mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
03-21-2019, 12:28 PM,
#46
RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 44


अब जो भी हो मैं सच का रास्ता चुनना पसंद करूंग। अब मैं अपनी किस्मत का फैसला भगवन पर छोड़ता हूँ । आज मेरे और रूही के बीच जो भी होगा वो मुझे मंजूर होगा फिर चाहे मुझे परिधि को ही क्यों न भूलना पड़े.....



लेकिन भूलना वो भी.........



सिर्फ भूलने के ख्याल से मेरा रोम-रोम कांप गया। आँखों में आँसू छलक आए । मैं अपनी भावनाओं को काबू में नहीं कर पाया, कार का ब्रेक कब लगा पता नही । मन विचलित हो उठा अब मैं परिधि से बात किये नहीं रह पाया और उस से बात करने के ख्याल से जैसे ही फ़ोन निकला की फ़ोन की घंटी बज गई.........ये कॉल परिधि की थी।





मैं खुद को कण्ट्रोल करते हुए.... बोलिये आप ने तो कहा...



इतना कहने के बाद मेरे अल्फाज़ मेरे जुबान से बाहर ही नही निकल, मेरा दिल भर आया और आँखों से आँसू गिरने लगे मैंने फ़ोन कट कर दिया ।



5 मिनट तक व लगातार फ़ोन करती रही और मैं फ़ोन कट करता रहा । मैंने अपने आप को कुछ कंट्रोल करके वापस फ़ोन लगया।




परिधि..... चिंता से, सब ठीक है न?



परिधि की आवाज़ सुनी और मैं अपने आप को रोक नहीं पाया रोने से ।



परिधि....... बताते क्यों नहीं , कुछ तो बोलो ( वो भी रो रही थी)


मैने सिसकते हुए कहा.... मैं ठीक हू...


इतना ही बोल पाया मैं इस से ज्यादा बोल न सका । बस फ़ोन पर एक दुसरे को रोते हुए महसूस कर रहे थे ।



बहुत हिम्मत जुटाने के बाद बोला..... चिंता की बात नहीं है मैं खुद तुम्हे फ़ोन करते हू ।



मै अपनी भावनाओ को काबू नहीं कर पा रहा था । सिर्फ उसे भूलने के ख्याल से ही मैं अपनी जिंदगी हार चुका त। हाँ! ज़िंदगी ।



मै अंदर से टूट चूका था और अब पूरा फैसला रूही का था । 20 मिनट तक खुद को किसी तरह नार्मल कर के रूही के पास पहुंचा । मैंने दोनों को पिक किया और निकल गया तमन्ना रेस्टूरेंट। रस्ते भर मेरी किसी से कोई बात नहीं हुए हम चुपचाप पहुंचे तमन्ना रेस्टूरेंट।




रेस्टूरेंट मैं जब पहुंचा तो वंहा के कुछ स्टाफ ने मुझे देख, घूरा और लग गए अपने काम पर। ओनर अभी नहीं था रेस्टूरेंट में ।
खैर मैंने देखा की उनके कुछ स्टाफ मिडिल की तीन राउंड टेबल साइड कर रहे थे मुझे लग गया कि असीस ने अपना काम कर दिया है, पर कुछ खास खुशी नहीं हो रही थी।



हम तीनो साइड के एक टेबल पर बैठे और कुछ स्नैक्स का आर्डर दिया। तीनो शांत बैठे थे । चूँकि ये मेरी इम्तिहान की घड़ी थी इसलिए मैंने ही चुप्पी तोड़ते हुए बोला...



"परिधि सॉरी रूही हमरे ग्राउंड की बात कुछ अधूरी थी"



तभी बीच में किरण बोल पड़ी.... बताओ बताओ मैं बेचैन हो रही हूँ जानने के लिए कि तुम लोगो के बीच क्या सीन चल रहा है?



