RE: Antarvasnasex ट्यूशन का मजा
मैं क्या कहता, चुप रहा. "क्यों री लीना? मेरे करने से मजा आ रहा है? पहले तो मुझे चूमने से भी मना कर रही थीं. अब क्या सर अच्छे लगने लगे? बोलो.. बोलो" चौधरी सर ने पूछा.
लीना ने आखिर लाल हुए चेहरे को उठा कर उनकी ओर देखते हुए कहा. "हां सर आप बहुत अच्छे लगते हैं, जब ऐसा करते हैं, कैसा तो भी लगता है" मैंने भी हां में हां मिलाई. "हां सर, बहुत अच्छा लग रहा है, ऐसा कभी नहीं लगा, अकेले में भी"
"अच्छा, अब ये बताओ कि मैं सिर्फ़ अच्छा करता हूं इसलिये मजा आ रहा है या अच्छा भी लगता हूं तुम दोनों को?" चौधरी सर अब मूड में आ गये थे. मैंने देखा कि उनकी पैंट में तंबू सा तन गया था. अपना हाथ उन्होंने अब दीदी की पैंटी के अंदर डाल दिया था. शायद उंगली से वे अब दीदी की चूत की लकीर को रगड़ रहे थे क्योंकि अचानक दीदी सिसक कर उनसे लिपट गयी और फ़िर से उन्हें चूमने लगी "ओह सर बहुत अच्छा लगता है, आप बहुत अच्छे हैं सर"
"अच्छा हूं याने? अच्छे दिल का हूं कि दिखने में भी अच्छा लगता हूं तुम दोनों को" चौधरी सर ने फ़िर पूछा. दीदी का चुम्मा खतम होते ही उन्होंने मेरी ओर सिर किया और मेरा गाल चूम लिया. "क्यों रे अनिल? तू बता, वैसे तुम और तेरी बहन भी देखने में अच्छे खासे चिकने हो"
मैं अब बहुत मस्त हो गया था. सर से चिपट कर बैठने में अब अटपटा नहीं लग रहा था. मेरा ध्यान बार बार उनके तंबू की ओर जा रहा था. अनजाने में मैं धीरे धीरे अपने चूतड़ ऊपर नीचे करके सर की हथेली में मेरे लंड को पेलने लगा था. अपने लंड को ऊपर करते हुए मैं बोला "आप बहुत हैंडसम हैं सर, सच में, हमें बहुत अच्छे लगते हैं. दीदी अभी शरमा रही है पर मुझसे कितनी बार बोली है कि अनिल, चौधरी सर कितने हैंडसम हैं. कल सर जब आप ने इसके बाल सहलाये थे और गालों को हाथ लगाया था तो दीदी को बहुत अच्छा लगा था"
"तेरी दीदी भी बड़ी प्यारी है." सर ने दो तीन मिनिट और दीदी की पैंटी में हाथ डालकर उंगली की और फ़िर हाथ निकालकर देखा. उंगली गीली हो गयी थी. सर ने उसे चाट लिया. "अच्छा स्वाद है लीना, शहद जैसा" लीना आंखें बड़ी करके देख रही थी, शर्म से उसने सिर झुका लिया. "अरे शरमा क्यों रही है, सच कह रहा हूं. एकदम मीठी छुरी है तू लीना, रस से भरी गुड़िया है"
चौधरी सर उठ कर खड़े हो गये. "बैठो, मैं अब तुम्हारी मैडम को बुलाता हूं. तुम दोनों ने जो किया सो किया, तुमको न रोक कर बड़ा गलत कर रही थीं वे, पर अब जाने दो, तुम दोनों भाई बहन सच में बड़े प्यारे हो, तुम्हें माफ़ किया जाता है, मैडम को भी बता दूं. बड़े नरम दिल की हैं वे, वहां परेशान हो रही होंगी कि मैं तुम दोनों की धुनाई तो नहीं कर रहा .... पर उसके पहले ... लीना ... तुम अपनी पैंटी उतारो और सोफ़े पर टिक कर बैठो"
लीना घबराकर शर्माती हुई बोली "पर सर ... आप क्या करेंगे?"
