Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:49 PM,
#68
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
हम क्यों इंसान को इंसान की नजर से नहीं देख पाते क्यों दुसरो की बहू-बेटियो की इज्जत नहीं कर पाते आखिर ये कैसा दम्भ है ये कैसी हवस हुई हमारी आपसी दुश्मनी में ये गांव वाले क्यों पिसे क्यों सजा मिले इनको 
जगन - बाते बहुत सही है कुंदन पर अब क्या किया जा सकता है जब भी कोई कोशिश हुई इस नफरत को भुलाने की एक नया जख्म मिल जाता है और फिर वही सब चालू हो जाता है 
मैं- खैर जाने दीजिए आपसे एक सवाल है की अर्जुनसिंह की बेटी का क्या हुआ क्या आप लोग इस काबिल नहीं हुए की अपने भाई की आखिरी निशानी को संभाल कर रख पाते
जगह- कुंदन, माना हम खुदगर्ज़ है पर वो एक दौर था जो बीत गया उस समय हालात इतने भयावह थे की खुद अपना साया भी साथ छोड़ जाये तो ताज़्ज़ुब न हो परिस्तिथियां इतनी भयंकर थी की आज भी रूह कांप जाती है तो हम भला उसको कैसे सँभालते 
मैं- पर वो आपकी जिम्मेदारी थी आपके खानदान की बेटी थी वो
जगन- हां सही कहा तुमने, तुम्हारा आरोप सही है पर हम ही जानते है जो हुआ 
मैं- क्या हुआ था 
वो- इसका तुमसे कोई लेना देना नहीं है 
मैं- अब कहा है वो 
वो- पता नहीं पर सुनने में आया था कि वो विदेश चली गयी थी बस इतना ही पता है 
मैं- कभी सोचा नहीं की विदेश में उसका कौन है , कभी याद नहीं आयी की वो कैसे जीती होगी कैसे पलेगी वो जब हर जगह जिस्म से खाल नोचने को भेड़िये खुल्ले घूम रहे है ठाकुर साब आपने हक़ की बात की थी तो एक बात और बता दू मैं आपके हिस्से के साथ कोई ना इंसाफी नहीं होने दूंगा पर हवेली की हक़दार ने जो जो दुःख सहे है उसकी आँख से गिरे एक एक आंसू का ब्याज तक वसुलूंगा 
जगन कुछ नहीं बोला और चुपचाप चले गया मैं रह गया अकेला साला दो कौड़ी का आदमी पूजा को सहारा दे नहीं सका पर जब लगा की अब सब पास से जायेगा तो चला आया पर मैं इस मामले में क्या कर सकता था पूजा जो फैसला लेगी हमे मंजूर होगा
मैं बस फिर पूजा के घर जाने की सोच ही रहा था की मैंने दूर से उसे आते हुए देखा तो मैं वही रुक गया वो कुछ देर में आ गयी 
वो- खाना लायी हु 
मैं- तुझसे कहा था न दिन में मत आया कर 
वो- टाइम देख क्या हुआ है मैंने सोचा भूखा पड़ा होगा और साहब के नखरे तो देखो 
मैं- तू समझती क्यों नहीं अभी तुझे सबके सामने ला नहीं सकता तेरी जान को खतरा हो जायेगा 
मैं- खतरा कब नहीं था सरकार तुम नहीं थे जब भी तो खतरा था जब घर से बाहर पहला कदम रखा था तब से आजतक खतरे की तलवार हमेशा ही लटक रही है तो क्या मैंने जीना छोड़ दिया 
मैं- परवाह है तुम्हारी
वो- डरते हो तुम, हिम्मत नहीं है दुनिया के सामने मेरे हाथ को थामने की तुममे 
मैं- ऐसा मत बोल पूजा 
वो- क्यों सच का स्वाद कड़वा लगा ले खाना खाले स्वाद बदल जायेगा 
