vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
06-24-2019, 12:16 PM,
#33
RE: vasna story मजबूर (एक औरत की दास्तान)
थोड़ी देर बाद अज़मल प्लैटफ़ोर्म पर राउँड पे चला गया और उसके थोड़ी देर बाद रशीदा अपने कैबिन से बाहर निकली कर टॉयलेट की तरफ़ गयी तो मार्बल चिप वाले सिमेंट के पर्श पे सैंडल खटखटाती हुई वो सुनील के पीछे से गुजरी। दो छोटे-छोटे टॉयलेट उसी रूम में पीछे की तरफ़ थे जिनमें एक लेडीज़ था और एक जेंट्स का। सुनील की नज़र जैसे ही तंग कमीज़ और चुड़ीदार सलवार में कैद रशीदा की गाँड पर पड़ी तो उसका लंड तुनक उठा और उसका लंड ट्रैक-सूट के पजामे में कुलांचें मारने लगा। सुनील ने जो प्लैन सोचा था अब उसको काम में लाने का समय आ गया था। “आहह कैसी दिखती होगी रशीदा की गाँड... कितनी मोटी गाँड है साली की... एक बार मिल जाये तो आहहह.!” ये सोचते हुए सुनील का लंड पूरी औकात में आ गया। सुनील का लंड उसके ट्रैक-सूट के पजामे में तन कर तम्बू सा बन गया जो बाहर से देखने से साफ़ पता चल रहा था। थोड़ी देर बाद जब रशीदा के ऊँची हील के सैंडलों की फर्श पे खटखटा कर चलने की आवाज़ आयी तो सुनील अपनी पीठ पीछे टिका कर कुर्सी पर लेट सा गया और अपने पायजामे के ऊपर से अपने लंड को जड़ से पकड़ लिया ताकि वो ज्यादा से ज्यादा बड़ा दिख सके। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और वही हुआ जो सुनील चाहता था। जब रशीदा वापस आयी और सुनील के पीछे से गुज़रने लगी तो उसकी नज़र सुनील पर पड़ी जो अपने हाथ से अपने लंड को पायजामे के ऊपर से पकड़े हुए था। रशीदा एक दम धीरे-धीरे चलने लगी और सुनील के लंड का मुआयना करने लगी पर वो रुक नहीं सकती थी और वो वापस अपने कैबिन में गयी और कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगी। थोड़ी देर सोचने के बाद उसने नफ़ीसा को धीरे से बुलाया और अपने कैबिन में आने को कहा। नफ़ीसा अपने कैबिन से निकल कर रशीदा के कैबिन में गयी और एक कुर्सी रशीदा के करीब सरका कर बैठ गयी।

रशीदा धीरे से बोली, “अरे यार नफ़ीसा! लगता है आज सुनील का लंड उसे तंग कर रहा है... देख साला बाहर कैसे अपने लंड को पकड़ कर बैठा है!”
.
नफ़ीसा ने पूछा, “तूने देखा क्या उसे अपना पकड़े हुए...?”

रशीदा बोली, “हाँ अभी देखा है... जब मैं टॉयलेट से वापस आ रही थी... यार देख तो सही!”
.
नफ़ीसा उठी और रशीदा के कैबिन से निकल कर बाथरूम की तरफ़ जाने लगी। जब वो सुनील के पीछे से गुजरी तो उसने तिरछी नज़रों से सुनील की तरफ़ देखा जो अभी भी अपने आँखें बंद किये हुए कुर्सी पे आधा लेटा हुआ था। सुनील ने अभी भी अपना लंड हाथ में पायजामे के ऊपर से थाम रखा था। नफ़ीसा अच्छे से तो नहीं देख पायी और वो टॉयलेट में चली गयी। नफ़ीसा के जाने के बाद सुनील उठा और टॉयलेट की तरफ़ चला गया। वो जेंट्स टॉयलेट में घुसा और जानबूझ कर कुछ “आहह आहहह” की आवाज़ की और अपने पजामे को नीचे सरका दिया।

सुनील को पता था कि अज़मल जल्दी वापस नहीं आने वाला था। सुनील ने अपने टॉयलेट का दरवाजा थोड़ा सा खोल रखा था और दीवार की तरफ़ देखते हुए अपने लंड को हाथ से सहलाने लगा। नफ़ीसा बगल वाले टॉयलेट में बैठी हुई सुनील की आवाज़ सुन कर चौंक गयी। वो टॉयलेट से बाहर आयी तो उसने देखा कि साथ वाले जेंट्स टॉयलेट का दरवाजा ज़रा सा खुला हुआ था। अंदर लाइट जल रही थी जिससे अंदर का नज़ारा साफ़ दिखायी दे रहा था। नफ़ीसा धीरे से थोड़ा आगे बढ़ी और दीवार से सटते हुए उसने अंदर झाँका। उसके ऊँची हील वाले सैंडल की आवाज़ ने सुनील को उसकी मौजूदगी से आगाह करवा दिया। सुनील ने अपने लंड को जड़ से पकड़ कर दबाया और उसका लंड और लंबा हो गया। जैसे ही नफ़ीसा ने अंदर देखा तो उसका केलजा मुँह को आ गया।

