RE: गुलाबो
गुलाबो, किस का फोन था... चाचा ने बेडरूम में घुसते हुए पूछा।
कुछ नहीं दीदी का था । मेंने कहा
चाचा: क्या कह रही थी।
मुझे हंसी आ गई और हंसते हुए बोली...कह क्या रही थी मेरा इंटरव्यू ले रही थी , हमारी सेक्स लाइफ के बारे में।
चाचा : तूने क्या कहा?
में: मेंने सब कुछ डिटेल में बता दिया ।
फिर ... चाचा ने उत्सुकता से पूछा।
कह रही थी कि आपसे कहूं कि उनके लिए भी कोई इंतजाम कर दे , उन्होंने आज तक किसी मर्द का खड़ा लंड नहीं देखा। ... मेंने हंसते हुए कहा।
खडे लंड को देखने के लिए तेरी जैसी हिम्मत चाहिए है , मेरी जान चाचा ने मुझे बांहों में कसते हुए कहा।
मेरे मे तो हिम्मत आपके कारण आई जी.... मेंने चाचा को खुश करने के लिए कहा।
चल उसके लिए भी कुछ सोचते हैं चाचा ने कहा ...अब उनके हाथ मेरी पीठ से हट कर मेरे भारी नितम्बों को बुरी तरह मसल रहें थे।
छोड़ो जी आप फिर शुरू मत हो जाना, अभी दोपहर में तो में तो रगड़ रगड़ कर मेरे सारे नट बोल्ट ढीले कर दिये, अभी तक सारा शरीर दुख रहा है... में अपने आप को चाचा से छुड़ाते हुए बोली।
जाहिर है में चाचा की ईगो को सन्तुष्ट करने के लिए झूठ बोल रही थी अन्यथा मेरी गांड़ तो हमेशा लंड खाने को तैयार रहती थी।
यार मैं सोच रहा था कि बसंत कौर ( दीदी) का टांका रमेश के साथ फिट करना दूं ... अचानक चाचा खुशी से चहकते हुए बोला।
में : ये रमेश कौन है जी।
चाचा : मेरे साथ ही काम करता है, तीस साल का कुवांरा है, उसका भी कहना है कि उसने आज तक किसी औरत की चूत नहीं देखी। मुठ मार कर काम चलाता है।
में : यह तो बहुत बढ़िया रहेगा जी , अगर दोनों एक दूसरे को पसंद कर लें , और हम उनकी शादी करवा दें , तो परिवार में अपना रुतबा भी बढ़ेगा।
मेरी जान बहुत होशियार है... कहते हुए चाचा ने झुक कर मेरे नितंब पर घाघरे के ऊपर से ही काट लिया
उईईईई क्या करते हो , कोई ऐसे करते हैं क्या, जानवरों की तरह ... में चिल्लाई।
चाचा: अरे यार एक आइडिया आया है, आज रात हम छत पर खुले आसमान में, जानवरों की तरह नंगे रहेंगे और जानवरों की तरह ही चुदाई करेंगे , हाथों का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होगा।
नहीं बाबा, मुझे तो खुले में चुदने में शर्म आएगी... मेंने इतराते हुए कहा। हालांकि मन ही मन में खुश थी कि एक नया प्रयोग होगा।
चाचा : शर्म वरम कुछ नहीं अब तो तय हो गया, में बाजार जाकर नी पेड ले आता हूं, ताकि घुटने ना छिलें।
ये कह कर चाचा बाजार चले गए। खुले आसमान के नीचे जानवरों की तरह नंगे घूमेंगे और चुदाई करेंगे ये सोच कर ही में रोमांचित हो रही थी, मेरी गांड़ में तीव्र खुजली होने लगीं थीं।
रात के ग्यारह बजे थे, चाचा अब तक चार पैग चढ़ा चुके थे
'गुलाबो' चाचा ने जोर से पुकारा।
आ रही हूं जी...मेंने जबाब दिया ।
