RE: आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
मेरा बांका छोरा तो पहले ही पूरी तरह से अकड़ा हुआ था और उसके हाथों में जाते ही ठनकना शुरू हो गया उसका। रिंकी ने एक बार मेरी तरफ प्यार से देखा और मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए…
उसने इस बार एक मार्गदर्शक की तरह मेरे होंठों और फिर मेरी जीभ को रास्ता दिखाया और एक लम्बा प्रगाढ़ चुम्बन का आदान प्रदान हुआ हमारे बीच। मैं अपने आप में नहीं रह सका और खुद को रिंकी के हवाले कर दिया। रिंकी ने कुछ देर मेरे होंठों से खेलने के बाद धीरे से नीचे बैठने लगी और अपना मुँह सीधा मेरे लंड के पास ले गई। मैं बस चुपचाप खड़ा होकर मज़े ले रहा था।
थोड़ी देर पहले मैं डरा हुआ था और अब मैं यह चाहता था कि वो जल्दी से जल्दी अपने मुँह में मेरा लंड भर ले और इसकी सारी अकड़ निकाल दे…
रिंकी ने लंड को एक हाथ से थाम रखा था और दूसरे हाथ से मेरे अन्डकोषों से खेलने लगी। उसने धीरे से मेरे लंड का शीर्ष भाग चमड़े से बाहर निकाला और अपने होंठों को उस पर रख कर चूम लिया।
‘उम्म…’ मेरे मुँह से मज़े से भरी एक आह निकली और मैंने अपना लंड उसके होंठों पे दबा दिया।
रिंकी ने एक बार मेरी तरफ अपनी नज़रें उठाकर देखा और मुस्कुराते हुए अपने होंठों को पूरा खोलकर मेरे लंड के अग्र भाग को सरलता से अन्दर खींच लिया। थोड़ी देर उसी अवस्था में रखकर उसने अपने जीभ की नोक सुपारे के चारों ओर घुमाई और उसे पूरी तरह से गीला करके धीरे धीरे अन्दर तक ले लिया… इतना कि लंड की जड़ तक अब रिंकी के होंठ थे और ऐसा लग रहा था मानो मेरा नवाब कहीं खो गया हो…
मैं मज़े से बस उसके अगले कदम का इंतज़ार कर रहा था… जिस तरह धीरे-धीरे उसने मेरा लंड पूरा अन्दर तक लिया था ठीक वैसे ही धीरे-धीरे उसने उसने पूरे लंड को बाहर निकाला लेकिन सुपारे को अपने होंठों से आजाद नहीं किया और फिर से वैसे ही मस्त अंदाज़ में पूरे लंड को अन्दर कर लिया…
यह इतना आरामदायक और मजेदार था कि अगर हम ट्रेन में न होते तो शायद मैं रिंकी को घंटों वैसे ही खेलने देता मगर मुझे इस बात का एहसास था कि हम ज्यादा देर नहीं रह सकते और किसी के भी आ जाने का पूरा पूरा डर था। मैंने यह सोचकर ही रिंकी का सर अपने हाथों से पकड़ा और अपने लंड को एक झटके के साथ उसके मुँह में घुसेड़ कर जल्दी जल्दी आगे पीछे करने लगा…
“ग्गूऊऊउ… ऊउन्न… ग्गूऊउ…” रिंकी के मुँह से निकलते आवाज़ों को मैं सुन पा रहा था…मैंने कुछ ज्यादा ही तेज़ी से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे..
लंड उसके थूक से पूरा गीला हो गया था और चमक रहा था… कुछ थूक उसके होंठों से बहकर नीचे गिर रहा था। कुल मिलकर बड़ा मनमोहक दृश्य था… एक तो मैं पहले ही आंटी की चूत के स्पर्श के कारण जोश में था दूसरा रिंकी के मदमस्त होंठों और मुँह ने मेरे लंड को और भी उतावला कर दिया था। मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और धका-धक पेलने लगा। मेरी आँखें मज़े से बंद हो गईं और रिंकी की आवाजें बढ़ गईं…
कसम से अगर चलती ट्रेन नहीं होती तो आस पड़ोस के सरे लोग इकट्ठा हो जाते।
“उफ्फ्फ… हाँ मेरी जान, और चूसो… और तेज़… और तेज़… ह्म्म…” उत्तेजना में मैंने ये बोलते हुए बड़ी ही बेरहमी से रिंकी का मुख चोदन जारी रखा और जब मुझे ऐसा लगा कि अब मैं झड़ने वाला हूँ तो रिंकी का चेहरा थोड़ा सा उठा कर उसे इशारे से ये समझाया।
मेरा इशारा मिलते ही रिंकी की आँखों में एक चमक सी आ गई और उसने अपने एक हाथ से मेरे अण्डों को जोर से मसल दिया…
“आअह्ह्ह… ऊओह्ह्ह… रिंकी…” मैंने एक जोरदार आह के साथ उसका मुँह मजबूती से पकड़ कर अपना पूरा लंड ठूंस दिया और न जाने कितनी ही पिचकारियाँ उसके गले में उतार दी…
एक पल के लिए तो रिंकी की साँसें ही रुक सी गईं थीं, इसका एहसास तब हुआ जब रिंकी ने झटके से अपना मुँह हटा कर जोर-जोर से साँस लेना शुरू किया। मुझे थोड़ा बुरा लगा लेकिन लंड के झड़ने के वक़्त कहाँ ये ख्याल रहता है कि किसे क्या तकलीफ हो रही है.