अंदर सुनील अपने मूसल जैसे लंड को हिला रहा था। सुनील के अनकटे लंड की लंबाई और मोटाई देख कर नफ़ीसा की चूत कुलबुलाने लगी और गाँड का छेद फुदकने लगा। सुनील ने थोड़ी देर अपने लंड का दीदार नफ़ीसा को करवाया और ट्रैक सूट का पायजामा ऊपर करने लगा। नफ़ीसा जल्दी से वापस रशीदा के कैबिन में गयी और रशीदा के पास आकर बैठ गयी। उसकी साँसें उखड़ी हुई थी और आँखों में जैसे हवस का नशा भरा हो। “क्या हुआ नफ़ीसा... तेरी साँस क्यों फूली है...?” रशीदा ने नफ़ीसा के सुर्ख चेहरे और उखड़ी हुई साँसों को देख कर पूछा। “पूछ मत यार... क्या लौड़ा है साले अपने नये हीरो का... माशाल्लह... इतना बड़ा और मूसल जैसा लंड... साला जैसे गाधे का लंड हो...!”

रशीदा: “क्या बोल रही है यार तू...?”

नफ़ीसा: “सच कह रही हूँ यार... तू भी अगर एक दफ़ा देख लेती तो तेरी चूत में भी बिजलियाँ कड़कने लगती... साले का ये लंबा लंड है... और इतना मोटा...!” नफ़ीसा ने हाथ से इशारा करते हुए दिखाया।

रशीदा: “सच कह रही है तू?”

नफ़ीसा: “हाँ सच में तेरी इस मोटी गाँड की कसम...!”

रशीदा: “चुप कर रंडी... साली जब देखो मेरी गाँड के पीछे ही पड़ी रहती है...!”

नफ़ीसा: “तो क्या बोलती है... साले चिकने को फंसाया जाये...?”

रशीदा: “पता नहीं यार... हमारे साथ जॉब करता है और बहोत जुनियर भी है... और जवान खून है... अगर साले ने बाहर किसी के सामने कुछ बक दिया तो खामाखाँ मसला हो जायेगा!”

नफ़ीसा: “अरे यार कुछ नहीं होता... तू तो हमेशा ऐसे ही ऐसे ही बेकार में घबराती है... साले को साफ़-साफ़ बोल देंगे कि मज़ा लो और अपना-अपना रास्ता नापो... बोल तू बात करेगी या मैं करूँ उससे बात!”

रशीदा: “अच्छा-अच्छा मैं देखती हूँ... पहले ये तो मालूम हो कि साले का लौड़ा चूत और गाँड मारने के लिये बेकरार है भी या नहीं...!”

नफ़ीसा: “यार कुछ भी कर पर जल्दी कर... मेरी चूत और गाँड दोनों छेदों में खुजली हो रही है... जब से उसका लंड देखा है..!”

रशीदा: “हाँ-हाँ पता है... इसी लिये तुझे बात करने नहीं भेज रही... तू तो वहीं सलवार खोल के खड़ी हो जायेगी उसके सामने... अब तू अपने कैबिन में जा कर बैठ... मैं देखती हूँ कि अपना चिकना हाथ आने वाला है कि नहीं...!”

नफ़ीसा अपने कैबिन में वापस चली गयी और रशीदा उठ कर सुनील के पास गयी और सुनील के पास जाकर कुर्सी पर बैठते हुए हंस कर बोली, “और सुनील कैसे हो... क्या बात है आज बड़े फ़ॉर्मल कपड़ों में जोब पर चले आये..!”

नफ़ीसा के इस तरह अचानक अपनी टेबल पे बैठ कर उससे बात करने से सुनील पहले तो थोड़ा घबरा गया लेकिन जल्दी ही संभल गया। उसे उम्मीद तो थी ही कि दोनों औरतों में कोई तो पहल करेगी। सुनील संभलते हुए बोला, “वो मैडम बस ऐसे ही... आज तबियत थोड़ी खराब थी... नहाने और तैयार होने का मन नहीं किया तो ऐसे ही चला आया..!”

रशीदा थोड़ा सा झुक कर अपना दुपट्टा गर्दन में ऊपर खींच कर सुनील को अपनी कमीज़ के गहरे गले से अंदर कैद दोनों खरबूजों के बीच की घाटी का दीदार करवाती हुई बोली, “उफ़्फ़ ये गरमी भी ना... और कहाँ पर रह रहे हो!”

सुनील: “ये वो जो ट्रेफ़िक डिपार्ट्मेंट में ऑफ़िसर हैं ना फ़ारूक साहब... उन्ही के घर पर पेईंग गेस्ट रह रहा हूँ!”

रशीदा: “अच्छा वो फ़ारूक... कितना किराया ले रहा है वो तुमसे?”

सुनील: “ये खाने का मिला कर साढ़े-तीन हज़ार रुपये दे रहा हूँ..!”

रशीदा: “ये तो बहोत ज्यादा है... पहले बताया होता तो तुम्हें नफ़ीसा के घर में रूम दिलवा देती... उसका इतना बड़ा बंगला है... और रहने वाले सिर्फ़ दो जने हैं... बेटा उनका बाहर अलीगढ़ में पढ़ रहा है...!”
.
सुनील: “कोई बात नहीं मैडम मैं ठीक हूँ... कोई दिक्कत नहीं है वहाँ!”
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