मैं..... किरण प्लीज बुरा मत मानिए पर क्या आप यंहा केवल दरसक बन के रह सकती है क्योकि.....



मैन चुप हो गया कहना तो चाह रहा था की, क्योंकि जैसा आप सोचती है वैसा बिलकुल भी नहीं पर यदि रूही ने हाँ कर दिया तो । इसलिए मैं चुप हो गया।



मै अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए.....



"हाँ तुम ग्राउंड पर कुछ बोल रही थी"



रुही..... (बहुत संजीदा होते हुए) मैं उस दिन के लिए तुमसे मांफी चाहती हूं। मैं कुछ ज्यादा ही बोल गयी मुझे इस बात की जरा भी अंदाजा नहीं था की तुम्हे मेरी बातों का इतना चोट पहुंचे गी ।


एक लम्बी सी साँस खींचते हुए....


"जब तुम बिना बताए गायब थे तब अलीशा मुझ से मिलने आई , उसकी हालत के बारे में मैं बयां नहीं कर सकती की कैसी थी, उसकी बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर किया की ये मैंने क्या कर दिया"?




फिर एक गहरी सांस लेते हुए.....


"उस दिन तुम्हे वो कॉल मैंने ही किया था पर सर्मिंदगी इतनी महसूस हो रही थी की मेरे शब्द मेरे जुबान में ही कैद होकर रह गै। पर जब तुम ने मुझे पहचान लिया तो पहली बार ये अहसास हुआ की तुम मुझसे कितना.....



अब पूरी शांति थी। मुझे रूही की बातें एक अँधेरे की ओर खिंच रही थी अब ये चिंता साफ घेरने लगी थी की कंही....... जो भी हो लेकिन ये मैं ही था जो इन सब का रचयता था इसलिए अब तो पीछे हटने की कोई सवाल ही नहीं था, बस एक म्यूसि, की ये क्या हो गया?




मैं..... पहले तो मैं मांफी चाहूंगा कि मेरी वजह से तुम्हे परेशानी उठानी पड़ी । अब जब तुम सब जान चुकी हो और देख चुकी हो तो फैसला मैं तुम पर छोरता हू । पर एक बात मैं बोलना चाहूंगा कि तुम्हारा जो भी फैसला होगा वो मुझे दिल से स्वीकार होगा।




मैन कुछ टाइम लेते हुए.....


"मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे किसी बात या हरकत के दबाव में कुछ बोलो जो भी बोलना है खुल कर बोलना। इस बात का विस्वास मैं तुम्हे दिलाता हूँ कि न मुझसे या मेरे किसी भी हरकत तुम्हे कभी शर्मिंदगी महसूस होगी और न ही कोई परेसनी"।




रुही....... "मुझे बहुत ख़ुशी है तुम्हारी इस तरह की सकारात्मक बातों से । मैं भी यही चिंताओं से घिरी थी मैं क्या बोलूं"



"पिछले कुछ दिनों में मैं भी कम परेशान नहीं रही हू । तुम्हारी जिन हरकतों से मुझे पहले गुस्सा आता था जब तुम नहीं थे तो उसी पर प्यार आने लागा"



"एक अजीब सी बैचैनी हरदम रहती कि तुम मेरे पास क्यों नहीं हो। मेरी सोयी हुए जिज्ञासा कब जग गयी पता नहीं चला । मैं ये तो नहीं कह सकती की मुझे तुम से प्यार है पर तुम मेरे लिए बहुत प्यारे हो"।




"जब ग्राउंड पर तुम ने अनदेखा किया तो मुझे बहुत बुरा लगा पता नहीं मेरे आंसू कब मेरे आँखों में आ गए, तुम से लिपट के रोने में मुझे एक अलग ही सुकून मिला, इतने लोग थे वहाँ पर मुझे सिर्फ तुम ही नजर आए"।




"मैं ये मानती हूँ कि दिल के किसी कोने में तुम्हारे लिए बेशुमार प्यार है। मैं नहीं इंकार कर सकती इस से कि मैं तुम से प्यार नहीं करती हू"



"पर और भी रणजो-गम है मोहब्बत के सिवा। हम दोस्त रहे तो ही अच्छा है। अब जब सब तुम्हे बता दिया की मेरे दिल में क्या है तो तुम्हे ये भी जानने का पूरा हक़ है की क्यों मैं इस रिलेशनशिप को नहीं बढ़ाना चाहती"?



