Raj sharma stories बात एक रात की
01-01-2019, 12:21 PM,
#55
RE: Raj sharma stories बात एक रात की
बात एक रात की-- 50

गतान्क से आगे...........

"मैने जो तुम्हे पारोशा है उसे देख कर मूह में पानी तो आ गया है तुम्हारे लेकिन पूजा के कारण खाने से डर रहे हो. खाना ठंडा हो जाए इस से पहले खा लो. किस्मत वाले हो तुम जो तुम्हे पारोष रही हूँ. हर किसी को नही परोसती मैं."

"यहाँ कैसे खाउ मेरी मा. पूजा ने देख लिया तो रहा सहा चान्स भी ख़तम हो जाएगा. मुझे बहकाओ मत, अगर मैं बहक गया तो बुरा हाल कर दूँगा मैं तुम्हारा."

"थियेटर खाली ही है. पीछे की तरफ चलते हैं...वहाँ तक पूजा की नज़र नही जाएगी." कविता ने कहा.

मोहित फ़ौरन सीट से उठ जाता है. उसे ऐसा लगता है कि अगर कविता के साथ वो बहक गया तो पूजा को पटाना बहुत ही मुस्किल हो जाएगा. वो पूजा के सर के पास झुका और बोला, "कैसी-कैसी थर्कि सहेलिया बना रखी है तुमने. परेशान कर दिया मुझे. जा रहा हूँ मैं ये अच्छी ख़ासी पिक्चर छोड़ के."

"तो जाओ ना हू केर्स." पूजा ने कहा.

"अपने आशिक़ की कभी तो चिंता किया करो." मोहित ने कहा.

"गो टू हेल"

"ओके गोयिंग, मैं हाथ में फूल ले कर इंतज़ार कारूगा वहाँ तुम्हारा. तुम कब आओगी."

"हेल ईज़ फॉर यू, नोट फॉर मी...गेट लॉस्ट."

"बहुत गरम हो भाई, कसम से बदन जल जाएगा मेरा जब मैं तुमसे लिपटुँगा."

"जाते हो कि नही तुम. मुझे पिक्चर देखने दो."

"जा रहा हूँ जी. बहुत बहुत धन्यवाद आपका."

कविता लगातार मोहित को ही देख रही थी. लेकिन वो उसे इग्नोर करके सीधा बाहर आ गया. उसने अपनी बाइक पर बैठ कर बाइक स्टार्ट की ही थी के उसे कविता आती दिखाई थी.

"आ गयी चूत परोसने वाली क्या करू इसका. जल्दी निकलता हूँ यहाँ से"

लेकिन कविता तो तेज़ी से आकर उसके पीछे बैठ गयी.

"अच्छा किया तुमने जो बाहर आ गये. चलो कही और चलते हैं जहा सिर्फ़ हम तुम हो"

"तुम ऐसे नही मानोगी. चल तेरी चूत की आग बुझाता हूँ आज." मोहित बाइक स्टार्ट करते हुए बोला.

"मैं तो कब से तड़प रही हूँ...बुझाओ ना."

"आज तुझे पता चलेगा कि तूने ग़लत बंदे को पारोष दी चूत अपनी. बहुत बुरी तरह खाता हूँ मैं."

"हाई राम मैं तो मर ही जाउन्गि. जैसे भी खाना खाना ज़रूर."

"थर्कि हो तुम...थर्कि"

"ये थर्कि क्या होता है?" कविता ने पूछा.

"खुद को समझ लॉगी तो थर्कि का मतलब जान जाओगी"

"बहुत अकेली थी मैं कुछ दिनो से. तुम मिले तो बहार आ गयी."

"क्या हुआ तुम्हारे बॉय फ्रेंड का?"

"ब्रेक अप हो गया बताया ना."

"ओह हां तो कोई और बॉय फ्रेंड ढूँढ लो."

"ढूँढ तो लिया... तुम हो ना"

"मैं बिल्कुल नही हूँ समझ लो अच्छे से"

"कोई बात नही आज के लिए तो हो ही."

"बिल्कुल बिल्कुल ये ठीक है"

मोहित का घर वैसे खाली था. लेकिन वो कविता को घर नही ले जाना चाहता था. क्योंकि उसे डर था कि कही रोज ना टपक पड़े वो उसके घर. इसलिए मोहित ने बाइक घने जुंगलो की तरफ मोड़ ली.

"जंगल में मंगल करोगे तुम?" कविता ने पूछा.

"बिल्कुल तुम्हारे जैसी वाइल्ड नेचर की लड़की के लिए ये जंगल ही ठीक है."