में बैठक में पहुंची , देखा चाचा सोफे पर बैठ कर शराब पी रहे थे , अब बस भी करो जी कितनी पियोगे... मेंने अधिकार पूर्ण स्वर में कहा।
इधर आ मेरी रानो मेरे सामने...ये आखरी पैग है , अब नहीं पियूंगा,अब बस तुझे देखूंगा।.... चाचा नशे की तरंग में बोला।
में चाचा के सामने जा कर खड़ी हो गई.... हां जी देखो क्या देखना है।.... मेंने कहा।
ऐसे नहीं...कह कर चाचा ने मेरे घाघरे का नाड़ा खोल दिया , मेरा घाघरा सरसराते हुए जमीन पर जा गिरा , फिर चाचा ने मेरी चोली की डोरी खोल कर वो भी उतार दी, अब मैं चाचा के सामने मादरजात नंगी खड़ी थी।
चाचा ने मेरे हल्के से उभरे हुए पेट को प्यार से चूमा, और अपने हाथ पीछे ले जाकर मेरे मारी नितम्बों को हिलाने लगा।
मेरी जान पता है तेरे इन पुष्ट गुलाबी नितम्बों की मादक थिरकन देख किसी साधु संत की नियत भी खराब हो सकती हैं। ......चाचा शराब के नशे में भावुक होते हुए बोले।
में : अरे छोड़िये भी आप कैसी बात करते हैं।
मेरी जान में सही कह रहा हूं, ...चाचा जीभ से मेरी चूचियां चूस रहे थे.... तेरा शरीर इतना कामुक है ना कि मुझे हमेशा यही डर सताता रहता है कि मैं तो काम पर चला जाता हूं, पीछे से तुझे अकेला पाकर कोई तेरे साथ बलात्कार ही ना कर जाए, में घर लौटूं तो पता चले मेरी गुलाबो का सामूहिक बलात्कार हो गया । .... चाचा अत्यंत ही भावुकता में बोला।
अजी ऐसा कहीं होता है... मेंने कहा मगर मेरे दिमाग में सामुहिक बलात्कार की फेन्टैसी जन्म ले चुकी थी, में सोच रही थी अगर ऐसा हो जाए तो कितना मज़ा आएगा, तीन तीन मर्द मेरे शरीर से चिपके होंगे और अलग-अलग तरह के लंड से मुझे चोदेंगे।
मेंने चाचा से कहा....ये सब छोड़िये और अपनी बछिया पर चढ़ने की तैयारी कीजिए.... मेंने नी पैड पहन लिये थे और चौपाया बन चाचा की तरफ अपनी गांड़ करके गरमाई गाय की तरह रम्भाते हुए अपने चूतड हिला रही थी।
मेरी ये हरकत देख चाचा ने तुरंत अपनी तहमद और बनियान उतार फेंक दी और नी पेड पहन कर चौपाया बन गया। चाचा बालों भरे विशाल काछले शरीर के कारण एकदम काला सांड लग रहा था, चाचा सांड की तरह मुंह उठाकर डकराया, मेंने देखा चाचा का लंड धीरे धीरे झटके खाता हुआ खड़ा हो रहा है।
में चौपाया की तरह सीढ़ियों की तरफ भागी, मेरे पीछे पीछे सांड रुपी चाचा भी रम्भाते हुआ दौड़ा। कुछ ही झण में हम दोनों छत पर खुले आसमान के नीचे थे।
छत पर पहुंच कर मैं इधर उधर देख कर रम्भाई, तभी पीछे से मेरा सांड आकर मेरी गांड़ सूंघने लगा, में बिदक कर आगे बढ़ गई सांड भी मेरे पीछे पीछे आया और मेरी गांड़ चाटने लगा, उत्तेजना से मेरा मुंह गाय की तरह खुला गया।
अब सांड ने अपने आगे के दोनों पैर ( हाथ) मेरी पीठ पर रख कर एक जबरदस्त धक्का मारा , लंड मेरे चूतड़ों से जोर से टकराया और एक तरफ को फिसल गया।