"डरो नहीं, जरा ठीक से चाटूंगा तुम्हारी बुर. गलती तुम्हारी है, मैडम के साथ ये सब करने के पहले से सोचना था तुमको, और फ़िर तेरी चूत का स्वाद इतना रसीला है कि चाटे बिना मन नहीं मानेगा मेरा. अब गलती की है तुमने तो भुगतना तो पड़ेगा ही. चलो, जल्दी करो नहीं तो कहीं फ़िर मेरा इरादा बदल गया तो भारी पड़ेगा तुम लोगों को ...." टेबल पर पड़े बेंत को हाथ लगाकर वे थोड़े कड़ाई से बोले.
"नहीं सर, अभी निकालती हूं. अनिल तू उधर देख ना! मुझे शर्म आती है" मेरी ओर देखकर दीदी बोली, उसके गाल गुलाबी हो गये थे.
"अरे उससे अब क्या शरमाती हो. इतना नाटक सब रोज करती हो उसके साथ, आज दोनों मिल कर मैडम को .... और अब शरमा रही हो! चलो जल्दी करो"
लीना ने धीरे से अपनी पैंटी उतार दी. उसकी गोरी चिकनी बुर एकदम लाजवाब लग रही थी. बस थोड़े से जरा जरा से रेशमी बाल थे. मेरी भी सांस चलने लगी. आज पहली बार दीदी की बुर देखी थी, रोज कहता था तो दीदी मुकर जाती थी. बुर गीली थी, ये दूर से भी मुझे दिख रहा था.
"अब टांगें फ़ैलाओ और ऊपर सोफ़े पर रखो. ऐसे ... शाब्बास" चौधरी सर उसके सामने बैठते हुए बोले. लीना दीदी टांगें उठाकर ऐसे सोफ़े पर बैठी हुई बड़ी चुदैल सी लग रही थी, उसकी बुर अब पूरी खुली हुई थी और लकीर में से अंदर का गुलाबी हिस्सा दिख रहा था. चौधरी सर ने उसकी गोरी दुबली पतली जांघों को पहले चूमा और फ़िर जीभ से दीदी की बुर चाटने लगे.
"ओह ... ओह ... ओह ... सर ... प्लीज़" लीना शरमा कर चिल्लाई. "ये क्या कर रहे हैं?"
"क्या हुआ? दर्द होता है?" सर ने पूछा?
"नहीं सर ... अजीब सा ... कैसा तो भी होता है" हिलडुलकर अपनी बुर को सर की जीभ से दूर करने की कोशिश करते हुए दीदी बोली "ऐसे कोई ... वहां ... याने जीभ ... मुंह लगाने से ... ओह ... ओह"
"लीना, बस एक बार कहूंगा, बार बार नहीं कहूंगा. मुझे अपने तरीके से ये करने दो" सर ने कड़े लहजे में कहा और एक दो बार और चाटा. फ़िर दो उंगलियों से बुर के पपोटे अलग कर के वहां चूमा और जीभ की नोक लगाकर रगड़ने लगे. दीदी ’अं’ ’अं’ अं’ करने लगी.
"अब भी कैसा तो भी हो रहा है? या मजा आ रहा है लीना?" सर ने मुस्कराकर पूछा.
"बहुत अच्छा लग रहा है सर .... ऐसा कभी नहीं .... उई ऽ ... मां ....नहीं रहा जाता सर .... ऐसा मत कीजिये ना ...अं ...अं.." कहकर दीदी फ़िर पीछे सरकने की कोशिश करने लगी, फ़िर अचानक चौधरी सर के बाल पकड़ लिये और उनके चेहरे को अपनी बुर पर दबा कर सीत्कारने लगी. सर अब कस के चाट रहे थे, बीच में बुर का लाल लाल छेद चूम लेते या उसके पपोटों को होंठों जैसे अपने मुंह में लेकर चूसने लगते.
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