RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
रिंकी के जाते ही पप्पू ने मुझसे दोबारा वही सवाल किया," सोनू, मैं जनता हूँ मेरे भाई कि वहाँ ऊपर तू ही था, तू ही था न?"
मैंने पप्पू के आँखों में देखा और धीरे से आँख मार दी।
"साले...मुझे पता था..." पप्पू बोलकर हंस पड़ा और मुझे भी हंसी आ गई...
हम दोनों ने एक दूसरे को गले से लगा लिया और जोर से हंसने लगे...तभी रिंकी
हमारे सामने आ गई अपने हाथों में चाय का कप लेकर और हमें शक भरी निगाहों से
देखने लगी। अब तक तो रिंकी को यह नहीं पता था कि मैंने सब कुछ देख लिया था
लेकिन हमें इतना खुश देखकर उसे थोड़ी थोड़ी भनक आ रही थी कि हो न हो मेरी ही
आवाज़ ऊपर सुनाई दी थी...
इस बात का एहसास होते ही रिंकी का चेहरा शर्म से इतना लाल हो गया कि बस
पूछो मत। इतना तो वो उस वक्त भी नहीं शरमाई थी जब पप्पू ने उसकी चूत को
अपने जीभ से चूमा था...
रिंकी की नज़र अचानक मुझसे लड़ गई और वो शरमाकर वापस जाने लगी...
तभी बाहर से घंटी कि आवाज़ आई और हम तीनों चौंक गए...
"रिंकी...रिंकीऽऽऽऽऽ...दरवाज़ा खोलो !" यह प्रिया की आवाज़ थी...
हम लोग सामान्य हो गए और अपनी अपनी जगह पर बैठ गए...
रिंकी ने दरवाज़ा खोला और प्रिया अंदर आ गई...अंदर आते हुए प्रिया कि नज़र
मेरे कमरे में पड़ी और उसने मेरी तरफ देखकर एक प्यारी सी मुस्कराहट
दिखाई...और मुझे हाथ हिलाकर हाय किया और ऊपर चली गई...
यह प्रिया और मेरा रोज का काम था, हम जब भी एक दूसरे को देखते थे तो प्रिय
मेरी तरफ हाथ दिखाकर हाय कहती थी। मैं उसकी इस आदत को बहुत साधारण तरीके से
लेता था लेकिन बाद में पता चला कि उसकी ये हाय...कुछ और ही इशारा किया
करती थी...
अब सबकुछ सामान्य हो चुका था और पप्पू भी अपने घर वापस चला गया था।
मैं अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था और थोड़ी देर पहले की घटना को याद करके अपने
हाथों से अपना लंड सहला रहा था। मैंने एक छोटी सी निक्कर पहन रखी थी और
मैंने उसके साइड से अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया था।
मेरी आँखें बंद थीं और मैं रिंकी की हसीं चूचियों और चूत को याद करके मज़े
ले रहा था। मेरा लंड पूरी तरह खड़ा था और अपने विकराल रूप में आ चुका था।
मैंने कभी अपने लंड का आकार नहीं नापा था लेकिन हाँ नेट पर देखी हुई सारी
ब्लू फिल्मों के लंड और अपने लंड की तुलना करूँ तो इतना तो तय था कि मैं
किसी भी नारी कि काम पिपासा मिटने और उसे पूरी तरह मस्त कर देने में कहीं
भी पीछे नहीं था।
अपने लंड की तारीफ जब मैंने सिन्हा-परिवार की तीनों औरतों के मुँह से सुनी
तब मुझे और भी यकीन हो गया कि मैं सच में उन कुछ भाग्यशाली मर्दों में से
हूँ जिनके पास ऐसा लंड है कि किसी भी औरत को चाहे वो कमसिन, अक्षत-नवयौवना
हो या 40 साल की मस्त गदराई हुई औरत, पूर्ण रूप से संतुष्ट कर सकता है।
मैं अपने ख्यालों में डूबा अपने लंड की मालिश किए जा रहा था कि तभी...
"ओह माई गॉड !!!! "...यह क्या है??"
एक खनकती हुई आवाज़ मेरे कानों में आई और मैंने झट से अपनी आँखे खोल लीं...मेरी नज़र जब सामने खड़े शख्स पर गई तो मैं चौंक पड़ा...
"तुम...यहाँ क्या कर रही हो...?? " मेरे मुँह से बस इतना ही निकला और मैं खड़ा हो गया...
यह थी कहानी मेरे सेक्स के सफर की शुरुआत की...कहानी जारी रहेगी और आप
लोगों के लंड और चूत को दुबारा से अपना अपना पानी निकालने की वजह बनेगी...
अभी तो बस शुरुआत है, सिन्हा परिवार के साथ बीते मेरे ज़बरदस्त दो साल,
जिन्होंने मुझे इतना सुख दिया था कि आज भी वो याद मेरे साथ है...यकीन मानो
दोस्तो, मेरी चुदाई की दास्तान आपको सब कुछ भुला देगी...
तभी बाहर से घंटी की आवाज़ आई और हम तीनों चौंक गए...
"रिंकी...रिंकीऽऽऽऽऽ...दरवाज़ा खोलो !" यह प्रिया की आवाज़ थी...
हम लोग सामान्य हो गए और अपनी अपनी जगह पर बैठ गए...
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