मैं-नहीं अब तेरे हाथ का खाना तभी खाऊंगा जब मेरे पास तेरे इस सवाल का जवाब होगा 
वो- उफ्फ्फ ये अदाएं चल अब आजा मैं भी भूखी ही आयी हु 
मैं- कह दिया न दोहराने की आदत नहीं मुझे 
वो- बस कुंदन बुरा मान गया मेरी बात का
मैं-बुरा तो मानूँगा ही ना तू बात ही ऐसी बोलती है 
मेरी आँख से आंसू बह चले वो मेरे पास आई और धीरे से उन आंसुओ को चूम लिया
वो-मुझसे कभी नाराज़ न होना कुंदन सह नहीं पाऊँगी मेरी ज़िंदगी सिर्फ तुमसे शुरू होती है और तुम पर ही खत्म होती है न मुझे प्रारम्भ पता है न मुझे अंत पता है अगर कुछ जानती हूं तो बस इतना एक मैं खुद को और एक तुम्हे भूख लगी है खाना खा ओ
मैं- खाता हूं पर तू ऐसी बाते न किया कर 
वो- नहीं करुँगी 
खाने के बाद मैं कुवे पर आकर बैठ गया और ज़िंदगी के बारे में सोचने लगा साला अच्छी खासी ज़िन्दगी जी रहे थे पूजा क्या आयी जीवन डोर ही बदल गयी थी कहने को कुछ नहीं था न समझाने को भाभी की बहुत याद आती थी पर हम भी मजबूर थे 
पर इसी सोच विचार से जीवन थोड़ी न गुजरना था तो दिल पर पत्थर रख कर यादो को दबा दिया पूजा ने कुवे के पास ही चारपाई निकाल ली और उस पर बैठ गयी
मैं- तेरा चाचा आया था आज 
वो- किसलिए 
मैं- वसीयत का रोना लेके 
वो- तो रोने दे अपने को क्या 
मैं- तेरी जमीनों पर फैक्टरियां लगाई है उसने अब बोल क्या कहती है 
वो- तू जो चाहे कर
मैं- जमीन तेरी है 
वो- क्या तेरा क्या मेरा 
मैं- बात को समझ 
वो- कहा न जो तुझे करना है कर मुझे इन सब की चाहत नहीं प्यारे
मैं- ठीक है फिर अगली बार आएगा तो बोल दूंगा की तू ही रख ले 
वो- मैं बस एक बार हवेली में जाना चाहती हु 
मैं- तो चल न कौन रोकता है तुझे
वो- तू नहीं समझेगा अभी कुछ हसरतो का मोल
मैं- तू जादू इसलिए सीखती थी ना ताकि अपनी माँ को देख सके 
वो- नहीं मेरी दिलचस्पी उस खजाने में थी 
मैं- कसम से
वो- कसम से 
मैं- तूने देखा है उसे 
वो- देखा है 
मैं- हासिल कर ले फिर 
वो-चाहत नहीं 
मैं- अभी तो तू बोली
वो- दिलचस्पी और चाहत में अंतर होता है कुंदन बाबु वैसे तुम चाहो तो निकाल लू तुम्हारे लिए 
मैं- और वो डोरे वो व्यवस्था जो उसकी सुरक्षा के लिए है उनका क्या 
वो- तोड़ दूंगी 
मैं- रहने दे मेरा खजाना तो तू ही है और आदमी का काम मेहनत से चलता है तू क्या किसी मणि से कम है 
वो हंस पड़ी 
मैं'- तुम्हारी माँ बहुत खूबसूरत थी 
वो- क्या मैं उनकी छाया हु
मैं- नहीं 
वो- काश होती 
मैं- तू उनसे भी ज्यादा खुबसुरत है 
वो- झूठी तारीफे न कर
मैं- जिस दिन तू दुल्हन बनेगी देख लेना 
उसने एक गहरी सांस ली और बोली- काश नसीब में हो 
मैं- क्या बोली
वो- कुछ नहीं तू आराम कर रात को घर आ जाना कुछ काम है मुझे मैं चलती हु 
मैं- रुक न 
वो- समझा कर 

