RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
प्रिया के चेहरे पर उत्तेजना के भाव दिख रहे थे साथ ही उसकी आँखों में एक अजीब सा डर नज़र आ रहा था। वो जानती थी कि अब असली काम होने वाला है और मेरा लम्बा चौड़ा लंड उसकी चूत की धज्जियाँ उड़ाने वाला था। प्रिया मेरी तरफ ऐसे देख रही थी मानो वो यह कहना चाह रही हो कि जो भी करना धीरे करना।
मैं उसकी हालत समझ रहा था, मैंने उसे प्यार से देखा।
“प्रिया मेरी रानी… घबराना नहीं… थोड़ा सा दर्द तो होगा लेकिन मैं ख्याल रखूँगा…” मैंने उसे समझाते हुए कहा।
“डर तो लग रहा है जान, लेकिन मैं अब बर्दाश्त नहीं कर सकती…तुम आगे बढ़ो, मैं संभाल लूंगी…!” प्रिया ने मुझे शरमाते हुए देख कर कहा।
मैंने उसकी जांघों को थम लिया और अपने सुपारे को उसकी नाज़ुक सी चूत के अन्दर दबाव के साथ घुसाने लगा। चिकनाई इतनी ज्यादा थी कि लंड बार बार फिसल जा रहा था। मैंने फ़िर से अपने लंड को पकड़ा और इस बार थोड़ा दम लगा कर लंड को ठेल दिया।
“आअह… सोनू… धीरे…” प्रिया की टूटती आवाज़ आई।
मैंने देखा कि सुपारे का अगला हिस्सा थोड़ा सा उसकी चूत में फंस गया था। अब अगले धक्के की बारी थी और मैंने फ़िर से एक हल्का धक्का मारा… लंड का सुपारा थोड़ा और अन्दर गया और आधा सुपारा उसकी चूत के मुँह में अटक गया।
प्रिया ने अपने दांत भींच लिए थे और अपनी मुट्ठी से चादर को पकड़ लिया था। मैं जानता था कि ज्यादा जोर जबरदस्ती करने से उसकी हालत ख़राब हो सकती है। मैंने अपने सुपारे को वैसे ही फंसा कर रगड़ना चालू किया और उसकी जांघों को सहलाता रहा।
प्रिया इंतज़ार में थी कि कब धक्का पड़ेगा और उसकी चूत फटेगी। उसकी मनोदशा साफ़ साफ़ दिख रही थी।
मैंने ऐसे ही रगड़ते रगड़ते सांस रोक ली और एक जोरदार सा धक्का मारा।
“आई ईईईई ई ईईइ… मर गईईईईई…” प्रिया जोर से चीख पड़ी।
आधा लंड उसकी चूत को चीरता हुआ अन्दर जा चुका था। प्रिया की चीख ने मेरी गाण्ड फाड़ दी। मैं डर ही गया, वो तो भला हो मेरा कि मैंने दरवाज़े के साथ साथ खिडकियों को भी बंद कर दिया था। वरना उसकी चीख पूरे घर में फ़ैल जाती और सब जाग जाते।
मैंने तुरंत उसके जांघों को छोड़ कर उसके ऊपर झुक कर अपने होंठ उसके होठों पर रख दिए और उसका मुँह बंद कर दिया। लेकिन उसकी घुटी घुटी सी आवाज़ अब भी निकल रही थी। उसकी आँखें फैलकर चौड़ी हो गई थीं और उसने मेरी पीठ पर अपने नाख़ून गड़ा दिए।
मैंने सुन रखा था कि किसी कुंवारी लड़की की सील तोड़ते वक़्त उसका ध्यान बंटा दिया जाना चाहिए ताकि वो सब सह सके।
मैं भी उसी बात को ध्यान में रखकर उसके होंठों को चूमते हुए उसकी चूचियों को पकड़ कर सहलाता रहा। करीब 8-10 मिनट के बाद प्रिया की पकड़ मेरे पीठ से थोड़ी ढीली हुई और मैं समझ गया कि उसका दर्द कम हो रहा है।
मैं तब थोड़ा ऊपर उठा और एक बार फिर से उसकी जांघों को थाम कर अपने लंड को उतना ही घुसाकर धीरे धीरे अन्दर-बाहर करने लगा।
जैसे ही लंड ने हरकत करनी शुरू की, प्रिया को फिर से दर्द का एहसास होने लगा।
“प्लीज सोनू… धीरे करो न… बहुत दर्द हो रहा है… उफ्फ्फ्फ़… अगर पता होता कि इतना दर्द होता है तो मैं कभी नहीं लेती अपनी चूत में तुम्हारा यह ज़ालिम लंड !” प्रिया दर्द से कराहते हुए हिल भी रही थी और मुझसे शिकायत भी कर रही थी।
मैंने मन में सोचा,” अभी तो असली दर्द बाकी है मेरी जान…पता नहीं झेल पाओगी या नहीं।”
यह सोचते सोचते मैंने लंड को आगे पीछे करना और उसकी जाँघों को सहलाना जारी रखा। लंड की रगड़ ने चूत को पानी छोड़ने पर मजबूर कर दिया और उसकी चूत ने पानी छोड़ा। लंड चिकनाई को महसूस कर थोड़ा सा और आगे सरका।
“आआह्ह्ह… सोनू… सोनू… दुखता है…” प्रिया को फिर से दर्द का एहसास हुआ।
“बस मेरी जान…अब नहीं दुखेगा…” मैंने उसे सहलाते हुए कहा और अपना एक हाथ आगे बढ़ा कर उसकी एक चूची को पकड़ कर मसलने लगा।