मैं.... "ये मैं नहीं पूछना चाहता की क्यों तुम इस रिश्ते को आगे बढ़ा नहीं सकती पर क्या तुम मुझे भूला पाओगी वो भी तब जब मैं तुमसे रोज-रोज मिलुंगा"?




रुही..... "तुम कारन जानते तो ये सवाल न पूछते खैर अच्छा लगा कि तुमने इस बात पर जोर नहीं दिया शायद मेरा दिल भी नहीं चाहता था की मैं ये सब बातें करू .... रहा सवाल भूलने का तो कौन कहता है की मैं तुम्हे भूल जाउंगी"



"तुम तो मेरे प्यारे एहसास हो इसे तो मैं खुद भूलने नहीं चाहूँगी। तुम मुझसे न मिलो ऐसी भी खाइऐश नहीं अच्छा लगता है जब तुम पास होते हो"।



"रही बात फीलिंग की तो तुम उसकी चिंता मत करो जब तुम्हरा नजरिया बदलेगा मेरे प्रति तो मुझे भी कोई प्यार वाली फीलिंग नहीं रहेगी क्योंकि मैं रिश्तों में मिलावट नहीं करती पर्सन तो तुम्हारे लिए हू"।



"मैंनेअपनी बात पूरी कर ली। कोई मिलावट कोई झूठ नहीं है मेरे बात में । बस चिंता तो तुम्हारी है कि क्या तुम इस को एक्सेप्ट कर के एक नयी सुरुआत कर सकते हो की हम अच्छे दोस्त रहेंगे"।




मैं..... "जैसा की मैंने पहले ही तुमसे वादा कर दिया है तो मैं नहीं मुकर सकता , तुम ने अपनी दिल की बात बताई अच्छा लगा"।



"अब हम सिर्फ अच्छे दोस्त है। मैं न तो कभी दुबारा इस विषय पर चर्चा करूँगा न कभी ऐसी हरकत जो ये अहसास कराये कि मैं तुम्हे चाहता हू"।




"So friends.... Yes of course "




माहॉल बहुत सीरियस हो चला था तो अब किरण बोली....



"Knock knock , may I have permission to say something"?



हम दोनों का ध्यान किरण की ओर गया और दोनों ही हँसने लगे और रूही बोली...

"Yes mam please"



किरण..... यार मैं भी कान्हा तुम दोनों दुखियों के बीच फांसी। चलो अब जब सारी बातें क्लियर हो गयी है और यदि सोच सकारात्मक है राहुल की , तो जल्द से जल्द एक गर्लफ्रैंड बनाओ तभी मुझे लगेगा कि तुम सिर्फ दोस्त हो।



रुही....पहली बार तू कुछ परफेक्ट बोली है।



मैं.... तुम लोग भी क्या टॉपिक लेकर बैठ गायी। मैं कमिट तो नहीं कर सकता पर ऐसा कभी हुआ तो सबसे पहले तुम दोनों से मिलवाऊंगा ।



माहॉल थोड़ा हल्का हुआ फिर रम गए हम लोग अपनी हसी-मज़ाक में दिल का बोझ उतार गया। अब मैंने भी राहत की सांस ली।




लेकिन मुझे अभी राहत कंहा मिलनेवाली थी अब जब सोचने की शक्ति जागृत हुए बिलकुल पागल हो उठा....



कहानी जारी रहेगी.....
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