Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )
01-19-2019, 07:22 PM,
#10
RE: Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )
"साहेब ये है वो बाबा"..........पोलीस इनस्पेक्टर ने एस.पी के सामने उस आमाली को खड़ा कर दिया...."ह्म्म्म तुम क्या जानते हो? और यहाँ क्यूँ आए हो?".......एस.पी ने इस केस को खुद ही अपने हाथो में ले लिया था...

."आप लोग कुछ नही जानते सिर्फ़ यही समझते है कि महेज़ इंसान ही ऐसी चाल चलता है...लेकिन उससे भी दुगनी ताक़त है और वो है शैतानो की"......

.एस.पी झल्ला उठा "व्हाट नॉनसेन्स? तुम कहना चाहते हो कि ये सब काम किसी भूत पलित का है".....एस.पी कुछ मानने को तय्यार नही था उसे सिर्फ़ इस ढोंगी बाबा पे निहायत गुस्सा आ रहा था

"सच बताओ क्या कहना चाहते हो? वरना".................

.आमाली एस.पी की बात पे हँसने लगा "वरना क्या? क्या कर लोगे तुम मेरा? अगर सच जानना है तो गौर से सुनो और एक लव्ज़ ना कहना"........आमाली बताता चला गया उस सच्चाई को और एस.पी और बाकी खड़े ऊन पोलीस के माथे पे पसीने छूटते चले गये....

.............................

उस रात भी मैं जंगल के किनारे आया...चारो ओर खामोशियाँ छाई हुई थी...अचानक नथुनो में जैसे कोई महेक लगी...ये कच्चे माँस की महेक थी...मैं ना चाहते हुए भी उस ओर आया...मेरे अंदर का जुनून फिर मुझपे हावी होने लगा....

"सा..अहीब्बब वो देखिए वो आ रहा है".

..इस बात से बेख़बर कि ये इंसानो की फिर एक घिनोनी चाल थी...लेकिन वो ये नही जानते थे कि मैं उनसे ज़्यादा शातिर था सामने कच्चे माँस का टुकड़ा पड़ा हुआ था..जिसे सूंघते हुए मुझे इंसान की गंध भी मिल गयी थी 

मैने झाड़ियों की ओर देखा और इससे पहले मैं करीब जा पाता "फाइयर".....धधड़ धधह करते हुए चारो ओर रोशनी जला दी गयी और मुझपे फाइरिंग शुरू हो गयी उनकी गोलियो से बचते हुए मैं जंगल के अंदर भागने लगा....मैं जानता था इन लोगो ने मुझे देख लिया है और अब मारे बिना नही छोड़ेंगे...उनके साथ कुत्ते भी थे जो डर से मेरा पीछा नही कर पा रहे थे बस रोए जा रहे थे...एस.पी अपने साथियो के साथ हम पर हमला करने की नाकाम कोशिशें कर रहा था...लेकिन अचानक उन्हें ये ईलम ना हुआ कि मौत उनके लिए उन्हें खीचते हुए जंगल मे ला रही थी एक के बाद एक पलक झपकते ही उनके आदमी गायब होते गये और सिर्फ़ छूट गयी लाशें पीछे...

जल्द ही मैं पहाड़ के करीब आ गया ऊन लोगो ने मुझे घेर लिया वो लोग कांप ज़रूर रहे थे पर उनके पास कोई चारा नही था...उनकी आँखो मे मेरे लिए दहशत थी."आआअहह"......मैं दहाड़ते हुए उन पर टूट पड़ा गोलिया मेरे बदन को छूती चली गई एक ही पंजे में मैने एस.पी को मार डाला...लेकिन मुझे अपने बदन के दूसरी ओर गुप्ती का अहसास हुआ एक बंदे ने पीछे से मेरे बदन पे गुप्ती घुसा दी थी...मैं दहाड़ता हुआ दर्द से उसकी गर्दन दबोच चुका था...अब उनके हाथ में गन थी और उन्होने अभी गोलिया चलाई ही थी कि पीछे से बाजी ने उन्हें गर्दन से पकड़के हवा में ही फैक दिया....और उसके जिसने मुझे गुप्ती घुसाई थी उसकी गर्दन को मैने तोड़ दिया और उसके गले की नस को अपने दांतो से काट लिया वो वही तड़प तड़प कर मरने लगा बाजी ने मेरे ही सामने दोनो पोलीस कर्मी की गर्दन को पकड़ के उनकी गर्दन पे काटते हुए उनका ताज़ा खून पी लिया.....जो बचे पोलीस कर्मी थे वो भागने को हुए पर अब मेरे हाथो से सिर्फ़ उन्हें मौत ही नसीब होने वाली थी

जबतक मैने उन्हें मार डाला तब तक बाजी की एक चीख सुनाई दी...जब मूड के देखा तो बाजी के पेट से गोली आर पार हो चुकी थी और उनका हाथ खून से सरॉबार था काला खून...वो मेरी ओर कांपति निगाहो से देख रही थी...."आआआअहह"........मैं दहाड़ते हुए बाजी के करीब आके उन्हें अपने आगोश में ले लिया "हववववववववववव".......और एक बार फिर पूरे जंगल में मातम मना रहे उस भेड़िए की आवाज़ गूँज़ उठी 

