Sex Hindi Kahani अधूरी जवानी बेदर्द कहानी
06-22-2017, 10:40 AM,
#1
Sex Hindi Kahani अधूरी जवानी बेदर्द कहानी
अधूरी जवानी बेदर्द कहानी

अधूरी जवानी बेदर्द कहानी--1
मैं अजमेर की रहने वाली 30 साल की शादीशुदा औरत हूँ। हम ३ बहनें हैं, मैं
सबसे छोटी हूँ, मेरी शादी बचपन में मेरी बहनों के साथ ही हो गई थी जब मैं
शादी का मतलब ही नहीं जानती थी। मेरी बड़ी बहन ही बालिग थी, बाकी हम दो
बहनों के लिए तो शादी एक खेल ही था।
उस वक्त हम दोनों बहनों की सिर्फ शादी हुई थी जबकि बड़ी बहन का गौना भी
साथ ही हुआ था, वो तो ससुराल आने जाने लग गई, हम दोनों एक बार जाकर फिर
पढ़ने जाने लगी। हमें तब तक किसी बात का कोई पता नहीं था, जीजाजी जीजी के
साथ आते तो हम बहुत खुश होती, हंसी-मजाक करती, मेरी माँ कभी कभी चिढ़ती और
कहती- अब तुम बड़ी हो रही हो, कोई बच्ची नहीं हो जो अपने जीजा जी से इतनी
मजाक करो !
पर मैं ध्यान नहीं देती थी।
कुछ समय बाद मेरे ससुराल से समाचार आने लग गए कि इसको ससुराल भेजो, इसका गौना करो।
और मैं मासूम नादान सी ससुराल चली गई। उस वक्त मुझे साड़ी पहनना भी नहीं
आता था, हम राजस्थान में ओढ़नी और कुर्ती, कांचली, घाघरा पहनते हैं, में
भी ये कपड़े पहन कर चली गई जो मेरे दुबले पतले शरीर पर काफी ढीले-ढाले थे।
मुझे सेक्स की कोई जानकारी नहीं थी, हमारा परिवार ऐसा है कि इसमें ऐसी
बात ही नहीं करते हैं, न मेरी बड़ी बहन ने कुछ बताया, ना ही मेरी माँ ने
!
बाद में मुझे पता चला कि मेरी सास ने जल्दी इसलिए की कि मैं पढ़ रही थी,
उसका बेटा कम पढ़ा था, वो सोच रही थी कि इसे जल्दी ससुराल बुला लें, नहीं
तो यह इसे छोड़ कर किसी दूसरे पढ़े लिखे के साथ चली जाएगी। जबकि हमारे
परिवार के संस्कार ऐसे नहीं थे, मुझे तो कुछ पता भी नहीं था। शादी के कई
साल बाद मैंने पति को तब देखा जब वो गौना लेने आया। मुझे देख कर वो
मुस्करा रहा था, मैंने भी चोर नजरों से उसे देखा, मोटा सा, काला सा,
ठिगना, कुछ पेट बढ़ा हुआ !
मेरे पति थोड़े ठिगने हैं करीब 5'4" के, मैं भी इतनी ही लम्बी हूँ। मेरे
पति चेन्नई में काम करते हैं, 6-7 पढ़े हुए हैं जबकि में ऍम.ए. किए हूँ।
वैसे मैं बहुत दुबली-पतली हूँ, मेरा चेहरा और बदन करीना कपूर से
मिलता-जुलता है, मेरा बोलने-चलने का अंदाज़ भी करीना जैसा है इसलिए मुझे
कोई करीना कहता है तो मुझे ख़ुशी होती है। मैं अपनी सुन्दरता देख इठला
उठी। जब मैं घर में उसके सामने से निकलती कुछ घूंघट किये हुए तो वो खींसे
निपोर देता ! मुझे ख़ुशी होती कि मैं सुन्दर हूँ। इसका मुझे अभिमान हो
गया और मैं उसके साथ गाड़ी में अपनी ससुराल चल दी। गाड़ी में उसके साथ उसके
और परिवार वाले भी थे, हम शाम को गाँव में पहुँच गए।
गाँव पहुँचने के बाद मैंने देखा कि मेरी ससुराल वालों का घर कच्चा ही था,
एक तरफ कच्चा कमरा, एक तरफ कच्ची रसोई और बरामदा टिन का, बाकी मैदान में
!
मेरे पति 5 भाइयों में सबसे छोटे थे जो अपने एक भाई-भाभी और माँ के साथ
रहते थे, ससुर जी का पहले ही देहांत हो गया था !
वहाँ जाते ही मेरी सास और बड़ी ननद ने मेरा स्वागत किया, मुझे खाना
खिलाया। घर मेहमानों से भरा था, भारी भरकम कपड़े और गहने पहने हुई थी,
मैंने पहली बार घूंघट निकाला था, मैं परेशान थी।
मेरी ननद मुझे कमरे में ले गई जिसमें कच्ची जमीन पर ही बिस्तर बिछाये हुए
थे, उसने मुझे कहा- कमला, ये भारी साड़ी जेवर आदि उतार कर हल्के कपड़े पहन
ले, अब हम सोयेंगे !