मोहित ने बाइक जंगल में घुसा दी और रोक दी. "ज़्यादा अंदर नही जाएँगे यही सड़क के नज़दीक ठीक रहेगा."

"थोड़ा तो आगे चलो...सड़क के किनारे डर लगेगा मुझे."

मोहित ने बाइक वही खड़ी कर दी और कविता का हाथ पकड़ कर थोड़ा और आगे आ गया जंगल में.

"कुछ भयानक सा सन्नाटा है यहाँ. तुम मुझे अपने घर नही ले जा सकते थे क्या? डर लग रहा है मुझे यहाँ." कविता ने कहा.

"डरने की क्या बात है. मैं हूँ ना साथ में."

"फिर भी डर लग रहा है मुझे. प्लीज़ मुझे कही और ले चलो."

"पहले तो बड़ी बेचैन हो रही थी चूत ठुकवाने के लिए...अब तुम्हे डर लग रहा है."

"देखो मुझे पता नही क्यों कुछ अहसास हो रहा है कि यहाँ कुछ गड़बड़ है. देखो ना अजीब सी खामोसी और सन्नाटा है यहाँ. मेरी बात मानो चलो यहाँ से."

"जंगल ऐसे ही होते हैं. यहाँ कोई बॅंड बाजा तो लेकर घूमेगा नही तुम्हारे लिए. अब यहाँ आ गये हैं तो काम करके ही जाएँगे. भड़का दिया है तुमने मुझे अब भुग्तो."

"वो तो मैं भुगत लूँगी पर मेरा यकीन करो यहाँ कुछ अजीब लग रहा है मुझे."

"कुछ अजीब नही है. जल्दी से ये जीन्स नीचे सरकाओ और जो पोज़िशन तुम्हे कंफर्टबल लगे लगा लो. मेरा लंड तैयार है आपके लिए." मोहित ने लंड बाहर खींच लिया.

"इतना प्यारा लंड दिखाओगे तो कोई कैसे थामेगा खुद को. मुझे डर तो लग रहा है. तुम कहते हो तो ठीक है. लेट्स डू इट क्विक्ली."

"क्विक्ली नही देवी जी. अब जब आपने भड़का दिया है मुझे तो बहुत तसल्ली से लूँगा तुम्हारी मैं...जल्दी फ्री नही होने वाली तुम."

"तो फिर घर ले जाते ना मुझे यहाँ क्यों लाए हो. ये जंगल क्या तसल्ली से करने की जगह है."

"तू ख़ामा खा डर रही है. पूरी तरह सेफ है ये .."

"तुम इतने विस्वास से कैसे कह सकते हो."

मोहित के पास कोई जवाब नही था.

.........................................................

राज शर्मा शालिनी के साथ जीप में निकल चुका था. वो ड्राइव कर रहा था और शालिनी साथ बैठी थी.

"ट्रैनिंग कैसी चल रही है तुम्हारी."

"जी मेडम बिल्कुल ठीक चल रही है. चौहान जी बहुत अच्छे से सीखा रहे हैं मुझे." राज शर्मा ने कहा.

"गुड. पद्‍मिनी को मेरे पास ला कर अच्छा किया था तुमने."

"हां मेडम. मुझे यकीन था कि आप सच को समझेंगी. आप ही के कारण तो ये नौकरी मिली है मुझे. मैं तो चक्कर लगा लगा कर थक गया था. आप ना आती तो मेरी जाय्निंग कभी ना होती."

"ईमानदारी से ड्यूटी करना हमेशा. पोलीस में आकर बिगड़ जाते हैं लोग अक्सर."

"आपको शिकायत का मोका नही दूँगा मेडम. वैसे बाहर में कहाँ जाना चाहेंगी आप"

"वैसे ही राउंड लेने का मन था. पूरे बाहर का चक्कर लगाना है मुझे."

"मेडम जी एक बात पुँच्छू बुरा ना माने तो."

"हां पूछो?"

"आप पोलीस में कैसे आ गयी."

"कैसे आ गयी मतलब. सिविल सर्विस का एग्ज़ॅम पास करके आई हूँ."

"सॉरी मेडम मेरा मतलब ये था कि क्या आपका इंटेरेस्ट था पोलीस में या फिर...."

"आइ एफ एस बन-ना चाहती थी मैं तो बन गयी आइ पी एस पर कोई बात नही दिस ईज़ गुड सर्विस."

"मेरी तो हमेशा से इच्छा थी पोलीस में आने की आपके कारण सपना साकार हुआ मेरा. आपका अहसान जिंदगी भर नही भूलूंगा मैं."

