RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
मैं डर गया, पता नहीं वो क्या मांग ले। फिर मैंने सोचा ज्यादा से ज्यादा
क्या मांगेगी...मेरा लण्ड ही न, मैं तो पहले से ही किसी चूत में घुसने के
लिए तड़प रहा था। मैंने जोश में आकर उसका हाथ जोर से पकड़ लिया और पूछा,"क्या
चाहिए, तू जो कहेगी मैं देने को तैयार हूँ।"
"अरे डरो मत, मैं ज्यादा कुछ नहीं मांगूगी, बस मेरी थोड़ी सी हेल्प कर देना,
मुझे कुछ नोट्स तैयार करने हैं। तुम मेरी मदद कर देना।" उसने शरारत से
मेरी ओर देखते हुए कहा।
"ये ले, सोचा चूत और मिली पढाई !" मैंने अपने मन में सोचा...मेरा मूड थोड़ा
ख़राब हो गया लेकिन इस बात की तसल्ली हो गई कि वो मेरे मुठ मारने की बात को
किसी से नहीं कहेगी। प्रिया को मेरी हालत का अंदाज़ा हो गया था शायद। उसने
मुझे फिर से पकड़ा और मुझे लेकर ऊपर जाने लगी।
उसने मेरी बाह पकड़ ली और मुझसे सट कर सीढ़ियाँ चढ़ने लगी। उसने इस तरह से
मेरा बाजू पकड़ा था कि उसकी एक चूची मेरे बाजू से रगड़ खा रही थी और हम
चुपचाप ऊपर खाने की मेज की तरफ बढ़ चले।
ऊपर पहुँचते ही उसने मुझे छोड़ दिया ताकि किसी को कुछ पता न चले कि वो मुझसे अपनी चूचियाँ रगड़ रही थी।
खाने की मेज पर सभी मेरा इंतज़ार कर रहे थे। मेरी दीदी भी वहीं थी। मैंने
माहौल को हल्का करने के लिए अपनी दीदी की तरफ देखा और पूछने लगा,"अरे दीदी
तुम ऊपर हो और मैं तुम्हे नीचे पूरे घर में खोज रहा था।"
"मैं जल्दी ही ऊपर आ गई थी भाई, नीचे कोई नहीं था इसलिए मैंने ऊपर आना ही सही समझा।" दीदी ने मेरी तरफ देखकर कहा।
मैं जाकर अपनी जगह पर बैठ गया। मेरे बगल वाली कुर्सी पर मेरी दीदी थी। मेरे
सामने एक तरफ रिंकी थी और मेरे ठीक सामने प्रिया बैठ गई। आंटी हम सबको
खाना परोस रही थी। हमने खाना शुरू किया।
मैं अपना सर नीचे करके खाए जा रहा था, तभी किसी ने मेरे पैरों में ठोकर
मारी। मैंने अपना सर उठाया तो सामने देखा की प्रिया मुस्कुरा रही है और जान
बूझकर झुक झुक कर अपनी प्लेट से खाना खा रही थी। उसके टॉप के बड़े गले से
उसकी आधी चूचियाँ झांक रही थीं। मेरा खाना मेरे गले में ही अटक गया। मैंने
एकटक उसकी चूचियों को देखना शुरू किया और वो मुस्कुरा मुस्कुरा कर मुझे
अपने स्तनों के दर्शन करवाए जा रही थी।
"क्या हुआ बेटा, रुक क्यूँ गए...खाना अच्छा नहीं है क्या?" आंटी की आवाज़ ने मुझे झकझोरा।
"नहीं आंटी, खाना तो बहुत टेस्टी है...जी कर रहा है पूरा खा जाऊँ...!"
