RE: Free Sex Kahani चमकता सितारा
उधर पास में ही हाथ धोने के लिए बेसिन लगा था और वहाँ पर टिश्यू पेपर पड़े थे।
मैंने एक पेपर लिया और उस पर पानी से लिखा, ‘जय’ और उसे दरवाज़े से नीचे सरका दिया।
अब तो मैं बस दुआ ही कर सकता था कि ये डॉली को मिले और वो दरवाज़ा खोल दे।
अभी मैं सोच ही रहा था कि छत पर दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई। मेरी तो धड़कन रुकने वाली थी।
तभी डॉली के दरवाज़े की खुलने की आवाज़ आई। इससे पहले कि कोई मुझे देख पाता.. मैं डॉली के कमरे में था।
मैंने राहत की सांस ली। डॉली मेरे सीने से लगी थी.. उसके आंसुओं ने और उस कमरे की हालत ने बहुत कुछ बयाँ कर दिया था।
मैंने पहले कमरा बंद किया और डॉली के चेहरे को थोड़ा ऊपर किया.. उसका चेहरा जो कभी कमल के फूलों सा खिला-खिला रहा करता था.. आज वो चेहरा न जाने कहाँ खो गया था।
मैं गुस्से में पागल हुआ जा रहा था।
मैं पलटा और दरवाज़े को खोलने ही वाला था कि डॉली ने मुझे रोक लिया। उसने मेरे होंठों पर ऊँगली रखी और इशारे से मुझे शांत होने को कहा।
मैंने उसे कस कर अपने सीने से लगा लिया। दरवाज़े की कुण्डी लगाई और बिस्तर पर आ गया। डॉली ने मुझे बिस्तर पे लिटा दिया और खुद मेरे कंधे पर सर रख कर लेट गई।
बाहर टीवी का शोर इतना था कि हमारी आवाज़ बाहर नहीं जा सकती थी।
मैं- क्या हुआ था मेरे जाने के बाद?
डॉली- मम्मी ने फ़ोन तोड़ दिया और… वैसे ये सब बातें इतनी जरूरी नहीं हैं। तुम मेरे पास हो इतना ही काफी है। मम्मी-पापा ने जो भी किया.. वो उनका हक़ था.. वो मेरी जान भी ले लेते तो भी मुझे कोई अफ़सोस नहीं होता।
मैंने उसके होंठों पर अपने हाथ रख दिए। पता नहीं क्यों.. मेरी आँखों में आंसू आ गए थे। कभी भी मैंने ये नहीं सोचा था कि हमारे परिवार वाले नहीं मानेंगे। हमारी कास्ट अलग थी.. पर हमारा पारिवारिक रिश्ता काफी गहरा था।
आंटी हमेशा मुझे ‘बेटा जी’ कह कर ही बुलाती थीं और आज हमारे बीच इतनी दूरियाँ पैदा हो गई थीं कि एक-दूसरे को देखना भी गंवारा नहीं था।
डॉली- मेरी शादी होने वाली है.. अगले महीने..
इस बात से मुझ पर तो जैसे बिजली गिर गई हो, मैंने उससे कहा- और तुम? शादी की शॉपिंग करने कब जा रही हो?
यह कहते हुए मेरा गला भर आया था।
डॉली- मैंने कहा न उनका मुझ पर इतना हक़ है कि वो चाहें तो मेरी जान भी ले लें..
मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था, मुझे रोना आ गया, मैं उठ कर बैठ गया।
डॉली ने मुझे पकड़ते हुए कहा- जानू तुम्हीं तो कहते थे न.. मैं तो फंस गया तुम्हारे चक्कर में.. कोई और आप्शन दिखती भी है तो.. छोड़ना पड़ता है।
मैं- जा रहा हूँ मैं.. अब कभी तुम्हारे सामने नहीं आऊँगा.. तुम्हारा यही फैसला है.. तो यही सही.. मर भी जाओगी.. तो तुम्हारी तरफ देखूँगा तक नहीं..।
डॉली ने मेरा हाथ पकड़ लिया और फिर से मेरे गले लग गई।
डॉली- ऐसे मत जाओ.. आज मुझे तुमसे एक वादा चाहिए.. अगर तुमने मुझसे प्यार किया है.. तो मुझे ‘ना’ नहीं कहोगे।
मैं- जब मैं कुछ हूँ ही नहीं तुम्हारे लिए.. फिर क्यूँ करूँ तुमसे कोई वादा?