सामने आमाली एक पोलीस ऑफीसर के साथ था जो मुझे डरी निगाहो से देख रहा था इससे पहले वो मुझपे वार कर पाता मैने उस कॉन्स्टेबल को एक ही बारी में गर्दन से सर काट के अलग कर दिया....आमाली सहम उठा "म...मुझहहे मांफफ्फ़ कर्र दूओ मांफफ्फ़ कर दूओ"........वो एक हिंसक भेड़िए के आगे झुक कर अपनी ज़िंदगी की भीक माँग रहा था...लेकिन बहुत देर हो चुकी थी मैने उसकी गर्दन अभी दबोची ही थी और बाजी ने उसकी गर्दन पे काट लिया वो तड़प्ता रहा छटपटाता रहा पर उसे अपने किए की तो सज़ा मिलनी ही थी....हो हो करती हवाओं के शोर में एक तूफान था....पहाड़ से एक मोटा बर्फ का ढलान गिर रहा था.....ये बर्फ़ीली तुफ्फान था...मैं बाजी के करीब आ पाता इससे पहले ही तूफान के लपेटे में हम दोनो आ गये...चारो ओर बस लाशें थी....मुझे कुछ दिखाई नही पड़ रहा था...."आसिफफ्फ़ आसिफफफफफफफफफफ्फ़"......बस एक ज़ोर की गूँज़ उठी वो आवाज़ और उसके बाद बर्फीला तूफान पहाड़ से ना जाने कहाँ बाजी गिरी कुछ मालूम नही...मैं वापिस अपने रूप में आने लगा था "बाजीीइईईई"........बस मैं सिर्फ़ चीख ही पाया क्यूंकी उसके बाद ना तो बाजी मुझे मिली और ना ही कोई और सबूत मिल सका..मैं बस उस तूफान में जैसे तैसे खोता चला गया शहर जाना आसान नही था.....क्या पता? पोलीस की टुकड़ी हमारे घर तक पहुच गयी हो और हमारे बारें सबकुछ मालूमात कर लिया हो

मैं बस चीखता चिल्लाता रहा लेकिन बाजी का मुझे कोई सबूत ना मिला...उस काली घाटी के बर्फ़ीले तूफान में मैं ना जाने कहा बेहोश होके गिरता चला गया....उसके बाद आँखे जैसे डूब सी गयी मानो जैसे अब कभी ना खुलेगी

"बज्जििइईई".......मैने एक बार फिर अपनी आँखे खोली उस भयंकर सपने से उठ चुका था...मैं इतनी ज़ोर का चिल्लाया था कि मेरी आवाज़ कमरे के चारो ओर गूँज़ उठी...वो बर्फीला तूफान बाजी की वो चीख सबकुछ गायब था....मैं एक कंबल ओढ़े कब्से नंगे बदन बिस्तर पे सोया हुआ था पता नही मेरे माथे पे लगी पट्टी और बदन के चारो तरफ लगी पत्तियो के एक तरफ खून का एक बड़ा सा धब्बा बन चुका था जो सुख गया था...अचानक एक ख़ान ड्रेस पहने गोल टोपी पहने दाढ़ी वाला शक्स अंदर आया "अर्रे बेटा तुम ठीक तो हो अच्छा हुआ तुम जाग गये हम तुम्हारी आवाज़ सुनके ही वापिस लौटे"........उसके साथ एक लड़की थी शायद उस बूढ़े आदमी की बेटी

"म..मैंन यहँन्न कैसेए?"......मेरी कुछ समझ नही आ रहा था कि मैं उस बर्फ़ीली तूफान से आखरी बार कैसे बचा था? बस मुझे इतना याद है कि मैं बेहोश हो गया था..और अपनी बाजी को खो चुका था

"दरअसल बेटा हमे तुम हमारी बस्ती के किनारे बर्फ में दबे मिले तुम्हारा सर पत्थरो पे लग गया था तुम शायद बहुत ज़ख़्मी हो गये थे 2 दिन पहले हुई उस बर्फ़बारी में ही शायद तुम्हारा यह हाल हुआ"........इतना तो तय हो चुका था कि इन लोगो को मेरे बारे में कुछ ख़ास पता नही था और मेरे लिए ये बात बहुत चैन की थी

"मेरी बेटी क़ीज़ा ने तुम्हें 2 दिन पहले नहेर के पास देखा बर्फ के अंदर से सिर्फ़ तुम्हारा हाथ दिख रहा था और तुम्हारा सर बुरी तरीके से पत्थर पे लगा हुआ था चारो ओर खून ही खून देख कर वो मेरे पास दौड़ी आई तब जाके तुम्हे यहा ले आए अब कैसा महसूस कर रहे हो बेटा? कहाँ से आए हो तुम?"..........उन्हें बताने के लिए मेरे पास कोई रास्ता तो नही था ना पूछ सकता था कि मेरे साथ क्या हुआ था? मेरी बाजी कहाँ है? ये सब सवाल मेरे अंदर उस वक़्त नदी की धारा की तरह बह रहे थे

मैं : द..अरस्सल्ल व.ओह्ह मैं पास ही के शहर का हूँ असल में हमारी गाड़ी का आक्सिडेंट हुआ तो 

बुज़ुर्ग : अच्छा अच्छा चलो अल्लाह का शूकर है कि तुम सही सलामत बच गये (बुज़ुर्ग खुदा का शुक्रियादा करने लगा बातों से ही लग रहा था कि उन्होने मेरे रूप को पहचाना नही था ना ही मैं उन्हें भेड़िए के रूप में मिला था वरना अबतक तो पोलीस मेरी लाश की शिनाख्त कर रही होती और ये लोग ख़ौफ्फ से डर जाते)
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