RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
तभी उस साए ने भीतर कदम रखा और अपने पीछे दरवाजा वापिस भिड़ा दिया और मेरे पहलू में आ के लेट गया। उसके बदन से उठती भीनी भीनी महक से पूरी कोठरी रच बस गई।
अचानक उस साये ने मेरी तरफ करवट ली और मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया।
‘सॉरी जानू, देर हो गई आने में! गुस्सा तो नहीं हो ना?’ कहते हुए वो मेरे नंगे बदन पर चूम चूम के हाथ फिराने लगी।
उसकी आवाज को पहचान कर जैसे मेरे ऊपर वज्रपात हुआ और दिमाग सुन्न सा हो गया।
मेरी इकलौती पुत्रवधू अदिति मेरे नंगे जिस्म को सहलाते हुए बोल रही थी।
मेरी बहू के उरोज मुझसे चिपके हुए थे और वो मुझे गलती से अपना पति समझ कर मुझसे चूमा चाटी करने लगी थी।
कुछेक पल के लिये मैं जड़वत हो गया, साँसें बेतरतीब हो गईं और पसीना आने लगा और लगा कि हार्ट अटैक आ जाएगा।
बहू अदिति लगातार मुझे अपने अंक में समेट रही थी और मेरे सीने पर फिरतीं उसकी हथेलियाँ मुझे जहाँ तहाँ जकड़ने लगीं थीं।
फिर उसने अपना एक पैर उठा के मेरे ऊपर रखा, उसकी मांसल जांघ का उष्ण स्पर्श मुझे अपने सीने पर महसूस हुआ और फिर उसने मेरी कमर के पास अपनी एड़ी अड़ा कर मुझे और कस लिया।
‘पता है गुस्सा हो मुझसे! ग्यारह बजे का बोला था न आपने, अब तो शायद एक बजने वाला होगा। क्या करती वो जबलपुर वाली इंदौर वाली और झांसी वाली भाभियाँ उठने ही नहीं दे रहीं थीं। सब अपने अपने रात के किस्से सुना रहीं थी कि उनके वो कैसे कैसे क्या क्या करते हैं!’
‘हेल्लो जी, कुछ तो कहिये… सच में सो गये क्या.. उठो न पूरे दो महीने होने वाले हैं जब हमने वो किया था। आ भी जाओ अब!’कहते कहते मेरी बहू अदिति ने अपनी बाहों में मुझे कस लिया और चूमने लगी।
‘हे ईश्वर यह कैसी घड़ी आन पड़ी मुझ पे!?!’ मैंने मन ही मन भगवान् का स्मरण किया। अपने जीवन में कभी किसी पर स्त्री को छूना तो दूर, कभी कुदृष्टि से भी नहीं देखा और आज मेरी पुत्रवधू जिसे मैंने हमेशा अपनी बेटी ही समझा, मेरी बेटी जिसका विवाह अभी तीन दिन पहले ही हुआ है, यह अदिति तो उससे भी दो वर्ष छोटी है उम्र में।’
‘क्या करूँ मैं? अदिति को डांट दूँ? बता दूँ उसको कि मैं उसका पति नहीं ससुर हूँ?… नहीं नहीं.. अगर ऐसा किया तो वो शर्म से जीवन भर मुझसे आँख नहीं मिला पाएगी और क्या पता वो लज्जावश और कोई घातक कदम उठा ले तो?’
ये सब सोच के मैंने चुपचाप और निष्क्रिय रहना ही ठीक समझा। मन ही मन भगवान से प्रार्थना भी कर रहा था कि मैं बेक़सूर हूँ, विवश हूँ, मुझे क्षमा करना और जो इस अँधेरी कोठरी में घट रहा है वह सदैव अँधेरे में ही रहे… इसी में हम सबका, इस घर का कल्याण है।
उधर अदिति कामातुरा होकर मुझे अपने से चिपटाए हुए मुझे चूम रही थी।
अचानक उसका हाथ मुझे सहलाते हुए नीचे की तरफ फिसल गया और मेरा तना हुआ कठोर लिंग उसके हाथ से छू गया।
मेरा मन तो बुझा हुआ था और छटपटा रहा था कि इस विवशता से कैसे मुक्ति मिले… लेकिन मेरा लिंग अविचल खड़ा था उस पर मेरा कोई वश नहीं रह गया था।
‘अच्छा जी, आप तो बोल नहीं रहे लेकिन आपके ये लल्लू जी तो कुछ और ही कह रहे हैं। देखो, मेरे आते ही ये कैसे तन खड़े होकर सैल्यूट मार रहा है मुझे! आखिर पहचानता है न मुझे!’ कहते हुए अदिति ने मेरा लिंग अपनी मुटठी में जकड़ लिया और चमड़ी को ऊपर नीचे करते हुए उसे सहलाने लगी, कभी मेरे अन्डकोषों को सहलाती, कभी लिंग के ऊपर उगे हुए बालों में अपनी उंगलियाँ फिराती। उसके कोमल हाथों का स्पर्श और महकते हुए जवान जिस्म की तपिश मुझे बेचैन किये दे रही थी, मैं बस जैसे तैसे खुद पर कंट्रोल रख पा रहा था।
‘सुनो जी, आपका ये लल्लू जी आज कुछ बदला बदला सा क्यों लग रहा है मुझे? जैसे खूब मोटा और लम्बा हो गया हो पहले से?’ वो मुझे चिकोटी काटते हुए बोली।
मैं क्या जवाब देता उसे… मैं तो बस उस पर से ध्यान हटाने की कोशिश में अपनी साँसों पर ध्यान लगाए था।
अचानक वह मुझसे अलग हुई और उसके कपड़ों की सरसराहट मुझे सुनाई दी, मैं समझ गया कि उसने अपने कपड़े उतार दिये हैं।
और फिर उसका नंगा बदन मुझसे लिपट गया।
‘अब आ भी जाओ राजा, और मत तरसाओ मुझे… समा जाओ मुझमें! देखो आपकी ये पिंकी कैसे रसीली हो हो के बह रही है।’ वो बोली और मेरा हाथ पकड़ कर अपनी योनि पर रख कर दबा दिया।
उसकी गुदगुदी पाव रोटी जैसी फूली और योनि रस से भीगे केशों का स्पर्श मुझे भीतर तक हिला गया।
फिर अदिति मेरा हाथ दबाते हुए अपनी गीली योनि पर फिराने लगी, मक्खन सी मुलायम उष्ण योनि ने मेरा स्पर्श पाते ही अपनी फांकें स्वतः ही खोल दीं और मेरी उंगलियाँ बह रहे रस से गीलीं हो गई।
मैं अभी भी क्रियाहीन और अविचल पड़ा था। हालांकि मेरे संस्कारों पर वासना हावी होने लगी थी, रूपसी कामिनी सम्पूर्ण नग्न हो कर मुझसे लिपटी हुई मुझे सम्भोग करने के लिये उकसा रही थी, मचल रही थी, आमंत्रित कर रही थी, झिंझोड़ रही थी।
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