पूजा के जाने के बाद मैं लेट गया और ऐसे ही शाम हो गयी रात मेरी पूजा के साथ गुजरी अगली दोपहर में ऐसे ही कुछ काम से गाँव की तरफ जा रहा था की तभी मैंने देखा की एक लड़की पास के खेत पर एक पेड़ से लटकी तड़प रही है तो मैं तेजी से दौड़ा और उसको नीचे उतारा पर तब तक वो बेहोश हो चुकी थी
मैंने पास के धौरे से पानी लिया और उसके चेहरे पर मारा तो उसे होश आया और वो रोते हुए बोली- मर क्यों नहीं जाने दिया मुझे 
मैं- सुनो, मरने से क्या होगा तकलीफ कम हो जायेगी तुम्हारी नहीं क्या हुआ जो जान देने चली हो
वो और जोर से रोने लगी तो मैंने उसे खींच के थप्पड़ लगाया और पूछा- बता तो सही क्या हुआ 
उसने रोते हुए मुझे बताया की उसकी माँ हमारे खेतो पर आती है चरी काटने पर आज वो आयी थी और आज ही उसकी किस्मत फुट गयी कुछ देर पहले भाई यही था और उसने इस लड़की की इज्जत लूट ली थी
उस लड़की के आंसू मेरे कलेजे को चीर गए
मैं- चल मेरे साथ 
वो- कहाँ 
मैं- तेरे गुनहगार के पास आज पंचायत तेरा न्याय करेगी
वो- नहीं मैं नहीं जाउंगी मेरी इज्जत तो गयी अब माँ बाप की इज्जत भी पंचायत में तार तार करवा दू 
मैं- पर तेरा न्याय 
वो- न्याय तो कठपुतली है आप ठाकुर लोगो की हम गरीबो को कुछ मिलता है तो जुल्म षोशण आप बड़े लोगो का आज तो आपने बचा लिया पर ये ज़िन्दगी कितना बर्दास्त कर पायेगी और कब तक आप बचाओगे आप जाओ आखिर क्यों मेरी खातिर अपने भाई से बुरे होते हो मुझे तो मरना ही है
मैं- ख़बरदार जो फिर मरने की बात की वो दरिंदा मेरा भाई नहीं है पर तू मेरी बहन जरूर है और अगर तेरा न्याय न कर सका तो मैं इस जीवन में कुछ नहीं कर सकता 24 घंटे में तेरे गुनहगार को तेरे कदमो में ला गिराउंगा और जो सजा तू चाहे उसे देना 
बिना उसकी तरफ देखे मैं वहां से चल पड़ा गुस्से से धधकता हुआ आज मैंने सोच लिया था की इस कलंक का काम तमाम कर दिया जाये आज कुछ ऐसा होगा की आजके बाद इस गांव में कोई माई का लाल परायी औरत से जबर्दस्ती ना कर सके
मैं सोचते हुए जा रहा था कि आज आरपार का काम ही होगा मेरी आँखों में बार बार उस लड़की की तस्वीर आ रही थी जिसकी इज्जत नहीं बल्कि उसकी जिंदगी को ही रौंद डाला था उस हवस के पुजारी ने पर आज मैं इस किस्से को ही तबाह कर देने वाला था
जैसे जैसे घर पास आ रहा था मेरी आँखों में क्रोध बढ़ता जा रहा था और फिर मैंने इंद्र की गाड़ी देखि जो घर के बाहर ही खडी थी मैं घर से बस जरा सा दूर ही था कि मैंने भाई को घर से बाहर निकलते हुए देखा उसके हाथ में चाबी का छल्ला था अपनी मस्ती में आगे बढ़ते हुए वो जा रहा था एक पल वो अपनी गाड़ी के पास रुका और फिर मेरी गाड़ी का दरवाजा खोल दिया उसने
मैं चिल्लाया और दौड़ा उसकी तरफ की कही भाग न जाये ये पर मैं चूँकि थोड़ा सा दूर था वो सुन न पाया उसने गाडी चालू की और बस कुछ दूर ही गाड़ी आगे बढ़ी थी की।।।
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