RE: Mastram अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति
शोभा चाची की सहनशक्ति जवाब दे चुकी थी. दोनों टागें फ़ैला कर चाची खुद ही बिस्तर पर लेट चुकी थीं. अजय, चाची की टागों के बीच में बैठा हुआ था और उसका मुंह शोभा चाची की मखमली जांघों के अन्दर घुसा हुआ था. शोभा के हाथ अब भी अजय के कन्धों और नितम्बों पर घूम रहे थे. उनका अब अपने दिलोदिमाग पर कोई काबू नहीं रह गया था. अजय के हाथ अब उनकी रेशमी पैन्टी से जूझ रहे थे. शोभा चाची अब भी अजय के लन्ड को छूने से बच रही थीं. लन्ड को अपने हाथों से छूने भर का मतलब खुद को पूरी तरह से अजय के हाथों सुपुर्द कर देना था.
अजय के बचपन कि यादें, जब कितनी ही बार चाची ने उसे अपने साथ ही नहलाया था, हाथों से मल मल कर उसका पूरा बदन और उसका लन्ड साफ़ किया था, रह रह कर उनके दिमाग में घूम रही थीं. और यही सब अब भी उनको अजय के सामने पूर्ण समर्पण से रोक रहे थे. अजय सिर्फ़ एक नौजवान मर्द ही नहीं उनका अपना भतीजा भी था. लेकिन अजय तो इस वक्त सिर्फ़ उस चालीस साल कि औरत के भरे हुये गरम जिस्म और उससे उठती खूश्बू से पागल हुआ जा रहा था. "बेटा रुक जाओ." चाची बुदबुदाई. "क्यूं चाची, आपको अच्छा नहीं लग रहा क्या?" अजय ने पूछा. "बहुत ज्यादा अच्छा लग रहा है, मेरे लाल. इस लिये कह रही हूं, रुक जा. इसके आगे ना मैं रुक पाऊंगी ना तुम. चाची बोली. चाची ने अजय के बांह पकड़ने के लिये हाथ बढ़ाया लेकिन गलती से उनकी उन्गलियां अजय के लन्ड को छू गयीं. चाची का पूरा बदन थरथराया और अजय के मुहं से भी आह सी निकली "चाची, देखो मेरा लन्ड कितना बड़ा हो गया है आपको देख कर." शोभा चाची का दहिना हाथ खुद बा खुद ही उस विशालकाय लन्ड के चारों तरफ़ लिपट गया. लन्ड पर अभी भी अजय का चिकना पानी और शोभा के थूक का मिश्रण लिपटा हुआ था. " अजय ये इतना पानी....?" चाची के शब्द गले में ही रह गये कि अजय ने जवाब भी दे दिया. "सिर्फ़ आपके लिये".अजय ने एक बार चाची की नाभि के पास चूमा और करवट बदलते हुये खुद चाची के अधनन्गे बदन के पास जाकर लेट गया. चाची ने दुबारा से अजय के सख्त लन्ड को अपनी मुठ्ठी में भर लिया. तभी अचानक से एक विचार उनके दिमाग में आया. अगर वो अपने हाथों से अजय को सिर्फ़ मुठ्ठ मार कर झड़ा दे तो फ़िर वह शान्त हो जायेगा और वो भी वहां से जा पायेंगी.