शर्तों के अनुसार ना तो हाथों का इस्तेमाल करना था , ना ही किसी लुब्रिकेटिंग जैल का , चुदाई बिल्कुल जानवर की तरह करनी थी बिना किसी मदद के । यह एक विकट स्थिति थी, मेरे सहयोग के बिना मेरी गांड़ में लंड प्रवेश कर ही नहीं सकता था , इसलिए मैंने सांड को कुछ देर सताने का मन बना लिया था।
अब हालत यह थी कि जब भी सांड लंड अंदर डालने के लिए धक्का लगाता में आगे भाग लेती , और उसका लंड मेरे चूतड़ों से टकरा कर इधर उधर फिसल जाता।
ये खेल करीब आधा घंटा चलता रहा, फिर मुझे सांड के लंड पर दया आ गई , और में छत के एक कोने में गांड़ निकाल कर खड़ी हो गई, सांड छत के बीचों बीच हताशा की स्थति में खड़ा मुझे याचना भरी नजरों से देख रहा था।
मुझे कोने में खड़ा देख वो धीरे धीरे मेरी तरफ आया और अपने आगे के दोनों पैर मेरी पीठ पर रख , अपने सुपाड़े को मेरी गांड़ के छेद पर रखने की कोशिश करने लगा, इस बार मैंने सहयोग किया और अपनी गांड़ हिला कर उसके सुपाड़े को अपने छेद पर लगा लिया। तभी मुझे अपनी गांड़ के छेद पर गर्म गर्म चिकना तरल पर्दाथ फैलता हुआ महसूस हुआ। उसने अपना पेशाब तथा प्रीकम मेरी गांड़ पर निकाल दिया था ताकि छेद को चिकनाई मिल जाए।
में बिल्कुल कोने में खड़ी थी इसलिए इधर उधर भाग भी नहीं सकतीं थीं। तभी सांड ने एक करारा धक्का मारा और उसका आधे से ज्यादा लंड मेरी गांड़ में घुस गया, में लड़खड़ाई और मुंह घोल के ऐंएऐंऐंऐं करने लगी, तभी दूसरा धक्का लगा और पूरा लंड अंदर घुसा दिया , मेंने बिदक कर इधर उधर होकर लंड गांड़ से निकालने की कोशिश करी पर कामयाब नही हो सकी ।
मेंने जो सांड को आधा घंटा तरसाया था अब वो उसका बदला ले रहा था और हुमच हुमच कर तेज धक्के लगा रहा था पूरी छत धप धप की आबाज से गूंज रही थी।
, में पिछले बीस मिनट से चौपाया बनी सांड के धुआंधार धक्के खा रही थी, मेरे पैरों और हाथों में तेज दर्द हो रहा था परन्तु में चीख चिल्ला भी नहीं सकतीं थीं क्योंकि
में तो बछिया के रोल में थी । अतः सिर्फ मुंह खोल के रम्भा रही थी।
करीब आधे घंटे की चुदाई के बाद सांड ने ढेर सारा वीर्य मेरी गांड में उड़ेल दिया, हम दोनों की सांसें तेज तेज चल रही थी तथा शरीर पसीने में लथपथ थे, थोड़ी देर सांड मेरे ऊपर ऐसे ही चढ़ा रहा फिर पुच की आवाज के साथ अपना लंड मेरी गांड़ से बाहर निकाल लिया, लंड के निकलते ही मेरी गांड़ से वीर्य बाहर बहने लगा , सांड ने उसे चाट कर मेरी गांड़ अच्छे से साफ करी , मेंने भी सांड के लंड को प्यार से चूमा फिर उसे चांटा कर साफ़ कर दिया। चुदाई का यह अनुभव मेरा अब तक का सबसे अच्छा अनुभव था।
हम लोग कुछ देर छत पर ही लेटे रहे फिर बेडरूम मे आकर सो गये।
क्रमशः
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