मैंने अपने कपड़े उतार कर माँ का दिया हुआ घाघरा-कुर्ती ओढ़नी पहन ली, मेरे
स्तन बहुत छोटे थे इसलिए चोली मैं पहनती नहीं थी। गर्मी थी तो चड्डी भी
नहीं पहनी और अपनी ननद के साथ सो गई आने वाले खतरे से अनजान !
मैं सोई हुई थी, अचानक आधी रात को असहनीय दर्द से मेरी नींद खुल गई और
मैं चिल्ला पड़ी। चिमनी की मंद रोशनी में मैंने देखा कि मेरी ननद गायब है
और मेरे पति मेरी छोटी सी चूत में जिसमें मैंने कभी एक उंगली भी नहीं
घुसाई थी, अपना मोटा और लम्बा लण्ड डाल रहे थे और सुपारा तो उन्होंने
मेरी चूत में फंसा दिया था। घाघरा मेरी कमर पर था, बाकी कपड़े पहने हुए थे
और वो गाँव का गंवार जिसने न तो मुझे जगाया न मुझे सेक्स के लिए शारीरिक
और मानसिक रूप से तैयार किया, नींद में मेरा घाघरा उठाया, थूक लगाया और
लण्ड डालने के लिए जबरदस्त धक्का लगा दिया।
मेरी आँखों से आँसू आ रहे थे और मैं जिबह होते बकरे की तरह चिल्ला उठी !
मेरी चीख उस कमरे से बाहर घर में गूंज गई।
बाहर से मेरी सास की गरजती आवाज आई, वो मेरे पति को डांट रही थी कि छोटी
है, इसे परेशान मत कर, मान जा !
मेरे पति मेरी चीख के साथ ही कूद कर एक तरफ हो गए तब मुझे उनका मोटे केले
जितना लण्ड दिखा। मैंने कभी बड़े आदमी लण्ड नहीं देखा था, छोटे बच्चों की
नुनिया ही देखी थी इसलिए मुझे वो डरावना लगा।
उन्होंने अन्दर से माँ को कहा- अब कुछ नहीं करूँगा ! तू सो जा !
फिर उन्होंने मेरे आंसू पोंछे !
मेरी टाँगें सुन्न हो रही थी, मैं घबरा रही थी। थोड़ी देर वो चुपचाप लेटे,
फिर मेरे पास सरक गए, उन्होंने कहा- मैंने गाँव की बहुत लड़कियों के साथ
सेक्स किया है, वो तो नहीं चिल्लाती थी?
उन्हें क्या पता कि एक चालू लड़की में और अनजान मासूम अक्षतयौवना लड़की में
क्या अंतर होता है !
थोड़ी देर में उन्होंने फिर मेरा घाघरा उठाना शुरू किया, मैंने अपने दुबले
पतले हाथों से रोकना चाहा मगर उन्होंने अपने मोटे हाथ से मेरी दोनों
कलाइयाँ पकड़ कर सर के ऊपर कर दी, अपनी भारी टांगों से मेरी टांगें चौड़ी
कर दी, फिर से ढेर सारा थूक अपने लिंग के सुपारे पर लगाया, कुछ मेरी चूत
पर !
मैं कसमसा रही थी, उन्हें धक्का देने की कोशिश कर रही थी पर मेरी दुबली
पतली काया उनके भैंसे जैसे शरीर के नीचे दबी थी। मैंने चिल्ला कर अपनी
सास को आवाज देनी चाही तो उसी वक्त उन्होंने मेरे हाथ छोड़ कर मेरा मुँह
अपनी हथेली से दबा दिया।
मैं गूं गूं ही कर सकी। मेरे हाथ काफी देर ऊपर रखने से दुःख रहे थे।
मैंने हाथों से उन्हें धकेलने की नाकाम कोशिश की। उनके बोझ से मैं दब रही
थी। मेरा वजन उस वक्त 38-40 किलो था और वे 65-70 किलो के !
अब उन्होंने आराम से टटोल कर मेरी चूत का छेद खोजा जिसे उन्होंने कुछ
चौड़ा कर दिया था, अपने गीले लिंग का सुपारा मेरी छोटी सी चूत के छेद पर
टिकाया और हाथ के सहारे से अन्दर ठेलने लगे। 2-3 बार वो नीचे फिसल गया,
फिर थोड़ा सा मेरी चूत में अटक गया।
मुझे बहुत दर्द हो रहा था जैसे को लोहे की छड़ डाली जा रही हो, जिस छेद को
मैंने आज तक अपनी अंगुली नहीं चुभाई थी, उसमें वो भारी भरकम लण्ड डाल रहा
था।
मेरे आँसुओं से उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वो पूरी बेदर्दी दिखा रहा
था और मुस्कुरा था कि उसे सील बंद माल मिला जिसकी सील वो तोड़ रहा था !