हांलाकि उनकी खुद की चूत में इस वक्त आग लगी हुई है लेकिन वो तो कुमार के पास जाकर जमकर चुद सकती है. लेकिन इससे पहले की चाची ये सब सोच पाती अजय उनके ऊपर चढ़ चुका था. चाची के तपते हुये ज़िस्म पर अपना आधिपत्य जमाते हुये अजय ने चाची के चूचों को दोनों हाथों से दबोच लिया. अजय के वीर्य से भरे हुए दोनो टट्तें और लम्बा मांसल लन्ड शोभा चाची के पेट से जा भिड़े. अजय पूरी ताकत से चाची की चूचियों को निचोड़ ने में व्यस्त था. शोभा के बदन में एक अलग ही आनन्द की लहर उठ रही थी. अपने ही जवान भतीजे को अपने चूचों से इतना दुलार करते देख वो कराह पड़ी "अजय बेटा, तुझे चाची के मुम्में चाहिये? इतने पसन्द हैं ये तुझे?". अजय ने कोई जवाब नहीं दिया. उसका ध्यान तो सिर्फ़ चाची की ब्रा को खींच कर उनके जिस्म से अलग करने पर था. ब्रा कि इलास्टिक को खींच कर नीचे किया तो भरे हुये वो दोनों खरबुजे के आकार के चूचें उछल के बाहर निकल पड़े. जन्नत का नजारा था ये. मारे उत्तेजना के चाची के दोनों भूरे निप्पल लम्बे और कड़क हो गये थे. अजय झुका और अपने होठों को चाची के चूचों पर टिका दिया. उत्तेजना में कई बार अजय ने शोभा के स्तनों पर जगह जगह काट ही लिया.
अजय के लन्ड से गाड़ा चिकना द्रव्य निकल कर चाची के पेट पर जमा हो रहा था. चाची ने हाथ आगे बढ़ा कर अजय के लन्ड को अपनी कोमल हथेलियों में समा लिया. जवान भतीजे का जन्गली लन्ड ठीक उनके पालतू कुत्ते के टौमी के लन्ड के समान ही लाल और गरम था जो उन्होनें दो दिन पहले ही अपने हाथ में लिया था.
शोभा ने हाथ में आये अजय के तन्नाए पुरुषांग को धीरे धीरे दुहना चालू किया. "म्मह... चाचीईई" अजय अपने निचले होंठ को दांतों के बीच दबा के चीखा. चाची के नरम हाथ अपने कड़क लन्ड पर पा कर जानवर हो गया था वो. एक ऐसा जानवर जिसको सिर्फ़ एक ही चीज काबू में कर सकती थी. घनघोर चुदाई. बिल्कुल जानवरों की तरह जोर जोर से कमर हिला रहा था मानो की चाची की मुठ्ठी नहीं कोई मखमली चूत हो. "धीरे बेटा धीरे. कोई जल्दी नहीं है. चाची है ना." ममतामयी सांत्वना दी चाची ने अजय को. कुछ जादू था इन शब्दों में कि अजय तुरन्त ही सुस्त पड़ गया. उसके लन्ड ने भी वीर्य की पिचकारी छोड़ दी थी जो ठीक चाची की पैन्टी पर ही जाकर लगी. चाची की चूत का पानी और अजय का वीर्य मिलकर कुछ अलग ही मस्त खूश्बू पैदा कर रहे थे. चाची ने अजय को धक्का दिया और बिस्तर पर बैठ गयीं. अब किसी सामाजिक और पारिवारिक बन्धन को तोड़ना बाकी नहीं था. जो होना था वो कब का हो चुका था. चाहे सही हो या गलत यहां तक आकर वापिस लौटने की इच्छाशक्ति दोनों में से किसी के पास नहीं थी. शोभा ने ब्रा खोल कर बिस्तर से दूर उछाल दी. और खुद अजय की टांगों के बीच आकर उसके लन्ड पर झुक गयीं. अजय अब भी अपने आधे मुरझाये लन्ड को सहला रहा था. शायद अपनी प्यारी चाची के लिये ही तैयार कर रहा था. "अपने लन्ड से मत खेलो अजय. छोड़ो उसको. वो अब मेरा है. जो करना है मैं करूंगी." एक हाथ से कमर पर जमी पैन्टी को पकड़ कर थोड़ा नीचे घुटनों तक सरका दिया और बाकी का काम अपने पन्जों और एड़ियों पर सुपुर्द कर के अपने दोनों हाथों और मुंह को अजय के लन्ड की सेवा में लगा दिया. चाची ने लार टपकाती गुलाबी जीभ को बाहर निकाला और अजय के खुले नल की तरह बहते लन्ड को चाटना शुरु कर दिया. पहले ही स्पर्श से अजय सिसक उठा "चाचीईईईईईई".
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