RE: कुंवारी बुर के छेद का आपरेशन-1
मैंने चाची से कहा- शायद यह आपके सामने कुछ नहीं बताना चाहती। आप थोड़ी देर के लिए बाहर चली जाइए।
चाची बाहर चली गईं।
मैंने गीता का मुँह पकड़ा और ऊपर करते हुए फिर से पूछा- बताओ क्या परेशानी है?
गीता ने फिर कोर्इ जवाब नहीं दिया।
तो मैंने कहा- चाची कह रही थीं कि मासिक धर्म के समय तुम्हारे अन्दर से खून नहीं निकलता है?
तो उसने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया।
मैंने कहा- जब तक कुछ मुँह से कहोगी नहीं, तो कैसे पता चलेगा।
फिर गीता ने कुछ मुँह से बुदबुदाया।
मैंने कहा- यहाँ कोर्इ नहीं है। दरवाजा भी बंद है.. जोर से कहो।
तो गीता ने कहा- मुझे शर्म आ रही है।
मैंने कहा- तुम्हें शर्माने की कोर्इ जरूरत नहीं है। मैं एक डाक्टर हूँ और डाक्टर का काम लोगों का इलाज करना है।
तब गीता ने कहा- मेरी पेशाब ठीक से नहीं होती है और मासिक धर्म के समय बहुत कम खून निकलता है।
मैंने कहा- यह बहुत ही गंभीर बीमारी है। इसका लिए तुमको इलाज कराना ही होगा।
मैंने चाची को कमरे में बुलाया और कहा- इसका चैकअप करना होगा।
मैं गीता को जहाँ सारी मशीनें लगी थीं उस कमरे में लेकर गया। मैंने गीता से सलवार उतारकर मेज पर लेट जाने को कहा।
गीता ने कोर्इ जवाब नहीं दिया, वह शर्मा रही थी।
मैंने गुस्से से कहा- तुम्हारा चैकअप होगा और कुछ नहीं करूँगा।
तो गीता डर गई और पीछे मुँह करके सलवार का नाड़ा खोलने लगी। वो धीरे-धीरे सलवार को नीचे सरकाने लगी। सलवार के नीचे सरकते ही उसकी गांड दिखने लगी। जिसे देखकर मेरी उत्तेजना बढ़नी लगी।
अब गीता की सलवार खिसक कर उसके पैरों के पास पड़ी हुई थी और गीता पेंटी पहने हुई खड़ी थी। मैं चुपके से गीता के पास गया और उसके कमर पर हाथ रखा.. तो गीता एकदम से उछल गई और आगे की तरफ बढ़कर मेरे हाथों पर अपने हाथ रख दिया।
मैंने उसकी कमर पर हाथ सहलाते हुए गीता से कहा- यहाँ कोर्इ नहीं है.. शर्म मत करो।
मैं अपने हाथों को कमर से सहलाते हुए उसके बुरड़ पर ले जाकर उसकी चड्डी को उतारने लगा।
गीता के सुबकने की आवाज आने लगी, उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे।
मैंने गीता को चुप कराया और कहा- अगर चैकअप नहीं होगा तो इलाज कैसे होगा।
मैंने यह कहते ही गीता की चड्डी पकड़कर नीचे सरका दी।
अब मेरे सामने गीता नंगी खड़ी थी जिसे देखकर मेरा लंड बार-बार झटके मार रहा था और गीता की गांड से बार-बार टच कर रहा था। जिसका अनुभव शायद गीता भी कर रही थी।
फिर मैंने गीता को उठाकर मेज पर लेटा दिया, गीता चुपचाप लेट गई, मैंने उसके पैरों को पकड़ कर फैलाया तो बुर, पंखुड़ियों की तरह आपस में चिपकी हुई नजर आ रही थी।
मैंने गीता की तरफ देखा तो गीता अपनी आंखों की हाथों से बंद किए हुए थी। मैं धीरे-धीरे अपने हाथ उसके पैरों पर फेरते हुए उसकी जांघों की ओर ले जाने लगा तो गीता का हाथ मेरे हाथों को रोकने लगा।
लेकिन मैंने आहिस्ता-आहिस्ता उसके हाथों को नजरअंदाज करते हुए अपने हाथ उसकी दोनों जांघों के मध्य ले गया और उसकी बुर के ऊपरी उभार पर हाथ लगा दिया।
गीता एकदम से उछल गई और मेरा हाथ रोकने का प्रयास करने लगी।
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