RE: कुंवारी बुर के छेद का आपरेशन-1
पिताजी ने कुछ लोगों को बुलाकर घर की साफ-सफार्इ करवाई और पूरे गांव के लोगों से कहा- यह मेरे बेटा संजीव है। जो कि लंदन से डाक्टरी करके आया है, अब तुम लोगों का यही इलाज करेगा।
मैंने भी सिर हिलाकर सबको आश्वासन दिया।
अगले दिन पिता जी शहर चले गए क्योंकि मां अकेली थीं, शहर में उन्हें कुछ काम भी था।
पिताजी गांव के लोगों से मेरा ख्याल रखने को कह गए। जिस पर लोग मुझे सुबह-शाम खाना एवं नाश्ता का इंतजाम कर देते थे।
मैंने घर के बाहर वाले कमरे में अपना क्लीनिक बनाया और बगल वाले दो कमरों का दरवाजा भी इसी कमरे में कर दिया.. जिसमें कर्इ सारी मशीनें व इलाज में प्रयोग होने वाले सामान उसमें रखे।
अब मैंने घर के आगे वाले हिस्से को पूरा अस्पताल बना दिया और लोगों का इलाज शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे गांव के अलावा अन्य गांवों के लोग भी मेरे क्लीनिक पर आने लगे। मेरा क्लीनिक खूब चलने लगा और आमदनी भी ठीक-ठाक होने लगी।
क्लीनिक में आने वाली महिलाओं और लड़कियों के हाथ पकड़ता तो करेंट सा दौड़ने लगता। आला लगाने के बहाने लड़कियों के सीने को छूता तो लंड खड़ा हो जाता। कभी-कभी तो लड़कियां को मेरा लंड छू भी जाता था।
ऐसे ही कर्इ दिन बीत गए लेकिन चुदार्इ करने को नहीं मिल रहा था।
एक दिन सुबह पड़ोस की चाची नाश्ता लेकर आई और कहने लगीं- बेटा अगर कोर्इ डाक्टर और हो तो बताओ?
मैंने कहा- क्यों क्या हुआ। मैं हूँ तो.. कहो क्या तबीयत खराब है?
तो चाची बोलीं- नहीं बेटा.. मेरी तबीयत नहीं खराब है मेरी बेटी गीता को दिक्कत है।
मैंने कहा- क्या हुआ गीता को?
तो बोलीं- अब क्या बताऊँ बेटा.. मुझसे कहा नहीं जाता है।
मैंने कहा- अगर बताओगी नहीं तो इलाज कैसे होगा.. और मैं एक डाक्टर हूँ। डाक्टर से कैसा शर्माना?
चाची बोलीं- गीता की शादी तय हो गई है और उसे मासिक धर्म आने के समय पेट में बहुत दर्द होता है और खून भी रुक-रुककर आता है। मैं तो बहुत परेशान हूँ। गीता भी बहुत परेशान है कि कहीं कुछ गड़बड़ी तो नहीं है।
मैं पूरी बात समझ गया था, मैंने चाची से कहा- चिंता करने की कोर्इ बात नहीं है, गीता को ले आओ, मैंने स्त्री रोग विशेषज्ञ की ही पढ़ार्इ कर रखी है। किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है, चुपचाप आज दोपहर को लेकर आना।
मैंने चाची को सारी मशीनें दिखाईं और कहा- ये सब मशीनें इसी सबके लिए हैं।
चाची चुपचाप रोती हुई चली गईं।
दोपहर को वे गीता को लेकर क्लीनिक पर आ गईं।
गीता को देखते ही मेरे होश उड़ने लगे, 18 साल की उभार लेती जवानी मेरे सामने खड़ी थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसकी चूचियां शरीर से बाहर निकल कर फट ही जाएंगी।
उसकी गदर जवानी को देखकर मेरा लंड उछाल मारने लगा।
थोड़ी देर तक तो मैं गीता को देखता ही रहा है और उसे चोदने का प्लान बनाने लगा।
चाची बोलीं- बेटा, मैं गीता को लेकर आ गई, अब तुम ही इसका इलाज कर सकते हो।
चाची फिर से रोने लगी।
मैंने चाची को चुप कराया और गीता से मासिक धर्म संबंधित कुछ सवाल पूछे तो गीता ने कोर्इ जवाब नहीं दिया।
मैंने कहा- देखो गीता.. अगर बताओगी नहीं तो इलाज कैसे होगा।
गीता ने शर्म से सिर नीचे कर लिया।
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