उशा की कहानी
04-04-2017, 08:36 PM,
#1
उशा की कहानी
उशा अपने मा-बाप कि एकलौती लरकी है और देलहि मे रहती है। उशा के पितजी, मर। जिवन शरमा देलहि मे हि ल।इ।स। मे ओफ़्फ़िसेर थे और पेचले चर सल पहले सवरगवसि हो गये थे और उशा कि मतजी, समत। रजनि एक हौसे विफ़े है। उशा के और दो भै भि है और उनकि शदी भि हो गयी है। उशा पीचले साल हि म।अ। (एनगलिश) पस किया है। उशा का रनग बहुत हु गोरा है और उसके फ़िगुरे 36-25-38 है। वो जब चलती है तो उसके कमर मे एक अजीब सि बल खती है और चलते वकत उसकि चुतर बहुत हिलते है। उसके हिलते हुए चुतर को देख कर परोस के कयी नवजवन, और बुरहे आदमी का दिल मचल जता है और उनके लुनद खरा हो जता है। परोस के कै लरकोन ने कफ़ी कोशिश की लेकिन उशा उनके हथ नही आउई। उशा अपने परहैए और उनिवेरसिती के सनगी सथी मे हि मुशगूल रहती थी। थोरे दिनो के बद उशा कि शदी उसि सहर के रहने वले एक पोलिसे ओफ़्फ़िसेर से तया हो गयी।

उस लरके के नम रमेश था और उसके पितजी का नम गोविनद था और सब उनको गोविनदजी कहकर बुलते थे। गोविनदजी अपने जवनी के दिनो मे और अपनि शदि के बद भि हर औरत को अपनि नज़र से चोदते थे और जब कभि मौका मिलता था तो उनको अपनि लौरे से भि चोदते थे। गोविनदजी कि पतनि का नम सनेहलरा है और वोए क लेखिका है। अब तब गिरिजा जी ने करीब 8-10 कितबे लिख चुकि है। गोविनदजी बहुत चोदु है औरा अब तक वो अपने घर मे कैए लरकी और औरत को चोद चुके थे और अब जब कि उनका कफ़ी उमर हो गया था मौका पते हि कोइ ना कोइ औरत को पता कर अपनि बिसतेर गरम करते थे। गोविदजी का लुनद कि लुमबै करीब 8 1/2” लुमबा औ मोतै करीब 3 ½” है और वो जब कोइ औरत कि चूत मे अपना लुनद दलते तो करीब 25-30 मिनुत के पहले वो झरते नही है। इसिलिये जो औरत उनसे अपनि चूत चुदवा लेति है फिर दोबरा मौका पते हि उनका लुनद अपनि चूत मे पिलवा लरति हैन।

आज उशा का सुहगरत्त है। परसोन हि उसकि शदि रमेश के सथ हुए थी। उशा इस समय अपने कमरे मे सज धज कर बैथी अपनी पति का इनतिजर कर रही है। उसकि पति कैसे उसके सथ पेश अयेगा, एह सोच सोच कर उशा का दिल जोर जोर से धरक रहा है। सुहगरत मे कया कया होता है, एह उसको उसकी भभी और सहेलोएओन ने सब बता दिया था। उशा को मलुम है कि आज रत को उसके पति कमरे मे आ कर उसको चुमेगा, उसकि चुनसिओन को दबैगा, मसलेगा और फिर उसके कपरोन को उतर कर उसको ननगी करेगा। फिर खुद अपने कपरे उतर कर ननगा हो जयेगा। इसके बद, उसका पति अपने खरे लुनद से उसकि चूत कि चतनी बनते हुए उसको चोदेगा।

