahani अधूरी जवानी बेदर्द कहानी
06-22-2017, 10:40 AM,
#3
RE: Sex Hindi Kahani अधूरी जवानी बेदर्द कहानी
मैंने उनके हाथ झटके और खड़ी हो गई। वो डर गए। मैंने टीवी बंद किया और
माँ के पास जाकर सो गई।
सुबह चाय देने गई तो वो नज़रें चुरा रहे थे। मैंने भी मजाक समझा और इस बात
को भूल गई। फिर जिंदगी पहले जैसी हो गई। फिर मैं वापिस गाँव गई, मेरे पति
आये हुए थे।
अब स्कूल में तो जगह खाली नहीं थी पर मैं एम ए कर रही थी और गाँव में
मेरे जितना पढ़ा-लिखा कोई और नहीं था, सरपंच जी ने मुझे आँगन बाड़ी में लगा
दिया, साथ ही अस्पताल में आशा सहयोगिनी का काम भी दे दिया।
फिर एक बार तहसील मुख्यालय पर हमारे प्रशिक्षण में एक अधिकारी आये,
उन्होंने मुझे शाम को मंदिर में देखा था, और मुझ पर फ़िदा हो गए।
मैंने उनको नहीं देखा !
फिर उनका एक दिन फोन आया, मैंने पूछा- कौन हो तुम?
उन्होंने कहा- मैं उपखंड अधिकारी हूँ, आपके प्रशिक्षण में आया था !

मैंने कहा- मेरा नंबर कहाँ से मिला?
उन्होंने कहा- रजिस्टर में नाम और नंबर दोनों मिल गए !
मैंने पूछा- काम बोलो !
उन्होंने कहा- ऐसे ही याद आ गई !
मैंने सोचा कैसा बेवकूक है !
खैर फिर कभी कभी उनका फोन आता रहता ! फिर मेरा बी.एड. में नंबर आ गया और
मैंने वो नौकरी भी छोड़ दी। फिर उनका तबादला भी हो गया, कभी कभी फोन आता
लेकिन कभी गलत बात उन्होंने नहीं की।
एक बार बी.एड. करते मैं कॉलेज की तरफ से घूमने अभ्यारण गई तब उनका फोन
आया। मैंने कहा- भरतपुर घूमने आए हैं।
तो वो बड़े खुश हुए, उन्होंने कहा- मैं अभी भरतपुर में ही एस डी एम लगा
हुआ हूँ, मैं अभी तुमसे मिलने आ सकता हूँ क्या?
मैंने मना कर दिया, मेरे साथ काफी लड़कियाँ और टीचर थी, मैं किसी को बातें
बनाने का अवसर नहीं देना चाहती थी और वो मन मसोस कर रह गए !
फिर काफ़ी समय बाद उनका फोन आया और उन्होंने कहा- आप जयपुर आ जाओ, मैं
यहाँ उपनिदेशक लगा हुआ हूँ, यहाँ एन जी ओ की तरफ से सविंदा पर लगा देता
हूँ, दस हज़ार रुपए महीना है।
मैंने मना कर दिया। वे बार बार कहते कि एक बार आकर देख लो, तुम्हें कुछ
नहीं करना है, कभी कभी ऑफिस में आना है।

मैंने कहा- सोचूँगी !
फिर बार बार कहने पर मैंने अपनी डिग्रियों की नकल डाक से भेज दी।
फिर उनका फोन आया- आज कलेक्टर के पास इंटरव्यू है !
मैं नहीं गई।
उन्होंने कहा- मैंने तुम्हारी जगह एक टीचर को भेज दिया है, तुम्हारा नाम
फ़ाइनल हो गया है, किसी को लेकर आ जाओ।
मैं मेरे पति को लेकर जयपुर गई उनके ऑफिस में ! वो बहुत खुश हुए, हमारे
रहने का इंतजाम एक होटल में किया, शाम का खाना हमारे साथ खाया।
मेरे पति ने कहा- तुम यह नौकरी कर लो !
दो दिन बाद हम वापिस आ गए। साहब ने कहा था कि अपने बिस्तर वगैरह ले आना,
तब तक मैं तुम्हारे लिए किराये का कमरे का इंतजाम कर लूँगा।
10-12 दिनों के बाद मेरे पति चेन्नई चले गए और मैं अपने पापा के साथ
जयपुर आ गई। साहब से मिलकर में पापा ने भी नौकरी करने की सहमति दे दी।
मैं मेरे किराये के कमरे में रही, एक रिटायर आदमी के घर के अन्दर था कमरा
जिसमें वो, उसके दो बेटे-बहुएँ, पोते-पोतियों के साथ रहता था। मकान में 5
कमरे थे जिसमें एक मुझे दे दिया गया। बुजुर्ग व्यक्ति बिल्कुल मेरे पापा
की तरह मेरा ध्यान रखते थे।
मैं वहाँ नौकरी करने लगी। कभी-कभी ऑफिस जाना और कमरे पर आराम करना, गाँव
जाना तो दस दस दिन वापिस ना आना !
साहब ने कह दिया कि तनख्वाह बनने में समय लगेगा, पैसे चाहो तो उस एन जी ओ
से ले लेना, मेरे दिए हुए हैं।
मैंने 2-3 बार उससे 3-3 हजार रूपये लिए। साहब सिर्फ फोन से ही बात करते,
मीटिंग में कभी सामने आते तो मेरी तरफ देखते ही नहीं। फिर मेरा डर दूर हो
गया कि साहब कुछ गड़बड़ करेंगे। वो बहुत डरपोक आदमी थे, वो शायद सोचते कि
मैं पहल करुँगी और मेरे बारे में तो आप जानते ही हैं !
फिर मैंने कई बार जीजा जी से बात की, उन्हें उलाहना दिया कि मैं यहाँ
नौकरी कर रही हूँ और आप आकर एक बार भी मिले ही नहीं।

तो जीजा आजकल, आजकल आने का कहते रहे, टालते रहे।
मैंने कहा- घूमने ही आ जाओ दीदी को लेकर !
दीदी को कहा तो दीदी ने कहा- बच्चे स्कूल जाते हैं, मैं तो नहीं आ सकती,
इनको भेज रही हूँ !
एक दिन जीजा ने कहा- मैं आ रहा हूँ !
मैंने उस होटल वाले को कमरा खाली रखने का कह दिया जहाँ मैं और मेरे पति
साहब के कहने पर रुके थे क्यूंकि मेरा कमरा छोटा था। वो होटल वाला साहब
का खास था, उसने हमसे किराया भी नहीं लिया था।
और अब भी उसने यही कहा- आपके जीजा जी से भी कोई किराया नहीं लूँगा ! उनके
लिए ए.सी. रूम खाली रख दूँगा।
उसके होटल 2-3 ए.सी. रूम थे।

मैंने कहा- ठीक है !
जीजा जी आए मेरे कमरे पर, दोपहर हो रही थी, खाना मैंने बना रखा था, खाना
खाकर हए एक ही बिस्तर पर एक दूसरे की तरफ़ पैर करके लेट गए।
शाम हुई तो हम घूमने के लिए निकले।
मैंने कहा- साहब के पहचान वाले के होटल चलते हैं, घूमने के लिए बाइक ले लेते हैं।
उसको साहब का कहा हुआ था, उसके लिए तो मैं ही साहब थी, मेरे रिश्तेदार
आएँ तो भी उसको सेवा करनी ही थी होटल में ठहराने से लेकर खाना खिलाने की
भी !
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