खैर… मैं इतना सुस्त सा हो गया कि लंड के झड़ने के बाद मेरी टाँगें कांपने सी लगीं और मैं वहीं कमोड पे बैठ गया। मेरा लंड अब भी रिंकी के मुँह के रस से भीगा चमक रहा था और लंड का पानी बूंदों में टपक रहा था।
वहीं दूसरी तरफ रिंकी बिल्कुल बैठ गई थी और अपनी कातिल निगाहों से कभी मुझे तो कभी मेरे लंड को निहार रही थी। मैंने पहले ही अपने होशोहवास में नहीं था, तभी रिंकी ने आगे बढ़ कर मेरे लंड को फिर से अपने हाथों में लिया और एक बार फिर से उसे मुँह में लेकर जोर से चूस लिया..
मेरी तन्द्रा टूटी और मैंने प्यार से उसके गालों को सहला कर उसके मुँह से अपना लंड छुड़ाया और उसे अपने साथ खड़ा किया। मैंने अपना लोअर ऊपर कर लिया और रिंकी को अपनी बाहों में लेकर उसके पूरे मुँह पर प्यार से चुम्बनों की बारिश कर दी। रिंकी भी मुझसे लिपट कर असीम आनन्द की अनुभूति कर रही थी।
तभी मुझे ऐसा लगा जैसे कोई बाथरूम की तरफ आया हो…
मैंने जल्दी से रिंकी को खुद से अलग किया और फिर उसे बाथरूम के दरवाज़े के पीछे छिपा कर दरवाज़ा खोला…बाहर कोई नहीं था। मैंने रिंकी को जल्दी से जाने को कहा और खुद अन्दर ही रहा।
रिंकी ने जाते जाते भी शरारत नहीं छोड़ी और मेरे लंड को लोअर के ऊपर से पकड़ कर लिया- घबराओ मत बच्चू… तुम्हें तो मैं कल देख लूँगी !
इतना बोलकर उसने लंड को मसल दिया और जल्दी से बाहर निकल कर अपनी सीट पर चली गई।
मैंने राहत की सांस ली और थोड़ी देर के बाद मैं भी बाथरूम से निकल कर अपनी साइड वाली सीट पर जाकर सो गया। वहाँ कोई भी हलचल नहीं थी, यानि शायद किसी ने भी हमें कुछ करते हुए नहीं देखा था। मैं निश्चिन्त होकर सो गया और ट्रेन अपनी रफ़्तार से चलती रही…
सुबह चाय वाले के शोर ने मेरी नींद खोली और मैंने कम्बल हटा कर देखा तो सभी लोग लगभग जाग चुके थे। घड़ी में देखा तो सुबह के 6 बज रहे थे। आंटी, मामा जी, नेहा दीदी और मेरी प्राणप्रिया प्रिया रानी अपने अपने कम्बलों में घुस कर बैठे हुए थे और उन सबके हाथों में चाय का प्याला था। बस रिंकी अब भी सो रही थी। मैं रात की बात याद करके मुस्कुरा उठा, सोचा शायद कल के मुखचोदन से इतनी तृप्ति मिली है उसे कि समय का ख्याल ही नहीं रहा होगा।
“चाय पियोगे बेटा…?” आंटी की खनकती आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा।
मैं एक पल के लिए उनकी आँखों में देखने लगा और सोचने लगा कि क्या यह वही औरत है जिसने कल रात मुझसे अपनी चूत को मसलवाया था… उन्हें देख कर कहीं से भी यह नहीं लग रहा था कि उन्हें कल रात वाली बात से कोई मलाल हो।
मैं थोड़ा हैरान था, लेकिन गौर से उनकी आँखों में देखने से पता चला कि उन्हें भी इस बात का एहसास है कि मैं क्या समझने की कोशिश कि कर रहा हूँ।
“अरे किस ख्यालों में खो गया…अभी तो मंजिल थोड़ी दूर है…!” आंटी ने बड़े ही अजीब तरीके से कहा, मानो वो कहना कुछ और चाह रही हों और कह कुछ और रहीं हों।
उनकी दो-अर्थी बात सुनकर मैं थोड़ा घबरा गया… मेरा घबराना लाज़मी था यारों… क्यूंकि मैं अब भी असमंजस में था कि मुझे आंटी की तरफ हाथ आगे बढ़ाना चाहिए या नहीं… वैसे आंटी तो मेरे मन में तब से बसीं थीं जब मेरा ध्यान रिंकी और प्रिया पर भी नहीं गया था। उनकी मदमस्त कर देने वाली हर एक अदा का मैं दीवाना था… लेकिन अब बात थोड़ी अलग थी, अब मैं एक तो प्रिया से प्यार करने लगा था और रिंकी को भी चोद रहा था… एक आंटी के लिए मैं कुछ भी खोना नहीं चाहता था। लेकिन शायद भगवन को कुछ और ही मंजूर था।