वैसे तो उशा को चुदवने कि तजुरबा शदी के पहले से हि है। उशा अपने सोल्लेगे के दिनो मे अपने सलस्स के कै लरकोन का लुनद अपने चूत मे उत्रवा चुकि है। एक लरके ने तो उशा को उसकि सहली के घर ले जा कर सहेली के समने हि चोदा था और फिर सहेली कि गनद भि मरी थी। एक बर उशा अपने एक सहलि के घर पर शदि मे गयी हुइ थी। वहन उस सहलि के भै, सुरेश, ने उसको अकेले मे चेर दिया और उशा का चुनची दबा दिया। उशा सिरफ़ मुसकुरा दिया। फिर सहली के भै ने अगे बरह कर उशा को पकर लिया और चुम लिया। तब उशा ने भि बरह कर सहली के भै को चुम लिया। तब सुरेश ने उशा के बलौसे के अनदर हथ दल उसकि चुनची मसलने लगा और उशा भि गरम हो कर अपनि चुनची मसलवने लगी और एक हथ से उसके पनत के उप्पेर से उसके लौनद पर रख दिया। तब सुरेश ने उशा को पकर कर चत पर ले गया। चत पर कोइ नही था, कयोनकी सरे घर के लोग नीचे शदी मे बयसते थे। चत पर जा कर सुरेश ने उशा को चत कि दिवर से खरा कर दिया और उशा से लिपत गया। सुरेश एक हथ से उशा कि चुनची दबा रहा था और दुसरा हथ सरी के अनदर दल कर उसकि बुर को सहला रहा था। थोरि देर मे हि उशा गरमा गयी और उसकि मुनह से तरह तरह कि अवज निकलने लगी। फिर जब सुरेश ने उशा कि सरी उतरने चहा तो उशा ने मना कर दिया और बोलि, “नही सुरेश हुमको एकदम से ननगी मत करो। तुम मेरा सरी उथा कर, पीचे से अपना गधे जैसा लुनद मेरि चूत मे पेल कर मुझे चोद दो।” लेकिन सुरेश ना मना और उसने उशा को पुरि तरह ननगी करके उसको चत के मुनदेर से खरा करके उसके पीचे जा कर अपना लुनद उसकि चूत मे पेल कर उसको खुब रगर रगर कर चोदा। चोदते समय सुरेश अपने हथोन से उशा कि चुनचेओन को भि मसल रहा था। उशा अपनि चूत कि चुदै से बहुत मजा ले रही थी और सुरेश के हर धक्के के सथ सथ अपनि कमर हिला हिला कर सुरेश का लुनद अपनि चूत से खा रही थी। थोरि देर के बद सुरेश उशा कि चूत चोदते चोदते झर गया। सुरेश के झरते हि उशा ने अपनि चूत से सुरेश का लुनद निकल दिया और खुद सुरेश के समने बैथ कर उसका लुनद अपने मुमह मे ले कर चत चत कर सफ़ कर दिया। थोरि देर के बद उशा और सुरेश दोनो चत से नीचे आ गये।

आज उशा अपनि सुहगरत कि सेज पर अपनि कै बर कि चुदि हुए चूत ले कर अपने पति के लिये बैथी थी। उसकि दिल जोर जोर से धरक रही थी कयोनकी उशा को दर था कि कहीन उसके पति एह ना पता चल जये कि उशा पहले हि चुदै का अनद ले चुकी है। थोरि देर के बद कमरे का दरवजा खुला। उशा ने अपनि अनख तीरची करके देझि कि उसकी ससुरजी, गोविनदजी, कमरे मे आये हुए हैन। उशा का मथा थनका, कि सुहगरत के दिन ससुरजी का कया कम आ गया है। खैर उशा चुपचप अपने आप को सिकोर बैथी रही। थोरि देर के बद गोविनदजी सुहग कि सेज के पस आये और उशा के तरफ़ देख कर बोला,”बेति मैं जनती हुन कि तुम अपने पति के लिये इनतिजर कर हो। आज के सब लरकेअन अपने पति का इनतिज़र करती है। इस दिन के लिये सब लरकिओन का बहुत दिनो से इनतिज़र रहती है। लेकिन तुमहरा पति, रमेश, आज तुमसे सुहगरत मनने नही आ पयेगा। अभि अभि थने से फोने आया था और वोह अपने उनिफ़ोरम पहन कर थने चला गया। जते जते, रमेश एह कह गया कि सहर के कै भग मे दकैती परी है और वोह उसके चनबिन करने जा रहा है। लेकिन बेति तु बिलकुल चिनता मत करना। मैं तेरा सुहगरत खली नही जने दुनगा।” उशा अपने ससुरजी कि बत सुन तो लिया पर अपने ससुर कि बत उसकि दीमग मे नही घुसा, और उशा अपना चेहेरा उथा कर अपने ससुर को देखने लगी। गोविनदजी अगे बरह कर उशा को पलनग पर से उथा लिया और जमीन पर खरा कर दिया। तब गोविनदजी मुसकुरा कर उशा से बोले, “घबरना नही, मैं तुमहरा सुहगरत बेकर जने नही दुनगा, कोइ बत नही, रमेश नही तो कया हुअ मैं तो हुन।” इतना कह कर गोविनदजी अगे बरह कर उशा को अपने बनहोन मे भर कर उसकि होथोन पर चुम्मा दे दिया।

