RE: muslim sex kahani खानदानी हिज़ाबी औरतें
फूफी खादीजा की आँखें हैरत से फॅट गईं और चेहरा गुस्से से तमतमा उठा लेकिन मामले की नज़ाकत का एहसास कर के उन्होने अपना गुस्सा दबा लिया.
"में शहनाज़ को ये करने के लिये कैसे कह सकती हूँ. तुम्हारा दिमाग तो खराब नही हो गया." उन्होने कहा.
"अगर फूफी शहनाज़ यहाँ हूँ और आप को फुद्दी मरवाते देखें तो वो भी इस काम पर राज़ी हो जायें गी और जब आप दोनो इस काम में शामिल हूँ गी तो कोई मसला नही होगा." ज़ाहिद ने अब खुल कर बात की.
“वो किया सोचे गी के में उस से किस क़िसम की हरकत करवा रही हूँ. वो कभी भी नही माने गी.” उनका गुस्सा अब कम हो गया था.
“फूफी शहनाज़ ज़रूर मान जायेंगी बस आप इस में हमारी मदद करें.” ज़ाहिद ने जवाब दिया.
“ये तो अजीब मुश्किल है. तुम मेरी और अमजद की बात में शहनाज़ को क्यों घसीट रहे हो?” फूफी खादीजा ने उस की तरफ देखते हुए कहा.
“इसी में सब का फायदा है फूफी खादीजा. आप ने ये काम कर दिया तो सारे मामलात उसी तरह चलते रहें गे जैसे चल रहे हैं.दूसरी सूरत में……..” ज़ाहिद ने धमकी-आमीज़ लहजे में कहा.
फूफी खादीजा सोच में पड़ गईं. मैंने सर के हल्के से इशारे से उन्हे मान जाने को कहा.
"चलो देखते हैं लेकिन बेटे तुम किसी से कोई बात मत करना." उन्होने एक बार फिर ज़ाहिद को ताकीद की.
“इस बात का वादा में तब करूँ गा फूफी खादीजा जब आप मुझे अपनी फुद्दी मारने दें गी.” ज़ाहिद ने दो-टोक लहजे में कहा.
कुछ देर बाद वो चला गया तो फूफी खादीजा ने मुझ से कहा:
"अब किया हो गा ये हरामी ज़ाहिद तो मुझे भी चोदना चाहता है और शहनाज़ को भी. मुझे तो डर है के ये कहीं हमारी बात अपनी कुतिया माँ को ना बता दे. वो तो मुझे बर्बाद कर दे गी."
"फूफी खादीजा आप किया बात कर रही हैं ज़ाहिद तो चाची फ़हमीदा को भी चोद रहा है." मैंने उन्हे ज़ाहिद के राज़ से आगाह कर दिया.
इस दफ़ा फूफी खादीजा के चेहरे पर हैरत के साथ साथ हल्की सी खुशी भी नज़र आई.
“तुम ने अपनी आँखों से ये होते देखा है?” उन्होने पूछा.
“नही फूफी खादीजा लेकिन मुझे ज़ाहिद ने खुद ये बात बताई है. उसे तो इस पर भी कोई ऐतराज़ नही है के में चाची फ़हमीदा को चोद लूं.” मैंने उन्हे बताया.
“ये हमारे खानदान को किया हो गया है? में तो कभी सोच भी नही सकती थी के घर की चार-दीवारी के पीछे लोग कैसे कैसे खेल खेलते हैं.” उन्होने कहा.
“बस कुछ ऐसी ही बात है फूफी खादीजा.” मैंने जवाब दिया.
“लेकिन अमजद तुम ये ना भूलो के मेरी और तुम्हारी बात जब इतने सारे लोगों को पता चल जायेगी तो किया हो गा? ऐसी सूरत में कोई भी राज़ ज़ियादा देर तक राज़ नही रह सकता.” उनका अंदेशा बिल्कुल ठीक था मगर अब किया हो सकता था.
“आप सही कह रही हैं लेकिन जिस जिस को हमारे राज़ का ईलम हो गा वो खुद भी तो यही कुछ कर रहा होगा. वो खुद भी तो बराबर का मुजरिम होगा. अपने आप को महफूज़ रखने के लिये वो हमारे राज़ को भी राज़ रखने पर मजबूर होगा.” मैंने कहा.
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