RE: Mastram अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
"हां - मम्मी, सब - ठीक - है" हर शब्द के बीच में विराम का कारण चाची की फ़ुदकती चूत थी जो शोभा को रुकने ही नहीं दे रही थी. शोभा के दिमाग में हर सम्भावित खतरे की तस्वीर मौजूद थी पर वो तो अपनी चूत के हाथों लाचार थी. दो क्षण रुकने के बाद चाची फ़िर से शुरु हो गयीं.
अजय अभी तक झड़ा नहीं था. शोभा ने तो सोचा था कि नौजवान है जल्दी ही पानी निकाल देगा लेकिन अजय तो पहले ही दो बार लन्ड का तेल निकाल चुका था. पहली बार चाची के कमरे में आने के ठीक पहले और दूसरी बार खुद चाची के हाथों से. जो भी हो पर शोभा चाची का अजय के लन्ड पर कूदना नहीं रुका. अपनी चिकनी चूत के भीतर तक भरा हुआ अजय का लन्ड अन्दर गहराईयों को अच्छे से नाप रहा था. दोनों ने ही कामासन में बिना कोई परिवर्तन किये एक दूसरे को चोदना बदस्तूर जारी रखा. फ़िर पहली बार शोभा चाची को अपनी चूत में एक सैलाब उठता महसूस हुआ. जबर्दस्त धड़ाके भरा आर्गैसम था. चाची के मुहं से घुटी घुटी आवाजें निकल रही थी. होठों के किनारे से निकल कर थूक गर्दन तक बह आया था. ये निषिद्ध सेक्स के आनन्द की परम सीमा थी. जिस भतीजे को खुद पाल पोस कर बड़ा किया है आज उसी के कुमारत्व को लेने क सौभाग्य भी उनको प्राप्त हुआ था. और क्या पुरुष था उनका भतीजा, अजय. निश्चित ही आने वाले समय में कई सौ चूतों को पावन करने का अवसर उसे मिल सकता है. अचानक कमरे का दरवाजा खुला. दीप्ति दरवाजे की आड़ लेकर ही खड़ी हुई थी. "बेटा, सबकुछ ठीक है ना, मुझे फ़िर से आवाजें सुनायी दी थी." शायद दीप्ति ने कुछ भी देखा नहीं था. अजय फ़िर से मुठ्ठ मार रहा है और ये उसी की आवाजें है, यही सोचकर दीप्ति अन्दर नहीं आई. "कुछ नहीं मम्मी". अजय को तो सिर्फ़ अपनी चाची की पनीयाई चूत से मतलब था. चाची को बिस्तर पर पटक कर वो खुद उनके ऊपर आ गया. "रुको, बेटा" चाची ने रोका उसे. चाची ने पैर के पास पड़ी अपनी पैन्टी को उठाकर पहले अजय के लन्ड को पोंछा और फ़िर अपनी चूत से रिस रहे रस को भी साफ़ किया. काफ़ी देर हो गयी थी गीली चुदाई करते हुये. शोभा अब उसके सुखे लन्ड को अपनी चूत में महसूस करना चाहती थी.
लेकिन शोभा चाची ने शायद यहां कुछ गलती कर दी. अजय को बच्चा समझ कर उन्होनें लन्ड से चिकना पानी साफ़ किया था. परन्तु जब अजय ने एक ही झटके में पूरा का पूरा जननांग चाची की चूत में घुसेड़ा तो वो जैसे चूत के सारे टान्के खोलता चला गया. सात इन्च लम्बे और चार इन्च मोटे हथियार से और क्या उम्मीद की जा सकती है. उन्हें समझ में आ गया कि वास्तव में वो चिकना द्रव्य कितना जरूरी था. अजय का लन्ड किसी मोटर पिस्टन की भांति चाची कि चूत पर कार्यरत था. अजय के हर धक्के के साथ ही चाची की जान सी निकल रही थी. पूरा शरीर, स्तन, दिमाग यहां तक की आखें भी झटकों की ताल में हिल रहे थे. अजय की तेजी और बैल जैसी ताकत का मुकाबला नहीं था. नाखूनों को भतीजे के कन्धों पर गड़ा कर आखें बन्द कर ली. किसी भी चीज पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकती थी चाची इस समय. हर एक मिनट पर आते आर्गैसम से चूत में सैलाब सा आ गया था. कई बार अजय के सीने पर दांत गड़ाए. अजय को सिग्नल करने के इरादे से चाची ने अपने तलुओं से उसकी कमर को भी जकड़ा. लेकिन इससे तो उसकी उत्तेजना में और वृद्धि हो गई. चन्द वहशी ठेलों के पश्चात अजय ने भी चरम शिखर को प्राप्त कर लिया. "चाची, चाची..हां चाची, मेरा पानी निकल रहा है. मैं अपना वीर्य आप की चूत में ही खाली कर रहा हूं. आह." शुरुआती स्खलन तीव्र किन्तु छोटा था. लेकिन उसके बाद तो जैसे वीर्य की बाढ़ ही आ गयी. शोभा ने अजय को अपने बदन से चिपका लिया. वीर्य की हर पिचकारी के बाद वो अपन भतीजे के नितम्बों को निचोड़ती. कभी अजय के टट्टों को मसलती कभी उसकी पीठ पर थपकी देती. अजय का बदन अभी तक झटके ले रहा था. "श्श्श्श. हां मेरे लाल. मैं हूं यहां पर. तेरी चाची है ना तेरे लिये". अजय ने भी चाची के दोनो स्तनों के बीच अपना सिर छुपा लिया.
जब दोनों शांत हुये तो चाची को याद आया कि कहां तो उनका अजय को सिर्फ़ मुठ्ठ मारने में मदद करने का इरादा था और कहां इस समय उनका जवान भतीजा उन्हें अपने नीचे दबाये वीर्य की अन्तिम बूंद तक उनकी कोख में उड़ेल रहा है. खुद की चिकनी जाघों पर गरमा गरम लावा और कुछ नहीं बल्कि अजय का वीर्य और उनकी चूत का मिल जुला रस था. चाची का नशा अब तक उतर चुका था और जो भूल वो दोनों कर चुके थे उसको सुधारा नहीं जा सकता था. अपने ही भतीजे के भारी शरीर के नीचे दबकर चाची के अंग अंग में एक मीठा सा दर्द हो रहा था, लेकिन अब वहां से जाना जरुरी था.
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