RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
उम्र की यह नाजुक दहलीज़
दोस्तो, कुदरत का खेल ही ऐसा है कि मर्द हर जवान औरत को व्यक्ति कम और वस्तु ज्यादा समझता है। इसमें मर्दों की गलती कुछ नहीं है। औरतों को कुदरत नें बनाया ही कुछ ऐसा है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि दुनियाँ की हर औरत में हर मर्द को दिलचस्पी हो, दरअसल मर्द कुदरतन अपनी पहली नजर से ही हर औरत को दो हिस्सों में छाँटता चलता है एक वो जो औसत से बेहतर है और दूसरी वो जो औसत से नीचे है। औसत से नीचे मतलब कि बूढ़ी, बदसूरत, बेडौल और बदहाल को, मर्द औरतों मे गिनते ही नहीं। ये सब उनकी नजर में रिजेक्टेड लॉट है। बूढ़ी, बदसूरत, बेडौल और बदहाल औरतों की हजारों की भीड़ में भी किसी मर्द को दूर दूर तक कोई औरत नजर नहीं आयेगी लेकिन सड़क पर चलते जैसे ही कोई औसत से बेहतर औरत नजर आई कि नजरें अपनें आप उपर उठ जाती हैं। मर्दों की इस सोच का औरतों को भी अच्छे से पता है। हर औरत अच्छी तरह से जानती है कि समाज में और खास करके मर्दों की जमात में उनकी पूछ उनकी श्रेणी पर निर्भर करती है। औसत से बेहतर और औसत से नीचे के दोनों दो बड़े बड़े हिस्सों में भी ए बी सी डी ऐसी कई छोटी छोटी केटेगरियाँ हैं और अपनी रेटिंग और अधिक से अधिक बेहतर करनें की औरतो में आपस में होड़ सी लगी रहती है। सुन्दर और आकर्षक दिखने का बीज लड़कियों के डीएनऐ में ही होता है।
न्याय की दृष्टी से मर्दों की औरतों के बारे में यह सोच गलत है पर क्या यह सोच कभी बदल सकती है? हर मर्द अच्छी तहर जानता है कि वह जिस किसी औरत को भी वासना भरी नजरों से देख रहा है वह किसी न किसी की बहन, बेटी और बीबी है और दूसरे सभी मर्द जिन औरतों को वासना भरी नजरों से देख रहें है उनमें उसकी अपनीं बहन, बेटी और बीबी भी शामिल है। लेकिन यह खेल सदियों से चलता आ रहा है और शायद तब तक चलता रहेगा जब तक हम, आदमी के अन्दर की हैवानियत का इलाज नहीं ढ़ूढ़ लेते।
दोस्तो, उम्र की जिस दहलीज़ पर मैं था, वहाँ सेक्स की भूख लाज़मी होती है, लेकिन मुझे कभी किसी के साथ सम्भोग का मौका नहीं मिला था, बल्कि सच तो यह है कि कभी किसी के साथ पहल करनें की हिम्मत ही नहीं हुई। अपने दोस्तों और इन्टरनेट की मेहरबानी से मैंने यह तो सीख ही लिया था कि भगवान की बनाई हुई इस अदभुत क्रिया को जिसे हम शुद्ध और सभ्य भाषा में सम्भोग, चालू भाषा में चुदाई और हम दोस्तों की मजाक मस्ती वाली गूढ़ भाषा में योनि-छेदन कहते हैं, को किया कैसे जाता है। रोज की अपनी पढ़ाई के पूरी कर लेनें बाद या फिर दिल हो तो कभी कभार बीच में भी कुछ समय इन्टरनेट पर सेक्सी कहानियाँ पढ़ना और ब्लू फिल्में देखना मेरा रोजमर्रा का काम हो गया था। मैं रोज नई नई कहानियाँ पढ़ता और अपने 7 इंच के मोटे तगड़े नटवरलाल को सहलाया करता। सहलाते सहलाते अब मैंने हस्तमैथुन करना, जिसे आम बोलचाल की भाषा में मुठ मारना कहते हैं वह भी सीख लिया था और जिसमें मुझे ज़न्नत का मज़ा मिलनें लगा था। अपनी कल्पनाओं में मैं हमेशा अपनी कॉलेज की एक प्रोफ्फेसर के बारे में सोचता रहता था जिसकी उम्र करीब पैतीस चालीस के आस पास रही होगी पर वो थी बला की खुबसुरत, उसकी नजाकत भरी जादुई अदाओ को देख मेरे होश उड़ जाते। जरूरत पड़नें पर उसी को याद कर कर के मैं अपने रामलला को हिला-हिला कर अपना आवेग शान्त कर लेता था। घर का माहौल ऐसा था कि कभी किसी के साथ कुछ कहने करने का ख्याल ही नहीं आया। बस अपना हाथ ही जगन्नाथ था। जब भी मौका मिलता अपने हाथों ही अपने आप को खुश कर लिया करता।
रिंकी या प्रिया के बारे में कभी कोई बुरा ख्याल नहीं आया था, या यूँ कह लो कि मैंने कभी उनको उस नजर से देखा ही नहीं था। मैं तो बस अपनी ही धुन में मस्त रहता था। वैसे कई बार मैंने रिंकी को अपनी तरफ नजरें गड़ाये पाया था लेकिन इस पर मेरे ज्यादा ध्यान नहीं देनें से बात आई गई हो जाती थी। एक तो पापा के दोस्त की बेटी, दूसरे हमारे अपनें घर में मेहमान और उससे भी अधिक मम्मी पापा की डाँट और परिवार की बदनामी का डर ऐसा कोई ख्याल तक भी आनें से रोक लेता था।
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