चूचियों पर हाथ पड़ते ही प्रिया ने अपनी कमर को थोड़ा सा ऊपर उठाया और मुझे यह इशारा मिला कि अब शायद उसे भी अच्छा लगने लगा था। मैं इसी मौके की तलाश में था, मैंने देरी करना उचित नहीं समझा और अपनी सांस को रोक कर उसकी चूचियों को दोनों हाथों से पकड़ लिया और झुक कर उसके होठों को अपने होठों से कैद कर लिया। मैं जानता था कि इस बार जो दर्द उसे होने वाला था वो उसकी हालत ख़राब कर देगा और वो जोर जोर से चिल्लाने लगेगी।
मैंने धीरे धीरे उसकी चूत में अपने लंड को रगड़ते रगड़ते अचानक से एक भरपूर दम लगा कर जोरदार धक्का मारा और इस बार किला फ़तेह कर लिया।
“गगगगगूं… गगगगगगूं…उह्ह्ह्हह्ह्ह्ह… !” प्रिया की घुटन मेरे मुँह में दब कर रह गई और उसने मेरे सर के बालों को इतनी जोर से खींचा कि मैं बर्दासश्त नहीं कर पाया और मेरे होंठ उसके होठों से अलग हो गए।
“ऊऊह्हह्ह ह्हह माँ… मुझे नहीं करना…निकालो…प्लीज…मर गईईईई…” प्रिया ने छूटते ही जोर से आवाज़ निकाली और मुझे धक्के देकर खुद से अलग करने लगी।
उसकी आँखें बाहर को आ गईं और उनमे आँसुओं की मोटी मोटी बूँदें भर गईं। उसके होंठ थरथराने लगे… लेकिन कोई शब्द ही नहीं निकल रहे थे मानो उसका गला ही बंद हो गया हो।
उसने अपनी गर्दन इधर उधर करके अपने बेइंतेहा दर्द का प्रमाण दिया और मुझे निरंतर अलग करने के लिए धक्के देती रही।
मैंने उसका चेहरा अपनी हथेलियों में लिया और उसके आँखों को चूमकर बोला,”बस प्रिया… यह आखिरी दर्द था… थोड़ा सा सह लो… अब सब कुछ ठीक हो जायेगा… अब तो बस मज़े ही मज़े हैं।”
“नहीं सोनू… प्लीज मेरी बात मान लो… बहुत दुःख रहा है… आईई… ओह्ह्ह्हह्ह माँ… मुझसे नहीं होगा…” प्रिया ने लड़खड़ाती आवाज़ में मुझसे कहा और मुझसे लिपट कर रोने लगी।
मैं थोड़ा घबरा गया लेकिन अपने आपको संभाल कर मैंने उसके होंठों को एक बार फिर से चूसना शुरू किया और साथ ही साथ उसकी चूचियों को भी फिर से मसलना शुरू किया।
लंड अब भी पूरा का पूरा उसकी चूत में घुसा हुआ था और ऐसा लग रहा था मानो किसी ने जोर से मुट्ठी में जकड़ रखा हो। मैं बिल्कुल भी हिले बिना उसके होठों और उसकी चूचियों से खेलता रहा और अपने बदन से उसके बदन को धीरे धीरे रगड़ता रहा।
लगभग 15 मिनट के बाद प्रिया ने मेरे होठों को अपने होठों से चूसना शुरू किया और अपने हाथों को मेरे पीठ पर ले जा कर मुझे सहलाने लगी। धीरे धीरे उसने अपनी कमर को थोड़ी सी हरकत दी और अपनी गांड को ऊपर की तरफ किया।
मैं उसका इशारा समझ चुका था और मैंने उसकी आँखों में देखकर मुस्कान भरी और अपनी कमर को थोड़ा सा ऊपर किया। लंड थोड़ा सा बाहर आया, लंड के बाहर आते ही मुझे कुछ गरम गरम सा तरल पदार्थ अपने लंड से होकर बाहर आता महसूस हुआ। मैंने उत्सुकतावश अपना सर नीचे करके देखा तो मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं। मैंने देखा कि खून की एक मोटी सी धार प्रिया की चूत से निकल रही थी और निकल कर मेरे लंड से होते हुए नीचे बिछी चादर पर फ़ैल रही थी।
प्रिया को भी शायद कुछ महसूस हुआ होगा तभी उसने अपने पैरों को हिलाकर कुछ समझने की कोशिश की लेकिन मैंने उसे कोई मौका नहीं दिया।
अगर उसने वो देख लिया होता तो निश्चित ही मुझे खुद से अलग कर देती और चोदने भी नहीं देती।
मैंने बिना वक़्त गवाए अपने लंड को बाहर खींच कर फिर से एक धक्का मार कर अन्दर ठेल दिया।
फच्च …एक आवाज़ आई और मेरा लंड वापस उसकी चूत की गहराइयों में चला गया और प्रिया के मुँह से फिर से एक सिसकारी निकली।
मैंने बिना वक़्त गवाए अपने लंड को बाहर खींच कर फिर से एक धक्का मार कर अन्दर ठेल दिया।
फच्च …एक आवाज़ आई और मेरा लंड वापस उसकी चूत की गहराइयों में चला गया और प्रिया के मुँह से फिर से एक सिसकारी निकली।
मैंने बिना रुके अपने लंड को आगे पीछे करना शुरू किया और मंद गति से उसकी चुदाई करने लगा। मेरे हाथ अब भी उसकी चूचियों से खेल रहे थे जिसकी वजह से प्रिया अपना दर्द भूल कर उस पल का आनंद ले रही थी।
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