जैसे हि गोविनदजी ने उशा के होथोन पर चुम्मा दिया, उशा चौनक गयी और अपने ससुरजी से बोलि, “एह आप कया कर रहेन है। मि अपके बैते कि पतनि हुन और उस लिहज से मैं आप कि बेति लगती हुन और मुझको चुम रहेन है?” गोविनदजी ने तब उशा से कह, “पगल लरकी, अरे मैं तो तुमहरि सुहगरत बेकर ना जये इसलिये तुमको चुमा। अरे लरकिअन जब शदि के पहले जब शिव लिनग पर पनि चरते है तब वो कया मनगती है? वो मनगती है कि शदि के बद उसका पति उसको सुहगरत मे खुब रगरे। समझी? उशा ने पनि चेहेरा नीचे करके पुची, “मैं तो सब समझ गयी, लेकिन सुहगरत और रगरने वलि बत नही समझी।” गोविनदजी मुसकुरा कर बोले, “अरे बेति इसमे ना समझने कि कया बत है? तु कया नही जनती कि सुहगरत मे पति और पतनि कया कया करते है? कया तुझे एह नही मलुम कि सुहगरत मे पति अपने पतनि को कैसे रगरता है?” उशा अपनि सिर को नीचे रखती हुइ बोलि, “हान, मलुम तो है कि पहलि रत को पति और पतनि कया कया करते और करवते हैन। लेकिन, आप ऐसा कयोन कह रहेन है?” तब गोविनदजी अगे बरह कर उशा को अपने बहोन मे भर लिया और उसकि होथोन को चुमते हुए बोले, “अरे बहु, तेरा सुहगरत खलि ना जये, इसलिये मैं तेरे सथ वो सब कम करुनगा जो एक अदमि और औरत सुहगरत मे करते हैन।”

उशा अपनि ससुर के मुनह से उनकि बत सुन कर शरमा गयी और अपने हथोन से अपना चेहेरा धनक लिया और अपने ससुर से बोलि, “है! एह कया कह रहेन है आप। मैं अपके बेते कि पतनि हुन और इस नते से मैं अपकि बेति समन हुन और मुझसे कया कह रहेन है?” तब गोविनदजी अपने हथोन से उशा कि चुनचिओन को पकर कर दबते हुए बोले, “हन मैं जनता हुन कि तु मेरि बेति समन है। लेकिन मैं तुझे अपने सुहगरत मे तरपते नही देख सकता और इसिलिये मैं तेरे पस अयह उन।” तब उशा अपने चेहेरे से अपना हथ हता कर बोलि, “थीक है बबुजी, आप मेरे से उमर मे बरे हैन। आप जो हि कह रहेन है, तीक हि कह रहेन हैन। लेकिन घर मे आप और मेरे सिबा और भि तो लोग हैन।” उशा का इशरा अपने ससुमा के लिये थी। तब गोविनदजी ने उशा कि चुनची को अपने हथोन से बलौसे के उपर से मलते हुए कह, “उशा तुम चिनता मत करो। तुमहरि ससुमा को सोने से पहले दूध पिने कि अदपत है, और आज मैं उनकि दूध मे दो नीनद कि गोलि मिला कर उनको पिला दिया है। अब रत भर वो अरम से सोती रहेनगी।” तब उशा ने अपने हथोन से अपने सौरजी कि कमर पकरते हुए बोलि, “अब आप जो भि करना है किजिए, मैं मना नहि करुजगी।”

