RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
मैंने धीरे से अपने होंठ छुड़ाये और उनके देखते प्रश्नवाचक नज़रों से यह जानने की कोशिश करने लगा कि आखिर हुआ क्या।
“क्या हुआ…?” मैंने भर्राई आवाज़ में पूछा।
“यह सही नहीं है… मुझे जाने दे… बहुत देर हो चुकी है… सब ढूंढ रहे होंगे…” एक साथ आंटी ने इतनी सारी स्थितियों को सामने रख दिया कि मैं थोड़ी देर के लिए असमंजस में पड़ गया।
एक बात थी कि अब भी सिन्हा आंटी के हाथ मेरे बालों को सहला रहे थे और वो अब भी मेरी बाहों में जकड़ी थीं। अजीब सी स्थिति थी, मैं इस हालत में था कि बस उन्हें नंगा करके अपना लंड उनकी रसभरी चूत में डालना बाकी रह गया था। मैं क्या करूँ, यह समझ नहीं पा रहा था। मैं क्या चाहता था यह मुझे पता था लेकिन आंटी सच में क्या चाहती थी यह नहीं पता था। शायद ये वो आखिरी शब्द थे जो हर औरत पहली बार किसी पराये मर्द से चुदते वक़्त कहती है। चूत तो लंड के लिए टेसुए बहा रही होती है लेकिन फिर भी एक आखिरी बार अपनी शर्म, और हया को दर्शाने के लिए ऐसा बोलना हर स्त्री की आदत होती है।
मैं जानता था कि अगर मैंने थोड़ी सी जबरदस्ती की तो आंटी प्यार से मेरा लंड अपनी चूत में अन्दर तक घुसेड़ लेंगी… लेकिन मैंने तभी यह फैसला किया कि देखा जाए आखिर ये चाहती क्या हैं। यह सोच कर मैंने उन्हें अपने ऊपर से धीरे से उतार दिया और बिस्तर से उठ कर खड़ा हो गया। आंटी ने बिना कोई देरी किये बिस्तर से उठ कर अपनी साड़ी ठीक करी और मेरी तरफ बिना देखे ही कमरे से बाहर निकल गई।
मैं पलंग के बगल की खिड़की की तरफ मुड़ कर अपनी साँसों को समेटने लगा और अजीब से सवालों को अपने मन में लिए उनका जवाब ढूँढने लगा। मेरा मन कर रहा था कि मैं कमरे से बाहर निकल कर उन्हें अपने पास खींच लाऊँ और अपनी बाहों में भर लूँ लेकिन मुड़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
तभी तड़ाक से कमरे का दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई और मेरे मुड़ने से पहले ही कोई मेरे पीछे से आकर मुझसे लिपट गया।
“जो भी करना है जल्दी से कर ले… मुझसे भी रहा नहीं जा रहा।” यह आंटी ही थीं जो कि दरवाज़े से निकल कर शायद ये देखकर आई थीं कि कोई उन्हें ढूंढ तो नहीं रहा..
मैं एकदम से चहक उठा और घूम कर उन्हें अपनी बाहों में उठा लिया। मेरे चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आ गई थी। मैं उन्हें उठा कर वैसे ही उसी जगह पे गोल गोल घुमने लगा।
“पागल… मैं तुझे कभी उदास नहीं देख सकती…” इतना कह कर उन्होंने झुक कर मेरे होंठों को चूम लिया।
मैं पागलों की तरह उन्हें नीचे उतार कर चूमने लगा, उन्होंने भी मुझे अपनी बाहों में भर कर चूमना शुरू किया।
“उम्म… ओह्ह.. जल्दी कर सोनू… इससे पहले कि कोई आ जाये मुझे कल रात की गलती की सजा दे दे !” आंटी मदहोशी में बोले जा रही थी और मेरे सीने पे अपने होंठों की छाप छोड़े जा रही थी।
मैंने उन्हें खुद से थोड़ा अलग किया और उनकी साड़ी का पल्लू नीचे सरका दिया। एक बार फिर मेरे सामने उनकी बड़ी बड़ी सुडौल चूचियाँ लाल ब्लाउज में ऊपर नीचे हो रही थीं। मैंने देर न करते हुए उन्हें थाम लिया और उन्हें जोर से दबा दिया।
“उह्ह… इतनी जोर से तो ना दबा… कहीं ब्लाउज फट गई तो लेने के देने पड़ जायेंगे !” उन्होंने मेरे हाथों पे अपने हाथ रख दिए और धीरे से दबाने का इशारा किया।
मैंने भी धीरे धीरे उनकी चूचियों को मसलना शुरू किया और आंटी अपनी आँखें बंद करके सिसकारियाँ भर रही थीं। समय की नजाकत को देखते हुए मैंने भी प्रोग्राम को लम्बा खींचना नहीं चाहा और सीधे उनके ब्लाउज के हुक खोलने लगा। पहला हुक खुलते ही आंटी ने अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ मुस्कुराते हुए अपने ही हाथों से अपने ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए और अपने हाथ अपनी पीठ के पीछे ले जा कर ब्रा का हुक भी खोल दिया। लाल ब्लाउज के अन्दर काली ब्रा में कैद उनकी चूचियों ने जैसे एक छलांग लगाई हो और ब्रा को ऊपर की तरफ उछाल दिया।
उनकी भूरे रंग की घुन्डियों ने मुझे निमंत्रण दिया और मैंने झुक कर सीधे अपने होंठ लगा दिए।
“उम्म्…पी ले… जाने कब से तेरे मुँह में जाने को तड़प रहे हैं।” इतना बोलकर उन्होंने अपने एक हाथ से अपनी एक चूची को मेरे होंठों में डाल दिया।
