Desi Chudai Kahani मकसद
मकसद
मेरी आंख खुली ।
सबसे पहले मेरी निगाह सामने दीवार पर लगी रेडियम डायल वाली घड़ी पर पड़ी ।
डेढ़ बजा था ।
यानि कि अभी मुझे बिस्तर के हवाले हुए मुश्किल से दो घंटे हुए थे ।
मेरी दोनों आंखें अपनी कटोरियों में गोल-गोल घूमीं । यूं बिना कोई हरकत किए, बिना गर्दन हिलाए मैंने अपने बैडरूम में चारों नरफ निगाह दौड़ाई । अंधेरे में मुझे कोई दिखाई तो न दिया लेकिन मुझे यकीन था कि कोई कमरे में कोई था और किसी की वहां मौजूदगी की वजह से ही मेरी आंख खुली थी ।
रात के डेढ़ बजे बंद फ्लैट में मेरे बेडरूम मे कोई था ।
अपने आठ गुणा आठ फुट के असाधारण आकार के पलंग पर मैं कुछ क्षण स्तब्ध पड़ा रहा, फिर मैंने करवट बदली और साइड टेबल पर रखे टेबल लैम्प की तरफ हाथ बढ़ाया ।
मेरा हाथ टेबल लैंप के स्विच तक पहुंचने से पहले ही कमरे में रोशनी हो गई । अंधेरा कमरा एकाएक ट्यूब लाइट की दूधिया रोशनी से जगमगा उठा ।
तब मुझे स्विच बोर्ड के करीब खड़ा एक पहलवान जैसा आदमी दिखाई दिया जो अपलक मुझे देख रहा था और पान से बैंगनी हुए मसूढे और दांत निकालकर हंस रहा था - खामखाह हंस रहा था । उसने अपनी पीठ दीवार के साथ सटाई हुई थी और अपने हाथ में वह एक सूरत से ही निहायत खतरनाक लगने वाली रिवॉल्वर थामे था । रिवॉल्वर वह मेरी तरफ ताने हुए नहीं था लेकिन मैं जानता था कि पलक झपकते ही वो रिवॉल्वर न सिर्फ मेरी तरफ तन सकती थी बल्कि उसमें से निकली गोली मेरे जिस्म में कहीं भी झरोखा बना सकती थी ।
तभी कोई खांसा ।
तत्काल मेरी निगाह आवाज की दिशा में घूमी ।
सूरत में पहलवान जैसा ही खतरनाक लेकिन अपेक्षाकृत नौजवान एक दादा पलंग के पहलू में पिछली दीवार से टेक लगाए खडा था ।
“जाग गए ।” - पहलवान सहज स्वर में बोला ।
“तुम्हें क्या दिखाई देता है ?” - मैं भुनभुनाया ।
“जल्दी जाग गए । बिना जगाए ही जाग गए । कान बड़े पतले हैं या अभी सोए ही नहीं थे ?”
“कौन हो तुम ! क्या चाहते हो ? भीतर कैसे घुसे?”
“अल्लाह ! इतने सारे सवाल एक साथ !”
“'जवाब दो ।”
“तू तो कोतवाल की तरह जवाब तलबी कर रहा है ?”
“उस्ताद जी” - पीछे पलंग के पहलू में खड़ा नौजवान दादा बोला - “मांरू साले को !”
“नहीं, नहीं ।” - पहलवान बोला - “मारेगा तो ये मर जायेगा ।”
“एकाध पराठा सेंक देता हूं ।”
“न खामखाह खफा हो जाएगा । हमने इसे राजी-राजी रखना है ।”
नौजवान के चेहरे पर बड़े मायूसी के भाव आये । ‘पराठा सेंकने को’ कुछ ज्यादा ही व्यग्र मालूम होता था वो ।
मैंने वापस पहलवान की तरफ निगाह उठाई ।
“राजी-राजी क्यों रखना है मुझे ?” - मैंने पूछा ।
“एकदम वाजिब सवाल पूछा ।”
“क्यों रखना है ?”
“भय्ये राजी रहेगा तो सब कुछ राजी राजी करेगा न ! राजी नहीं रहेगा तो अङी करेगा, पंगा करेगा, लफड़ा करेगा । आधी रात को लफड़ा कौन मागता है ?”
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