मेरी दोनों टांगों को वो अपने पैरों के अंगूठों से दबाये हुए था, मेरे
ऊपर वो था, उसके लिंग का सुपारा मेरी चूत में फंसा हुआ था। अब उसने एक
हाथ को तो मेरे मुंह पर रहने दिया दूसरे हाथ से मेरे कंधे पकड़े और जोर का
धक्का लगाया, लण्ड दो इंच और अन्दर सरक गया, मेरी सांस रुकने लगी, मेरी
आँखें फ़ैल गई।
फिर उसने लण्ड थोड़ा बाहर खींचा, मैं भी लण्ड के साथ उठ गई। उसने जोर से
कंधे को दबाया और जोर से ठाप मारी, मैं दर्द के समुन्दर में डूबती चली
गई। आधे से ज्यादा लण्ड मेरी संकरी चूत में फंसा हुआ था, मेरी चूत से खून
आ रहा था पर उन्हें दया नहीं आई,
वो और मैं पसीने-पसीने थे, मुँह से हाथ उन्होंने उठाया नहीं था और फिर
उन्होंने आखिरी धक्का मारा और उनका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस चुका था,
उनका सुपारा मेरी बच्चेदानी पर ठोकर मार रहा था।
मैं बेहोश हो गई पर दर्द की वजह से वापिस होश आ गया। मैं रो रही थी, सिसक
रही थी, मेरा चेहरा आँसुओं से तर था पर दनादन धक्के लग रहे थे, मेरे
चेहरे से हाथ हटा लिया गया था, मेरे कंधे तो कभी कमर पकड़ कर वे बुरी तरह
से मुझे चोद रहे थे।
15-20 मिनट तक उन्होंने धक्के लगाये, मेरी चूत चरमरा उठी, हड्डियाँ कड़कड़ा
उठी, मुझे बिल्कुल आनन्द नहीं आया था और वे मेरी चूत में ढेर सारा वीर्य
डालते हुए ढेर हो गए और भैंसे की तरह हांफने लगे।
मैं रो रही थी, सिसकियाँ भर रही थी, मेरी चूत से खून और वीर्य मेरी
जांघों से नीचे बह रहा था।
थोड़ी देर में सुबह हो गई, मेरे पति बाहर चले गए, मेरी ननद आई, उसने मेरी
टांगें पौंछी, मेरे कपड़े सही किये, मुझे खड़ा किया। मैं लड़खड़ा रही थी, वो
हाथों का सहारा देकर मुझे पेशाब कराने ले गई।
मुझे तेज जलन हुई, मैंने रोते-रोते कहा- मुझे मेरे गाँव जाना है !
मेरी सास ने बहुत मनाया पर मैं रोती रही, चाय नाश्ता भी नहीं किया। आखिर
उन्होंने एस.टी.डी. से मेरे घर फ़ोन किया। एक-डेढ़ घंटे बाद मुझे मेरे भाई
और छोटे वाले जीजाजी लेने आ गए और मैं अपनी सूजी हुई चूत लेकर अपने मायके
रवाना हो गई वापिस कभी न आने की सोच लेकर !
मैंने दसवीं की परीक्षा दी और गर्मियों की छुट्टियों में फिर ससुराल जाना
पड़ा। इस बार मेरे पति स्वाभाव कुछ बदला हुआ था, वो इतने बेदर्दी से पेश
नहीं आये, शायद उन्हें यह पता चल गया कि यह मेरी ही पत्नी रहेगी।
मैं इस बार 4-5 दिन ससुराल में रुकी थी पर वे जब भी चोदते, मेरी हालत
ख़राब हो जाती। पहली चुदाई में ही चूत में सूजन आ गई, बहुत ही ज्यादा
दर्द होता, मुझे बिल्कुल आनन्द नहीं आता।
वो रात में 7-8 बार मुझे चोदते पर उनकी चुदाई का समय 5-7 मिनट रहता। रात
भर सोने नहीं देते, वो मुझे कहते- मैंने बहुत सारी लड़कियों से सेक्स
किया है, उन्हें मज़ा आता है, तुम्हें क्यों नहीं आता?
मैं मन ही मन में डर गई कि कहीं मुझे कोई बीमारी तो नहीं है? कहीं मैं
पूर्ण रूप से औरत हूँ भी या नहीं?
अब मैं किससे पूछती? मेरी सारी सहेलियाँ तो कुंवारी थी।
फिर मैं वापिस पीहर आ गई, पढ़ने लगी। मेरा काम यही था, गर्मी की छुट्टियों
में ससुराल जाकर चुदना और फिर वापिस आकर पढ़ना। मेरे पति भी चेन्नई
फेक्टरी में काम पर चले जाते, छुट्टियों में आ जाते।
अब मैं कॉलेज में प्राइवेट पढ़ने लग गई, तब मुझे पता चला कि मुझे आनन्द
क्यूँ नहीं आता है।
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