तब गोविनदजी उशा को अपने बहोन मे भिनच लिया और उसकि मुनह को बेतहशा चुमने लगे और अपने दोनो हथोन से उसकि चुनचेओन को पकर कर दबने लगे। उशा भि चुप नही थी। वो अपने हथोन से अपने ससुर का लुनद उनके कपरे के उपर से पकर कर मुथिअ रही थी। गोविनदजी अब रुकने के मूद मे नही थे। उनहोने उशा को अपने से लग किया और उसकि सरी कि पल्लू को कनधे से नीचे गिरा दिया। पल्लू को नीचे गिरते हि उशा कि दो बरि बरि चुनची उसके बलौसे के उपर से गोल गोल दिखने लगी। उन चुनची को देखते हि गोविनदजी उन पर तुत परे और अपना मुनह उस पर रगरने लगे। उशा कि मुनह से ओह! ओह! अह! कया कर रहे कि अवजे अने लगी। थोरि देर के बद गोविनदजी ने उशा कि सरी उतर दिया और तब उशा अपने पेत्तिसोअत पहने हि दौर कर कमरे का दरवजा बनद कर दिया। लेकिन जब उशा कमरे कि लिघत बुझना चही तो गोविनदजी ने मना कर दिया और बोले, “नही बत्ती मत बनद करो। पहले दिन रोशनि मे तुमहरि चूत चोदने मे बहुत मज़ा अयेगा।” उशा शरमा कर बोलि, “तीख है मैं बत्ती बनद नही कर ती, लेकिन आप भि मुझको बिलकुल ननगी मत किजियेगा।” “अरे जब थोरि देर के बद तुम मेरा लुनद अपनि चूत मे पिलवओगी तब ननगी होने मे शरम कैसा। चलो इधर मेरे पस आओ, मैं अभि तुमको ननगी कर देता हुन।” उशा चुपचप अपना सर नीचे किये अपने ससुर के पस चलि आये।

जैसे हि उशा नज़दिक आयी, गोविनदजी ने उसको पकर लिया और उसके बलौसे के बुत्तोन खोलने लगे। बुत्तोन खुलते हि उशा कि बरि बरि गोल गोल चुनचिअन उसके बरा के उपर से दिखने लगी। गोविनदजी अब अपना हथ उशा के पीचे ले जकर उशा कि बरा कि हूक भि खोल। हूक खुलते हि उशा कि चुनची बहर गोविनदजी के मुनह के समने झुलने लगि। गोविनदजी तुरनत उन चुनचेओन को अपने मुनह मे भर लिया और उनको चुसने लगे। उशा कि चुनचेओन को चुसते चुसते वो उशा कि पेत्तिसोअत का नरा खीनच दिया और पेत्तिसोअत उशा के पैर से सरकते हुए उशा के पैर के पस जा गिरा। अब उशा अपने ससुर के समने सिरफ़ अपने पनती पहने कहरी थी। गोविनदजी ने झत से उशा कि पनती भि उतर दी और उशा बिलकुल ननगी हो गयी। ननगी होते हि उशा ने अपनि चूत अपने हथोन से धक लिया और सरमा कर अपने ससुर को कनखेओन से देखने लगी। गोविनदजी ननगी उशा के सामने जमीन पर बैथ गये और उशा कि चूत पर अपना मुनह लगा दिया। पहले गोविनदजी अपने बहु कि चूत को खुब सुघा। उशा कि चूत से निकलती सौनधी सौनधी खुशबु गोविनदजी के नक मे भर गया। वो बरे चव से उशा कि चूत को सुनघने लगे। थोरि देर के बद उनहोने अपना जीव निकल कर उशा कि चूत को चतना सुइरु कर दिया। जैसे हि उनका जीव उशा कि चूत मे घुसा, तो उशा जो कि पलनग के सहरे खरे थी, पलनग पर अपनि चुतर तिका दिया और अपने पैर फ़ैला कर अपनि चूत अपनि सौसर से चतवने लगी। थोरि देर तक उशा कि चूत चतने के बद गोविनदजी अपना जीव उशा कि चूत के अनदर दल दिया और अपनि जीव को घुमा घुमा कर चूत को चुसने लगे। अपनि चूत चतै से उशा बहुत गरम हो गयी और उसने अपने हथोन से अपनि ससौर का सिर पकर कर अपनि चूत मे दबने लगी और उसकि मुनह से सी सी कि अवजे भि निकलने लगी।

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