RE: Sex kahani पेइंग गेस्ट
“शाबास भाभी” मैने उनकी दाद दी. “खूब मुठ्ठ मारिये अपनी बेटी की क्योंकि इतनी मेहनत के बाद इनकी बुर से रस निकाला है, अब यह रस बन्द नहीं होना चाहिये. यह रिसता अंऋत भी हमें ही चखना है. बड़ी बेटी का रस निकालना तो अपने शुरू कर दिया, अब मै इस छोटी बच्ची की चूत को मस्त करता हूं”
और मैने अपने हाथों में लेकर उस मांसल फ़ूली बुर को चड्डी के ऊपर से ही मसलना और उंगली से उसकी चीर रगड़ना शुरू कर दिया. सीमा मस्ती से हुमकी तो मैने उसकी जीभ अपने मुंह में खींच ली और फ़िर हाथ उसकी पैंटी की इलास्टिक में से अन्दर डाल उंगली से उसकी मुठ्ठ मारने लगा. बड़ी मुलायम गीली बुर थी और जरा सा मक्के के दाने जैसा कड़ा चिकना क्लिटोरिस भी मेरी फ़िरती उंगली को महसूस हो रहा था.
मैने उस हीरे को मस्त हौले हौले सहलाया तो मचल मचल कर सीमा मेरी गोद में उछलने लगी और हाथ पैर पटकने लगी. मैने उसे जकड़े रखा और उसका मुंह चूसता रहा. मैं तब तक सीमा की बुर मसलता रहा जब तक वह किशोरी भी मेरी बांहों में ढेर न हो गयी. मुंह मेरे होंठों में दबा होने से वह एक जरा सी चीं के अलावा कोई आवाज भी नहीं निकाल पायी.
मैने भाभी से कहा “चलिये भाभी, दोनों चूतें अब रस छोड़ने के लिये तैयार हैं, इनकी चड्डी निकाल कर एक बार और झड़ाते हैं और फ़िर हमारे लिये इस रस का खजाना तैयार है. आप भी चूसिये और मैं भी पीता हूं. कुछ देर बाद चूतें बदल कर चूस लेंगे.”
गरमायी हुई भाभी ने तत्काल मीनल की चड्डी खींच कर निकाल दी. आंखें भर के वे अपनी बेटी की नंगी चूत को देखती रहीं और फ़िर सीधा अपनी उंगली उसकी बुर की गहरी लकीर में चलाती हुए उसे उंगली से चोदने लगीं. “अनिल, तूने बिलकुल सही कहा था. मां बेटी की रतिक्रीड़ा से बढ कर मादक और कुछ नहीं हो सकता.” मीनल अब पूरी तरह से उत्तेजित होकर कसमसा रही थी. “मां, बहुत अच्छा लगता है. और करो ना मां.”
मैं भी अब सीमा की चड्डी उतार चुका था. उस कोमल फ़ूली हुई कुंवारी मासूम बुर को जब मैने पास से देखा तो दीवाना हो गया. बुर पर बस छोटे छोटे रेशमी बाल थे और गहरी लकीर में से मानों शहद चू रहा था. मैने उस लकीर में उंगली डाल दी और उस चिपचिपे छेद को प्यार से रगड़ कर उसमें से और रस निकालने लगा.
“हा ऽ य ऽ अनिल अंकल, आप कितना अच्छा करते हैं, इतना मजा तो मुझे खुद करने में भी नहीं आता है.” “तो हमारी प्यारी गुड़िया रोज अपनी ही उंगली से हस्तमैथुन करती है, शाब्बास, बड़ी हो गयी है अब, बच्ची नहीं रही.” मैने कहा.
अपने चूतड़ उचका कर मेरी उंगली का दबाव बढाने की भरसक कोशिश करते हुए सीमा आगे चहकी. “हां अंकल, दीदी भी तो रोज मुट्ठ मारती है, मेरे पास वाले पलन्ग पर सोती है ना, मुझे सब सुनाई देता है.”
उंगली पर लगा रस मैने चख कर देखा तो मजा आ गया. अब मुझसे न रहा गया. उठ कर सीमा को मैने कुर्सी में बिठाया और खुद उसके सांअने उसकी टांगों को फ़ैला कर उनके बीच में बैठ गया. फ़िर सीधा की बुर पर मुंह जमा कर चूसने लगा. उस कुम्वारे रस की बात ही और थी. पूरा गाढा मेवा था. सीमा भी चहक चहक कर मेरे सिर को पकड़कर आगे पीछे होती हुई मेरे मुंह को ही चोदने लगी. “दीदी, इतना मजा आ रहा है बुर चुसवाने मेम, तू भी मां से चुसवा ले, मम्मी, दीदी की बुर चूसो ना जैसे अंकल मेरी चूस रहे हैं.”