“हाँ आंटी, मंजिल तो दूर ही है लेकिन हम पहुँचेगे जरूर !” पता नहीं मेरे मुँह से यह कैसे निकल गया। मेरे हिसाब से तो यह बात आंटी की उस बात का जवाब था जो उन्होंने शायद किसी औरे मतलब से कहा था लेकिन उन्होंने मेरी बात को अपने तरीके से ही समझा और अपने होंठों को अपने दांतों से काट कर मेरी तरफ देखा और एकदम से अपना चेहरा घुमा लिया और चाय का प्याला भरने लगीं।
मैंने भी अपना ध्यान उनकी तरफ से हटा कर दूसरी तरफ किया और उनके हाथों से चाय का प्याला ले लिया।
थोड़ी देर में हम सब फ्रेश हो गए और पटना स्टेशन के आने तक एक दूसरे से बातें करते हुए अपने अपने सामान को ठीक कर लिया। हमें पटना उतर कर वहाँ से बस लेनी थी।
ट्रेन अपने सही टाइम से पटना स्टेशन पहुँच गई। हम सब उतर गए और स्टेशन से बाहर आ गए। सामने ही एक भव्य और मशहूर मंदिर है, मैं पटना पहली बार आया था लेकिन इस मंदिर के बारे में सुना बहुत था। महावीर स्थान को देखते ही मैंने प्रणाम किया और बजरंगबली से अपने और अपने पूरे परिवार कि सुख और शांति कि कामना की। साथ ही मैंने उन्हें प्रिया को मेरी ज़िन्दगी में भेजने के लिए धन्यवाद भी किया।
उस वक़्त मुझे सच में इस बात का एहसास हुआ कि मैं प्रिया से कितना प्यार करने लगा था… यूँ तो मैंने रिंकी को भी अपनी बाहों में भरा था और कहीं न कहीं आंटी के लिए भी मेरे मन में वासना के भाव थे लेकिन भगवान के सामने सर झुकाते ही मुझे सिर्फ और सिर्फ प्रिया का ही ख्याल आया।
खैर, हम सब वहाँ से हार्डिंग पार्क पहुँचे जो पटना का मुख्य बस अड्डा था खचाखच भीड़ से भरा हुआ…
मामा जी ने जल्दी से एक बढ़िया से बस की तरफ हम सबका ध्यान आकर्षित किया और हमें उसमें चढ़ जाने के लिए कहा। शायद हमारी सीट पहले से ही बुक थी। हम सब बस में चढ़ गए और मामा जी के कहे अनुसार अपनी अपनी सीट पर बैठ गए। बस 2/2 सीट की थी तो नेहा दीदी और रिंकी एक साथ बैठ गईं। प्रिया अपने मामा जी की बड़ी लाडली थी सो वो उनके साथ बैठ गई…
वैसे मैं चाहता था कि प्रिया मेरे साथ बैठे लेकिन मामा जी के साथ साथ होने पर प्रिया के चेहरे पर जो ख़ुशी और मुस्कराहट दिखाई दे रही थी मैं उस ख़ुशी के बीच में नहीं आना चाहता था। अब मैं और आंटी ही बचे थे तो हम फिर से एक बार साथ साथ बैठ गए।
मेरा दिल धड़कने लगा और मेरी आँखों में बस कल रात का दृश्य घूमने लगा… सच बताऊँ तो मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरा पैर अब भी आंटी की साड़ी के अन्दर से उनकी चूत को मसल रहा है और उनका घुटना मेरे लंड को। मैं थोड़ा सा असहज होकर उनके साथ बैठ गया।
सुबह का वक़्त था और थोड़ी-थोड़ी ठंड थी, मैं बैठा भी था खिड़की की तरफ। मैंने अपने हाथ मलने शुरू किये तो आंटी ने बैग से एक शॉल निकाली और दोनों के ऊपर डाल ली। मेरी नींद पूरी नहीं हुई थी इसलिए मैं बस के चलते ही ऊँघने सा लगा। पटना से दरभंगा की दूरी 4 से 5 घंटे की थी। मैं खुश था कि अपनी आधी नींद मैं पूरी कर लूँगा। वैसे भी प्रिया तो मेरे साथ थी नहीं कि मैं जगता… लेकिन एक कौतूहल तो अब भी था मन में.. सिन्हा आंटी थीं मेरे साथ, और जो कुछ कल रात हुआ था वो काफी था मेरी नींद उड़ाने के लिए। मैं अपने आपको रोकना चाहता था इसलिए सो जान ही बेहतर समझा और अपना सर सीट पे टिका कर सोने की कोशिश करने लगा। सिन्हा आंटी के साथ किसी भी अनहोनी से बचने का यह सबसे अच्छा तरीका नज़र आया मुझे।
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