RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
अब शादी ब्याह में तो सब तरह के रिश्तेदार आते ही हैं. अमीर गरीब, शहरी ग्रामीण, अलग अलग मिजाज वाले. तो वो छोरी भी उन लड़कियों के झुण्ड में चुपचाप सी शामिल थी. बोल भी न के बराबर रही थी. मैं उसकी मनःस्थिति को चुपचाप ताड़ रहा था; जरूर वो बेचारी हिंगलिश … आधी अंग्रेजी आधी हिंदी … में गिटपिट करती उन मॉडर्न तितलियों से तालमेल नहीं बैठा पा रही थी और शायद इसी कारण हीन भावना या इन्फीरियरटी काम्प्लेक्स से भी ग्रस्त दिखती थी. पर हां … उत्सुकतापूर्वक उन मॉडर्न छोरियों के हाव भाव उनके स्टाइल्स आत्मसात या सीखने की कोशिश में जरूर लगती थी.
एक बात और मैंने नोट की कि वो गाँव की बाला जवान लड़कों को मुस्करा मुस्करा के गहरी, अर्थपूर्ण नज़रों से देखती थी शायद किसी को खुद पर आशिक करवाने की फिराक में थी और अपना सबकुछ लुटा देने, किसी के साथ ‘सेट’ हो जाने की सोच कर ही शादी में आयी थी; पर उसे कोई भाव देता नज़र नहीं आ रहा था.गांव देहात की ऐसी बालाएं खूब मेहनत करती हैं; खेतों में, घर के कामकाज में … जिससे उनका बदन खूब कस जाता है; इनके ठोस मम्में और बेहद कसी हुई चूत लंड को निहाल कर देती है. मगर ये नयी उमर के छोरे तो उन रंगीन तितलियों को इम्प्रेस करने के फेर में थे. वे बेचारे क्या जानें कि जो मज़ा ये देहाती हुस्न देगा उसका मज़ा, उसकी लज्जत उसका जायका ही अलग होगा.
अब शादी ब्याह में तो ये सब चलता ही है और किसी की चुदाई भी हो जाय तो कोई बड़ी बात नहीं. कोई भी लडकी घर से निकल कर ज्यादा उन्मुक्त महसूस करती है और अपनी दबी छुपी तमन्नाओं इच्छाओं को पूरा कर गुजरना चाहती है.ज्यादातर लड़कियां अपनी चुदने की इच्छा यूं ही अपने गाँव शहर से बाहर शादी ब्याह में, छुट्टियों में नानी के यहां, किसी अन्य रिश्तेदारी में या किसी ऐसे ही सुरक्षित माहौल में पूरी कर लेती हैं. क्योंकि वे ऐसे में ज्यादा सिक्योर फील करती हैं; चुदवाने के लिए सुरक्षित स्थान और माहौल इनकी पहली प्राथमिकता होती है; किससे चुदना है वो बात सेकेंडरी हो जाती है. चूत को तो लंड मिलना चाहिये और किसी को कानों कान खबर भी न हो बस.
अचानक किसी के फोन की घंटी बजने की तेज आवाज हॉल में गूँज उठी. नोकिया फोन की तीखी टिपिकल रिंगटोन थी वो. घंटी बजते ही वो ग्रामीण बाला झट से उठी और हॉल के मेरी तरफ वाले कोने की ओर बढ़ने लगी; जरूर ये उसी का फोन बजा था. मेरी निगाहें अभी भी उसी पर जमीं थीं. मेरी तरफ चल के आने से उसके उन्नत उरोज और कदली गुदाज जंघाओं के उभार उसके सलवार कुर्ते से स्पष्ट झांक रहे थे और छिपाए नहीं छिप रहे थे.
फिर उसने अपने कुर्ते में सामने से हाथ घुसा के फोन निकाला और किसी से बतियाने लगी. मैंने स्पष्ट देखा उसका फोन बाबा आदम के जमाने का नोकिया कम्पनी का घिसा पिटा सा एक इंच स्क्रीन वाला फोन था और वो फोन को अपनी हथेली में छिपाए बात कर रही थी.
बात ख़त्म करके उसने फोन को वापिस अपने कुर्ते में धकेल दिया और वापिस उन्ही लड़कियों की तरफ जाने लगी. मैंने पीछे से देखा तो उसके कुर्ते से झांकती उसकी ब्रा के स्ट्रेप्स और उसके ऊपर पहनी हुई शमीज का आकर साफ़ नज़र आ रहा था; कुर्ता नीचे की तरफ उसके गोल मटोल पुष्ट नितम्बों की दरार में फंसा हुआ था जिससे उसकी मादक चाल और भी मदमाती लगने लगी थी. उसके लम्बे बालों वाली चोटी क्रम से इस नितम्ब से उस नितम्ब पर उछल उछल कर दस्तक देती हुई लहरा रही थी.
ये सब देख कर न जाने क्यों मेरे जिस्म ने एक झुरझुरी से ली और मन में इस कामिनी की उफनती जवानी को रौंदने की, उसके जिस्म को भोगने की, उसे चोदने की चाह जग गयी.