भाभी ने उठकर मीनल को कुर्सी में बिठाया और उसकी सांवली टांगेम फ़ैलाकर मीनल की चूत चूसने लगी. भाभी के चूसने की आवाज ऐसी आ रही थी जैसे कोई आंअ चूस रहा हो. मीनल अपने सिर को इधर उधर हिलाते हुए छटपटाने लगी, उसे यह कांअसुख सहन नहीं हो रहा था. “उई ऽ मां, ओ ऽ मां ऽ” के सिवाय वह कुछ नहीं कह पा रही थी.
दस मिनट तक हम दोनों ने भरपूर अपने अपने शिकार को भोगा और मन लगा कर रसपान किया. सीमा जब चुसवा चुसवा कर लस्त हो गयी और चिल्लाने लगी “बस अंकल, अब छोड़िये, अब नहीं सहन होता” तब उठ कर मैं भाभी के पास गया और उन्हें भी उठाया. भाभी अपनी बड़ी बेटी की बुर चूसने में इतनी मस्त थीं कि मुझे उन्हें जबरदस्ती उठाना पड़ा. मीनल भी अभी तक मस्त थी और कई बार झड़ने के बावजूद अभी भी चुसवाने को तैयार थी. “मां, और चूसो ना, अभी मत जाओ” वह याचना करने लगी.
मैने उसकी काली चिकनी दुबली पतली टांगों के बीच स्थान लेते हुए कहा. “मीनल रानी, तड़पो मत, मैं हूं ना, देख ऐसा चूसता हूं कि सारा रस निचोड़ लूंगा तेरी गीली बुर से” और मैं अब मीनल की रसीली बुर चूसने लगा. नया स्वाद, नई छोकरी, नई बुर, मजे का क्या कहना. मैने सीधे अपनी जीभ मीनल की सकरी कुम्वारी चूत में घुसेड़ी और चोदते हुए चूसने लगा. मीनल ने आवेश में आकर अपनी छरहरी टांगेम मेरे सिर के इर्द गिर्द कस लीं और एक चीख के साथ ढेर हो गयी. ” आ ऽ ई ऽ मां ऽ, मर गयी मैम” मैं उसके सिसकने की परवाह न करके चूसता रहा.
उधर भाभी ने जाकर पहले अपनी छोटी बेटी का प्यार से चुम्बन लिया और उसके कमसिन स्तन मसलने लगी. सीमा खुश थी “हाय मां, अंकल ने इतना चूसा कि सारा रस निकाल दिया, लगता है कि अब चूत में जान ही नहीं है.”
भाभी ने उसकी जांघों के बीच बैठते हुए कहा “ऐसा नहीं कहते बेटी, अभी तो तेरी मां ने तेरा एक बूम्द रस भी नहीं पिया, अभी से तू ढेर हो गयी? अभी तो मुझे अपनी बुर का रस पिलाना है तुझे” और वह सीमा की बुर धीरे धीरे चाटने लगी. जब जब उसकी जीभ उस कमसिन कली के क्लिटोरिस पर से गुजरती, सीमा चिहुक जाती “मम्मी, मत करो ना, रहा नहीं जाता” पर भाभी ने एक न सुनी और चाटती रही. धीरे धीरे सीमा फ़िर गरमायी और हचक हचक कर अपनी मां के मुंह पर धक्के मारने लगी. भाभी ने समझ लिया कि लड़की फ़िर गरमा गयी है और अपना मुंह लगा कर सीमा की बुर का रस पान चालू कर दिया.
आधे घम्टे बाद दोनों लड़कियां लस्त होकर कराहती हुई कुर्सी में टिक कर चुपचाप पड़ी थीं. मैने और भाभी ने चूस चूस कर उनकी जवान बुरेम खाली कर दी थीं. वे करीब करीब बेहोश हो गयी थीं और पड़ी पड़ी सिसक रही थीं. उनके चेहरे पर तृप्ति के इतने सुखद भाव थे जैसे स्वर्ग पहुम्च गयी होम. मैं और भाभी उठ खड़े हुए. हम भी अब पूरी तरह से कांआतुर थे. इतनी देर दो जवान छोकरियों को बिना खुद स्खलित हुए भोगने के बाद हमारी वासना का अम्त ही नहीं था. भाभी तो कांअज्वर से ऐसे तड़प रही थीं जैसे पानी से निकाली मछली.
मैने भाभी को बाहों में लेकर चूमा और उनकी जांघों के बीच हाथ लगाकर टटोला. चड्डी बिल्कुल गीली थी और भाभी की बुर बुरी तरह से चू रही थी. भाभी ने एक मूक प्रार्थना भरी दृष्टि से मेरी ओर देखा. मैं समझ गया “आइये भाभी, आपकी चुदासी की प्यास दूर कर देता हूं और अपनी रस की प्यास भी बुझा लेता हूं”.
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