डॉली- मैं हमेशा से तुम्हारी थी.. हूँ.. और हमेशा रहूँगी.. मेरे लिए ये आखिरी बार मेरी बात मान लो।
मैं- कौन सी बात?
डॉली- जब मैं अपनी शादी का जोड़ा पहनूँ.. तब मुझे सबसे पहले तुम देखोगे.. जब भी मैंने शादी के सपने सजाए हैं.. हर बार मैंने यही कल्पना की है कि तुमने मुझे शादी के जोड़े में सबसे पहले देखा है।
मैं- किसी और के नाम के जोड़े में अपने प्यार को देखूँ.. इससे अच्छा तो मेरी जान मांग लेती.. एक बार भी ‘ना’ नहीं कहता।
डॉली- बस मेरे प्यार के लिए.. मान जाओ।
वो ये कहते हुए मेरे गले से लग गई और रोने लगी।
मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि जिसे मैं प्यार करता हूँ.. उसे इतनी तकलीफ देने वाला मैं ही होऊँगा। मुझे एहसास था कि उस वक़्त मेरे दिल पर क्या बीतेगी जब वो शादी के जोड़े में होगी.. वो भी किसी और के नाम के जोड़े में..
पर इश्क में दर्द भी किस्मत वालों को ही मिलते हैं।
मैंने उससे कहा- ठीक है।
कमरे में सन्नाटा सा पसरा था। मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था कि क्या बात करूँ उससे.. तभी बाहर के दरवाज़े खुलने की आवाज़ आई.. शायद डॉली के पापा कोर्ट से आ चुके थे। उसके पापा शहर के जाने माने वकील थे।
लगभग 15 मिनट बाद डॉली ने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला और बाहर चली गई। मैं दरवाज़े के पास खड़ा हो गया.. ताकि बाहर क्या हो रहा है.. मैं सुन सकूँ।
डॉली के पापा अब हॉल में बैठ चुके थे। डॉली भी मम्मी-पापा के साथ हॉल में बैठ गई।
डॉली- पापा मैं आपसे एक बात कहना चाहती हूँ।
उसके पापा- कहो।
डॉली- आप हमेशा कहते थे न.. कि हम चाहे कोई भी मसला हो.. एक साथ बैठ कर.. शांत दिमाग से बात करें.. तो उसे सुलझा सकते हैं। आज आप मेरे लिए थोड़ी देर शांत होकर- मेरी बात सुनिएगा।
उसके पापा- ठीक है बेटा.. कहो।
डॉली- मुझे पता है.. मैंने आपका दिल दुखाया है। मैं आपकी राजकुमारी नहीं बन सकी। आपने जो भी किया वो आपका हक़ था। आप मुझे जान से भी मार देते तो भी मुझे अफ़सोस नहीं होता। मैंने आपको बहुत तकलीफें दी हैं.. पर अब आप जैसा कहेंगे.. मैं करने को तैयार हूँ.. पर क्या आप मेरी एक बात मानेंगे?
उसके पापा- मैं तुम्हारा भला ही चाहता हूँ.. मैं तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं हूँ और गलती सभी से होती है.. आपसे हुई तो मुझसे भी हुई है। खैर.. बताओ तुम्हें क्या चाहिए?
डॉली- पापा मैं विजय को समझा दूँगी और मुझे पता है.. वो मान जाएगा। मैं अपनी शादी से पहले फिर से वही मुस्कुराते चेहरे देखना चाहती हूँ.. जो कभी हम दोनों के घर में हुआ करता था। क्या हम पहले की तरह नहीं रह सकते? और एक आखिरी बात.. अब मैं जाने वाली हूँ.. तो आप दोनों ने मुझसे अब तक जितना प्यार किया है.. उसका दोगुना प्यार मुझे आने वाले दिनों में चाहिए।
मैंने दरवाज़े को ज़रा सा सरकाते हुए हॉल में क्या हो रहा है.. उसे देखने की कोशिश की.. हाल में डॉली बीच में बैठी थी और उसके मम्मी-पापा उसे माथे पर चूम रहे थे।
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