वो कामिनी ऐसी ही मदमाती चाल से चलती हुई वापिस अपनी जगह पर बैठ गयी. इधर मैं उसकी रूपराशि निहारता हुआ, उससे अपनी आँखे सेंकता हुआ उसे ताकता रहा.अचानक उसकी नज़र मेरी तरफ उठी और मैंने भी उसे नज़र गड़ा कर, उसकी आंखों में आंखें डाल कर देखा तो उसने फौरन सकपका कर अपना मुंह फौरन दूसरी ओर घुमा लिया.
ये लड़कियां या स्त्रियां मर्दों की वैसी चाहत वाली वाली नज़रों को खूब पहचानती हैं, क्षणभर में आदमी की चाहत और नीयत भांप लेती हैं. यह गुण इन्हें ईश्वरीय देन है जो इन्हें छोटी उमर से ही ज्ञान करा देता है. इस तरह हमारी नज़रें यूं ही दो चार बार टकरायीं, अंतिम बार उसने कोई पांच सात सेकेण्ड के लिए मेरी ओर एकटक देखा, शायद वो मेरे मन उमड़ रही चाहत को फिर से पढ़ना और कन्फर्म करना चाहती हो और फिर वो अपनी कुर्सी घुमा कर मेरी तरफ पीठ करके बैठ गयी.
इस लड़की में अब मेरी उत्सुकता न जाने क्यों बढ़ने लगी थी. अब शादी में आई थी तो रिश्तेदारी का लिंक मुझसे भी कहीं न कहीं से तो जुड़ेगा ही, मैंने सोचा. मेरी सोच इस देसी बाला की ओर गहराती गयी … गाँव से शादी में आई है; पुराने ढंग का पहनावा, बालों में कंघी करके कसी हुई चोटी, गुजरे जमाने का फोन लिए… बात करने का देहातीलहजा और वैसे ही हावभाव ये सब चिह्न उसके फॅमिली बैकग्राउंड को बखूबी दर्शा रहे थे. नौजवानों को रिझाने या सिड्यूस करने के उपक्रम करती ये बाला लगता था कि किसी से चुदने की ठान के ही घर से निकली थी.
“आह कितना मज़ा आयेगा इसे भोगने में… देखने से कम उमर की और कुंवारी सी दिखती है … हो सकता है अभी तक सील पैक हो इसकी चूत … या चुद चुकी होगी गाँव में … हावभाव से तो प्यासी सी लगती है, चुद भी चुकी होगी तो ज्यादा से ज्यादा पच्चीस तीस बार चुद ली होगी … इतने से चूत का कुछ बिगड़ता थोड़े ही है. बहुत हॉर्नी फील कर रही होगी तभी तो लड़कों को आंख में आंख डाल के मुस्कुरा के देखती है … इसे पूरी नंगी करके भोगने में कैसा सुख मिलेगा … ये कैसी कैसी कलाबाजियां खाते हुए ये लंड लीलेगी …” ऐसे ऐसे न जाने कितने विचार मुझे मथने लगे.
“संभल जा सतीश …” अपनी बहूरानी के साथ शादी में आये हो; अगर कोई ऊँच नीच हो गयी, तूने कुछ गलत किया और लड़की ने शिकायत कर दी तो पूरी बिरादरी में थू थू हो जायेगी, तेरा सोशल स्टेटस खत्म हो जाएगा और अदिति बहू भी नफरत करने लगेगी तुझ से … मेरे भीतर से चेतावनी सी उठी तो मुझे आत्मग्लानि सी हुई और मैं वहां से उठ कर चल दिया.
दोपहर का एक बज चुका था. भूख भी लग आयी थी, बाहर पंडाल में जाकर देखा तो मेजों पर खाना सजा दिया गया था. खाना खाते ही आलस्य आने लगा.
साढ़े चार बजे बहू ने मुझे चाय के लिए जगा दिया- उठ जाइए पापा जी, टी टाइम!बहूरानी मुझे हिला कर जगा रहीं थीं. मैंने अलसाई आँखों से देखा तो वो मेरे ऊपर झुकी हुईं मेरा कन्धा हिला हिला के मुझे जगा रही थी. वही बंजारिन की वेशभूषा में थीं; मेरे ऊपर झुके होने के कारण उनके मम्मों की गहरी घाटी मेरे मुंह से कुछ ही इंच के फासले पर थी. मैंने शैतानी की और झट से मुंह ऊपर कर के दोनों मम्मों को चोली के ऊपर से ही बारी बारी से चूम लिया.
“आपके तो पास आना ही अपनी आफत बुलाना है. कोई शर्म लिहाज तो है नहीं … इतने लोगों के बीच भी सब्र नहीं है आपको?” बहूरानी मुझे झिड़कती हुई बोली.“क्या करूं बेटा, बंजारिन के कपड़ों में तू इतनी हॉट लग रही है कि बस. मेरा बस चले तो …”“रहने दो पापा जी, यहां कोई बस वस नहीं चलने वाला आपका … बस तो बस स्टैंड से चलती है वहीं चले जाओ.” बहूरानी खनकती हुई हंसी हंस दीं.
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