ये सब इतनी जल्दी जल्दी हो रहा था कि कुछ सोचने और समझने का मौका ही नहीं मिल रहा था। पता नहीं यह उनकी बरसों की तड़प की वजह से था या समय कम होने की वजह से। पर जो भी था मैं पूरे जोश में भर कर उनकी चूचियों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा।
“उफफ्फ… सोनू, मेरे लाल… जल्दी जल्दी चूस ले… आराम से चूसने का वक़्त नहीं है तेरे पास !” आंटी ने एक बार फिर से एक कामुक सिसकारी भरते हुए मेरा ध्यान समय की तरफ खींचा।
अब मुझे भी समझ आ गया था कि जल्दी से कल रात की तड़प को शांत कर लिया जाए, फिर एक बार लंड चूत में जाने के बाद आराम से इस काम की देवी का रसपान करेंगे वो भी इत्मिनान से अपने घर जाकर जहाँ हमें किसी का कोई डर नहीं होगा।
ऐसा सोच कर मैंने उनकी एक चूची को चूस चूस कर दूसरी चूची को मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा। मैं अपना पूरा दमख़म लगा कर उनकी चूचियों को पी रहा था मानो बस कुछ पल में ही ही उन्हें खाली करना हो। आंटी हल्की-हल्की सिसकारियों के साथ मेरे सर को अपनी चूचियों पे दबा रही थी। तभी उन्होंने अपना एक हाथ नीचे ले जा कर मेरे लोअर के ऊपर से मेरा लंड पकड़ लिया। लंड को पकड़ते ही उन्होंने एकदम से छोड़ दिया और एक लम्बी सी आह भरी। उनकी इस हरकत ने मेरे ध्यान खींच लिया और मैंने उनकी चूची को मुँह से निकाल दिया और यह समझने की कोशिश करने लगा कि उन्होंने लंड पकड़ कर अचानक छोड़ क्यूँ दिया। उनकी आँखों में देखा तो एक अजीब सा आतंक देखा मानो उन्होंने लंड नहीं कोई बांस पकड़ लिया था।
“ये… नहीं नहीं… इतना मोटा… हाय राम…” टूटे फूटे शब्दों में सिन्हा आंटी ने लंड को छोड़ने का कारण समझाया।
मैं हंस पड़ा और उनका हाथ पकड़ कर अपने लोअर में डाल दिया। मेरे नंगे खड़े लंड पे हाथ पड़ते ही उन्होंने एक जोर की सांस ली और इस बार कास कर पकड़ लिया और बिल्कुल मरोड़ने लगी। उनकी आँखें मेरी आँखों में ही झांक रही थीं और एक अजीब सी चमक दिखला रही थीं मानो उन्हें कारू का खजाना मिल गया हो।
मैंने उनके होंठों को चूमा और उनी साड़ी का एक छोर पकड़कर खोलने लगा।
“नहीं… इसे मत खोल… देर हो जाएगी… हम्म्…” आंटी ने मुझे रोक दिया।
“फिर कैसे होगा?” मैंने भी एक अनजान अनाड़ी की तरह सवाल किया और उनकी तरफ देखने लगा।
आंटी मुस्कुराने लगी और मेरे लोअर के अन्दर से अपना हाथ निकल कर अपने दोनों हाथों से अपनी साड़ी धीरे धीरे ऊपर उठाने लगी और उठाकर बिल्कुल ऊपर करके पकड़ लिया। साड़ी इतनी ऊपर हो गई थी कि उनकी चूत नंगी हो चुकी थी लेकिन खड़े होने की वजह से ऊपर से दिखाई नहीं दे रही थी।
“ऐसे ही काम चला ले अभी…” आंटी ने थोड़ा शर्माते हुए अपनी आँखें झुका लीं और मुस्काने लगी।
मैं उनका इशारा समझ गया और झट से नीचे बैठ गया। खिड़की से आ रही रोशनी ने उनकी गद्देदार और हलके हलके झांटों से भरी चूत के दर्शन करवा दिए। वैसे तो मैं बिल्कुल रोम विहीन चूत का दीवाना हूँ लेकिन आंटी की छोटी छोटी झांटों के बीच फूली हुई चूत मुझे बड़ी ही मनमोहक लगी। मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और अपने होंठों को चूत पर रख दिया।
“उम्म… आह्ह… जल्दी कर न…” होंठ रखते ही उनकी चूत ने एक छोटी सी पिचकारी मारी और पहले से ही गीली चूत के होंठों को और भी गीला कर दिया।
क्या खुशबू थी उस रस भरी चूत से निकलते हुए रस में… रिंकी और प्रिया की चूत से भी मस्त कर देने वाली खुशबू आती थी लेकिन यह खुशबू एकदम अलग थी। शायद कुँवारी और शादीशुदा चूतों की खुशबू अलग अलग होती होगी, यह सोचकर मैंने अपने होंठों से चूत के हर हिस्से को चूमा और फिर अपनी जीभ निकल कर उनकी चूत को अपनी उंगलियों से फैला कर सीधा अंदर डाल दिया।
“उफ्फ… हाय मेरे लाल… ये क्या कर दिया तूने…” आंटी ने एक ज़ोरदार आह भरी और अपने हाथों से मेरा सर अपनी चूत पे दबा दिया मानो मुझे अंदर ही डाल लेंगी।
मैंने अपना सर थोड़ा सा ढीला किया और अपनी जीभ को चूत के ऊपर से नीचे तक चाटने लगा और बीच बीच में उनके दाने को अपने होंठों से दबा कर चूसने लगा। दानों को जैसे ही अपने होंठों में दबाता था तो आंटी अपने पैरों को फैलाकर चूत को रगड़ देती थी।
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