RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
अभी तक आपने पढ़ा कि मेरे बेटे को ट्रेनिंग पर जाना था तो अकेली रह गई बहू के पास मैं कुछ दिन के लिए रहने आ गया.
अब आगे:
“पापा जी, ये क्या लाये?” अदिति ने मेरे हाथ में पैकेट देख के पूछा और नीचे देखने लगी.
“अरे बेटा, ऐसे ही आज ड्रिंक करने का मन हुआ तो ले आया.” मैंने कहा.
“पापा जी, रखी तो थी फ्रिज में पूरी बाटल. मुझसे तो पूछ लेते.”
“चलो ठीक है. अब आ गई तो आ गई. तू ड्रिंक टेबल रेडी कर के बालकनी में रख दे. मैं फ्रेश हो के आता हूं.”
मैं नहाने के लिये वाशरूम में चला गया. शावर के नीचे अच्छी तरह से नहाया. पास ही में वाशिंग मशीन पर रखी बहूरानी की ब्रा और पैंटी पर नज़र पड़ी. ब्रा पैंटी देख कर मन ललचा गया. तो बहूरानी की पैंटी अपने लंड पर लपेट कर कम से कम मुठ तो मार ही सकता हूं.
यही सोच के मैंने एक हल्के नारंगी रंग की पैंटी उठा कर अपने लंड पर लपेट ली और ये सोचते हुए कि मेरा लंड अदिति बहूरानी की चूत में ही आ जा रहा है मैं जल्दी जल्दी मुठ मारने लगा और दूसरी सफ़ेद रंग की पैंटी को उठा के उसे सूंघते हुए जल्दी जल्दी मुठ मारते हुए झड़ने का प्रयास करने लगा. इस तरह किसी की चड्ढी लंड पर लपेट कर सूंघते हुए, उसकी चूत मारने की कल्पना करते हुए मुठ मारने का वो मेरा पहला अनुभव था, पहले कभी ऐसे विचार मन में आये ही नहीं.
करीब दस बारह मिनट मैं ऐसे ही अदिति की पैंटी को चोदता रहा और फिर पैंटी में ही झड़ कर उसी से लंड को अच्छे से पौंछ लिया और पैंटी वहीं डाल कर नहा कर बाहर आ गया.
अब मन कुछ हल्का फुल्का हो गया था.
बालकनी में बहूरानी ने ड्रिंक टेबल सजा दी थी. सोडे की दो बोतलें, ड्राई फ्रूट्स, टमाटर प्याज का सलाद और नीम्बू सजे थे. बहूरानी को पता था कि मैं नमकीन वगैरह फ्राइड स्नेक्स पसंद नहीं करता. इसलिए सब कुछ मेरी रूचि के अनुसार ही था. मैं अपने मोबाइल पर अपने पसंद के पुराने गाने सुनता हुआ ड्रिंक करता रहा, उधर बहूरानी टीवी पर अपना पसंदीदा सीरियल देख रही थी.
बालकनी में बैठ कर यूं ड्रिंक एन्जॉय करना बहुत भला लग रहा था. सड़क पर आते जाते ट्रैफिक को देखते हुए ठण्डी हवा का लुत्फ़ और मोबाइल पर बजता मेरी पसन्द का गाना…
“आ जाओ तड़पते हैं अरमां अब रात गुजरने वाली है, मैं रोऊँ यहां तुम चुप हो वहां अब रात गुजरने वाली है…”
आँख बंद करके मैं यूं ही बहुत देर तक एन्जॉय करता रहा.
“पापा जी, चलो अब खाना खा लो!” बहूरानी की आवाज ने मुझे जैसे सोते से जगाया.
“ओह, हां… ठीक है अदिति बेटा चल खा लेते हैं.” मैंने जवाब दिया. मैंने झट से एक लास्ट पैग बनाया और एक सांस में ही ख़त्म करके उठ गया.
मैं और अदिति डाइनिंग टेबल पर आमने सामने थे. बहूरानी ने भी स्नान करके सामने से खुलने वाली नाइटी पहन ली थी. पापी मन ने मुझे फिर उकसाया, मैंने चोर नज़र से उसके मम्मों के उभारों को ललचाई नज़रों से निहारा. उसके तने हुए निप्पल नाइटी के भीतर से अपनी उपस्थिति जता रहे थे साथ ही मुझे आभास हुआ कि नाइटी के नीचे उसने ब्रेजरी नहीं पहनी हुई थी, तो क्या बहूरानी ने पैंटी भी नहीं पहनी थी? नाइटी ओढ़ कर पूरी नंगी बैठी थी मेरे सामने?
उफ्फ्फ, अभी कुछ ही देर पहले मन को कितना समझाया था कि बेटा ‘अब और नहीं’ लेकिन बहूरानी का वो रूप देख कर मन फिर बेकाबू होने लगा. मैंने खुद को चिकोटी काट कर सजा दी और फिर से तय किया कि बस अब फिर से नहीं.
यही सब सोचते हुए हुए मैं खाना खाने लगा. बहूरानी भी नज़रें झुकाए धीरे धीरे खा रही थी. उसे देख कर लगता था कि वो भी किसी गहरी सोच या उलझन में है.
खाना बहुत ही स्वादिष्ट बना था वैसे भी बहूरानी के हाथ में स्वाद है कुछ भी बना दे, खा कर तसल्ली और तृप्ति भरपूर मिलती है सो मैंने अपनी उँगलियाँ चाटते हुए खाना ख़त्म किया
खाना ख़त्म हुआ तो बहूरानी बर्तन समेट कर सिंक में रखने चली गयी. बरबस ही, अनचाहे मेरी नज़रें फिर उठीं और मैं उसके मटकते पिछवाड़े को नज़रों से ओझल होने जाने तक देखता रहा.
मैं सोऊं कहां?? अब ये सवाल मेरे सामने था. चूंकि मैंने फैसला कर ही लिया था कि अब वो सब बातें फिर से नहीं दोहराना है अतः मैंने तय किया कि ड्राइंग रूम में दीवान पर ही सोऊंगा.
कुछ ही देर बाद बहूरानी डस्टर लेकर आई और डाइनिंग टेबल साफ़ करने लगी.
“अदिति बेटा, मैं वहां ड्राइंग रूम में दीवान पर ही सोऊंगा. वहां खिड़की से बाहर की अच्छी हवा आती है.” मैंने कहा.
मेरी बात सुनकर बहूरानी की नज़रें उठीं और वो मुझे कुछ पल तक गहरी, पारखी निगाहों से देखती रही, जैसे मेरी बात सुनकर उसे अचम्भा हुआ हो.
“ठीक है पापा जी. ‘अब’ जैसी आपकी मर्जी.” वो नज़रें झुका कर संक्षिप्त स्वर में बोली.
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