"ये कहाँ आ गये हम ये तो दोनो तरफ जंगल है." शालिनी ने कहा.

"हां मेडम ये बहुत बड़ा जंगल है. इसी रोड पर हादसा हुआ था पद्‍मिनी जी के साथ."

"ओह हां याद आया. पहली बार आई हूँ मैं इस तरफ."

"बहुत बड़ा जंगल है मेडम ये बाहर के बीच में. क्रिमिनल लोग अच्छा फ़ायडा उठाते होंगे इसका."

"बिल्कुल सही कह रहे हो. ऐसे सुनसान जंगल अक्सर क्राइम का अड्डा बन जाते हैं. वो...वो...कौन हैं जंगल में."

राज शर्मा फ़ौरन जीप रोक देता है.

"कहाँ मेडम...मुझे कुछ दिखाई नही दिया."

"नही मैने देखा अभी एक साए को इस तरफ. शायद उसने भी हमें देखा. वो छुप गया है शायद. चलो देखते हैं." शालिनी जीप से उतर जाती है.

"क्या देख लिया इन मेडम साहिबा ने मुझे कुछ दिखाई नही दिया." राज शर्मा जीप से उतरते वक्त बड़बड़ाया.

शालिनी ने अपनी सर्विस पिस्टल निकाल ली और बोली, "कौन है वहाँ बाहर आ जाओ वरना गोली मार दूँगी."

"किसी जुंगली जानवर को ना मार दे ये कयामत. बैठे बिठाये मुसीबत हो जाएगी."

"मेडम शायद कोई जानवर होगा?"

"शट अप यू ईडियट. मेरी आँखे धोका नही खा सकती. मैने देखा था किसी को....हे कौन हो तुम बाहर आओ."

बाहर तो कोई नही आया लेकिन एक गोली तेज़ी से शालिनी की और आई और उसके सर के बिल्कुल बाजू से निकल गयी. शालिनी फ़ौरन ज़मीन पर लेट गयी. राज शर्मा के पास तो कुछ था नही. वो जीप के पीछे छुप गया."मेडम सही कह रही थी. कौन है ये बंदा जो सारे आम पोलीस पर गोली चला रहा है."

शालिनी धीरे धीरे झुके झुके हाथ में पिस्टल लिए आगे बढ़ रही थी. शालिनी ने फाइयर किया. फाइयर होते ही किसी के भागने की आहट हुई. राज शर्मा भी नीचे झुक कर धीरे धीरे शालिनी के पास आ गया.

"आप सही कह रही थी मेडम"

"मैं हमेशा सही कहती हूँ. आगे से मेरी स्टेट्मेंट पर डाउट किया तो सस्पेंड कर दूँगी"

"नही करूगा मेडम. बिल्कुल नही कारूगा. लगता है वो भाग गया."

"मेरे उपर गोली चलाने वाले को मैं छोड़ूँगी नही...चलो पकड़ते हैं उसे."

"मेडम हम सिर्फ़ 2 हैं. और लोगो को बुला लूँ क्या."

"हां चौहान को फोन करो...तब तक हम कोशिस करते हैं उसे पकड़ने की."

"मेडम देख लो ये जंगल है. वो छुपा बैठा होगा कही और हमें निसाने पर ले लेगा. मेरे पास तो कुछ भी नही है. अभी तक सर्विस पिस्टल नही मिली मुझे."

"तुम मेरे पीछे पीछे आओ मैं हूँ ना साथ"

राज शर्मा चौहान को फोन करता है और उसे सारी सिचुयेशन बता देता है. वो कहता है कि 20 मिनिट में पोलीस की 2 पार्टीस पहुँच जाएँगी वहाँ.

"मेडम कही ये साइको ही तो नही है. बिना सोचे समझे पोलीस पर गोली चला दी इसने. ऐसा कोई पागल ही कर सकता है. उसे बाहर आने को ही तो बोल रही थी आप. कुछ और तो नही कहा था उसे."

"सही कह रहे हो शायद ये साइको ही है." शालिनी का ध्यान बोलते वक्त भटक जाता है और वो एक . से टकरा कर गिरने लगती है. राज शर्मा उसे संभालने की कोशिस करता है लेकिन उसका बॅलेन्स भी डगमगा जाता है और वो शालिनी को संभालने की बजाए उसको साथ लेकर उसके उपर गिरता है. बहुत ही चिंता ज़नक और नाज़ुक स्थिति बन जाती है. ए एस पी साहिबा नीचे पड़ी है और अपना राज शर्मा उसके उपर.

क्रमशः........................
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