मैंने दोहरे मतलब वाली भाषा में कहते हुए प्रिया की तरफ देखा। उसका चेहरा
चमक रहा था मानो मैंने खाने की नहीं उसकी चूचियों की तारीफ की हो।
बात सच भी थी, मैंने तो उसकी चूचियों को ही टेस्टी कहा था...लेकिन सहारा खाने का लिया था।
रिंकी जो प्रिया के बगल में बैठी थी, उसकी नज़र अचानक मेरी आँखों की दिशा
तलाशने लगे। मेरा ध्यान तब गया जब उसने मुझे प्रिया के सीने पर टकटकी लगाये
पाया। मेरी नज़र जब रिंकी के ऊपर गई तब मुझे एहसास हुआ कि मैं कुछ ज्यादा
ही कर रहा हूँ और मेरी इस हरकत से बनती हुई बात बिगड़ सकती थी। लेकिन कहीं न
कहीं मुझे यह पता था कि अगर रिंकी मुझे प्रिया को चोदते हुए भी देख ले तो
कोई दिक्कत नहीं होने वाली थी। आखिर उसे भी पता था कि उसके लिए लण्ड की
व्यवस्था मेरी वजह से ही हुई थी।
मैंने फिर भी अपने आप को सम्हाला और चुपचाप खाना ख़त्म करने लगा। खाना खाते
खाते बीच में ही प्रिया बोल पड़ी,"माँ, मुझे आज अपने नोट्स तैयार करने हैं,
बहुत जरूरी हैं इसलिए मैंने सोनू भैया से कह दिया है वो मेरी मदद करेंगे।
मैं अभी नीचे उनके कमरे में जाकर अपने नोट्स बनाऊँगी।"
प्रिया ने एक ही सांस में अपनी बात कह दी।
"बेटा, तुम्हारे सोनू भैया की तबीयत ठीक नहीं है उसे परेशान मत करो। तुम
रिंकी के साथ बैठ कर अपना काम पूरा कर लो।" आंटी ने प्रिया को रोकते हुए
कहा।
मैं एक बार प्रिया की तरफ देख रहा था तो दूसरी तरफ आंटी को। समझ में नहीं आ
रहा था कि किसे रोकूँ और किसे हाँ करूँ...एक तरफ प्रिया थी जिसने मुझे
अपनी बातों और अपनी हरकतों से झकझोर कर रख दिया था और दूसरी तरफ आंटी थी
जिन्हें मेरी तबीयत की फ़िक्र हो रही थी। मैं खुद भी थका थका सा महसूस कर
रहा था और यह सोच रहा था कि खाना खाकर सीधा अपने बिस्तर पर गिर पडूंगा और
सो जाऊँगा...।
मेरे दिमाग में आने वाले कल की प्लानिंग चल रही थी जहाँ मुझे रिंकी और
पप्पू की चुदाई का सीधा प्रसारण देखना था। लेकिन प्रिय के बारे में ख्याल
आया तो दोपहर का वो वाक्य याद आ गया जब प्रिया ने मेरा खड़ा लण्ड देखा था और
मैंने उसकी चूचियों की गोलाइयाँ नापी थीं।
मेरे बदन में एक झुझुरी सी हुई और मेरा मन यह सोच कर उत्साह से भर गया कि
आज हो न हो, मुझे प्रिया की अनछुई चूत का स्वाद चखने को मिल सकता है...
यह ख्याल आते ही मैंने अपनी चुप्पी तोड़ी,"आंटी, आप चिंता न करें, मेरी
तबीयत ठीक है और मैं प्रिया की मदद कर दूँगा... मैं ठीक हूँ, आप खामख्वाह
ही चिंता कर रही हैं।" मैंने बड़े ही इत्मीनान से अपनी बात कही।
मैं नहीं चाहता था कि मेरी उत्सुकता किसी को दिखे और मुझ पर किसी को शक हो।
"ठीक है बेटा, जैसा तुम ठीक समझो !" आंटी ने मुस्कुरा कर कहा।
"और प्रिया, तुम भैया को ज्यादा परेशान मत करना। जल्दी ही अपना काम ख़त्म कर लेना और ऊपर आकर सो जाना।" आंटी ने प्रिया को हिदायत दी।
"ठीक है माँ, आप चिंता न करें। मैं आपके सोनू बेटे का ख्याल रखूँगी और
उन्हें ज्यादा नहीं सताऊँगी।" प्रिया ने ठिठोली करते हुए कहा और उसकी बात
पर हम सब हंस पड़े।
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