RE: hindi kahani तरक्की का सफ़र
करीब एक महीने बाद की बात है। मैं सुबह ऑफिस पहुँचा तो देखा कि ऑडिट डिपार्टमेंट में एक नयी लड़की काम कर रही है। वाओ! कितनी सुंदर थी वो। वो करीब ५ फ़ुट ४ इंच की थी पर इस समय हाइ-हील की सैंडल पहने होने की वजह से ५ फ़ुट आठ इंच के करीब लग रही थी। गाल भरे-भरे और आँखें भी तीखी थी। उसने टाइट स्लीवलेस टॉप और टाइट जींस पहन रखी थी। कपड़े टाइट होने की वजह से उसके बदन का एक-एक अंग जैसे छलक रहा था। उसे देखते ही मेरे लंड में गर्मी आ गयी।
मुझे उससे मिलना पड़ेगा मैंने सोचा और उस पर नज़र रखने लगा।
एक दिन लंच से पहले मैंने उसे अपनी सीट से उठ कर जाते हुए देखा तो मैं उसके पीछे-पीछे पैसेज में आ गया। मैंने हिम्मत कर के पूछा, “लगता है... आप यहाँ नयी आयी हैं, इसके पहले कभी नहीं देखा?”
“हाँ! मैं यहाँ पर नयी हूँ, अभी एक हफ्ता ही हुआ है।”
“हाय! मुझे राज कहते है।” मैंने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया।
मुझसे हाथ मिलाते हुए उसने कहा, “मुझे रजनी कहते हैं। आपसे मिलकर अच्छा लगा।” कुछ देर बात करने के बाद हम अपने काम में लग गये।
उस दिन के बाद मैं अक्सर उससे टकराने के बहाने ढूँढता रहता था। कभी सीढ़ियों पर, कभी स्टोर रूम में। हम लोग अक्सर बात करने लगे थे। काफी खुल भी गये थे। हम इंटरनेट पर भी चैटिंग करने लगे थे। रजनी में बढ़ती मेरी दिलचस्पी तीनों लेडिज़ से छुपी ना रह सकी।
“क्या तुम लोगों ने देखा.... कैसे हमारा राज उस नयी लड़की के पीछे पड़ा हुआ है?” समीना ने एक दिन लंच लेते हुए कहा।
“राज! संभल कर रहना, सुनने में आया है कि एम-डी की भतीजी है”, शबनम ने कहा।
“छोड़ो यार! मुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। तुम लोग सिर्फ़ राई का पहाड़ बना रही हो। मैं तो सिर्फ़ उससे हँसी मजाक कर लेता हूँ और कुछ नहीं।” मैंने उनसे झूठ कहा।
एक दिन इंटरनेट पर बात करते हुए मैंने हिम्मत कर के पूछा, “रजनी! शाम को कॉफी पीने मेरे साथ चलोगी?”
“जरूर चलूँगी, क्यों नहीं?” उसने जवाब दिया।
उस दिन शाम को हम लोग पास के रेस्तोरां में कॉफी पीने गये। फिर बाद में एक दूसरे का हाथ थामे पार्क में घूमते रहे। वो शाम काफी सुहानी गुजरी थी।
दूसरे दिन लंच पर नीता ने शिकायत की, “कल शाम को कहाँ थे? मैं और शबनम कितनी देर तक तुम्हारा इंतज़ार करते रहे।”
मैं रजनी के चक्कर में ये भूल गया था कि नीता और शबनम आने वाली थी। “सॉरी! लेडिज़, कल शाम को मैं रजनी को कॉफी पिलाने ले गया था”, मैंने कहा।
“क्या हम दोनों की कीमत पर उसे बाहर ले जाना तुम्हें अच्छा लगा राज?” नीता शिकायत करते हुए बोली।
“सब्र से काम ले नीता, हमें पहले कनफर्म करना चाहिये था राज से। राज को हक है वो अपनी उम्र वालों के साथ घूमे फ़िरे”, शबनम उसे समझाते हुए बोली।
“हाँ! हम नहीं चाहते कि रजनी की कुँवारी चूत चोदने का मौका राज के हाथ से जाये, वैसे राज! आजकल की लड़कियों की कोयी गारंटी नहीं कि वो कुँवारी हो।” समीना शरारत करते हुए बोली।
“दोबारा कब उसके साथ बाहर जा रहो हो?” नीता ने पूछा।
“कल शाम को”, मैंने जवाब दिया।
“ओह वापस हम लोगों की कुरबानी पर नहीं”, नीता नाराज़गी से बोली।
“तुम लोग चाहे तो आज की रात आ सकती हो”, मैंने सुझाव दिया। फैसला होने के बाद हम लोग काम पर वापस आ गये।
मैं और रजनी अब बराबर मिलने लगे। पिक्चर देखते, साथ खाना खाते, पार्क में घूमते। एक महीना इसी तरह गुजर गया। तीनों लेडिज़ चिढ़ाने से बाज़ नहीं आती थी, “रजनी को तुम अब तक चोद चुके होगे, सच बताओ उसकी चूत कैसी है, बहुत टाइट थी क्या?”
“ऐसा कुछ नहीं हुआ है और मुझे इंटरस्ट भी नहीं है... कितनी बार तुम लोगों से बोलूँ?” मैंने गुस्सा करते हुए कहा।
“ठीक है कभी हमारी जरूरत पड़े तो बताना”, कहकर तीनों लेडिज़ अपनी अपनी सीट पर चली गयी।
एक दिन शाम को मैं और रजनी पिक्चर देखने जाने वाले थे। जब सिनेमा हॉल में दाखिल होने जा रहे थे तो मुझे याद आया कि मैं टिकट तो घर पर ही भूल आया हूँ। “तुम यहीं रुको, टिकट मिल रही है... मैं दूसरी दो टिकट ले आता हूँ”, मैंने रजनी से कहा।
“और वो दो टिकट वेस्ट जाने दें? नहीं! अभी वक्त है... चलो घर से ले आते हैं”, इतना कहकर वो मेरे साथ मोटर-साइकल पर बैठ गयी।
हम लोग मोटर-साइकल पर घर जा रहे थे कि जोरदार बारिश शुरू हो गयी। मेरे फ्लैट तक पहुँचते हुए हम लोग काफी भीग चुके थे। रजनी सिर से नीचे तक भीग चुकी थी। उसका टॉप भीगा होने से उसके शरीर से एक दम चिपट गया था और उसके निप्पल साफ दिखायी दे रहे थे। उसने ब्रा नहीं पहन रखी थी। उसकी जींस भी चिपकी हुई थी और उसके कुल्हों की गोलियाँ मुझे मादक बना रही थी। मैं अपने लंड को खड़ा होने से नहीं रोक पा रहा था।
“राज मुझे बहुत ठंड लग रही है”, रजनी ने ठिठुरते हुए कहा, “जल्दी से मुझे कुछ पहनने को दो, और तुम भी कपड़े बदल लो नहीं तो तुम्हें भी ठंड लग जायेगी।”
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